स्मृति-शेष

स्व. चन्द्रसिंह ‘राही’ : त्याडज्यू सै गै छा हो!

स्व. चन्द्रसिंह ‘राही’ : त्याडज्यू सै गै छा हो!

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (10 जनवरी, 2018) पर राही जी का स्मरण चारु तिवारी रात के साढ़े बारह बजे उनका फोन आया. बोले, ‘त्याड़ज्यू सै गै छा हो?’ एक बार और फोन आया. मैंने आंखें मलते हुये फोन उठाया. सुबह के चार बजे थे. बाले- ‘त्याड़ज्यू उठ गै छा हो.’ उनका फोन कभी भी आ सकता था. कोई औपचारिकता नहीं. मुझे भी कभी उनके वेवक्त फोन आने पर झुझंलाहट नहीं हुई. अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट स्थित मेरे गांव तक वे आये. मेरे पिताजी को वे बाद तक याद करते रहे. घर में जब आते तो बच्चों के लिये युद्ध का मैदान तैयार हो जाता. वे ‘बुड्डे’ की कुमाउनी वार से अपने को बचाने की कोशिश करते. पहली मुलाकात में पहला सवाल यही होता कि- ‘त्वैकें पहाड़ि बुलार्न औछों कि ना?’ मेरी पत्नी किरण तो उनके साथ धारा प्रवाह कुमाउनी बोलती. पानी के बारे में उनका आग्रह था कि खौलकर रखा पानी ही पीयेंगे. हमारी श्रीमती जी हर बार इस बात का ध्यान रखती और उनको आश्वस्त क...
समाज के सभी वर्गों के स्वीकार्य नेता थे सकल चंद रावत 

समाज के सभी वर्गों के स्वीकार्य नेता थे सकल चंद रावत 

स्मृति-शेष
चन्द्र भूषण बिजल्वाण,पुरोला उत्तरकाशी बसंत के आगमन के साथ ही उत्तरकाशी जनपद के रवांई में एक प्रखर विचारक, चिंतक, कानूनवेता, साहित्यकार, रंगकर्मी और राजनीतिक मामलों की जानकार सकलचंद रावत का जन्म नौगांव विकासखंड की सुनारा गांव में श्री नौनिहाल सिंह रावत के घर पर 2 फरवरी 1942 को हुआ. इनकी प्रारंभिक शिक्षा नौगांव के एक प्राइवेट स्कूल में हुई. कक्षा 8 की परीक्षा पुरोला से उत्तीर्ण की . इसके पश्चात हाई स्कूल एवं इंटर की पढ़ाई राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज उत्तरकाशी की. जब रावत उत्तरकाशी पढ़ते थे तो एक बार छात्रों में शर्त लगी कि गंगा नदी को जो पार करेगा उसे विद्यालय का मॉनिटर बनाया जाएगा. रावत ने यह शर्त जीत ली और उन्हें मॉनिटर बना दिया गया. छात्र जीवन से खेलकूद में रुचि होने के कारण गोला फेंक, चक्का फेंक, कबड्डी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अग्रणी पंक्ति में रहे. इंटरमीडिएट उत्तरकाशी से करने...
CDS जनरल बिपिन रावत की दूसरी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

CDS जनरल बिपिन रावत की दूसरी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

स्मृति-शेष
नई दिल्ली में जीबीआर मेमोरियल फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने आज भारत के पहले चीफ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जिसमें भारतीय नौसेना के अध्यक्ष एडमिरल आर हरि कुमार मुख्य अतिथि थे तथा पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल आरकेएस भदौरिया विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए. इस अवसर पर भारतीय सेना के कई उच्च अधिकारी भी शामिल हुए. आज ही के दिन 8 दिसम्बर 2021 को जनरल बिपिन रावत उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 12 अन्य वीर ऑफ़िसर और जवानों के साथ हेलिकॉप्टर दुर्घटना में काल के ग्रास बन गए थे. इन सब लोगों के लिए जीबीआर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया है. कभी न भुलाई जाने वाली उस दुर्घटना में बिग्रेडियर एलएस लिड्डर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, ग्रुप कैप्टन वरूण सिंह, विंग कमांडर पीएस चौहान, स्क्वाडन लीडर के स...
नायक गोपाल सिंह धामी   

नायक गोपाल सिंह धामी   

स्मृति-शेष
प्रकाश चन्द्र पुनेठा, सिलपाटा, पिथौरागढ़ उत्तराखंड के जिला पिथौरागढ़ में हमारे देश के दो पड़ोसी देशों की सीमाए मिलती हैं, उत्तर में तिब्बत के साथ और पूर्व में नेपाल के साथ। एक प्रकार से जिला पिथौरागढ़ अति संवेदनशील क्षेत्रों के अन्तर्गत आता है। हमारे देश भारत और पड़ौसी मित्र देश नेपाल के मध्य समाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टी से हम समान रुप से हैं, दोनों देशों की जनता के मध्य चाहे नेपाल से भारत या भारत से नेपाल आवागमन के लिए वीजा की आवश्यक नही है। नेपाल के साथ हमारे देश का मित्रवत व्यवहार है। सीमांत जिला पिथौरागढ़ और नेपाल के महाकाली अंचल के मध्य पूर्व से ही अति घनिष्ठ संबंध रहे है। मध्य में काली नदी दोनों देशों की सीमा रेखा है। काली नदी का उद्दगम स्थल जिला पिथोरागढ़ की धारचूला तहसील के कालापानी क्षेत्र में है। काली नदी दो देशों भारत और नेपाल की अन्तर्राट्रीय सीमा रेखा है। काली नदी अन्तार्राट्रीय सी...
गांधी जयंती: अन्य को अनन्य बनाते गांधी!

गांधी जयंती: अन्य को अनन्य बनाते गांधी!

स्मृति-शेष
 गांधी जयंती (2 अक्तूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  महात्मा गांधी का लिखा समग्र साहित्य का हिंदी संस्करण सत्तानबे खंडों के कई हज़ार पृष्ठों में समाया हुआ है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा उनके आत्म-संवाद का है जहाँ वह जीवन के अपने अनुभव की पुनर्यात्रा करते दिखाई पड़ते हैं। जीवन का पूर्वकथन संभव नहीं पर आगे के लिए नवीन रचना की कोशिश तो हो ही सकती है। यही सोच कर गांधी जी बार–बार अपने अनुभवों की मनोयात्रा में आवाजाही करते हैं। यह बड़ा दिलचस्प है कि ऐसा करते हुए वे खुद अपनी परीक्षा भी करते रहते थे। उन्होंने अपनी ग़लतियों को स्वीकार करते हुए स्वयं को कई बार दंडित किया था और प्रायश्चित्त भी किया था। आत्म-विमर्श का उनकी निजी जीवनचर्या में एक ज़रूरी स्थान था। वे अपने में दोष-दर्शन भी बिना घबड़ाए कर पाते थे। इस तरह आत्मान्वेषण उनके स्वभाव का अंग बन गया था। सतत आत्मालोचन की पैनी निगाह के साथ गांधी ज...
डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल : याद करना हिन्दी शोध के गहन अध्येता को

डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल : याद करना हिन्दी शोध के गहन अध्येता को

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (24 जुलाई, 1944) पर विशेष चारु तिवारी जब भी पौड़ी जाना होता है एक जगह हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही है. बताती रही है अपनी थाती. कोटद्वार से ऊपर जाने के बाद एक पट्टी शुरू हो जाती है कोडिया. यहीं एक गांव है पाली. बहुत चर्चित. जाना पहचाना. यहां ग्राम सभा द्वारा निर्मित प्रवेश द्वार बताता है कि आप डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल के गांव में हैं. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल का मतलब हिन्दी के पहले डी. लिट. हिन्दी की शोध परंपरा का ऐसा नाम जिसने बहुत कम उम्र में गहन अध्ययन, प्रतिबद्धता, निष्ठा और सहजता के साथ हिन्दी की सेवा की. आज उनकी पुण्यतिथि है. हम सब हिन्दी साहित्य के इन महामनीषी को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल का जन्म पौड़ी जनपद के लैंसडाउन से तीन किलोमीटर दूर कोडिया पट्टी के पाली गांव में 13 दिसंबर, 1901 में हुआ था. उनके पिता का नाम पं. गौरीदत्त ब...
‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

स्मृति-शेष
हमारी लोक विधाओं को नया आयाम देने वाले बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए चारु तिवारी उन दिनों हम लोग बग्वालीपोखर में रहते थे. यह बात 1976-77 की है. आकाशवाणी लखनऊ से शाम 5.45 बजे कार्यक्रम आता था- ‘उत्तरायण.’ शाम को  ईजा स्कूल के दो-मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो लगाती. हम सबका यह पसंदीदा कार्यक्रम था. हम किसी भी हालत में इसे मिस नहीं होने देते. हमें नहीं पता था कि इस कार्यक्रम को संचालित करने वाले हमारे ही बगल के गांव नहरा (कफड़ा) के वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी हैं. बहुत बाद में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने का मौका मिला. उन्होंने कुमाउनी भाषा और साहित्य के लिये अपना जो अमूल्य योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. जिज्ञासु जी ने आकाशवाणी लखनऊ में रहते ‘उत्तरायण’ के माध्यम से जिस तरह कुमाउनी-गढ़वाली भाषा के संवर्धन और नाटकों की शुरुआत की उस...
राणा ज्यूक याद, राणा ज्यूक बाद

राणा ज्यूक याद, राणा ज्यूक बाद

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि 13 जून, 2020 पर विशेष चारु तिवारी लोककवि-गिदार हीरासिंह राणा ज्यू गीत-कविता हमेशा आम लोगनक क्वीण-कहाणि कहते रईं. गौं-गाडाक मैसनोंक जतुक ले कष्ट और संघर्ष उनूल देखीं वैं बै उनूल शब्द और कथ्य उठाईं. उनर रचनाओं में जीवनक भोगी यथार्थ छू. जीवनाक कष्ट खालि उनार आपण न्हैंत, बल्कि उ पुर जमानाक छन जनूंल उनूकों गीत-कविता लेखणांक लिजी जमीन दैछ. उनर रचनाओं विशेषता य छू कि उं समाजाक विषयों कैं भौत कसि बैर पकड़नी और लोगोंनक कष्टों और विडंबनाओं कैं उमैं शामिल करनी. उनर गीत-कविताओं में कथ्य तो छनै छिन, लेकिन आपंण उद्गार व्यक्त करणि गैर भाव लै छन. उनर रचना- संसार में शब्द छांटणैंकि कला छु तो लोगों तक पहुंचणैंकि संवेदना लै छू. आम लोगों सरोकार में रची-पगी उनरि रचनाओं क आकाश लै भौत ठुल छू. पहाड़ाक सैंणियौंक कष्ट, आम लोगोंक तकलीफ, प्रकृतिक सौंदर्य, श्रृंगारैक खूबसूरती, प्रेम-विछोहैकि कहांणि, लोक स...
कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

स्मृति-शेष
लोक के चितेरे मोहन उप्रेती की पुण्यतिथि  (6 जून, 1997) की पूर्व संध्या पर स्मरण चारु तिवारी उस शाम मैं गुजर रहा था उद्दा की दुकान के सामने से, अचानक दुकान की सबेली में खड़े मोहन ने आवाज दी- ‘कहां जा रहा है ब्रजेन्द्र? यहां तो आ.’ क्या है यार? घूमने भी नहीं देगा.’ और मैं खीज कर उदेसिंह की दुकान के सामने उसके साथ घुस गया. उसके सामने ही लगी हुई लकड़ी की खुरदरी मेज थी. मोहन कुछ उत्तेजित-सा लग रहा था. मेज को तबला मानकर वह उसमें खटका लगाकर एक पूर्व प्रचलित कुमाउनी गीत को नितान्त नई धुन तथा द्रुत लय में गा रहा था. वह बार-बार एक ही बोल को दुहरा रहा था. उस गीत की नई और चंचल धुन मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी. गीत था- बेडू पाको बारामासा हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला. रूणा-भूणा दिन आयो हो नरैण पूजा म्यारा मैता मेरी छैला. मोहन बार-बार यही धुन दुहरा रहा था. ‘अरे भाई... आगे तो गा.’ मैं बेसब्र ...
हिमालय की एक परंपरा का जाना है पर्यावरणविद विश्वेश्वर दत्त सकलानी का अवसान

हिमालय की एक परंपरा का जाना है पर्यावरणविद विश्वेश्वर दत्त सकलानी का अवसान

संस्मरण, स्मृति-शेष
'वृक्ष मानव' विश्वेश्वर दत्त सकलानी जी की जयंती (2 जून, 1922 ) पर सादर नमन चारु तिवारी प्रकृति को आत्मसात करने वाले वयोवृद्ध पर्यावरणविद विश्वेश्वर दत्त सकलानी का अवसान हिमालय की एक परंपरा का जाना है. उन्हें कई सदर्भों, कई अर्थों, कई सरोकारों के साथ जानने की जरूरत है. पिछले दिनों जब उनकी मृत्यु हुई तो सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा के समाचार माध्यमों ने उन्हें प्रमुखता के साथ प्रकाशित-प्रसारित किया. इससे पहले शायद ही उनके बारे में इतनी जानकारी लेने की कोशिश किसी ने की हो. सरकार के नुमांइदे भी अपनी तरह से उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुये. मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया. जैसे भी हो यह एक तरह से ‘वृक्ष मानव’ की एक परंपरा को जानने का उपक्रम है जिसे कई बार, कई कारणों से भुलाया जाता है. 96 वर्ष की उम्र में (18 जनवरी, 2019) उन्होंने अपने गांव सकलाना पट्टी ...