लोक पर्व-त्योहार

प्रभु अवतरेहु हरनि महि भारा

प्रभु अवतरेहु हरनि महि भारा

लोक पर्व-त्योहार
राम नवमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  हर संस्कृति अपनी जीवन-यात्रा के पाथेय के रूप में कोई न कोई छवि आधार रूप में गढ़ती है। यह छवि एक ऐसा चेतन आईना बन जाती है जिससे आदमी अपने को पहचानता है और उसी से उसे जो होना चाहता है या हो सकता है उसकी आहट भी मिलती है। इस अर्थ में अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही इस अकेली छवि में संपुंजित हो कर आकार पाते हैं। ऐसे ही एक अप्रतिम चरितनायक के रूप में श्रीराम युगों-युगों से भारतीय जनों के मन मस्तिष्क में बैठे हुए हैं। भारतीय मन पर उनका गहरा रंग कुछ ऐसा चढ़ा है कि और सारे रंग फीके पड़ गए। भारतीय चित्त के नवनीत सदृश श्रीराम हज़ारों वर्षों से भारत और  भारतीयता के पर्याय बन चुके हैं। इसका ताज़ा उदाहरण अयोध्या है। यहाँ पर प्रभु के विग्रह को ले कर जन-जन में जो अभूतपूर्व उत्साह उमड़ रहा है वह निश्चय ही उनके प्रति लोक - प्रीति का अद्भुत प्रमाण है। वे ऐसे शिखर ...
चाहे बल्द  बैचे जो, स्याल्दे जरूर जांण छू!

चाहे बल्द  बैचे जो, स्याल्दे जरूर जांण छू!

लोक पर्व-त्योहार
चारु तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार  मनेरगा में काम चलि रौ, डबलों रनमन, मदना करूं दिल्ली नौकरी, खात में डबल छन। आज जब मैं अपने अग्रज, साहित्यकार, रंगकर्मी और लोक के चितेरे उदय किरौला जी से बात कर रहा था तो उन्होंने मुझे द्वाराहाट में इस बार लगे झोड़े के बारे में बताया। आज द्वाराहाट में स्याल्दे का मेला लगेगा। स्याल्दे मेले के बारे में द्वर्यावों (द्वाराहाट वाले) मे एक मुहावरा प्रचलित है ‘बल्द बिचै जाओ लेकिन स्याल्दे जरूर जांण छू। इस बार भी स्याल्दे मेले न जा पाने की कसक तो है, लेकिन किरौला जी के सुनाये झोड़े ने द्वाराहाट की स्मृतियों को हमेशा की तरह ताजा कर दिया। उन सामूहिक स्वरों को भी जो हमारी चेतना आ आधार रहे हैं। इन स्वरों में युगो-युगों से संचित चेतना है। यही वजह है कि यहां लगने वाले झोड़ों ने आज भी उन सामूहिक अभिव्यक्तियों को नहीं छोड़ा है जो आज किसी न किसी तरह खामोश किये जा रहे हैं। सर...
मन के दीप करें जग जगमग

मन के दीप करें जग जगमग

लोक पर्व-त्योहार
दीपावली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  अंधकार बड़ा डरावना होता है। जब वह गहराता है तो राह नहीं सूझती, आदमी यदि थोड़ा भी असावधान रहे तो उसे ठोकर लग सकती है और आगे बढ़ने का मार्ग अवरुद्ध भी हो सकता है। इतिहास गवाह है कि अंधकार के साथ  मनुष्य का संघर्ष लगातार चलता  चला आ रहा है। उसकी अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है। वस्तुत: सभ्यता और संस्कृति के विकास की गाथा अंधकार के विरूद्ध संघर्ष का ही इतिहास है। मनुष्य जब एक सचेत तथा विवेक़शील प्राणी के रूप में जागता है तो अंधकार की चुनौती स्वीकार करने पर पीछे नहीं हटता। उसके प्रहार से अंधकार नष्ट हो जाता है। संस्कृति के स्तर पर अंधकार से लड़ने और उसके प्रतिकार की शक्ति को जुटाते हुए मनुष्य स्वयं को ही दीप बनाता है। उसका रूपांतरण होता है। आत्म-शक्ति का यह दीप उन सभी अवरोधों को दूर भगाता है जो व्यक्ति और उसके समुदाय को उसके लक्...
नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत – लोक पर्व ‘सातूं-आठूं’

नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत – लोक पर्व ‘सातूं-आठूं’

लोक पर्व-त्योहार
चंद्रशेखर तिवारी रिसर्च एसोसिएट, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून ‘शिखर धुरा ठंडो पाणी मैंसर उपज्यो / गंगा टालू बड़ बोट लौलि उपजी’ यानी उच्च शिखर में ठंडी जगह पर मैसर (महेश्वर) का जन्म हुआ और गंगा तट पर वट वृक्ष की छाया में लौलि (गौरा पार्वती) पैदा हुईं. पूर्वी कुमाऊँ व पश्मिी नेपाल के इलाकों में जब लोक उत्सव सातूं-आठूं की धूम मची रहती है तब स्थानीय लोग इस गीत को बड़े ही उल्लास के साथ गाते हैं. सातूं-आठूं जो गमरा-मैसर अथवा गमरा उत्सव के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल नेपाल और भारत की साझी संस्कृति का प्रतीक पर्व है. हिमालयी परम्परा में रचा-बसा यह पर्व सीमावर्ती काली नदी के आर-पार बसे गाँवों में समान रुप से मनाया जाता है. संस्कृति के जानकार लोगों के अनुसार सातूं-आठूं का मूल उद्गम क्षेत्र पश्चिमी नेपाल है, जहाँ दार्चुला, बैतड़ी, डडेल धुरा व डोटी अंचल में यह पर्व सदियों से मनाया जाता र...
रक्षा बंधन: इस बार 30 या 31 अगस्त को?

रक्षा बंधन: इस बार 30 या 31 अगस्त को?

लोक पर्व-त्योहार
क्यों अशुभ माना जाता है भद्राकाल में राखी बांधना भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन खुशियों का त्यौहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना कर इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं। वहीं भाई प्रेमरूपी रक्षा धागे को अपनी कलाई पर बंधवा कर उम्र भर बहन की रक्षा करने का वादा करता है। हर बार की तरह रक्षाबंधन को लेकर लोग दुविधा में हैं कि इस बार राखी कब मनाई जा रही है 30 अगस्त या फिर 31 अगस्त। तो आपको बता दें कि इस बार राखी का त्यौहार दो दिन मनाया जाएगा। रक्षाबंधन का पर्व सावन पूर्णिमा पर मनाया जाता है। इस साल रक्षा बंधन 30 अगस्त को सावन की पूर्णिमा पड़ रही है। सावन की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 30 अगस्त को सुबह हो रही है। जबकि इसका समापन 31 अगस्त को सुबह सात बजकर पांच मिनट पर होगा। लेकिन 30 अगस्त को पूर्णिमा वाले दिन भद्रा का साया भी पड़ र...
देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

लोक पर्व-त्योहार
मेघा प्रकाश उत्तराखण्ड में परिभाषा के अनुसार एक बड़ा क्षेत्र 'वन' घोषित है. अतीत में, समुदाय काफी हद तक अपनी आजीविका और दैनिक जरूरतों के लिए इन जंगलों पर निर्भर था. चूंकि, जंगल अस्तित्व के केंद्र में थे, समुदाय के बीच कई सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाएं अभी भी राज्य में प्रचलित हैं. इस प्रकार पवित्र वनों, स्थलों और वृक्षों की अवधारणा इस बात का सूचक है कि कैसे अतीत में समुदाय इन वनों का प्रबंधन करता था और अपनी आजीविका के स्रोत की पूजा करता था. स्थानीय बोलचाल में पवित्र वन चिन्हित स्थल, परिदृश्य, जंगल के टुकड़े या पेड़ हैं, जिन्हें पूर्वजों और श्रद्धेय देवताओं की पवित्र आत्माएं निवास करने के स्थान के रूप में माना जाता था. विश्वास के अनुसार, लोककथाएं, लोक गीत, मेले और पवित्र वनों पर त्योहार उत्तराखंड में समुदाय का हिस्सा हैं. उदाहरण के लिए, 'पय्या' (पयां, पद्म) को पवित्र वृक्ष के रू...
अधिमास और सावन में पार्थिव पूजन

अधिमास और सावन में पार्थिव पूजन

लोक पर्व-त्योहार
भुवन चंद्र पंत इस वर्ष अधिकमास अथवा पुरूषोत्तम मास सावन के महीने में पड़ रहा है. सावन का महीना हर सनातनी के लिए शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजन का पवित्र महीना माना जाता है. लेकिन इस माह में अधिकमास होने से कई लोगों में यह शंका होना स्वाभाविक है कि क्या इस साल श्रावण माह में शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजा की जा सकेगी अथवा नहीं? पुरोहितवर्ग में मतैक्य न होने से लोग भ्रमित हैं. पुरोहितों का एक वर्ग कहता है कि इस बार श्रावण माह में शिवार्चन नहीं किया जा सकेगा, जब कि दूसरा वर्ग कहता है कि जो नियमित रूप से करते आये हैं, वे तो शिवार्चन कर सकते हैं जब कि जो पहली बार शिवार्चन की शुरुआत कर रहे हों, वे अधिकमास से शिवार्चन की शुरुआत न करें. दूसरी ओर पुरोहितों का एक बड़ा वर्ग का कहना है कि अधिकमास यदि श्रावण माह में पड़ रहा है, तो यह शिवार्चन के लिए सबसे उपयुक्त काल व अधिक पुण्य व फलदायी है. क्योंकि मांगलिक का...
बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत बात संग्रांद (संक्रांति) से पहले एक रोज की है. शाम के समय माँ जी से फोन पर बात हो रही थी. उसी दौरान माँ जी ने बताया कि- ‘अम अरसू क त्यारी करनऽ लगिई.’ ( हम अरसे बनाने की तैयारी में लगे हैं.) अरसे बनाने की तैयारी? मैं कुछ समझ नहीं पाया और मां जी से पूछ बैठा- ‘अरस! अरस काले मां?(अरसे! अरसे क्यों माँ?) तो माँ ने कहा- ‘भोव संग्रांद कणी. ततराया कोख भिजऊँ अर कुठियूँ.’ (कल संक्रांति कैसी है. उसी वक्त कहाँ भीगते और कूटे जाते हैं.) ‘काम भी मुक्तू बाजअ. अरस भी लाण, साकुईया भी उलाउणी, स्वाअ भी लाण अर त फुण्ड भी पहुंचाण.’ (काम भी बहुत हो जाता है. अरसे भी बनाने हैं. साकुईया भी तलनी है. स्वाले यानी पूरी भी बनानी है और फिर वह पहुंचाने भी हैं.) माँ जी से बात करते-करते मैं सोचने को विवश हो गया कि आख़िर गांव-घर से दूर होते ही हम कितनी चीजों से दूर हो जाते हैं. हमारी जीवन शैली कितनी बदल जाती है...
सूर्य संस्कृति की पहचान से जुड़ा स्याल्दे-बिखौती मेला

सूर्य संस्कृति की पहचान से जुड़ा स्याल्दे-बिखौती मेला

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी  सांस्कृतिक नगरी द्वाराहाट की परंपरागत लोक संस्कृति से जुड़ा उत्तराखंड का स्याल्दे बिखौती का मेला पाली पछाऊँ क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय और रंग रंगीला मेला माना जाता है.दो अलग-अलग चरणों में आयोजित, इस स्यालदे बिखोती का मेला सबसे पहले चैत्र मास की अन्तिम रात्रि ‘विषुवत्’ संक्रान्ति 13 या 14 अप्रैल को प्रतिवर्ष द्वाराहाट से 8 कि.मी.की दूरी पर स्थित विभांडेश्वर महादेव में लगता है.यहां रात्रि काल में आस-पास के गांवों के लोग और लोक नर्तक नाचते और गाते हुए नगाड़ा निशाण लेकर  विभांडेश्वर मंदिर में इकट्ठा होते हैं.दूसरे चरण में वैशाख मास की पहली और दूसरी तिथि को द्वाराहाट बाजार में स्थित शीतला देवी के मंदिर प्रांगण में स्याल्दे का मेला लगता है,जहां विभिन्न आलों के लोग 'ओड़ा भेटने' की परंपरा का निर्वाह करते हैं. विषुवत संक्रांति को विष का निदान करने वाली संक्रांति भी ...
सीय-राममय सब जग जानी

सीय-राममय सब जग जानी

लोक पर्व-त्योहार
राम नवमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  श्रीराम विष्णु के अवतार हैं. सृष्टि के कथानक में भगवान विष्णु के अवतार लेने के कारणों में भक्तों के मन में आए विकारों को दूर करना, लोक में भक्ति का संचार करना, जन – जन के कष्टों का निवारण और भक्तों के लिए भगवान की प्रीति पा सकने की इच्छा पूरा करना प्रमुख हैं. सांसारिक जीवन में मद, काम, क्रोध और मोह आदि से अनेक तरह के कष्ट होते हैं और उदात्त वृत्तियों के विकास में व्यवधान पड़ता है. रामचरितमानस में इन स्थितियों का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है, नीच और अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और अन्याय करने लगते हैं पृथ्वी और वहाँ के निवासी कष्ट पाते हैं तब-तब कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के दिव्य शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं. एक भक्त के रूप में तुलसीदास जी का विश्वास है कि सारा जगत राममय है और उनके मन में बसा ...