दीपा कौशलम
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सिरमौर जिले में रेणुका झील एक रमणीय और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. ये एक लंबाकार झील है जो नाहन और संगराह के बीच स्थित है. रेणुका झील (Renuka Lake) अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पर्यटकों को आकर्षित करने वाला स्थान है जहां चारों तरफ फैली हरियाली मन मोह
लेती है. रेणुका झील समुद्र तल से 672 मीटर उपर एक आद्रभूमि है जहां झील के अतिरिक्त सैंचुरी और चिड़ियाघर भी है जिसमें विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों को देखा जा सकता है. सन् 1987 में इस जगह को वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया गया और सन् 2005 में अद्वितीय जैव विविधता के कारण रामसर क्षेत्र में शामिल कर दिया गया. हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल के अलग-अलग हिस्सों से पर्यटक इस झील को देखने आते हैं .आसपास
क्षेत्रीय लोगों के अनुसार रेणुका झील की उत्पत्ति की धार्मिक कथा इस प्रकार है- रेणु नामक राजा की दो पुत्रियां थीं, नैनुका और रेणुका. राजा ने नैनुका का विवाह पराक्रमी
राजा सहस्त्रबाहु से करवा दिया और रेणुका को तपस्वी जमदग्नि ऋषि को ब्याह दिया गया. परशुराम रेणुका और जमदग्नि ऋषि की संतान थे और अपने क्रोध और साहस के लिए प्रसिद्ध थे. जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कामधेनु गाय थी, सहस्त्रबाहु कामधेनु और रेणुका को हासिल करना चाहता था. एक दिन षड़यंत्र के चलते उसने आश्रम में प्रवेश किया और ध्यानमग्न जमदग्नि ऋषि पर तीर से प्रहार कर उनकी हत्या कर दी .होने के
जमदग्नि ऋषि को मारने के बाद वो रेणुका का चीरहरण करने दौड़ा. रेणुका उसकी मंशा भांप गई और एक तलहटी में झा छुपी. उसका पीछा करते हुए जब सहस्त्रबाहु वहां पहुंचा तो रेणुका को देख उसकी ओर दौड़ा. अचानक धरती फटी और रेणुका उसमें समा गई . उनके समाते ही चारों तरफ जरधाराएं फूट पड़ीं और वो स्थान
एक स्त्री आकार की झील में परिवर्तित हो गया. जब परशुराम को ये सब पता चला तो उन्होंने सहस्त्रबाहुका वध कर दिया और झील के पास आकर अपनी माता को पुनः स्त्री वेश में लौटने का आग्रह किया मगर रेणुका ने प्रकट होकर कहा कि अब वे इसी झील में रहेंगी मगर प्रत्येक वर्ष एक दिन उनसे मिलने आया करेंगी.घोषित
ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां रेणुका अपने पुत्र परशुराम से मिलने आती हैं. हर साल इस दिन यहां एक भव्य मेले का आयोजन होता है, जो तीन दिन चलता है. इस मेले में आसपास के गांवों में विराजमान परशुराम की डोली रेणुका में स्नान करती है और पूजा प्रार्थना की जाती है. इस मेले का अंतराष्ट्रीय
महत्व है जिसमें देश विदेश से श्रद्धालु आते हैं और मां रेणुका और परशुराम का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. रेणुका से लगभग बीस किलोमीटर दूर जमदग्नि ऋषि का आश्रम है जहां सड़क मार्ग व पैदल दोनों तरह से पहुंचा जा सकता है. रेणुका झील घूमने आए लोग बिना जमदग्नि ऋषि के दर्शन किए अपनी यात्रा अधूरी मानते हैं.सैंचुरी
वाइल्डलाइफ सैंचुरी घोषित होने के बाद आसपास बसे 74 गांवों के लोगों के खेत और चारागाह भूमि इस क्षेत्र में समाहित कर ली गई. यद्यपि गांवों के लोगों को ये कभी भी स्पष्ट
नही किया गया कि सैंचुरी में समाहित होते ही उनकी जमीनों से उनका संबंध और अधिकार समाप्त हो जाएगा.
वाइल्डलाइफ
इस एतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी ये एक महत्वपूर्ण स्थान है. असंख्य जंगली जानवरों, चिड़ियों, मछलियों, कछुओं और जलीय जंतुओं का यहां वास है. रेणुका झील के चारों ओर परिक्रमा जो कि लगभग 3 किलोमीटर के करीब है एक मान्यता है. इस परिक्रमा के दौरान यहां एक खूबसूरत मीठे
पानी का स्रोत मिलता है जो दूधपानी के नाम से प्रसिद्ध है जहां मां रेणुका का एक छोटा मंदिर है. इस मंदिर के पुजारी लगभग पांच पीढ़ियों से यहां पूजा अर्चना का काम करते आए हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां बैठकर रेणुका ने परशुराम को दूध पिलाया था और तब से सफ़ेद दूध के समान एक धारा यहां फूट पड़ी, जो झील में मिलती है.व्यवस्थित किया
रेणुका झील खाला और क्यार नाम की दो पंचायतों के बीच बसा स्थान है. वाइल्डलाइफ सैंचुरी घोषित होने के बाद आसपास बसे 74 गांवों के लोगों के खेत और चारागाह भूमि इस क्षेत्र में
समाहित कर ली गई. यद्यपि गांवों के लोगों को ये कभी भी स्पष्ट नही किया गया कि सैंचुरी में समाहित होते ही उनकी जमीनों से उनका संबंध और अधिकार समाप्त हो जाएगा. वैसे तो पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण का लाभ स्वच्छ पर्यावरण और पानी की उपलब्धता पर पड़ता है परंतु इस प्रक्रिया में गांवों की आजीविका नकारात्मक रुप से प्रभावित हुई है.विकसित और
लोक विज्ञान संस्थान द्वारा हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए एक शोध दोनों पंचायतों के 8 गांवों में किया गया. इस शोध और अध्ययन का उद्देश्य क्षेत्र के गांवों में सैंचुरी अधीनस्थ नियमों का जीवन
और आजीविका पर प्रभाव व संबंधित विभागों से उनके संबंधों की स्थिती को समझना था. ये अध्ययन चार महीने चला, जिसमें गांवों में सैंपल सर्वे, विभागों, स्थानिय दुकानदारों, आश्रम वासियों और नाव चालकों से संवाद किया गया. उनसे पूछा गया कि सैंचुरी घोषित होने के बाद उनको क्या लाभ पहुंचे हैं तथा क्या क्या चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.उचित तरीके से
गांव में वन-टू-वन साक्षात्कार के अतिरिक्त समूह बैठकें भी आयोजित की गईं, जिसमें गांवों के लोगों और जनप्रतिनिधियों द्वारा प्रतिभाग किया गया और उन्होंने अपने विचार रखे. सैंचुरी बनने से लेकर अब तक कई तरह के भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन इस क्षेत्र में आए हैं. गांवों के आसपास का जंगल घटा है, जिससे चारे की
उपलब्धता के लिए महिलाएं प्रतिबंधित क्षेत्र में चारा और ईंधन के लिए लकड़ियां लेने जाती हैं. इस दौरान कभी वन विभाग द्वारा पकड़े जाने पर दरातियां, चारा और लकड़ियां जब्त कर ली जाती हैं साथ ही आर्थिक दंड भी भरना पड़ता है. इस ख़तरे के अतिरिक्त जंगली जानवरों से सामना भी महिलाओं और बच्चों के लिए पशु चुगाते हुए एक बड़ी चुनौती है. क्षेत्र के लगभग छः गांवों की सीमा और जंगल प्रतिबंधित क्षेत्र में आती है जिससे वन विभाग और स्थानीय लोगों के बीच टकराव बना रहता है.पूरे क्षेत्र को
रेणुका के उत्तरीय क्षेत्र में बसे तारण, नवाना गांवो के लोगों की स्थिति सबसे विषम है, उनके गांव के बाईं ओर कृष्णागिरी नदी है जबकि दाईं ओर रेणुका झील. इस गांव के लोगों ने बांध के
लिए भी अपनी जमीन सरकार को दी हैं और सैंचुरी के लिए जंगल गंवाया है. उस समय प्रस्तावित राशि कम होने की वज़ह से आज गांव वाले दुःखी हो उठते हैं कि उन्होंने अपनी आजीविका को बहुत थोड़े से लाभ के चलते हमेशा के लिए प्रभावित कर लिया.सरकार द्वारा
इस क्षेत्र में पलायन बहुत कम है. आज भी अधिकतर लोग खेती और पशुपालन पर प्राथमिक रूप से निर्भर हैं. गांवों के युवा 30 किलोमीटर दूर धौलाकुआं नामक इंडस्ट्रियल एरिया में रोजगार के लिए आवागमन करते हैं. गांवों के 2 प्रतिशत लोगों को वन विभाग, रेणुका विकास बोर्ड, आश्रम इत्यादि में सरकारी व अनुबंधित नौकरियां प्रदान
की गई हैं इसके अलावा मेले के आयोजन से पहले गांवों के लोग मौसमी रोजगार के रुप में मजदूरी के लिए बुलाए जाते हैं. कुछ युवाओं को झील परिसर में अस्थाई दुकानें चलाने की भी अनुमति सरकार द्वारा प्रदान की गई है. गांव के लोगों को प्रतिवर्ष नौकायन का ठेका दिया जाता है जो रोजगार और पर्यटन दोनों का जरिया बनता है.हिमाचल
कृष्णागिरी नदी के मुहाने पर बसा बेडोन,
ददाहु के बाज़ार क्षेत्र का हिस्सा है. बेडोन एक कस्बा है जहां हिमाचल के अलग-अलग हिस्सों से रोजगार के लिए पलायन करके आए लोग अपने व किराए के घरों में रहते हैं. यहां के लोगों का मुख्य रोजगार मजदूरी, दुकानें और खनन का काम है.झील
यदि सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाए तो सिरमौर जिले की अपनी ऐतिहासिक विशेषता है मगर रेणुका झील का धार्मिक और पर्यटन महत्व इस क्षेत्र को विशेष स्थान बनाता है. हिमाचल सरकार द्वारा पूरे क्षेत्र को उचित तरीके से विकसित और व्यवस्थित किया गया है. परिसर में गैस्ट हाउस, होटल और आश्रम हर वर्ग के लोगों के लिए ठहरने का
स्थान उपलब्ध करवाते हैं तथा यातायात व्यवस्था भी सुचारु रूप से उपलब्ध है. पांवटा साहिब से रेणुका के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है तथा ददाहू से आगे के गांवों को लोकल बसों से जोड़ा गया है. रेणुका झील धार्मिक और पर्यटन दोनों के लिए एक आकर्षक स्थान है जहां प्रकृति के साथ एकाकार होना महसूस किया जा सकता है.(लेखिका कंसल्टेंट (सामाजिक क्षेत्र)/ जैंडर प्रशिक्षणकर्ता हैं, साथ ही घुमक्कड़ी, नये लोगों से मिलना जुलना, कविताएं लिखना, गीत-संगीत की शौकीन हैं )