किस्से-कहानियां

कहानी: शीशफूल

कहानी: शीशफूल

किस्से-कहानियां
सुनीता भट्ट पैन्यूली कहानियों का नदी की तरह कोई मुहाना नहीं होता ना ही सितारों की तरह उनका कोई आसमान. एक सजग दृष्टि और कानों की एकाग्रता किसी भी विषयवस्तु को कहानियों का चोला पहना देती हैं. पलायन, बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घर छोड़कर कुछ अरसे के लिए बाहर ज़रुर चले जाते हैं किंतु आफत कम होते ही वापस अपने घर-परिवेश में आ जाते हैं. किंतु स्त्रियों के संदर्भ में ऐसा विरल ही होता है. वह पलायन नहीं करती हैं किसी भी हारी-बीमारी और विपदा में. उन्हें तो पेड़ की तरह फलने-फूलने के लिए उनकी जड़ों को एक जगह से खोदकर दूसरी जगह पर विस्थापित कर दिया जाता है . यद्यपि,अपनी मूल जगह से जहां कि उनकी जड़ों को मनमाफ़िक खाद-पानी मिल रहा था,मुश्क़िल होता है उनके लिए वह सब छोड़कर दूसरी ज़मीन पर जड़ें जमाकर पुनः हरा-भरा होना. किंतु फिर भी उन्हें जन्म से मिले संस्कार और सीख का परिणाम है कि अपने पैरों को नयी...
लोक कहानी: कर भला तो, हो भला

लोक कहानी: कर भला तो, हो भला

किस्से-कहानियां
फकीरा सिंह चौहान ‘स्नेही’ बहुत पुरानी बात है पहाड़ के उस पार एक छोटे से गांव में एक जग्गू नाम का जवान लड़का अपने मां के साथ रहता था. वह अपनी मां का अंधेरे घर का उजाला था. वह बड़ी ईमानदारी लगन और मेहनत से जिजीविषा के लिए अपने खेतों में काम करता था, तथा खेतों के पास ही उसका एक सुंदर बगीचा भी था जिसमें वह हर प्रकार  के पेड़ पौधे तथा फल फूल उगाया करता था. "उसके नींबू के बगीचे में बिजोरा के फूल खूब उगा करते थे, जिसे वह हर रोज अपनी धम्मा से पीड़ित बूढ़ी मां को अर्पित करता था. "एक बार उसकी बूढ़ी मां जग्गू को खाना परोसते हुए बोली, "बेटा मुझे अब इन सुरभित फूलों की आवश्यकता नहीं है, अपितु सहायता के लिए घर में बहू के अवलंब की जरूरत है. "तुम अब जवान हो गए हो" अपने लिए कोई खूबसूरत सी नेक लड़की देख लो, "मैं तुम्हारा विवाह करा देती हूं. "मां की बात सुनकर के बेटा मुस्कुराते हुआ बोला,  "मां मुझे आप स...
सफर खूबसूरत हो…

सफर खूबसूरत हो…

किस्से-कहानियां
कुसुम भट्ट भय की सर्द लहर के बीच में झुरझुरी उठी. अनजानी जगह, अंधेरी रात, चांद का कहीं पता नहीं. अमावस है शायद. सुनसान शहर और वह एकदम अकेली! उसने सिहरते हुए देखा, because देह का जो चोला उन सब ने पहना था उसकी तरह किसी का भी नहीं था. गोया किसी तीसरी दुनिया के वाशिंदे थे जो कभी-कभार मूवी या सीरियल में दिखाई पड़ते थे जिनसे अपना कोई संबंध नहीं होता. बस शंका और भय की because नागफनी उगा करती है. वह कुछ कहना चाहती है पर जीभ तालू से चिपक रही है. इस कदर डरावना अहसास जिंदगी में पहली मर्तबा हो रहा था. भूख लगी थी सो चली आई. तवे-सी रंगत और चुहिया-सी काया वाली निर्मला दीवान के आदेश पर बच्चे की मानिन्द चली आई थी. ज्योतिष पेट की भूख से बड़ी कोई भूख नहीं, यही समझ में आया था. निर्मला दीवान के रूखे वाक्यों के पत्थर सब पर पड़े थे. ‘यहां किसी के लिए खाना नहीं आएगा. वहीं होटल चलना पड़ेगा.’ थोड़ी दूर खड़ी अंधेरे म...
लाटी का उद्धार

लाटी का उद्धार

किस्से-कहानियां
नीमा पाठक केशव दत्त जी आज लोगों के व्यवहार से बहुत दुखी और खिन्न थे मन ही मन सोच रहे थे ऐसा क्या अपराध किया मैंने जो लोग इस तरह मेरा मजाक उड़ा रहे हैं. जो लोग रोज झुक झुक कर because प्रणाम करते थे वे ही लोग आज मुंह पर हँस रहे थे. हर जगह धारे में, नोले में, चाय की दुकान में, खेतों में, बाजार में उन्हीं की चर्चा थी. और तो और उनके खुद के स्कूल में चार लोगों को इकठ्ठा देख कर उनको लग रहा था यहाँ भी सब उन्हीं की चर्चा कर रहे हैं. लोगों का अपने प्रति ऐसा व्यवहार उनको गहरा आघात पहुंचा गया. उन्होंने दुखी होकर घर से बाहर निकलना बंद कर दिया, स्कूल नहीं जाने के भी बहाने ढूंढने लगे. ज्योतिष उनकी पत्नी उनके इस तरह के व्यवहार को जानने की कोशिश कर रही थी, तो पांडेय जी बोले, “लछुली तूने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, मेरा लोगों में मुंह दिखाना मुश्किल हो गया है अब तो मेरा मन नौकरी पर जाने का भी नहीं है.”  उसी...
मृत्यु तक स्वयं से जूझती रही वह

मृत्यु तक स्वयं से जूझती रही वह

किस्से-कहानियां
त्याग: सत्य घटना पर आधारित कहानी प्रभा पाण्डेय आज से पन्द्रह-बीस साल पहले तक हमारे पहाड़ की महिलाओं की स्थिति बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं थी क्योंकि मैंने अपने ही गांव में अनेक महिलाओं को इन परिस्थितियों की भेंट चढ़ते देखा. रामदेव नाम के एक व्यक्ति का सबसे बड़ा एक बेटा और चार छोटी बेटियां थी, बहुत कम पढ़ा-लिखा और स्वभाव से कुछ अहंकारी होने के because कारण रामदेव बेकार था. परन्तु समय ने उसे ऐसा सबक सिखाया कि उसने पण्डिताई का काम शुरू कर दिया.इस काम में उसे अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता. चारों तेज तर्रार बेटियां, तेज तर्रार माँ के साथ अपनी  थोड़ी बहुत पुश्तैनी खेती के साथ-साथ दूसरों के खेतों में मजदूरी कर  अपना गुजारा कर लेते थे जैसे-तैसे दो बड़ी बेटियों का विवाह भी हो गया. ज्योतिष एक दिन रामदेव का छोटा भाई अपने बच्चों व पत्नी सहित पुश्तैनी घर आ गया. वह  भी भाबर क्षेत्र में रहकर पण्डिताई ...
दुर्गा मैडम

दुर्गा मैडम

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राजू पाण्डेय दुर्गा मैडम का स्कूल में पहला दिन था, अब गाँव के प्राइमरी स्कूल में दो अध्यापक हो गये थे, दूसरे मासाब लोहाघाट से रोज बाइक में आते थे, दुर्गा मैडम मासाब को कह रही थी, because मासाब आप तो पुराने हो यहां मुझे गांव में ही कमरा दिला दीजिये कोई. अरे मैडम! क्या आप भी, मैं रोज आता because हूँ लोहाघाट से बाइक में पीछे वाली सीट खाली रहती है आप आ जाना साथ में, वहां दिला दूँगा कमरा आपको, गांव में क्या रखा है? ज्योतिष अरे नहीं सर मुझे गांव ही अच्छा because लगता है रोज रोज की ये दौड़ नहीं होगी मुझसे, आप छुट्टी के बाद चलियेगा मेरे साथ कोई दे देगा एक कमरा. कुछ नहीं रखा मैडम यहां बोर हो जाओगी because छुट्टी के बाद, वहां रौनक रहती है बहुत सारे स्टाफ के लोग रहते है, और एक से एक प्राइवेट स्कूल भी हैं वहां बच्चों को पढ़ाने के लिए. नहीं सर मुझे आदत है गांव की, यहीं रहूँगी. ज्योतिष छुट्ट...
सराद बाबू का…

सराद बाबू का…

किस्से-कहानियां
नीमा पाठक इस साल बचुली बूबू दो तीन महीनों के लिए अपने मैत आई थी. कितना कुछ बदल गया था पहाड़ में अब हरे भरे ऊँचे पहाड़ भी जगह  जगह उधरे पड़े थे. पहाड़ों के बीच में because गगन चुम्बी बिजली या मोबाईल के टावर खड़े थे. जंगल में चरती गाएँ भी अब कहीं नजर नहीं आ रही थीं. खेत भी या तो बंजर थे जिनमें जंगली घास उग आई थी या फिर ‘बरसीम घास’ चारे के लिए बो दी गई थी. बचुली बूबू को याद आने लगे अपने पुराने दिन जब बाबू बड़बाज्यू का श्राद्ध करते थे कितनी because तैयारी होती थी, पहले दिन से ही पंडित जी को याद दिला दी जाती थी, आस पास की बहन बेटियों को निमंत्रण दिया जाता था, बिरादरी के लोग तो आते ही थे. ज्योतिष अनाज बोना तो छोड़ ही दिया था लोगों ने क्योंकि सरकार की तरफ से किसी वर्ग को मुफ्त में और किसी को नाममात्र की कीमत पर अनाज बंट रहा था. कौन मूर्ख होगा जो खेतों में because काम करेगा, उसके लिए बैल पाल...
देबूली का दुःख

देबूली का दुःख

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नीमा पाठक मार्च का महिना था अभी भी सर्दी बहुत अधिक थी गरम कपड़ों के बिना काम नहीं चल रहा था, रातें और भी ठंडी. करीब रात के दस बजे होंगे आज फिर देबूली खो गई थी, उसका करीब एकbecause हफ्ते से यही क्रम चल रहा था. दिन तो ठीक था, पर रात होते ही वह घर से गायब हो जाती थी. घर के पीछे बांज का घना जंगल था, जंगली जानवर रात होते ही बाहर निकल आते थे और भयंकर आवाजें करते थे,  किसी की भी इतनी  हिम्मत नहीं होती थी कि वह रात में जंगल की तरफ अकेले जाए. पर यह आठ-नौ  साल की  बच्ची  पता नहीं किस हिम्मत से सारी रात अकेले जंगल में गुजार देती है, कोई भी इसे नहीं समझ पा रहा था. संसाधनों लालटेन व टौर्च की रोशनी में ढूढने वाले  बड़ी अधीरता से उसे आवाज दे रहे थे, आवाज से ही उनकी चिंता साफ समझ में आ रही थी लेकिन कभी भी देबुली उनको नहीं मिली. ढूढने के लिए उसकी जवान भाभी और एक दो पड़ोस के आदमी जाते थे. पूरी कोशिश करने...
अरे! ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है…

अरे! ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है…

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कहानी- कॉन्ट्रास्ट पार्वती जोशी पूनम ने अपनी साड़ियों की अल्मारी खोली और थोड़ी देर तक सोचती रही कि कौन-सी साड़ी निकालूँ. आज उसकी भाँजी रितु की शादी है. सोचा ससुराल पक्ष के सब लोग वहाँ उपस्थित होंगे. so उसे भी खूब सज धज कर वहाँ जाना होगा. उनमें से कोई भी साड़ी उसे पसंद नहीं आई. फिर भारी साड़ियों का बॉक्स खोला, हाल ही में उसने उन साड़ियों की तह खोलकर, उलट-पलट कर उन्हें बाहर हवा में रखा था. ग़रीब भाई वे उसके पास आकर बोले “बैनी! तेरा ये ग़रीब भाई तुझे क्या दे सकता है, ये तेरे सुहाग की चूड़ियाँ हैं, अल्ला ताला से दुआ माँगता हूँ कि तेरा सुहाग सदा बना रहे.” डबडबाई because आँखों से पूनम ने उनका हाथ पकड़ा. रुँधे गले से वह केवल इतना ही कह पाई,” नज़र भइया! ये मेरी शादी का सबसे खूबसूरत और क़ीमती तोहफ़ा है, इसे मैं हमेशा सँभाल कर अपने पास रखूँगी.” साड़ियों साल में एक बार वह उन साड़ियों को...
मेरे लायक…

मेरे लायक…

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लघु कथा डॉ. कुसुम जोशी         सिगरेट सुलगा कर वो चारों सिगरेट का कश खींचते हुये सड़क के किनारे लगी बैंच में बैठ गये. एक ने घड़ी देखी, बोला- “चार बज कर बीस मिनट” बस स्कूल की छुट्टी का समय हो गया है. सौणी कुड़िया अब आती ही होंगी”.  बाकि तीन बेशर्म हंसी हंसने लगे. दूसरा बोला “इतनी सारी लड़कियां ऐसे आती हैं, जैसे बाड़ा तोड़ कर भेड़ बकरियाँ”. समझ में नही आती कि इनमें से मेरे लायक कौन सी है, किसे फाईनल करुं यार..." तीसरा बोला, “अभी तो सभी को अपने लायक समझा कर, बाकि देख वक्त के साथ देख लेगें”, और सभी ने तेज कहकहा लगाया. चौथा मुस्कुराता हुआ बोला, “देख लो..जी भर के... नेत्रसुख ले लो... अभी तो यही बहुत है.  इतना सीरियस होने की जरुरत नही... अभी तक कभी पिटे नही, यही मेहरबानी है. पांचवां शख्स जो समान रूप से चारों के अन्दर विद्यमान था और उन्हें बरसों से जानता था वो अनायास ही बोल पड़ा, “जैसी तु...