हिमालयी राज्य

स्‍त्री देह आकार और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विख्‍यात है रेणुका झील

स्‍त्री देह आकार और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विख्‍यात है रेणुका झील

हिमाचल-प्रदेश
दीपा कौशलम हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सिरमौर जिले में रेणुका झील एक रमणीय और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. ये एक लंबाकार झील है जो नाहन और संगराह के बीच स्थित है. रेणुका झील (Renuka Lake) अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पर्यटकों को आकर्षित करने वाला स्थान है जहां चारों तरफ फैली हरियाली मन मोह because लेती है. रेणुका झील समुद्र तल से 672 मीटर उपर एक आद्रभूमि है जहां झील के अतिरिक्त सैंचुरी और चिड़ियाघर भी है जिसमें विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों को देखा जा सकता है. सन् 1987 में इस जगह को वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया गया और सन्  2005 में अद्वितीय जैव विविधता के कारण रामसर क्षेत्र में शामिल कर दिया गया. हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल के अलग-अलग हिस्सों से पर्यटक इस झील को देखने आते हैं . आसपास क्षेत्रीय लोगों के अनुसार रेणुका झील की उत्पत्ति की धार्मिक कथा इस प्रकार है- रेणु न...
अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

हिमाचल-प्रदेश
आदिकाल से देवताओं, गन्धर्वों, किन्नरों और मनुष्यों की मिली जुली जातियों का संगम स्थल रहा है लाहुल सुनीता भट्ट पैन्यूली देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां अपने because नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रचलित है वहीं इसी प्रदेश का एक विश्व-प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लाहौल-स्पीति अपनी अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है. हिमाचल लाहौल और स्पीति  भारत का एक ऐसा क्षेत्र so जिसके अस्तित्व की भारत के मानक-चित्र में उपस्थिति की जानकारी  संभवतः बहुत कम लोगों को है, हिमाचल प्रदेश की दो पृथक हिमालयी घाटियां लाहौल और स्पीति हैं जो भारत तिब्बत सीमा पर स्थित हैं. लाहौल घाटी जहां प्राकृतिक रूप से समृद्ध, चंद्र but और भागा नदियों द्वारा पोषित व फलीभूत है वहीं स्पीति अपने विस्तीर्ण बर्फीले रेगिस्तानों, लुभावने ट्रैक, घाटियों और मठों के लिए प्रसिद्ध है. रोहतांग दर्रे को पार करते ...
गिलोय : एक बहुउपयोगी बेल जिसके हैं सैकड़ों उपयोग

गिलोय : एक बहुउपयोगी बेल जिसके हैं सैकड़ों उपयोग

अभिनव पहल, हिमालयी राज्य
जे. पी. मैठाणी सेहत के लिए अमृत है गिलोय! गिलोय- गिलोय को अंग्रेजी में टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया, गढ़वाली में गिले और मराठी में गुड़ची बोलते हैं. संस्कृत में गिलोय का नाम अमृता है. यह एक बेल है और आंशिक परजीवी के रूप में दूसरे पेड़ों पर लिपट कर बढ़ती है. लेकिन गिलोय को क्यारियों और गमलों में भी उगाया जा सकता है. गिलोय की बेल को मकान या चारदीवारी पर पिलर और तारों के सपोर्ट से भी आगे बढ़ाया जा सकता है. यह बेहद सरलता से उगाई जाने वाली बेल है. जिसको उगाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत और खाद-पानी की आवश्यकता नहीं होती. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखण्ड में 800-1000 मीटर से ऊपर नीम के पौधे जाड़ों में बच नहीं पाते हैं. लेकिन पहाड़ों में 1600 मीटर की ऊँचाई तक सड़क किनारे बकैण जिसको गढ़वाल में डैकण भी कहते हैं देखा गया है, इसलिए डैकण के पेड़ों पर भी गिलोय को विकसित किया जा सकता है. नीम और डैक...
यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
उत्तराखंड के प्रत्येक गांव की अपनी एक जल संस्कृति हैं. यहां किसी न किसी गांव में एक स्रोत का पानी आपको जरूर मिलेगा,जिसकी अपनी एक परम्परा होती है, संस्कृति होती है। उसका वर्णन वहां किसी न किसी देवात्मा से जुड़ा मिलता है। यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल स्रोतों के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ प​त्रकार प्रेम पंचोली— जल संस्कृति भाग—1 उत्तराखंड हिमालय में जल सहजने की परम्परा अपने आप में एक मिशाल है। आप जहां कही भी जल सस्कृति के प्रति लोगों का जुड़ाव देखेंगें वहां पानी को सिर्फ देवतुल्य ही मानते है, अर्थात पानी के संरक्षण को यहां आध्यात्म का एक मूल आधार मान गया है. उत्तराखंड की जल संस्कृति को लोग वेद पुराणों में लिखित कथा के अनुरूप मानते हैं। यह सच है कि अधिकांश स्थानों के नाम इन पुराणों में मिलते-जुलते भी है. यमुना घाटी में जल संरक्षण की संस्कृति के अब अवशेष भर रह गये है तथा अधिकतर स्थानों पर ...
उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
जे. पी. मैठाणी आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. ये नकली है इसके झाड़ीनुमा पौधो पर गुच्छों में उगने वाले फूलों को सुखकर केसर जैसा रंग निकलता है. इसलिए कृपया सावधान रहिये! जैसे ही हम केसर का नाम सुनते हैं हमें कश्मीर का ध्यान आता है. पूजा पाठ, भोजन , प्रसाद, आयुर्वेदिक ओषधियां और इसके अलावा केसर के कई उपयोग हैं. केसर के तंतु जो धागे जैसे होते हैं वो फूल के मध्य भाग के बारीक रेशे वाले पुंकेसर होते हैं. केसर के फूल की पंखुड़ियों से केसर नहीं बनता बल्कि फूल के मध्य भाग में जो धागे सदृश तंतु यानी पुंकेसर होते हैं उनको सुखाकर असली केसर बनती है! इसकी खेती सबसे अधिक खेती कश्मीर के पम्पौर और किश्तवाड़ में होती है. आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. य...
राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

Uncategorized, इतिहास, हिमाचल-प्रदेश, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी कुछ गीत हमारी चेतना में बचपन से रहे हैं। बाल-सभाओं से लेकर प्रभात फेरियों में हम उन गीतों को गाते रहे हैं। एक तरह से इन तरानों ने ही हमें देश-दुनिया देखने का नजरिया दिया। जब हम छोटे थे तो एक गीत अपनी प्रार्थना-सभा में गाते थे। बहुत मधुर संगीत और जोश दिलाने वाले इस गीत को हम कदम-ताल मिलाकर गाते थे। गीत था- 'कदम-कदम बढाये जा, खुशी के गीत गाये जा/ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पै मिटाये जा।' उन दिनों अन्तरविद्यालयी प्रतियोगिताएं होती थी, जो क्षेत्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग-अलग चरणों में होती थी। उसमें विशेष रूप से एक प्रतियोगिता थी- 'राष्ट्र-गान गायन प्रतियोगिता।' इसे एक विशेष धुन और नियत समय 52 सेकेंड में पूरा करना होता था। इसमें झंडारोहण, सलामी, राष्ट्र गान की सावधान वाली मुद्रा के सभी मानकों पर भी अंक मिलते थे। इस प्रतियोगिता में हमारी टीम मंडल स्तर तक प्रथम आती थी। तब हमें...
सागर से शिखर तक का अग्रदूत

सागर से शिखर तक का अग्रदूत

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी स्वामी मन्मथन जी की पुण्यतिथि पर विशेष। हमने 'क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़' की ओर से हमेशा याद किया। हमने श्रीनगर में उनका पोस्टर भी जारी किया था। उन्हें याद करते हुये- हे ज्योति पुत्र! तेरा वज्र जहां-जहां गिरा ढहती कई दीवारें भय की स्वार्थ की, अह्म की, अकर्मण्यता की तू विद्युत सा कौंधा और खींच गया अग्निपथ अंधकार की छाती पर तुझे मिटाना चाहा तामसी शक्तियों ने लेकिन तेरा सूरज टूटा भी तो करोड़ों सूरजों में। उनकी हत्या के बाद गढ़वाल में शोक की लहर दौड़ गई। अंजणीसैंण (टिहरी गढ़वाल) में उनके द्वारा स्थापित श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के आनन्दमणि द्विवेदी ने इस कविता से अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। कौन है यह ज्योति पुत्र! निश्चित रूप से स्वामी मन्मथन। इस नाम से शायद ही कोई गढ़वाली अपरिचित हो। साठ-सत्तर के दशक में गढ़वाल में सामाजिक चेतना के अग्रदूत। एक ऐसा व्यक्तित्व ...
सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी । सुप्रसिद्ध स्याल्दे-बिखौती मेला विशेष । सत्तर का दशक। 1974-75 का समय। हम बहुत छोटे थे। द्वाराहाट को जानते ही कितना थे। इतना सा कि यहां मिशन इंटर कॉलेज के मैदान में डिस्ट्रिक रैली होती थी। हमें लगता था ओलंपिंक में आ गये। विशाल मैदान में फहराते कई रंग के झंडे। चूने से लाइन की हुई ट्रैक। कुछ लोगों के नाम जेहन में आज भी हैं। एक चौखुटिया ढौन गांव के अर्जुन सिंह जो बाद तक हमारे साथ वालीबाल खेलते रहे। उनकी असमय मौत हो गई थी। दूसरे थे महेश नेगी जो वर्तमान में द्वाराहाट के विधायक हैं। ये हमारे सीनियर थे। एक थे बागेशर के टम्टा। अभी नाम याद नहीं आ रहा। उनकी बहन भी थी। ये सब लोग शाॅर्ट रेस वाले थे। अर्जुन को छोड़कर। वे भाला फेंक, चक्का फेंक जैसे खेलों में थे। महेश नेगी जी का रेस में स्टार्ट हमें बहुत पसंद था। वे स्पोर्टस कालेज चले गये। बाद में राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी जीते। हम ...
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
दिनेश रावत रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है। इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस्तुत...
बैराट खाई: जहां आज भी हैं राजा विराट के महल का खंडहर

बैराट खाई: जहां आज भी हैं राजा विराट के महल का खंडहर

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
मत्स्य देश यहां पांडवों ने बिताया था एक वर्ष का अज्ञातवास स्व. राजेंद्र सिंह राणा ‘नयन’ देहरादून जिले के पर्वतीय क्षेत्र जौनसार परगने में बैराट खाई नामक एक स्थान है। यह स्थान मसूरी-चकराता मार्ग पर मसूरी से 50 किमी., चकराता से 23 किमी. तथा हल्के वाहन मार्ग पर हरिपुर-कालसी से 30 किमी. की दूरी पर है। मसूरी-चकराता अथवा विकासनगर-लखवाड़ -चकराता मार्ग पर नियमित बस सेवा लखवाड़ से आगे नहीं है। मात्र इक्का-दुक्का जीपों या हल्के वाहन हरिपुर-कालसी होकर अथवा चकराता की ओर से चलते हैं। पर्यटकों को निजी अथवा टैक्सी आदि से जाना सुविधाजनक है। ठहरने और रात्रिविश्राम हेतु नागथात ही उपयुक्त स्थान है। बैराट खाई - नागथात से 4 किमी. आगे दोनों ओर बांज, बुराश आदि के सघन वन के मध्य से होते हुए एक सुरम्य घाटी में बैराट खाई नामक यह स्थान एक चतुष्पथ पर स्थित है। मसूरी-चकराता मार्ग से एक मार्ग हरिपुर-विकासनगर ...