सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

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  • दिनेश रावत

रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है।

इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस्तुतियों के साथ दर्जनों कलाकारों का परम्परागत वेषभूशा व आभूषणों से सुसज्जित होकर एक साथ मंच पर उतारना, रवांल्टी परिधान में रवांल्टी कवि का कविता पाठ, लोक पकवानों की सुवास, विद्यालयों की प्रतिभागिता और क्षेत्रीय विकास की आधार शिला रखने वाले महापुरुषों के नामों से स्थापित सम्मानों को प्रेरणा एवं प्रोत्साहन की सद्भावना के साथ वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाना है।

उल्लेखनीय है कि रवाँई लोक महोत्सव, क्षेत्र के उन कुछेक ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इनमें प्रमुखता से शामिल हैं भाटिया निवासी शशि मोहन रावत ‘रवांल्टा’। शशि मोहन रवांल्टा महोत्सव की मेरूदंड है, उन्हीं की अगुआई में लोक संस्कृति के निमित्त होने वाला यह तीन दिवसीय यज्ञ आरम्भ होता है और नरेश नौटियाल, सीमा रावत, असिता डोभाल, प्रेम पंचोली, रचना बहुगुणा, महावीर रवांल्टा, अमिता नौटियाल, सुनीता नौटियाल, दिनेश रावत, श्वेता बंधानी, मीना डोभाल, प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’, जगमोहन रावत, सुनील लोहानी की यथा संभव आहूतियों के से पूर्णता को प्राप्त।

इस महोत्सव के दौरान प्रवाहमान गीत, संगीत, नृत्य व काव्य सलिला में ‘रवांल्टी काव्य गोष्ठी’ के दौरान हास्य, करूणा, श्रृंगार, वात्सल्य आदि रसों से युक्त कविताओं के माध्यम से माटी की महक व दूधबोली की मिठास घोलते हुए कवि प्रश्न भी छोड़ते हैं तो संदेश भी देते हैं। रवाँई लोक महोत्सव, क्षेत्र के उन कुछेक ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

गीत, संगीत, नृत्य के साथ प्रति वर्ष लोक की कम से कम एक ऐसी विद्या जो विलुप्त प्राय: हो रही है, उसे संरक्षित करनके के उद्देश्य से मंच पर लाना महोत्सव के मुख्य उद्देश्यों में है। इसी क्रम में इस बार के महोत्सव ‘सारंगी नाच’ को शामिल किया गया। ‘सीधे लोक से..!’ भी एक नई पहल थी, जिसके अंतर्गत दूरस्थ ग्राम्य अंचलों में निवास करने वाले उन लोक कलाकारों को मंच तक लाना था, जो बिना किसी समिश्रण के गीतों की लोकपरक मूल धुन व बोलों को संजोये हुए हैं। सुखद परिणति के रूप में मंच लोक प्रचलित विशेष विद्या ‘छोड़ों’ से सजा नजर आया।

लोक महोत्सव के बहाने आगंतुकों को लोक के समृद्ध खजाने के दर्शन सुलभ हो पाते हैं। परिधान की दृष्टि से देखें तो ‘सिकली’, ‘चोल्टी’, ‘सूतंण’, ‘घाघरू’, ‘साफा’, ‘चोल्टी’ आभूषणों में ‘नथली’, ‘छुमकी’, ‘तिमाण्यिा’, भाषा में रवांल्टी की उप-भाषाएं ‘बंगाणी’, ‘पर्वती’, ‘सिगतूरी’, ‘सेरोवली’, ‘बनाली’, ‘मुंगराली’, ‘गिट्ठी’ व ‘सरनौली’ और गढ़वाली, जौनसारी, बावरी, के स्वर बराबर गूंजते सुनाई दिए। खान-पान में ‘सीड़े’, ‘अस्के’, ‘ढ़िढके’, ‘कोदा की दाण्या’, ‘बड़ील’, ‘चूल्लू की चटणी’, ‘पकड़’ अपनी महक बिखेरते हैं। गीतों में ‘मांगल’, ‘छोड़े’, ‘बाजूबंद’, ‘हारूल’, ‘छौपती’, वाद्ययंत्रों में ‘ढोल, दमाऊ, रणसिंगा, ढोलक, पैड, तबला, बांसुरी, शंख, घंटी, की पैड, लोक धुनों में वीट्स आॅफ यमुना वैली, नृत्य में सारंगी, तांद, हारूल व युगल नृत्य प्रमुखता से शामिल रहते हैं।

वर्षों बाद सरंगी नृत्य 

यह नृत्य, जिसे अधिकांश लोग ‘सरंगी नृत्य’ के रूप में जानते हैं, परंतु वास्तव में यह सारंगी नहीं ‘सरंगी’ है। सरंगी नाच एक कालखंड विशेष में इस क्षेत्र खासा प्रचलित रहा और यहां के लोक नृत्यों में प्रमुखता से शामिल रहा, किंतु वक्त के साथ होते बदलाव के फलस्वरूप आज विस्मृति की कगार पर जा पहुंचा है या यह कहें कि विलुप्त प्राय: ही हो गया है। बहुत मेहनत, मसकत के बाद टीम लोक महोत्सव इसे मंच तक लाने में सफल हो पाई, जो किसी भगीरथ प्रयास से कम नहीं है।

अब ना नृत्य के पारंगत कलाकार रहे, ना नृत्य के लिए ताल देने वाले वादक। नृत्य के दौरान प्रयोग होने वाली लाठी, जिसे ‘गुप्ति लाठी’ के रूप में जाना जाता है, शायद ही कहीं?, ऐसी विषमताओं के बीच इसे मंच तक लाना टीम रवाँई लोक महोत्सव के परिश्रम तथा महोत्सव की महत्ता को उद्घाटित करता है। नृत्य देख पुराने लोगों के मानस पटल पर कुछ स्मृतियां हिलोरे लेने लगती है तो वर्तमान पीढ़ी अतीत की सांस्कृति प्रस्तुति देख आनंदित, उत्साहित व रोमांचित नजर आती है।

सरंगी नृत्य के मूल में भले ही आमोद-प्रमोद व मनोरंजन का भाव समाहित हो परन्तु इसकी प्रस्तुति को देख कहा जा सकता है कि लोक प्रचलित यह नृत्य पूर्णतया युद्ध कला, कौशलों पर आधारित है। तलवार बाजी, आत्म रक्षा व प्रतिद्वंदी पर वार की शैली अदभुत। गोली, बंदूक, बारूद के दौर में जब तलवार ही हासिये पर हो तो तलवारबाजी क्यों नहीं? तलवारी बाजी से सम्बंधित करतब ही नृत्य के आकर्षण हैं। नृतक हाथों में लाठी लिए होता है, साधारण-सी दिखने वाली इस लाठी को ‘गुप्ति लाठी’ के रूप में जाना जाता है। ‘गुप्ति लाठी’ यानी गुप्त लाठी। गुप्ति लाठी! जो देखने में लाठी के समान ही होती है, मगर इसमें छूपी रहती है एक तेज धारदार तलवार। नृत्य के दौरान ढोल-दमाऊ की थाप पर नृतक की शारीरिक भाव-भंगिमाएं, पद् संचालन तथा शारीरिक स्फूर्ति देखते ही बनती है। अब न सरंगी नृतक रहे, ना नृत्य को ताल देने वाले वादक। कारण जो भी रहें हों परन्तु एक बात आसानी से समझी जा सकती है कि आधुनिकता की बलि वेदी पर हमारी गौरवशाली परम्पराएं किस प्रकार कुर्बान हो रही हैं।

इस बार के सम्मान

रवाँई लोक महोत्सव में इस वर्ष का ‘दौलत राम रवांल्टा सम्मान’ ग्राम मेंजाणी (बंगाण) में जन्में डाॅ. सुवर्ण रावत, ‘जोत सिंह रवांल्टा सम्मान’ विजया पब्लिक स्कूल तुनाल्का की संस्थापक/निदेशक श्रीमती विजयलक्ष्मी जोशी, ‘बर्फियालाल जुवांठा सम्मान’ पोरा ग्राम निवासी श्री खिलानंद बिजल्वाण जी, ‘राजेन्द्र सिंह रावत सम्मान’ ग्राम खलाड़ी (पुरोला) निवासी श्री युद्धवीर सिंह रावत तथा ‘पतिदास सम्मान’ आशुतोष पोखरियाल तथा नंगाण गांव निवासी धाविका कु. सीमा चैहान को प्रदान किए गये।

सुखद है रवांल्टी कवियों की श्रृंखला में श्रीवृद्धि

रवांल्टी काव्य गोष्ठि महोत्सव का एक मुख्य आयाम है, जिसका आयोजन महोत्सव के अंतिम दिवस में किया जाता हैं। महोत्सव के दौरान स्वनाम धन्य श्री महावीर रवांल्टा जी की अगुवाई में आयोजित कवि गोष्ठि में रवांल्टी कविताओं के साथ कोटी बनाल निवासी दिनेष रावत, बिगराड़ी बनाल निवासी प्रदीप रावत व अनोज रावत, कफनौल निवासी प्रेम पंचोली, खलाड़ी निवासी अनिल बेसारी, सरनौल निवासी ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’ के अतिरिक्त राजुली बत्रा, मोरी नानई निवासी अनुपमा रावत और भारती आनंद भी रवांल्टी कवयित्रियों के रूप में परम्परागत वस्त्र एवं आभूषणों के साथ कविता पाठ हेतु मंच उपस्थित थी तो बावरी कविताओं के साथ नीरज उत्तराखंडी और गढ़वाली कविताओं के संदीप रावत के द्वारा काव्य पाठ किया गया। काव्य गोष्ठि का संचालन महावीर रवांल्टा द्वारा किया गया और शुभारंभ दिनेश रावत द्वारा लिखी गयी रवांल्टी सरस्वती वंदना के साथ। महोत्सव की निश्चित यह भी एक ऐतिहासिक उपब्धि मानी जा सकती है कि इसी मंच से ‘रवांल्टी वन्दना’ का प्रथम प्रस्तुतिकरण किया गया।

आगे बढ़ रही है पुस्तक संस्कृति..!

वर्तमान डीजिटल युग में पुस्तकें हासिये पर नज़र आने लगी हैं। लोगों में पुस्तकों के प्रति प्रेम बना रहे और लोग पुस्तकें पढ़ते रहें इसी नेक उद्देश्य के साथ रवांई लोक महोत्सव में आमंत्रित कवियों को पुस्तकों का सेट भेंट करने की परम्परा का गत वर्ष शुभारंभ किया गया, जो इस बार भी कुछ आगे बढ़ा। सभी कवियों को अंग वस्त्र, स्मृति चिह्न, सम्मान राशि के अतिरिक्त पुस्तकों के सैट भी भेंट किए गये, जिसे लोगों द्वारा काफ़ी सराहया जा रहा है।

महोत्सव के मेहमान…!

तीन दिनों तक चले महोत्सव में विधायक पुरोला श्री राजकुमार, विधायक यमुनोत्री श्री केदार सिंह रावत, विधायक धनोल्टी श्री प्रीतम सिंह पंवार, राष्ट्री अनु.जाति आयोग की सदस्या सुश्री स्वराज विद्धान, पदमश्री प्रीतम भरतवाण, अध्यक्ष, नगर पंचायत-नौगांव श्री शशि मोहन राणा, अध्यक्ष, टी.एच.डी.सी.श्री मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’, श्री सकल चंद रावत, पूर्व अध्यक्ष, जिला पंचायत उत्तरकाशी, श्री अमर सिंह कफोला, वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोज इष्टवाल, श्री भार्गव चंदोला, निम्मी कुकरेती, कुसुम कंडवाल, इंदू नेगी आदि उपस्थित थे।

संस्कृति के साथ बच्चों ने दिया स्वच्छता का संदेश

महोत्सव के दौरान लोक कलाकारों के अतिरिक्त विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा जहां लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुतियां दी गयी, वहीं यमुना वैली पब्लिक स्कूल-नौगांव के बच्चों द्वारा एक नाटक के माध्यम से स्वच्छता का संदेश भी दिया गया, जिसमें पालीथीन के दुष्प्रभाव, शौचालय की उपयोगिता, वृक्षारोपण आदि पर सार्थक संदेश देते हुए लोगों को स्वच्छता अपनाने एवं बनाये रखने के लिए प्रेरित करने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया।

(लेखक कवि, साहित्यकार एवं वर्तमान में अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं)

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