इतिहास

जौनसार बावर से थी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की दो रानियां!

जौनसार बावर से थी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की दो रानियां!

इतिहास
रोचक इतिहास भारत चौहान यह घटना यह घटना संभवत 1930 के आसपास की रही होगी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की अनेक रानियां थी उन्हें जो भी पसंद आती थी उनसे शादी कर लेते थे। जौनसार बावर के खत कोरु के चिचराड से खीमाण परिवार की बुर्की देवी (बूर्गी रानी) का विवाह भी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह के साथ हुआ था, वह तीसरी कक्षा तक पढ़ी लिखी थी देखने में अत्यंत सुंदर बुर्गीं देवी अपनी बड़ी बहन बर्मी देवी जिसका विवाह विकासनगर के राजावाला में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था जिनका पंजाब में भी फ्रूट और बागवानी का व्यवसाय था बुर्गी देवी भी अपने दीदी के साथ पंजाब गई थी वहीं एक समारोह में महाराजा पटियाला ने उन्हें देखा और उससे विवाह कर लिया। दूसरा विवाह जौनसार बावर बड़गांव खत के कोटवा गांव देवी सिंह ढोगराण परिवार की सबसे बड़ी सुपुत्री जो अत्यंत खूबसूरत थी मालती देवी का महाराजा पटियाला के साथ हुआ था। ...
सल्ट का सत्याग्रह आंदोलन

सल्ट का सत्याग्रह आंदोलन

इतिहास
चंद्रशेखर तिवारी उत्तराखण्ड में स्थित अल्मोड़ा जनपद का पश्चिमी सीमावर्ती इलाका सल्ट कहलाता है. तीखे ढलान वाले रुखे-सूखे पहाड़, पानी की बेहद कमी, लखौरी मिर्च की पैदावार और पशुधन के नाम पर हष्ट-पुष्ट बैल इस इलाके की खास पहचान है. प्रशासनिक व्यवस्था के तहत सल्ट का इलाका चार पट्टियों (राजस्व इकाई) में बंटा हुआ है. दूधातोली पर्वत़ श्रेणी के पनढाल से निकलने वाली पश्चिमी रामगंगा नदी चैखुटिया, मासी व because भिकियासैण होकर सल्ट इलाके को छूते हुए भाबर प्रदेश को चली जाती है. स्थानीय लोक गाथाओं के अनुसार यह इलाका ’राजा हरुहीत’ की कर्मभूमि रहा है. राजा हरुहीत का जन्म आज से तकरीबन 200 साल पहले तल्ला सल्ट पट्टी के गुजड़ूकोट गांव में हुआ था. राजा हरुहीत अपनी वीरता के साथ ही अपनी दयालुता व न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे. इनके बारे में मान्यता है कि अपनी अथक मेहनत से इन्होंने बंजर पड़ी जमीन को खेती-पा...
वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है

वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है

इतिहास
प्रेस विज्ञप्ति लेख डा. मोहन चंद तिवारी 5 मार्च ,2022 को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र (Doon Library And Research Centre) से जुड़ी एक प्रेसवार्ता के अनुसार उत्तरकाशी (Uttarkashi) के देवल गांव (deval village) से पत्थर की महिष (भैंसा) मुखी एक because चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोजने का समाचार सामने आया है. शोध केंद्र के निदेशक प्रोफेसर बीके जोशी ने इस मूर्ति को 'आद्य शिव' की सिंधुकालीन मूर्ति होने का दावा किया है. कहा गया है कि इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित शोध पत्रिका “ईस्ट एंड वैस्ट” के नवीनतम अंक में हुआ है. हरताली इस मूर्ति को सिंधुकालीन होने का औचित्य सिद्ध because करते हुए शोध केंद्र से जुड़े पुरातत्त्वविद प्रो.महेश्वर प्रसाद जोशी का भी कहना है कि उत्तराखंड की यमुना घाटी में पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं,इसलिए यह मूर्ति भी सिंधुकालीन मूर्ति ...
कुमाऊं की ओखलियों में संरक्षित है वैदिक सभ्यता का इतिहास

कुमाऊं की ओखलियों में संरक्षित है वैदिक सभ्यता का इतिहास

इतिहास
डॉ. मोहन चंद तिवारी मेरे लिए दिनांक 28 अक्टूबर,2020 का दिन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन रानीखेत-मासी मोटर मार्ग में लगभग 40 कि.मी.की दूरी पर स्थित सुरेग्वेल के निकट 'मुनिया चौरा' में पुरातात्त्विक महत्त्व की महापाषाण कालीन तीन ओखलियों के पुनरान्वेषण में मुझे सफलता मिल पाई. सुरेग्वेल से एक किमी दूर 'मुनिया चौरा' गांव के पास एकदम खड़ी चढ़ाई वाले अत्यंत दुर्गम और बीहड़ झाड़ियों के बीच पहाड़ की चोटी पर because हजारों वर्षों से गुमनामी के हालात में स्थित इन ओखलियों तक पहुंचना बहुत ही कठिन कार्य था.अलग अलग पत्थरों पर खुदी हुई ये महापाषाण काल की तीन ओखलियां चारों ओर झाड़ झंकर से ढकी होने के कारण भी जन सामान्य के लिए अज्ञात ही बनी हुई थीं. ज्योतिष पर दिनांक 28 अक्टूबर,2020 को मैं मुनिया because चौरा के निवासी श्री बचीराम छिमवाल और अपने जोयूं ग्राम के बंधुओं श्री लीलाधर तिवारी,श्री दिनेश...
सल्ट क्रांति : ग्राम स्वराज का क्रांतिकारी आंदोलन

सल्ट क्रांति : ग्राम स्वराज का क्रांतिकारी आंदोलन

इतिहास
सल्ट क्रांति दिवस (5 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी देश की आजादी को लेकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जब भी आंदोलन शुरू हुआ तो उसमें उत्तराखंड के क्रांतिवीरों की अहम भूमिका रही है. समूचे देश में कुली बेगार,आंदोलन हो या गांधी जी का 'भारत छोड़ो' आंदोलन, सीमा से लगे सल्ट क्षेत्र ने इसमें बढ़चढ़ कर भाग लिया. सन् 1920 में  ही सल्ट क्षेत्र के पुरुषोत्तम उपाध्याय की because अगुवाई में लोगों ने आजादी का बिगुल बजा दिया था. 1922 में महात्मा गांधी के जेल जाने पर यहां के क्रांतिवीरों ने इसका जबरदस्त विरोध किया. पुरुषोत्तम उपाध्याय 1927 में सरकारी नौकरी छोड़कर पूरी तरह संघर्ष में कूद गए. 1927 में नशाबंदी,तंबाकू बंदी आंदोलन के दौरान धर्म सिंह मालगुजार के गोदामों में रखा तंबाकू जला दिया गया. इस क्षेत्र में गांधी जी द्वारा चलाए गए अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह,जैसे आंदोलन ग्राम पंचाय...
आखिर क्यों भूल गये हम ‘कालू महर’ को

आखिर क्यों भूल गये हम ‘कालू महर’ को

इतिहास
चन्द्रशेखर तिवारी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उत्तराखण्ड के काली कुमाऊं यानि वर्तमान चम्पावत जनपद का अप्रतिम योगदान रहा है. स्थानीय जन इतिहास के आधार पर माना जाता है कि लोहाघाट के निकटवर्ती सुई-बिसुंग इलाके के लोगों की स्वाधीनता संग्राम में बहुत ही सक्रिय भूमिका रही थी. इनमें कालू महर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. स्थानीय लोग इन्हें प्रमुखतः ’काल्मारज्यू’ के नाम से जानते हैं. कालू महर का जन्म बिसुंग के थुवा महर गांव में 1831 में हुआ था. अपने किशोरावस्था के दौर से ही कालू महर ने बिट्रिश हुकूमत का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया था. संस्कृति 1857 में जब देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया तब दुर्गम क्षेत्र होने के कारण उत्तराखण्ड में इसका विशेष प्रभाव तो नहीं पड़ा पर काली कुमाऊं की जनता ने अपने वीर सेनानायक कालू महरा की अगुवाई में विद्रोह कर ब्रिटिश प्रशासन की जडें एक तरह से हिला ह...
भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त क्रांति का बीजमंत्र

भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त क्रांति का बीजमंत्र

इतिहास
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 79वीं वर्षगांठ पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी अगस्त के महीने का भारत की आजादी के आंदोलनों से बहुत पुराना संबंध है. हमें जब आजादी नहीं मिली थी तब आज से 79 वर्ष पूर्व सन् 1942 में इसी महीने में नौ अगस्त को गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए “भारत छोड़ो आंदोलन” (क्विट इंडिया मूमेंट)  के रूप में अपनी आखिरी मुहिम चलाई थी जिसे भारत के because इतिहास में “अगस्त क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है. वर्ष 2017 में देश नौ अगस्‍त को भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ मना चुका है. उस उपलक्ष्य में संसद के दोनों सदनों में एक दिन की विशेष बैठक का आयोजन किया गया था और इस दिन संसद के नियमित कामकाज को छोड़कर सांसदों द्वारा केवल देश की आज़ादी प्राप्त करने में 'भारत छोड़ो' आंदोलन की भूमिका के महत्व पर गम्भीरता से चर्चा की गई थी. महात्मा गांधी महात्मा गांधी जी के नेतृत्व म...
हैदराबाद निजाम की सेना से कुमाऊँ रेजिमेंट तक, कुमाउँनियों की सैनिक जीवन यात्रा

हैदराबाद निजाम की सेना से कुमाऊँ रेजिमेंट तक, कुमाउँनियों की सैनिक जीवन यात्रा

इतिहास
प्रकाश चन्द्र पुनेठा विश्व के इतिहास का अध्यन करने से ज्ञात होता है कि इतिहास में उस जाति का नाम विशेषतया स्वर्ण अक्षरों से उल्लेखित किया गया है, जिस जाति ने वीरतापूर्ण कार्य किए हैं. विश्व के but इतिहास में अनेक प्रकार की युद्ध की घटनाओं का विस्तृत वर्णन मिलता हैं. इन युद्ध की घटनाओं में वीरतापूर्ण संधर्ष करने वाले वीर व्यक्तियों की गाथा का वर्णन अधिक किया गया है. शक्तिशाली, साहसी तथा वीर व्यक्तियों ने अपने स्वयं के जीवन का बलिदान देकर अपने कुल, परिवार व जाति का नाम वीर जाति में सम्मिलित किया गया हैं. हमारे देश में भी अनेक वीर जातियों का नाम उनके वीरतापूर्ण कार्यो से, व आत्मबलिदान से हमारे देश के इतिहास में दर्ज हैं. इन बहादुर जातियों ने रणक्षेत्र हो या खेल का क्षेत्र दोनो जगह अपनी श्रेष्ठता का झंडा बुलंद किया हैं. नेपाल किसी शक्तिशाली राष्ट्र की शक्ति का आभास उस राष्ट्र की सेना के...
हिंदोस्ता की सामुद्रिक विरासत (मैसोपोटामिया टू मुजरिस ) 

हिंदोस्ता की सामुद्रिक विरासत (मैसोपोटामिया टू मुजरिस ) 

इतिहास, ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-15 मंजू काला सदियों से समंद हिंदुस्तान की जन-आस्थाओं के साथ पूरे परिवेश के साथ जुड़े रहे हैं. समंदर का भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और अर्थ के क्षेत्र में विशेष स्थान रहा है. because रत्नाकर के रूप में सागर भारत भूमि को अनादिकाल से धन-धान्य से समृद्ध करते रहे हैं. सभ्यता के प्रारम्भ से लेकर आज तक भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग अपने जीवन निर्वाह के लिये पूरी तरह से समुद्रों पर ही आश्रित रहा है. आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हमने हर प्रकार से समुद्र का आशीर्वाद लिया है. मनुष्य मेरा मानना है कि समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों के कारण ही हमें विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता होने का गौरव प्राप्त हुआ. सदियों से हमारे पर्यावरण की रक्षा भी इन्हीं से होती रही है. because लेकिन, खेद के साथ लिखना चाहती हूँ कि हम सब समुद्र तट पर बैठ कर धरती की रेती को अपनी आभा से निहाल ...
पहाड़ों में शिकार पर फ़िरंगी राजकुमार: 1876

पहाड़ों में शिकार पर फ़िरंगी राजकुमार: 1876

इतिहास
स्वीटी टिंड्डे हिंदुस्तान के कई हिस्सों के आलीशान राजाओं और उनके दरबारों का मजा लेते हुए राजकुमार 7 फरवरी 1876 में ट्रेन से मुरादाबाद, नैनीताल और कुमाऊं होते हुए नेपाल because तराई के घने जंगलों में बाघ और हाथी का शिकार करते हुए गुजरना था जो डाकुओं, बाग़ियों, so और ख़ूँख़ार जानवरों के लिए जाना जाता था. नाना साहब समेत 1857 के तमाम बाग़ी (स्वतंत्रता सेनानी) हारने के बाद इन्हीं जंगलों में आकर छुपे और और उनमे से ज्यादातर इस ख़ूँख़ार जंगल के भेंट चढ़ गए थे. नैनीताल दावा किया जाता है कि इस शिकार के दौरान राजकुमार ने एक ही दिन में 6 बाघ मार डाले जिनमें से दो बाघ तो एक ही गोली से मर गए थे बिना निशाना चुके. because राजकुमार इतने मंझे हुए शिकारी थे कि हाथी को पकड़कर पहले सजाया जाता था, रंग लगाया जाता था फ़र फिर जंगल में शिकार होने के लिए छोड़ जाता था और राजकुमार उसे ढूँढकर शिकार करते थे. न...