Tag: उत्तराखंड

लकड़ी जो लकड़ी को “फोड़ने” में सहारा देती

लकड़ी जो लकड़ी को “फोड़ने” में सहारा देती

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—57 प्रकाश उप्रेती पहाड़ की संरचना में लकड़ी कई रूपों में उपस्थित है. वहाँ लकड़ी सिर्फ लकड़ी नहीं रहती. उसके कई रूप, नाम और प्रयोग हो जाते हैं. इसलिए जंगलों पर निर्भरता पर्यावरण के कारण नहीं बल्कि जीवन के कारण होती है. because जंगल, जमीन, जल, सबका संबंध जीवन से है. जीवन, जीव और जंगलातों के बीच अन्योश्रित संबंध होता है. इन्हें अलग-अलग करके पहाड़ को नहीं समझा जा सकता. इन सबसे ही पहाड़ और वहाँ का जीवन बनता है. पहाड़ आज बात उस लकड़ी की जो लकड़ी को ही 'फोड़ने' (फाड़ने) में सहारा देती थी. इसके बिना घर पर आप लकड़ी फोड़ ही नहीं सकते थे. इसका मसला वैसे ही था जैसा कबीर कहते हैं न- “अंदर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट”. ईजा तो इसे कभी 'गोठ' (घर के नीचे वाला हिस्सा) तो कभी “छन” (जहां गाय-भैंस बाँधी जाती) के अंदर संभाल कर because रखती थीं. इसका काम सिर्फ लकड़ी को सहारा देने ...
आखिर रंग लायी आयुष चिकित्सकों की मुहिम

आखिर रंग लायी आयुष चिकित्सकों की मुहिम

समसामयिक
उत्तराखंड सरकार द्वारा एक दिन की वेतन कटौती समाप्त होने से आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों में खुशी का माहौल हिमांतर ब्‍यूरो राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा because संघ उत्तराखंड (पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ० डी० सी० पसबोला ने उत्तराखंड सरकार द्वारा एक दिन की वेतन कटौती​ वापिस लिए जाने पर राज्य सरकार का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया है. रसोई डॉ० पसबोला ने बताया कि पहले सरकार केवल एलोपैथिक चिकित्सकों एवं कर्मचारियों की वेतन कटौती वापिस लेने because पर विचार कर रही थी, जिससे कि आयुष चिकित्सक एवं कर्मचारी सरकार की इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण आक्रोशित हो गए थे एवं सभी जगह इस पक्षपातपूर्ण​ निर्णय का विरोध होने लगा. आयुष चिकित्सकों because द्वारा विभिन्न प्रिंन्ट, डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इस प्रकरण को जोर शोर उठाया गया और सरकार पर चौतरफा दबाव ...
पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

संस्मरण
प्रकाश उप्रेती मूलत: उत्तराखंड के कुमाऊँ से हैं. पहाड़ों में इनका बचपन गुजरा है, उसके बाद पढ़ाई पूरी करने व करियर बनाने की दौड़ में शामिल होने दिल्ली जैसे महानगर की ओर रुख़ करते हैं. पहाड़ से निकलते जरूर हैं लेकिन पहाड़ इनमें हमेशा बसा रहता है. शहरों की भाग-दौड़ और कोलाहल के बीच इनमें ठेठ पहाड़ी पन व मन बरकरार है. यायावर प्रवृति के प्रकाश उप्रेती वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. कोरोना महामारी के कारण हुए 'लॉक डाउन' ने सभी को 'वर्क फ्राम होम' के लिए विवश किया. इस दौरान कई पाँव अपने गांवों की तरफ चल दिए तो कुछ काम की वजह से महानगरों में ही रह गए. ऐसे ही प्रकाश उप्रेती जब गांव नहीं जा पाए तो स्मृतियों के सहारे पहाड़ के तजुर्बों को शब्द चित्र का रूप दे रहे हैं. इनकी स्मृतियों का पहाड़ #मेरे #हिस्से #और #किस्से #का #पहाड़ नाम से पूरी एक सीरीज में दर्ज़ है. श्रृंखला, पहाड़ और because वहाँ ...
मुनिया चौरा की कपमार्क ओखली उत्तराखंड के आद्य इतिहास का साक्ष्य

मुनिया चौरा की कपमार्क ओखली उत्तराखंड के आद्य इतिहास का साक्ष्य

इतिहास
डॉ. मोहन चंद तिवारी एक वर्ष पूर्व दिनांक 11अक्टूबर, 2019 को जालली-मासी मोटरमार्ग पर स्थित सुरेग्वेल से एक कि.मी.दूर मुनियाचौरा गांव में मेरे द्वारा खोजी गई कपमार्क ओखली मेरी because नवरात्र शोधयात्रा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है. महापाषाण काल की यह  कपमार्क मेगलिथिक ओखली उत्तराखंड के पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को उजागर करने वाली एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक अवशेष भी है. बुदापैश्त इस ओखली के मिलने का घटनाक्रम भी बहुत रोचक है. राष्ट्रीय इतिहास लेखन की चिंताओं को लेकर नवरात्र यात्रा because के दौरान मैंने जब दिनांक 11 अक्टूबर, 2019 को कपमार्क ओखलियों का सर्वेक्षण करने के लिए 'मुनिया की धार' जाने का मन बनाया और वहां सुरेग्वेल जाकर मैंने अनेक स्थानीय लोगों से ओखलियों के रास्ते के बारे में पूछा तो उन्हें कोई ओखली की जानकारी नहीं थी. मैं फिर भी अपनी पुरानी स्मृतियों के सहारे अ...
बिना पड़ाव (बिसोंण) के नहीं चढ़ा जाए पहाड़

बिना पड़ाव (बिसोंण) के नहीं चढ़ा जाए पहाड़

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—55 प्रकाश उप्रेती पहाड़ में पड़ाव का बड़ा महत्व है. इस बात को हमसे ज्यादा वो समझते थे जिनकी समझ को हम नासमझ मानते हैं. हर रास्ते पर बैठने के लिए कुछ पड़ाव होते थे ताकि पथिक वहाँ  बैठकर सुस्ता सके. दुकान से आने वाले रास्ते से लेकर पानी, घास लाने वाले सभी रास्तों में कुछ जगहें ऐसी बना दी जाती थीं जहां पर थका हुआ इंसान because थोड़ा आराम कर सके. बुबू बताते थे कि जब वो रामनगर से पैदल सामान लेकर आते थे तो 5 दिन लगते और बीच में 12 पड़ाव पड़ते थे. वो इन पड़ावों के अलावा कहीं और नहीं बैठते थे. पत्थर अब हमारा बाजार केदार हो गया है. यह गाँव से चार एक किलोमीटर तो होगा ही. पहले इस बाजार में बड़ी रौनक रहती थी. मिठाई से लेकर किताब, कंचे, राशन, चक्की सभी की दुकानें थीं. सबसे ज्यादा तो चाय और सब्जी की दुकानें होती थीं. शाम के समय तो आस-पास के गांव वालों से पूरा बाजार पट...
अपनी खूबसरती और रहस्यमय के लिए प्रसिद्ध है रूपकुंड

अपनी खूबसरती और रहस्यमय के लिए प्रसिद्ध है रूपकुंड

इतिहास
मुर्दा और कंकाल का कुंड है रूपकुंड झील ऋचा जोशी आइए आज चलते है उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ों में स्थित रहस्यमय झील रूपकुंड तक. हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी-सी झील हैं. so यह झील 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊचाई पर स्थित हैं, जिसके चारो ओर ऊंचे ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर हैं. यहां तक पहुचने का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों की पसंदीदा जगह हैं. उत्तराखंड रूपकुंड झील को मुर्दा because और कंकाल का कुंड भी कहा जाता हैं. यह कुंड ना केवल अपनी सुन्दरता बल्कि मुर्दों के कुंड जैसे रहस्यमय इतिहास के लिए भी मशहूर हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुंड की स्थापना या निर्माण संसार के रचयिता भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती (नंदा) के लिए करवाया था. उत्तराखंड यह झील यहां पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित ह...
इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली किसी किताब की सरसता,रोचकता,कौतुहलवर्धता उस किताब के मूलतत्व अथार्त विषय, तथ्य, भाषा, प्रमाण कथ्य,उद्देश्य पर निर्भर करती है। अपनी “हाशिये पर रौशनी" ध्रुव गुप्त जी द्वारा because लिखे गये एतिहासिक, पौराणिक, अध्यात्मिक, संगीत, साहित्य, कला, पर्यावरण से संबद्ध छब्बीस आलेखों के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो पाठकों के मष्तिष्क में जिज्ञासा पैदा करने हेतु उपरोक्त मापदंड पर खरी उतरती है। परिवेश इसमें विभिन्न रंग, परिवेश because और अपनी-अपनी लियाकत की कहानी बयां करती चित्रों की विथिका या अंधेरी गुफाओं में रौशनी के पुंज से सराबोर विभिन्न व्यक्तियों के जीवन चरित्र पर आधारित चित्रावली एक दम नया अहसास, अनोखी अनुभूति है। विलुप्त किताब में इतिहास की because दहलीज पर रोशनियों की दस्तक है, उन हाशिये पर पड़ी महानतम आत्माओं पर जिनके अमुल्य व अतुलनीय योगदान व उनके महान व्यक्...
हर दुल्हन के श्रृंगार में चार चांद लगाती पारपंरिक नथ

हर दुल्हन के श्रृंगार में चार चांद लगाती पारपंरिक नथ

साहित्‍य-संस्कृति
दुनियाभर में मशहूर है टिहरी की सोने से बनी नथ आशिता डोभाल संस्कृति सिर्फ खान-पान because और रहन-सहन में ही नहीं होती, बल्कि हमारे आभूषणों में भी रची-बसी  होती है. उत्तराखंड तो संस्कृति सम्पन्न प्रदेश है और हमारी सम्पन्नता हमारे परिधानों और गहनों में सदियों पुरानी है. उत्तराखंड देश दुनिया में अपने परम्पराओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जिस वजह से विदेशी भी हमारी संस्कृति के मुरीद हुए जा रहे हैं. संस्कृति अपनी परंपरागत वेशभूषा के लिए देश so और दुनिया भर में मशहूर है उत्तराखंड. आभूषण हर महिला के श्रृंगार का एक अभिन्न हिस्सा होता है, आभूषणों की चमक-दमक से उसके चेहरे में और निखार आता है और उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं. सजने-संवरने और निखरने के लिए आभूषणों का होना अनिवार्य है. नथ आज मैं आपका उत्तराखंड के एक ऐसे आभूषण से परिचय करवाती हूं जिसे पहनने से सुंदरता में ...
गाँव का इकलौता ‘नौह’ वो भी सूख गया

गाँव का इकलौता ‘नौह’ वो भी सूख गया

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—53 प्रकाश उप्रेती पहाड़ में पानी और 'नौह' की because बात मैंने पहले भी की है लेकिन आज उस नोह की बात जिसे मैंने डब-ड़बा कर छलकते हुए  देखा है. उसके बाद गिलास से पानी भरते हुए और कई सालों से बूँद-बूँद के लिए तरसते हुए भी देखा है. पहाड़ ये हमारे छोटे से गाँव का इकलौता नौह था.but इसके बारे में तब कहा जाता था कि "सब जग पाणी बिसिक ले जालो, खोपड़ी नौह हन तो मिलोले" (अगर सब जगह पानी सूख भी जाएगा तो खोपड़ा वालों के नौह में तो मिलेगा ही). अब इसे दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य कि उस इलाके में सबसे पहले इसी नौह का पानी सूखा. एक बार सूखा तो फिर कभी लौटा भी नहीं. पानी तब पानी लाने के लिए शाम में ही जाना होता था.so ईजा घास लेने जाते हुए कहा करती थीं- "आज दी गगर भरि दिये हां पाणिल" (आज पानी से दो गगरी भर देना). हम तुरंत हाँ..हाँ..कह देते थे. शाम को एक "हलाम" (कु...
उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी एवं राज संत हरिदत्त काण्डपाल

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी एवं राज संत हरिदत्त काण्डपाल

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (24 सितम्बर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 24 सितम्बर उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राज संत श्री हरिदत्त काण्डपाल जी की पुण्यतिथि है. स्व. हरि दत्त कांडपाल ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे पाली पछाऊं क्षेत्र में आजादी के becauseआंदोलन की अलख जलाई.आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेज हुक्मरानों की नाक में दम कर दिया था,जिसकी वजह से उन्हें कई बार कठोर कारावास हुई.आजादी के बाद स्व. हरिदत्त कांडपाल 1957 से 1974 तक लगातार द्वाराहाट क्षेत्र के विधायक रहे. यूपी शासनकाल में वह वनमंत्री भी थे. जागरी गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकुमत के दौरान गांधी जी के आह्वान पर उत्तराखंड में स्वराज प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के जन आंदोलन के रूप में सल्ट क्रांति और सन 1942 में समूचे देश में 'भारत छोड़ो' आंदोलन का जो बिगुल बजा,उसमें पाली पछाऊं व द्वाराहाट- soरानीखेत क्षेत...