
- जे. पी. मैठाणी
सेहत के लिए अमृत है गिलोय!
गिलोय- गिलोय को अंग्रेजी में टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया, गढ़वाली में गिले और मराठी में गुड़ची बोलते हैं. संस्कृत में गिलोय का नाम अमृता है. यह एक बेल है और आंशिक परजीवी के रूप में दूसरे पेड़ों पर लिपट कर बढ़ती है. लेकिन गिलोय को क्यारियों और गमलों में भी उगाया जा सकता है. गिलोय की बेल को मकान या चारदीवारी पर पिलर और तारों के सपोर्ट से भी आगे बढ़ाया जा सकता है. यह बेहद सरलता से उगाई जाने वाली बेल है. जिसको उगाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत और खाद-पानी की आवश्यकता नहीं होती.
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखण्ड में 800-1000 मीटर से ऊपर नीम के पौधे जाड़ों में बच नहीं पाते हैं. लेकिन पहाड़ों में 1600 मीटर की ऊँचाई तक सड़क किनारे बकैण जिसको गढ़वाल में डैकण भी कहते हैं देखा गया है, इसलिए डैकण के पेड़ों पर भी गिलोय को विकसित किया जा सकता है. नीम और डैकण में कई तत्व समान होते हैं.
कई आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक दस्तावेज़ों में यह बताया गया है कि नीम के पेड़ पर लिपटी हुई गिलोय की बेल आयुर्वेदिक इलाज के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है. क्योंकि गिलोय आंशिक परजीवी बेल है और जिस पौधे या पेड़ से लिपटकर यह आगे बढ़ती है उसके आंशिक गुण भी गिलोय में आ जाते हैं. इसलिए नीम के औषधीय गुण गिलोय में आ जाते हैं. अतः जिन स्थानों में नीम के पेड़ उगते हैं जैसे- उत्तराखण्ड के मैदानी जनपद या घाटी वाले क्षेत्रों – देहरादून, हल्द्वानी, रूद्रपुर, काशीपुर, रामनगर, कोटद्वार, रुड़की, हरिद्वार, ऋषिकेश, विकासनगर, डाकपत्थर, उधमसिंह नगर, चंपावत, डीडीहाट का मैदानी भाग इन स्थानों में नीम के पेड़ों पर गिलोय की बेल चढ़ा कर गुणकारी गिलोय के उत्पादन की संभावना के साथ स्वरोजगार भी विकसित किये जा सकते हैं.
वर्तमान में आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा गिलोय के क्वाथ का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है, ताकि शरीर की इम्युनिटी बढ़ाई जाए और कोरोना से लड़ने के लिए शारीरिक क्षमता बढ़ाने में भी गिलोय के क्वाथ का उपयोग करना चाहिए.
नीम गिलोय यानी नीम के पेड़ के पर उगी हुई गिलोय के डंठल 30 रुपए किलो से अधिक यानी 3000 रुपए कुंतल तक बिक जाती है. जबकि सामान्य गिलोय का मूल्य 800 रुपए से 1000 रुपए तक प्रति कुंतल तक होता है. गढ़वाल में श्रीनगर, सतपुली कुमाऊं में चौखुटिया, बागेश्वर नानकमत्ता, टनकपुर में भी नीम के लिए पेड़ देखे गए.

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखण्ड में 800-1000 मीटर से ऊपर नीम के पौधे जाड़ों में बच नहीं पाते हैं. लेकिन पहाड़ों में 1600 मीटर की ऊँचाई तक सड़क किनारे बकैण जिसको गढ़वाल में डैकण भी कहते हैं देखा गया है, इसलिए डैकण के पेड़ों पर भी गिलोय को विकसित किया जा सकता है. नीम और डैकण में कई तत्व समान होते हैं. जैसे कड़वापन, जैविक कीटनाशक और पत्तियों की बनावट काफी मिलती जुलती है. गिलोय और बकैंण दोनों एक ही परिवार मेलियेसी परिवार के वृक्ष हैं, इसलिए इनके काफी गुण मिलते हैं. वैसे तो उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ औसत से अधिक वर्षा होती है वहाँ खेतों के किनारे उगे भीमल, खड़ीक, पीपल, बरगद के पेड़ों पर ग्रामीण बेल चढ़ा देते हैं. पिछले 5-6 वर्षों में आयुर्वेद के प्रति रूझान और जानकारी बढ़ने से अब लोग गिलोय को ढूंढने लगे हैं. जनपद चमोली के अकेले पीपलकोटी क्लस्टर में एक सर्वेक्षण में हमने पाया कि, बण्ड क्षेत्र के गाँव हाट, जैंसाल, गुनियाला, मठ, छिनका, गाड़ी, गडोरा, बटुला, लुवां, दिगोली में काफी मात्रा में गाँव के आसपास के सामुदायिक जंगल में गिलोय आसानी से मिल जाती है. लेखक ने देहरादून के मालदेवता, सहस्त्रधारा, रायपुर, लाडपुर, नालापानी जंगल, कुल्हान, ढाकपट्टी राजपुर, एफ.आर.आई. के जंगल, सलाण गाँव, घंघोड़ा, कांडली, जोहड़ीगाँव, नयागाँव, नवादा, लच्छीवाला, सौड़ा सरोली, थानो, छिमरोली, विधोली, बड़ोवाला आदि स्थानों में गिलोय की उपस्थिति देखी है. पहाड़ों में अभी तक गिलोय का उपयोग ज्यादातर गाय-बैल के इलाज के लिए किया जाता था. लेकिन अब गिलोय बहुप्रचारित हो गयी है. व्यापक प्रचार प्रसार के बाद अक्सर जनसामान्य को यह जानकारी नहीं होती है कि गिलोय को उगाना कैसे है. नीचे दिए गए लिंक में शहरों में रहने वाले परिवार घर पर आसानी से गमलों में बेल से काटी गयी गिलोय की कटिंग को लगाने की विधि के बारे में जानकारी दी जा रही है.
अब गिलोय के कुछ औषधीय गुणों के बारे में जानकारी-
आयुर्वेद और पौराणिक ग्रंथों में गिलोय के 200 से अधिक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक फ़ॉर्मूले, उपयोग, चिकित्सकीय इलाज के गुण बताये गये हैं. गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. इसके क्वाथ से अनेकों रोगों का इलाज होता है. वर्तमान में आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा गिलोय के क्वाथ का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है, ताकि शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाई जाए और कोरोना से लड़ने के लिए शारीरिक क्षमता बढ़ाने में भी गिलोय के क्वाथ का उपयोग करना चाहिए.
बुखार में गिलोय के प्रयोग :
- पुराने -जीर्ण ज्वर या 6 दिन से भी अधिक समय से चले आ रहे न टूटने वाले ज्वरों में गिलोय 100 ग्राम अच्छी तरह कुचल कर मिट्टी के बर्तन में 300 -350 मिली पानी में मिलाकर रात भर ढक कर रखते हैं व प्रातः मसल कर छान लेते हैं . 100 ml की मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है .
- ऐसे असाध्य ज्वरों में, जिसके कारण का पता सारे प्रयोग परीक्षणों के बाद भी नहीं चल पाता (पायरेक्सिया ऑफ अननोन ऑरीजन) समूल नष्ट करने का बीड़ा गिलोय ही उठाती है .
- 250 ग्राम गिलोय 2 लीटर जल में पकाकर जब एक लीटर रह जाए तो इस जल को दिन में तीन बार 300 मिली की मात्रा में देने से असाध्य ज्वर दूर होता है व जीवनशक्ति बढ़ती है .
- गिलोय, धनिया, नीम की छाल, और लाल चंदन इन सब को समान मात्रामें मिलाकर काढ़ा बना लें. इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर ठीक होता है.
- शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें .
- गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है. औरगिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता है.
- गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें. प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है.
- गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण के एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करनेसे ज्वर में लाभ मिलता है.
- गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराम मिलता है.
- गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है.
- गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है. औरगिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होने वाला बुखार ठीक होता है.
- गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है.
- गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है
गिलोय के कुछ अन्य अनुप्रयोग :
- बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं.
- गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं.
- इसे रसायन के रूप में शुक्रहीनता दौर्बल्य में भी प्रयोग करते हैं व ऐसा कहा जाता है कि यह शुक्राणुओं के बनने की उनके सक्रिय होने की प्रक्रिया को बढ़ाती है. इस प्रकार यह औषधि एक समग्र कायाकल्प योग है-शोधक भी तथा शक्तिवर्धक भी .
- अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ ; पुनर्नवा (साठी; जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें.
प्लेटलेट्स बढाने के लिए प्रयोग
- अगर platelets बहुत कम हो गए हैं , तो चिंता की बात नहीं अलोवेरा का जूस लगभग 40 ml (या गूदा 5 चम्मच ) + 6 इंच गिलोय तना + तीन पत्ते पपीते के + 11 पत्ते तुलसी के + शहद 10 ml (यदि शुगर की समस्या न हो तो ) इन सब औषधियों को अच्छे से मिक्सी में पीस कर जूस को छान कर तीन बराबर मात्राओं में दिन में तीन बार पिलायें ये चमत्कारी प्रयोग है
- कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें . इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है .
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने कालक्षण हैं. गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है . - गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है.
- गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है.
- क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है.
- गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा.
- एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है.
- प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री केसाथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है.
- फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें. इसतेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है.
- सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है.
- गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है.
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है. - गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी सेसेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है. गिलोय के रस का सेवन करने से दिलकी कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं.
- गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है.
- गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है.
- लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधा नमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं.
- गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है.
- गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें. इसमें पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं.
- गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है.
- श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है. गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है.
- गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है. गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीनबार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है .
- गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है.
- पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनिया, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है.
- नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा.
- 1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्त मूल का चूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें. इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बारसेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है.
- गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है.
- एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है. गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभ मिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है.
- गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है.
- गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है.
- या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है.
- गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है.
- मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभहोता है.
- गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा .
- गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है.
- गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है. गिलोय केकाढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है.
- गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है. या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदर रोग ठीक हो जाता है.
गिलोय की पत्तियों का उपयोग
- गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए और सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है.
- गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है. गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है.
- अंततः सभी सुधि पाठकों से अनुरोध है कि जिस किसी के पास गिलोय की अतिरिक्त बेल हो उसको ज्यादा से ज्यादा बाँट दें इससे परंपरागत चिकित्सा पद्धति के विकास में सहयोग होगा.
कोरोना: रिवर्स माइग्रेशन और गिलोय आधारित स्वरोजगार
गिलोय बहुत कम समय में अच्छा उत्पादन देने वाली औषधीय बेल है. एक नाली भूमि में 20 किलो गिलोय कटिंग को 6×6 इंच के टुकड़ों में काट लें और इसको छायादार बेकार भूमि में एक—एक मीटर की दूरी पर रोप दिया जाए तो लगभग 200 कटिंग गिलोय से सालभर में 2 से 3 कुंतल गिलोय उत्पादित की जा सकती है. जिसका न्यूनतम बाजार मूल्य 3000 रुपए आसानी से मिल सकता है और इसमें अतिरिक्त मानव श्रम यानी निराई—गुड़ाई की आवश्यकता नहीं है. साथ ही जंगली जानवरों से कोई खतरा भी नहीं है. ध्यान रहे गिलोय पर जल्दी से कोई रोग भी नहीं लगता. पहाड़ में सहकारिता के आधार पर गिलोय की प्रोसेसिंग यानी सुखाकर पाउडर, ग्रेन्यूल्स बनाए जा सकते हैं. एक एकड़ में उगाई गई गिलोय 5 परिवारों को 6 माह बाद प्रति परिवार प्रतिमाह 3 से 4 हजार रुपए की आमदनी प्रदान कर सकती है.
कृपया ध्यान रखें-
लेखक का सभी से यह अनुरोध रहेगा कि कृपया गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चे के इलाज के लिए गिलोय या इसके क्वाथ का उपयोग करने से पहले परंपरागत वैद्य, आयुर्वेदिक चिकित्सक या विशेषज्ञों की राय अवश्य ले लें. क्योंकि कई बार प्रतिकूल प्रभाव भी देखे जा सकते हैं. इसलिए सावधानी रखना आवश्यक हैं.
(लेखक पहाड़ के सरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपलकोटी में ‘आगाज’ संस्था से संबंद्ध हैं)
Gyan vardhak,