सुनीता भट्ट पैन्यूली सुबह के साढ़े दस बजे हैं हम घर से निकल गये हैं. मुश्क़िल यह है कि मुझे हर हाल में आमेर का किला देखना है और समय हमारे पास कम है और पतिदेव ने समय सीमा बता दी है कि दो बजे तक किसी भी सूरत में देहरादून के लिए निकलना है […]
संस्मरण
लघु यात्रा संस्मरण सुनीता भट्ट पैन्यूली Treasure of thoughts are with us. They only have to be discovered…. मेरे अन्दर पेड़ नदी,पहाड़, झरने,जंगली फूलों से सराबोर प्रकृति के विभिन्न आयामों की सुंदर व अथाह प्रदर्शनी सजी हुई है किंतु फिर भी मेरा मन नहीं भरता है और मैं शरणोन्मुख because हो जाती हूं नदियों, पहाड़ों और […]
स्मृतियों के उस पार सुनीता भट्ट पैन्यूली अक्टूबर यानी पत्तियां रंग बदल रही हैं, पौधे ज़मीन पर बदरंग होकर स्वत:स्फूर्त बीज फेंक रहे हैं ज़मीन पर, जानवर सर्दियों से बचाव की तैयारी में चिंतन में आकंठ डूबे हुए हैं. यानी पूरी प्रकृति एक बदलाव की प्रक्रिया की ओर अग्रसर है. अक्तूबर आ गया है सुबह […]
फकीरा सिंह चौहान स्नेही सड़क के किनारे बस को रोकते हुए ड्राइवर ने कहा, गांव आ गया है, सभी लोग उतर जाए. मैं बस की सीट पर गहरी नींद में सोया हुआ था. ड्राइवर मुझे जगाते हुए बोला, “बाबू जी, “आपको कौन से because गांव जाना है. “आप का भाड़ा यहीं तक का है. “मैं […]
घट यानी पनचक्की (घराट) डॉ. हरेन्द्र सिंह असवाल पिछली सदी की बात है. उनके लिए जिन्होंने ये देखा नहीं, लेकिन हमारे लिए तो जैसे कल की बात है कि हम रविवार को पीठ में तीस पैंतीस किलो गेहूं, जौ लादकर घट जा रहे हैं. दूर से ही देख रहा हूँ जैसे घट का पानी टूटा […]
स्मृतियों के उस पार सुनीता भट्ट पैन्यूली पश्चाताप और क्षमा का कोई विकल्प नहीं होता. यह केवल एक भ्रम ही है जो संवेदनाओं के उत्स से मानवीय त्वचा को गीला रखता है. किसी घटना का पश्चाताप कैसे हो सकता है? जिस अबोध जीव के अल्प जीवन की स्मृतियों के सूक्ष्म अवशेष भी नहीं रख छोड़े […]
पिता की स्मृतियों को सादर नमन सुनीता भट्ट पैन्यूली समय बदल जाता है किंतु जीवन की सार्थकता जिन बिंदुओं पर निर्भर होती है उनसे वंचित होकर जीवन में क्यों, कैसे, किंतु और परंतु रूपी प्रश्न ज़ेहन में उपजकर बद्धमूल रहते हैं हमारी चेतना में और झिकसाते रहते हैं हमें ताउम्र मलाल बनकर लेकिन क्या कर […]
डॉ. अमिता प्रकाश जी! आप चैंकिए मत! थी यह बोर्ड परीक्षा ही, लेकिन हम चैड़ूधार के सभी छात्र-छात्राओं उर्फ छोर-छ्वारों के लिए पांचवी की बोल्ड परीक्षा ही होती थी. वैसे तो परीक्षा हर because साल होती रही होगी, पर हमें उसका आभास कभी हुआ ही नहीं. बिल्कुल तनावमुक्त व भयमुक्त परीक्षा होती थी हमारी. रोज […]
पहाड़ की शैतानियां-1 ललित फुलारा पहाड़ की स्मृतियों के नाम पर मेरे पास शैतानियों की भरमार है. उट-पटांग किस्से हैं, जिनको स्मरण कर बस हंसी आती है. यकीन नहीं होता, बचपन इतना जिद्दी, उजड्ड, उद्दंड so और असभ्य रहा. जिद्दीपन अब भी है, पर शैतानियां साथ छोड़ गई हैं. उद्दंडता के बाद बचपन में पड़ने […]
बाबू की पुण्यतिथि (27 फरवरी, 2015) पर स्मरण चारु तिवारी पिता के सफर में जरूरी हिस्सा थी छतरी दुःख-सुख की साथी सावन की बूंदाबादी में जीवन की अंतिम यात्रा में मरघट तक so विदा करते पिता को एक तरफ कोने में बैठी सुबकती रही मेरे साथ रस्म-पगड़ी के बाद मेरे साथ but आई सड़क तक […]
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