पुण्यतिथि (24 सितम्बर) पर विशेष
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
आज 24 सितम्बर उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राज संत श्री हरिदत्त काण्डपाल जी की पुण्यतिथि है. स्व. हरि दत्त कांडपाल ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे पाली पछाऊं क्षेत्र में आजादी के
आंदोलन की अलख जलाई.आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेज हुक्मरानों की नाक में दम कर दिया था,जिसकी वजह से उन्हें कई बार कठोर कारावास हुई.आजादी के बाद स्व. हरिदत्त कांडपाल 1957 से 1974 तक लगातार द्वाराहाट क्षेत्र के विधायक रहे. यूपी शासनकाल में वह वनमंत्री भी थे.जागरी
गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकुमत के दौरान गांधी जी के आह्वान पर उत्तराखंड में स्वराज प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के जन आंदोलन के रूप में सल्ट क्रांति और सन 1942 में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का जो बिगुल बजा,उसमें पाली पछाऊं व द्वाराहाट-
रानीखेत क्षेत्र से मदनमोहन उपाध्याय, हरिदत्त कांडपाल, इंद्रलाल शाह, रामसिंह बिष्ट,भोलादत्त पांडे, भवानीदत्त, गुसाईं सिंह रावत, गंगादत्त फुलारा,आदि स्वतंत्रता सेनानियों की भी अहम भूमिका रही थी. पाली पछाऊं क्षेत्र के पचास से भी अधिक इन स्वतंत्रता सेनानियों ने गांधी जी के आह्वान पर देश की आजादी के आंदोलन को गांव गांव तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया था और कठोर कारावास की यातनाएं भी सही थीं.उत्तराखंड
बहुत दुःख की बात है कि
उत्तराखंड की वर्त्तमान राजनीति में इन स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान और उनके देशभक्ति पूर्ण समाज मूल्यों को आज भुला दिया गया है, जिसकी वजह से आजादी मिलने के 72 वर्षों बाद भी उत्तराखंड पलायन जैसी त्रासदी झेलने को विवश है. इतिहास की तारीखें गवाह हैं कि सन् 1929 में महात्मा गांधी जब ताड़ीखेत आए तो उसके बाद द्वाराहाट सहित समूचे पाली पछाऊं में स्वतंत्रता आंदोलन का जज्बा पहाड़ के गांव गांव में आग की तरह फैल गया था. कई लोग सरकारी नौकरी छोड़ कर आंदोलन में कूद पड़े. आजादी की इस लड़ाई को अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए सन् 1939 में द्वाराहाट के बिमला नगर (कफड़ा) में स्वतंत्रता संग्राम के सेवकों का एक विशाल प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुआ,जिसमें देश के प्रमुख समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव, डा. राम मनोहर लोहिया, पं.गोविंद बल्लभ पंत, मदनमोहन उपाध्याय, हरिदत्त कांडपाल, गुसाईं सिंह, गंगादत्त फुलारा, इंद्रलाल शाह आदि द्वाराहाट,रानीखेत अल्मोड़ा, बागेश्वर,सोमेश्वर आदि के क्षेत्रों के आंदोलनकारी बाजे गाजे के साथ पैदल ही बिमला नगर कफड़ा पहुंचे थे.आजादी
कैसा रहा होगा तब आजादी पाने का वह
राष्ट्रवादी सोच का जज्बा जिसकी रणनीति अल्मोड़ा जिले के बिमला नगर (कफड़ा) में बनाई गई थी. आज हम इसी राजनैतिक आंदोलन की पृष्ठभूमि से जुड़े द्वाराहाट विकास खंड के जाने माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री हरिदत्त कांडपाल जी की पुण्यतिथि पर उनके द्वारा दिए गए योगदान की विशेष चर्चा कर रहे हैं.संग्राम
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री हरिदत्त कांडपाल जी का जन्म द्वाराहाट के कांडे ग्राम में 29 फरवरी,1912 को हुआ था. पिता का नाम सेठ पद्मादत्त एवं माता का नाम शारदा देवी था.पिता रानीखेत में
तम्बाकू के प्रसिद्ध व्यवसायी थे. किन्तु 42 वर्ष की अल्पायु में ही पिता का देहांत हो जाने के कारण पूरे परिवार की जिम्मेदारी हरिदत्त पर आ पड़ी थी. इसलिए इन्होंने 15 वर्ष की आयु में अपने पिता के पुश्तैनी व्यवसाय को संभाला. कहते हैं कि इब्राहिम लिंकन के एक लेख को पढ़ कर हरिदत्त के विचार बदल गए. उन्होंने तब गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित हो कर तम्बाकू जैसे नशे के व्यवसाय को त्याग दिया और उसके स्थान पर स्वदेशी खादी के कपड़े की दुकान प्रारम्भ कर दी.सन् 1930 में कांडपाल जी कांग्रेस में शामिल हो गए. किन्तु अंग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण इन्हें द्वाराहाट में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.जागरी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारिका,जनपद अल्मोड़ा एवं स्वतंत्रता संग्राम में कुमाऊं का योगदान आदि प्रकाशित पुस्तकों के संदर्भ में द्वाराहाट नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष श्री अनिल चौधरी के माध्यम
से मिली जानकारी के अनुसार श्री हरिदत्त कांडपाल जी को गांधी जी के आह्वान पर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भाग लेने के कारण 11 सितंबर,1930 को छह माह की कठोर कारावास और 100 रुपये का अर्थदंड न देने पर छह सप्ताह की अतिरिक्त कैद हुई थी. उसके बाद 13 फरवरी,1932 को पुनः छह माह की कैद व 200 रुपये का अर्थदंड नहीं चुकाने पर उन्हें 3 माह की अतिरिक्त कैद हुई.16सितंबर,1940 को ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें 9 माह की कारावास हुई. सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कांडपाल जी को 15 माह तक नज़रबंद रखा गया था.कांडपाल
हरिदत्त कांडपाल जी अत्यंत प्रतिभाशाली सोच के कांग्रेसी नेताओं की श्रेणी में आते हैं जिन्होंने निःस्वार्थ भाव एवं राष्ट्रप्रेम की भावना से उत्तराखंड में कांग्रेस दल के संगठन को गांव गांव में जाकर मजबूत किया था. वे 1946 से 1948 तक अल्मोड़ा जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री और 1952 से 1957 तक जिला अध्यक्ष के पद पर रहे. 1957 से
1965 तक कांडपाल जी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे. द्वाराहाट और पाली पछाऊं क्षेत्र के एक समर्पित और निष्ठावान जन प्रतिनिधि के रूप में भी श्री कांडपाल जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. पहले रानीखेत से दो विधानसभा क्षेत्र हुआ करते थे.उत्तर विधानसभा क्षेत्र में द्वाराहाट, भिकियासैंण,स्याल्दे व चौखुटिया विकास खंड सम्मिलित थे. इसी विधानसभा क्षेत्र से हरिदत्त कांडपाल जी 1957,1962 और 1967 में विधायक चुने गए थे.1969 में भी वे मध्यावधि चुनाव कांग्रेस के टिकट से जीते. कांडपाल जी ने चन्द्रभानु गुप्ता और सुचेता कृपलानी के मुख्यमंत्री रहते हुए उत्तरप्रदेश सरकार में वन मंत्री,सभा सचिव जैसे अति महत्त्वपूर्ण पद का भी दायित्व संभाला था.हरिदत्त
श्री हरिदत्त कांडपाल जी प्रसिद्ध समाज सेवी
और समाजवादी विचारों के मनीषी थे. उनके डा.राम मनोहर लोहिया जी के साथ घनिष्ठ संबंध रहे थे.कई बार जेल में भी साथ रहे. डा.लोहिया उनके साथ द्वाराहाट भी आए. ‘दड़माड़’ गांव में अपनी बहिन के घर कांडपाल जी ने लोहिया जी को पहाड़ी भट्ट का जौला खिलाया. डा.राम मनोहर लोहिया 12 दिनों तक दुनागिरि में कांडपाल जी के साथ रहे.दिनेश
श्री दिनेश कांडपाल जी द्वारा अपनी फेसबुक टाइम लाइन में दी गई जानकारी के अनुसार हरिदत्त कांडपाल जी न केवल एक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे बल्कि वे एक उच्चकोटि के गायक
और संगीतकार भी थे. उन्होंने अपनी एक पोस्ट में दूनागिरि के सन 1940 का एक दुर्लभ चित्र भी दिया है जिसमें श्री हरिदत्त कांडपाल जी ध्रुपद के अंतरराष्ट्रीय ख्याति के गायक स्व.लोहिया जी व स्व. चंद्रशेखर पंत जी के साथ दर्शाए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च 2015 को गांधी जी का लोहिया जी को लिखा जो पत्र जारी किया था,उसमें श्री हरिदत्त कांडपाल जी का भी उल्लेख है.समाज
अल्मोड़ा के विद्वान श्री रमेश चंद्र कांडपाल जी द्वारा दी गई एक जानकारी के अनुसार श्री हरिदत्त कांडपाल जी उत्तराखंड के आध्यात्मिक संत बाबा श्री सोमवार गिरि, नीमकरोली महाराज,
श्री नानतिन बाबा व श्री कृष्ण चैतन्यानन्द महाराज सहित कई साधु संतों के संपर्क में रहे और उनके आध्यात्मिक विचारों का भी उनके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा. यही कारण है कि कालांतर में उन्हें ‘राज संत’ की उपाधि से भी सम्मानित किया जाने लगा. 1966-67 में कांडपाल जी का सम्पर्क योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया,रांची (बिहार) से हुआ. बाद में उन्होंने द्वाराहाट, सुरईखेत में योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना भी की. अपने जीवन के अंतिम दिनों में काण्डपाल जी ध्यान, साधना और स्वाध्याय की ऊंचाइयों में पहुंच कर 24 सितंबर, 1999 को पंचतत्त्व में विलीन हो गए. स्व.श्री हरी दत्त काण्डपाल जी की पुण्यतिथि पर मां भारती के इस अमर सपूत को शत शत नमन व अभिवंदन!!जागरी
*सन्दर्भ: ‘हमर द्वरहाट’-स्मारिका, 2011*
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)