कला-रंगमंच

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर ‘देवभूमि’ नाटक का सफल मंचन

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर ‘देवभूमि’ नाटक का सफल मंचन

कला-रंगमंच
हिमांतर ब्यूरो नई दिल्ली। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर तथा ओलम्पिक थिएटर तक का सफर तय कर चुकी वर्ष 1968 में स्थापित सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली द्वारा 18 मार्च 2024 को मंडी हाउस स्थिति एल टी जी सभागार नई दिल्ली में उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर चंद्र मोहन पपनै द्वारा लिखित हिंदी नाटक 'देवभूमि' का प्रभावशाली मंचन खचाखच भरे सभागार में सुमन वैद्य के कुशल निर्देशन में मंचित किया गया। उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर गीत, संगीत, नृत्य व संवाद आधारित मंचित किए गए 'देवभूमि' नामक हिंदी नाटक का कथासार उत्तराखंड के आध्यात्म, जनजीवन, वीरता की मिशाल, पर्यावरण, महिलाओं के कठिन परिश्रम तथा ग्रामीणों की अंचल की परंपराओं के प्रति निष्ठा व विश्वास, रोजगार व उद्योगों के अभाव, व्याप्त विकृतियों व उनके समाधान से परिपूर्ण था। मंचित नाटक रंगमंच की हर विधा से ओतप्रोत, अति प्रभावशाली व उच्च स्तरीय था...
गढ़वाली नाटक अपणु-अपणु सर्ग का सफल मंचन

गढ़वाली नाटक अपणु-अपणु सर्ग का सफल मंचन

कला-रंगमंच
सी एम पपनैं नई दिल्ली. 3 अक्टूबर की सायं मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार मे उत्तराखंड के प्रवासियों की दिल्ली स्थित ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था 'दि हाई हिलर्स' ग्रुप द्वारा गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार के संयुक्त तत्वाधान मे हरि सेमवाल निर्देशित व सुरेश नौटियाल एवं दिनेश बिजल्वाण द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि मे‌ नवरचित गढ़वाली नाटक 'अपणु-अपणु सर्ग' का सफल मंचन खचाखच भरे सभागार मे किया गया. मंचित नाटक का श्रीगणेश गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार सचिव संजय गर्ग तथा 'दि हाई हिलर्स' ग्रुप संस्था सदस्यों मे प्रमुख दिनेश बिजल्वाण, रमेश घिल्डियाल, रविंद्र रावत, राजेन्द्र चौहान, संयोगिता ध्यानी इत्यादि द्वारा दीप प्रज्वलित कर तथा नाटक रचयिता सुरेश नौटियाल द्वारा मंचित नाटक के संक्षिप्त सार के बावत अवगत करा कर किया गया. सीमित परिवेश मे मंचि...
पड़ाव : काया में जुटेंगे नवोदित चित्रकार

पड़ाव : काया में जुटेंगे नवोदित चित्रकार

कला-रंगमंच
आज यानी 11 जून से देहरादून स्थित काया लर्निंग सेण्टर में ‘पड़ाव’ कार्यक्रम का आयोजन होने जा रहा है. यह एक मेण्टरशिप कार्यक्रम है, जिसमें उत्तराखण्ड में कला क्षेत्र से जुड़े 20 स्थानीय युवाओं को फैलोशिप प्रदान की गयी है. इस पांच दिवसीय कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उत्तराखंड निवासी चित्रकार जगमोहन बंगाणी मेण्टर के रूप में इन युवाओं को प्रशिक्षण एवं कला सम्बन्धी परामर्श देंगे. काया लर्निंग सेण्टर प्राकृतिक वातावरण में वास्तविक एवं अनुभव-आधारित ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया है. जगमोहन बंगाणी ने बताया कि यह कार्यक्रम प्रशिक्षक और प्रशिक्षुओं के बीच अनुभवात्मक साझाकरण पर केंद्रित होगा, जिसमें उत्तराखण्ड के नवोदित चित्रकारों को समकालीन कला के विभिन्न आयामों से परिचित कराते हुए उनके वर्तमान कला अभ्यास को निखारने का प्रयास किया जाएगा. उन्होंने कहा कि, वह स्वयं उत्तराखण्ड के दूरस...
पहाड़ के रंग, मशहूर चित्रकार जगमोहन बंगाणी के संग

पहाड़ के रंग, मशहूर चित्रकार जगमोहन बंगाणी के संग

कला-रंगमंच
शशि मोहन रवांल्टा दिल्ली के हौजखास विलेज में लोकायता आर्ट गैलरी (Lokayata Art Gallery) में 4 और 5 मार्च को एक चित्रकला प्रदर्शनी आयोजित होने जा रही है, जिसमें पहाड़ के दूर—दराज गांवों से आए हुए 20 युवा because नवोदित चित्रकार प्रदर्शनी के माध्यम से अपने हुनर का प्रदर्शन करेंगे. इस प्रदर्शनी का आयोजन 'उद्यम' नाम की एक सामाजिक संस्था के सहयोग से किया जा रहा है. ज्योतिष 'पहाड़ के रंग' नाम से आयोजित चित्र प्रदर्शनी में because उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के अलग—अलग गांवों से आए हुए नवोदित चित्रकार इस प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं. इस प्रदर्शनी में मुख्य भूमिका में उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के मौंडा गांव के मशहूर चित्रकार जगमोहन बंगाणी हैं. ज्योतिष जगमोहन बंगाणी ने पिछले एक साल में उत्तराखंड के अल्मोड़ा, ऋषिकेश और मुक्तेश्वर में चित्रकला की दस—दस दिवसीय कला कार्यशाला...
कला के प्रति संवेदनशीलता ही मनुष्यता को बचाएगी: जगमोहन बंगाणी

कला के प्रति संवेदनशीलता ही मनुष्यता को बचाएगी: जगमोहन बंगाणी

कला-रंगमंच, देहरादून
मनोहर चमोली ‘मनु’ जगमोहन बंगाणी की कूची से बनी पेंटिंग्स भारत से बाहर स्पेन, कोरिया, इंग्लैंड, जर्मनी जैसे देशों में उपस्थित हैं. कला के पारखी समूची दुनिया में हैं और वे अपने घरों-कार्यालयों में रचनात्मकता को भरपूर स्थान देते हैं. बंगाणी मानते हैं कि कला because आपके अपने अनुभव से आत्म-साक्षात्कार कराती है. वह स्वयं को जानने का एक असरदार साधन होती है. कला मन के भीतर चल रहे विचारों का प्रतिबिंब होती है. आप उसे बिना कहे हजारों शब्द दे सकते हैं. ज्योतिष कला के क्षेत्र में बंगाणी एक ऐसे चित्रकार हैं जो अभिनव प्रयोग के लिए जाने जाते हैं. लीक से हटकर अलहदा पेंटिग के लिए वह जाने जाते हैं. भारत के उन चुनिंदा चित्रकारों में वह एक हैं जो नए प्रयोग और दृष्टि के लिए प्रसिद्ध हैं. बंगाणी अब दिल्ली में रहते हैं. अलबत्ता उनकी जड़ें उत्तराखण्ड के मोण्डा, बंगाण से जुड़ी हुई हैं. हिमाचल because की संस्...
पहाड़ी लोक-जीवन की सांस्कृतिक यात्रा-नाटक ‘आमक जेवर’

पहाड़ी लोक-जीवन की सांस्कृतिक यात्रा-नाटक ‘आमक जेवर’

कला-रंगमंच
मीना पाण्डेय गढ़वाली, कुमाउनी एवं जौनसारी अकादमी-दिल्ली सरकार के तत्वावधान में 3 जुलाई 2022 से 9 जुलाई 2022 तक पहली बार आयोजित "बाल उत्सव-2022" (बच्चों की उमंग लोकभाषा के संग) के अंतर्गत 7 जुलाई 2022 को नाटक 'आमक जेवर' देखने का अवसर मिला. भाषाविद रमेश हितैषी द्वारा लिखित कहानी को मंच पर अपने निर्देशन के माध्यम से जिवित करने का कार्य किया श्री के•एन•पाण्डेय "खिमदा" ने. कहानी एक कुमाउनी वृद्धा व उसके जेवरों के इर्द-गिर्द घूमती है. एक भरे-पूरे परिवार की बुढिया आमा का अपने जेवरों के प्रति बहुत लगाव है. उसके पति की मृत्यु के बाद बच्चों के बीच जेवरों के बंटवारे की बात उठती है जिसे आमा नकार देती है. चार बेटों व दो बेटियों का ब्याह कर चुकी आमा के पास गांव में केवल एक बेटा उसकी सेवा के लिए है. बीमार पडने और फिर आमा की मृत्यु के बाद एक बार फिर से परिवार में जेवरों के लिए विवाद उठता है जो अंतत...
30 अप्रैल को दिल्ली में सजेगी उत्तराखंडी सिनेमा एवं संगीत की महफ़िल, यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स का होगा आयोजन

30 अप्रैल को दिल्ली में सजेगी उत्तराखंडी सिनेमा एवं संगीत की महफ़िल, यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स का होगा आयोजन

कला-रंगमंच
उत्तराखंडी सिनेमा एवं संगीत जगत एवं स्थानीय लोक-कलाकारों के प्रोत्साहन एवं व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु दिल्ली में प्रवासियों की संस्था यंग उत्तराखंड द्वारा शुरू की गयी एक सांस्कृतिक पहल जो यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स अथवा युका के नाम से बहुत चर्चित है ....एक बार पुन: अपने १०वें  संस्करण के साथ उत्तराखंडी सिनेमा संगीत जगत में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए आगामी 30 अप्रैल 2022 को दिल्ली के डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सभागार में यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स 2022 का आयोजन करने जा रही है .... इस अवार्ड शो में वर्ष 2019, 2020 एवं 2021 में उत्तराखंडी सिनेमा संगीत जगत में उल्लेखनीय कार्य करने वाले कलाकारों, व्यक्तियों अथवा संस्थानों को 8 श्रेणियों में सम्मानित किया जाएगा। यंग उत्तराखंड संस्था 2010 से यह आयोजन करती आ रही है। पिछले 2 सालों में कोरोना वैश्विक महामारी के का...
जगमोहन बंगाणी:  टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के बीच जीवन का संघर्ष

जगमोहन बंगाणी: टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के बीच जीवन का संघर्ष

कला-रंगमंच
एक चित्रकार के संघर्ष की कहानी शशि मोहन रवांल्टा सीमांत जनपद उत्तरकाशी के अंतिम छोर पर बसे मौंडा गांव में जन्में और गांव की ही पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद महानगरों का रूख किया. प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही मेरा झुकाव कला की ओर हो गया था. दैनिक जीवन की जरूरी वस्तुओं के लिए गांव से कई मील पैदल चलने के बाद हम स्थानीय बाजार में खरीददारी करने जाते थे. मैं जब अपनी किताबें लेने के लिए जाता तो अपनी कक्षा की किताबों के साथ—साथ कला की एक कॉपी के बजाए दो कॉपियां खरीद लाता था. because घर पहुंचने पर जब मां—बाप स्कूल से मिली किताबों की सूची से मिलान करते तो उन्हें कला की एक कॉपी बजाय दो कॉपियां मिलती थीं. इसके लिए माताजी से हमेशा सुनना पड़ता था कि because बिना सोचे—समझे दो कॉपियां उठा लाते हो. जबकि सारे बच्चे तो एक ही लाते हैं. चूंकि मैं बचपन से कुछ न कुछ चित्रका...
जगमोहन बंगाणी: चित्रकारी में शब्दों का जादूगर…

जगमोहन बंगाणी: चित्रकारी में शब्दों का जादूगर…

कला-रंगमंच
प्रकाश उप्रेती उत्तराखंड का एक छोटा सा गाँव मौंडा है. यह हिमाचल और उत्तराखंड के बॉर्डर पर स्थित है. एक तरह से उत्तरकाशी जिले का अंतिम छोर . मौंडा गाँव से एक लड़का कला (आर्ट) का पीछा because करते-करते देहरादून, दिल्ली होते हुए लंदन तक पहुँच जाता है. जिस दौर में इस लड़के ने कला का पीछा किया उस दौर में पहाड़ के ज्यादातर लड़कों की दौड़ सड़क से शुरू होकर सेना तक पहुँचती थी. इसलिए लंदन से लौटने पर उसके पिता ने भी उससे पूछा- बेटा विदेश से आ गया है... ये बता कोई सरकारी नौकरी इस पढ़ाई से लगेगी कि नहीं ? पहाड़ के हर पिता की चिंता अपने बेटे के लिए एक अदत सरकारी नौकरी की होती थी. ज्योतिष वह नहीं जानते थे कि उनका लड़का जो कर रहा है उसमें वह सरकारी नौकरी की दौड़ से बहुत दूर अपनी दुनिया में चला गया है. उसकी दुनिया, रंगों की दुनिया है. उसकी दुनिया because भविष्य को रेखाओं के माध्यम से रचने की दुनिया ह...
रंगमंच के विकास व समृद्धि में सत्येन्द्र शरत का अविस्मरणीय योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता 

रंगमंच के विकास व समृद्धि में सत्येन्द्र शरत का अविस्मरणीय योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता 

कला-रंगमंच
- स्मरण - महावीर रवांल्टा  27 मार्च 1987 को राजकीय पोलीटेक्निक उतरकाशी के वार्षिकोत्सव में मेरे निर्देशन में डा भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखित 'दो कलाकार' तथा सत्येन्द्र शरत द्वारा लिखित because 'समानान्तर रेखाएं' नाटक मंचित हुए थे. निर्देशन के साथ ही इनमें मैंने अभिनय भी किया था.' समानान्तर रेखाएं' में मैंने नरेश की भूमिका अभिनीत की थी.ये नाटक मैंने किसी पाठ्यक्रम के लिए प्रकाशित नाटक संग्रह से चुने थे.इनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को प्रभावित किया था. बातचीत बुलन्दशहर में नौकरी के दौरान मुझे प्रकाशन विभाग, भारत सरकार की साहित्यिक पत्रिका 'आजकल' के माध्यम से जानकारी मिली थी कि सत्येन्द्र शरत दिल्ली में रहते हैं. because पत्रिका में उनके आलेख के साथ दिए पते पर मैंने उन्हें पत्र लिखा था लेकिन बहुत दिनों तक कोई उतर नहीं मिला. इसके बाद मैंने फिर पत्र लिखे. आखिर उनका पत्र आ ही गया जिसके म...