धर्मस्थल

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यत्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यत्मिक संगम

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विजय भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार, देहरादून कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है. यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में है. यह स्थान भगवान कार्तिक (भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र) को समर्पित है. कार्तिक स्वामी मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और यह एक प्राचीन संगीतान्तर मंदिर के रूप में जाना जाता है. यहां पर अनुष्ठान, पूजा, और अन्य धार्मिक कार्यक्रम नियमित रूप से होते हैं. यह मंदिर अपने प्राकृतिक सौंदर्य, शांति और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटकों की भी भीड़ लगी रहती है जो इस प्राचीन मंदिर को दर्शन करने आते हैं. कार्तिकस्वामी यात्रा का उल्लेख तमिलनाडु और केरल में अधिक है. जून के महीने में हर साल यहां विशेष अनुष्ठान होता है. स्कंद पुराण में इस क्षेत्र का वर्णन है. यहां से हिमालय के दिव्य दर्...
पंचकेदार : 20 मई को मद्महेश्वर महादेव एवं 10 मई को तुंगनाथ मंदिर के खुलेंगे कपाट

पंचकेदार : 20 मई को मद्महेश्वर महादेव एवं 10 मई को तुंगनाथ मंदिर के खुलेंगे कपाट

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बैशाखी के शुभ अवसर पर पंचकेदार गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में यज्ञ हवन के पश्चात विधि-विधान तथा पंचांग गणना पश्चात आचार्य गणों-वेदपाठियों के द्वारा मंदिर समिति अधिकारियों-हकहकूकधारियो की उपस्थिति में कपाट खुलने की तिथि निश्चित हुई जबकि श्री तुंगनाथ जी के कपाट खुलने की तिथि शीतकालीन गद्दी स्थल श्री मार्कंडेय मंदिर ऊखीमठ में पूजा-अर्चना पंचाग गणना के पश्चात तय हुई। इस अवसर पर श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने अपने संदेश में श्रद्धालुओ को बैशाखी की शुभकामनाएं दी है और कहा कि श्री मदमहेश्वर तथा तुंगनाथ जी की यात्रा शुरू होने से पहले मंदिर समिति यात्रा तैयारियों में जुट गयी है। बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय आज शायंकाल में श्री मद्महेश्वर भगवान के डोली में आरोहण के बिखौत मेला कार्यक्रम में शामिल होने भगवान मद्महेश्वर के चलविग्रह के दर्शन हेतु श्री ओंक...
Ram Mandir Prana Pratishtha : आओ अभिराम राम!

Ram Mandir Prana Pratishtha : आओ अभिराम राम!

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श्रीराम भव्य मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भगवान के अवतारों की चर्चा की पृष्ठभूमि में अधिकांश स्थानों पर धर्म की हानि का उल्लेख मिलता है और अवतार का दायित्व विशिष्ट देश काल में धर्म की संस्थापना होती है. भारतीय काल गणना के हिसाब से श्रीराम त्रेता युग में हुए थे. अवतारों की कड़ी में मत्स्य, कूर्म और वाराह आदि से आगे चलते हुए हुए पूर्ण मनुष्य के रूप में श्रीराम पहले अवतार के रूप में प्रकट होते हैं. इसीलिए उन्हें ‘नारायण’ भी कहा जाता हैं. सौंदर्य, शक्ति और शील के विग्रह स्वरूप दशरथनंदन श्रीराम लोकाभिराम हैं जिन पर हर कोई मुग्ध होता है. उनकी कथा जीवन में धर्म की केंद्रिकता और ईर्ष्या द्वेष से परे सर्वव्यापकता को सर्वोच्च मूल्य के रूप में स्थापित करती है. पुरुषोत्तम श्रीराम पूरी तरह धर्ममय हैं. राम-कथा हम सब के बीच धर्म का मार्ग प्रशस्त करती है.   पवित्रता और धर्म-पर...
न्याय के देवता महासू महाराज

न्याय के देवता महासू महाराज

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फकीरा सिंह चौहान स्नेही महासू देवता को जौनसार-बावर में ही नहीं अपितु पूरे उत्तराखंड  हिमाचल में न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है. महासु  किसी एक देवता का नाम नहीं बल्कि चार भाइयों के नाम से महासु बंधु विख्यात है. इनका मुख्य मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर दूर तमसा नदी के पूर्वी तट पर जौनसार बावर क्षेत्र के हनोल नामक स्थान पर प्राचीन काल से ही स्थापित है. मंगोल नागर शैली से मिश्रित स्थापत्य यह मंदिर अद्भुत काष्ट कला एवं पथरो से निर्मित है. समुद्र तल से 1250 मीटर की ऊंचाई पर बने वर्तमान मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है जबकि, एएसआइ (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) के रिकार्ड में मंदिर का निर्माण 11वीं व 12वीं सदी का होने का जिक्र है. वर्तमान मे इसका संरक्षण भी एएसआइ ही कर रहा है. हनोल शब्द की उत्पत्ति यहां के एक ब्रह्मण हुणाभाट के नाम से मानी जाती है. जिसके सात पुत्र...
एक ऐसी चोटी जहां भगवान शिव ने धारण किया था महेश रूप!

एक ऐसी चोटी जहां भगवान शिव ने धारण किया था महेश रूप!

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तुंगनाथ यात्रा, पहले पड़ाव की यात्रा कथा जे. पी. मैठाणी/ फोटो : पूनम पल्लवी ये हल्की – हल्की ठण्ड भरी 17 अक्टूबर की सुबह थी , हालांकि इस यात्रा के लिए – हरी , नरेन्द्र और पूनम के साथ दो महीने से तैय्यारी चल्र रही थी लेकिन बाद में सिर्फ फाइनली पूनम ही इस यात्रा के लिए पीपलकोटी आयी , और इसके साथ मैंने भी बहुत दिनों से जो सोचा था कि, तीन बार पहले भी चंद्रशिला जाने के मौके मिले थे लेकिन जा नहीं पाया. इस बार यह संभव हो पाया. पहले 2018 में पंचकेदार – मैराथन ट्रेक के दौरान भी मुझे चंद्रशिला से थोड़े से ही नीचे रुकना पड़ा था – और ऐसे ही हुआ था पिछले दो मौकों पर ( 1993 और 1997 ( ज्यादा उंचाई होने और ऑक्सीजन की कमी से एक ट्रेकर के नाक से खून निकलने लगा था ) जब बिलकुल चंद्रशिला के निकट था लेकिन पास से ही वापस आना पड़ा. लेकिन इस बार आखिरकार ऐसा समय आया जब पंचकेदार के एक शानदार- केदार बेहद आध्यात्...
चमत्कार: ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण!

चमत्कार: ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण!

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निम्मी बुड़ाकोटी यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है. यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है. कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है. भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है. अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे. साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है. बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है. मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है. श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं. लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे. भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी. उनका वही विग्रह इस मंदिर में है. इसलिए मंदिर सालों भर हर दिन मात्र खुला रहता है. मंदिर बंद करने का...
सुखादेवी: शुकवती का उद्गम व सरस्वती का संगम स्थल

सुखादेवी: शुकवती का उद्गम व सरस्वती का संगम स्थल

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कुमाऊं क्षेत्र के उपेक्षित मन्दिर - 4  डॉ. मोहन चंद तिवारी द्वाराहाट में गर्ग आश्रम से निकलने वाली गार्गी नदी गगास के पौराणिक इतिहास के बारे में तो सब जानते हैं किंतु 'सुखादेवी' (Sukhadevi) आश्रम से निकलने वाली इस नदी की बड़ी बहिन गुमनाम 'शुकवती' के बारे में कोई नहीं जानता. आजकल महावतार बाबा की गुफा दिखाने वाली टूरिस्ट संस्थाओं द्वारा भी विदेशी टूरिस्टों को आकर्षित करने के लिए पुराण प्रसिद्ध 'शुकवती' because नदी के उद्भव स्थान 'सुखादेवी' को 'स्वेता देवी' का एक नया नाम देकर  द्रोणगिरि क्षेत्र और इस देवी स्थल को शुकदेव मुनि की तपःस्थली बताकर द्रोणगिरि और गगास घाटी की समूची नदी परम्परा और उसके निकट बसे ऐतिहासिक शैव मंदिरों के इतिहास की भी विकृत व्याख्या की जा रही है.जिस सरस्वती नदी की वेदों में श्रेष्ठतम माता, श्रेष्ठतम नदी और श्रेष्ठतम देवी के रूप में स्तुतिगान हुआ है,उसे 'स्वेता देवी...
अग्नेरी देवी,चौखुटिया : महाभारत काल की राष्ट्रीय धरोहर

अग्नेरी देवी,चौखुटिया : महाभारत काल की राष्ट्रीय धरोहर

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 शोध लेख: कुमाऊं क्षेत्र के उपेक्षित मन्दिर-3 डा. मोहन चंद तिवारी चौखुटिया से लगभग 0.5 कि.मी.दूर जौरासी रोड,रामगंगा नदी के तट पर धुदलिया गांव के पास स्थित अग्नेरी देवी का का प्राचीन मन्दिर कत्यूरी कालीन इतिहास की एक अमूल्य धरोहर है. because देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि में बसी रंगीली गेवाड़ घाटी की कुमाऊंनी लोकसाहित्य और संस्कृति के निर्माण में अहम भूमिका रही है. यहां के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में कत्यूर की राजधानी लखनपुर,गेवाड़ की कुलदेवी मां अगनेरी का मंदिर, रामपादुका मन्दिर,मासी का भूमिया मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. ‘राजुला मालूशाही’ की प्रेमगाथा के कारण भी बैराठ चौखुटिया की यह घाटी ‘रंगीली गेवाड़’ के नाम से प्रसिद्ध है. हरताली यहां अग्नेरी देवी के मन्दिर में लगने वाला चैत्राष्टमी का मेला कुमाऊं का एक प्रसिद्ध मेला माना जाता है. यहां अपनी मनौतियों   को पूर्ण करने ह...
द्वाराहाट क्षेत्र का ‘बागेश्वर’ : सदियों से उपेक्षित पांडवकालीन तीर्थ

द्वाराहाट क्षेत्र का ‘बागेश्वर’ : सदियों से उपेक्षित पांडवकालीन तीर्थ

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कुमाऊं क्षेत्र के उपेक्षित मन्दिर-1 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखंड देव संस्कृति का उद्गम स्थल है और वहां के मन्दिरों के स्थापत्य और अद्भुत मूर्तिकला ने भारत के ही नहीं विश्व के कला प्रेमियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है. किंतु पुरातत्त्वविदों और स्थापत्यकला के विशेषज्ञों द्वारा द्वाराहाट,जागेश्वर, because बैजनाथ के मन्दिरों के स्थापत्य और मूर्तिकला का सतही तौर से ही आधा अधूरा मूल्यांकन किया गया है. स्थानीय लोक संस्कृति के धरातल पर तो मूल्यांकन बिल्कुल ही नहीं हुआ है. इनके अलावा दूर दराज के गांवों और नौलों के मन्दिरों का स्थापत्य और मूर्तियों का कलात्मक मूल्यांकन आज भी उपेक्षित और अनलोचित ही पड़ा है.  उत्तराखंड की अधिकांश मूर्तियां धर्म द्वेषियों द्वारा खंडित कर दी गई हैं. किंतु इन खंडित मूर्तियों में भी उत्तराखंड का आदिकालीन इतिहास और देव संस्कृति की झलक आज भी इतनी शक्तिशाली है कि व...
जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

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  कुमाऊं में मनिया मंदिर: एक पुनर्विवेचना -4 डॉ. मोहन चंद तिवारी सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार 'मन्याओं' का सबसे अधिक निर्माण दारमा जोहार क्षेत्र की महान दान वीरांगना जसुली शौकयाणी के द्वारा किया गया. लला (आमा) के नाम से विख्यात जसुली शौकयाणी ने कुमाऊ, गढ़वाल, नेपाल तक मन्याओं because और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया. सोमेश्वर, जागेश्वर, बागेश्वर, कटारमल, द्वाराहाट आदि स्थान धार्मिक मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध होने के कारण इन मार्गों पर सबसे अधिक मन्याओं का निर्माण कार्य हुआ है. ज्योतिष अठारहवीं सदी या उससे पहले जब यातायात के संसाधन नहीं थे, तब व्यापारिक, धार्मिक, विवाह आदि यात्राएं पैदल ही की जाती थीं . ऐसे समय में पैदल मार्ग वाले निर्जन और धार्मिक महत्त्व के स्थानों में रात्रि विश्रामालयों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाना पुण्यदायी कार्य माना जाता था. धारचूला के ...