किस्से-कहानियां

अजनबी

अजनबी

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ललित फुलारा जो सच है उसे छिपाना क्यों? मैं स्वछंद हूं. जो मन में आता है, बिना किसी के परवाह के करती हूं. उसने भी मुझे इसी रूप में स्वीकारा था. हाथ पकड़ कहा था, ‘जो बित गया, उससे मुझे कोई लेना नहीं.‘ मैं  फिर भी नहीं मानी थी. जानती थी पुरुष के कहने और करने में बहुत फर्क होता है. वो जिद्दी था. पूरे पांच साल इंतजार करता रहा. जब हम करीब आए, मैंने ऐसे बंधन की कल्पना नहीं की थी. वह मेरा दोस्त और लाल-पीले-नीले रंगों से भरी डायरी के पन्नों का राजदार था. छोटी-छोटी ख्वाहिशों, फरमाइशों से लेकर प्यार और चाहत हर चीज़ से वाकीफ. शादी के बाद क्या औरत की चाहत खत्म हो जाती है? वह तकिए को छाती से लगाकर किसी के ख्वाब नहीं समेट सकती. किसी का साथ, हाथों का स्पर्श और बातें उसे नहीं भा सकती. समझौतों से दबी, सारी चाहत दफ्न कर देती है एक औरत और वह मर्द कभी नहीं समझता जो ख्वाबों तक ले जाने का दंब भरता है. सप...
कमिश्नर मातादीन और झिमरू

कमिश्नर मातादीन और झिमरू

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लघुकथा डॉ. गिरिजा किशोर पाठक  कमिश्नर मातादीन साहब को मन ही मन यह बात कचोट रही है कि वे झिमरू के भरोसे कैसे लुट गये.  झिमरु की निष्ठा पर विश्वास और अविश्वास के अन्तर्द्वन्द में वे कुलबुला रहे हैं. विगत दस साल से झिमरू इनके  साथ है. वह एक सजग और जागरुक प्रहरी है. किसी की हिकमत कि कोई दरवाजा खटखटा ले, घंटी बजा ले और झिमरु चुप रहे. एकदम ह्रिस्ट- पुष्ट, दूध ,नान वेज किसी की कमी नहीं है उसके लिए. वह सबका दुलरवा है. दादी ने उसे चम्मच से दूध पिलाया है. सैम्पू से नहलाया है. उसके चेहरे की चमक से आदमी तो आदमी चील -कौवे भी दीवार नहीं फांदते. हां, एसी में सोने की आदत ने उसे थोड़ा आलसी बना दिया है. फिर भी पूरा घर उसके भरोसे सोता है. उसकी रौबीली आवाज का पुरा मोहल्ला दीवाना है. पढ़ें— विकास की बाट जोहते सुदूर के गाँव… मातादीन मराठे कमिश्नर साहब थे. इसलिेए बड़े -बड़े लोगों का आना जाना बंगले पर ल...
आब कब आलै ईजा…

आब कब आलै ईजा…

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डॉ. रेखा उप्रेती  ‘‘भलि है रै छै आमाऽ...’’ गोठ के किवाड़ की चौखट पर आकर खड़ी आमा के पैरों में झुकते हुए हेम ने कहा. ‘‘को छै तु?’’ आँखें मिचमिचाते हुए पहचानने की कोशिश की आमा ने... ‘‘आमा मी’’ हेम... ‘‘को मी’’... ‘‘अरे मैं हेम... तुम्हारा नाती..’’ आमा कुछ कहती तभी बाहर घिरे अँधेरे से फिर आवाज आयी- ‘‘नमस्ते अम्मा जी!’’ उत्तराखंड ‘‘आब तु कौ छै?’’ आमा की खीझती-सी आवाज पर हेम को जोर से हँसी आ गयी. ‘‘भीतर तो आने दे आमा , बताता हूँ. हेम ने आमा को अपने अंकवार में ले गोठ की ओर ठेला. उत्तराखंड गोठ में जलते चूल्हे के प्रकाश में हेम ने देखा, तवा चढ़ा हुआ है और एक भदेली में हरी साग.. ‘‘अरे, तेरा खाना बन गया आमा... बहुत भूख लगी है.’’ उत्तराखंड ‘‘पैली ये बता अधरात में काँ बट आ रहा तू और य लौंड को छू त्येर दगड़?’’ आमा ने गोठ के फर्श पर दरी बिछाते हुए कहा... फिर कुछ सोचते हुए बोली  ‘‘ भीतेर ...
अपने पहाड़ लौटने का सपना अपने साथ  ही ले गई प्यूलीं

अपने पहाड़ लौटने का सपना अपने साथ  ही ले गई प्यूलीं

किस्से-कहानियां
डॉ. कुसुम जोशी         फ्यूंली (प्यूंली) के खिलते ही पहाड़ जी उठे, गमक चमक उठे पहाड़ पीले रंग की प्यूंली से, कड़कड़ाती ठन्ड पहाड़ से विदा लेने लगी, सूखे या ठन्ड से जम आये नदी नालों में पानी की कलकल ध्वनि लौटने लगी, फ्यूंली के साथ खिलखिला उठी प्रकृति, रक्ताभ से बुंराश, राई के फूलो की पीली आभा, गुलाबी कचनार, आडू, खुबानी, प्लम, के सफेद, गुलाबी फूल, इन सब से खिल उठे हैं पहाड़, पशु, पक्षी सब. पहाड़ी सुन्दरी प्यूंली जब हंसती तो झरझर जी उठता था उसका घर आंगन, उसके पहाड़, गुनगुनाती हुई जंगल जाती घास काटती, लकड़ी बीनती, सारा जंगल, चिड़िया पशु पक्षी भी उसके साथ गुनगुनाते, रंग बिरंगी तितलियां पूरे जंगल को रंग से भर देती. ... पूरा पहाड़ झूम उठा उनकी प्यूंली रानी बनेगी, पर जैसे जैसे रस्म आगे बढ़ रही थी, प्यूंली का दिल पहाड़ से दूर जाने के नाम से घबराने लगा था, पहाड़ भी महसूस करने लगे की उ...
कहां ले जाऊँ…

कहां ले जाऊँ…

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लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी         सवि ने धीरे से कराहते हुये आंखें खोली,  चारों और नजरें घुमाई तो अपने को अस्पताल में पाया. "मैं यहां..कैसे..! " सोचती रही सावि... धीरे-धीरे सब कुछ याद आ रहा था उसे, उसका और जगन का प्रेम राज नहीं रहा,  घर में तूफान उठान में आ चुका था. जगन  सावि ने ठान लिया था कि मौका मिलते ही  जगन से साफ-साफ  बात करेगी.    उसे घर में  अकेला जान, हमेशा की तरह उस दिन जगन आया, अपने प्रेम की कसमें खाता रहा. "जगन या तो तू मुझे यहां से ले चल, नहीं तो मेरा पीछा करना छोड़ दे", सावि ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया. जगन सवि की बात सुन जगन दबाव महसूस कर रहा था. बोला, 'ऐसी क्या आफत हो गई कि तू आज ऐसी बात कर रही है. घर में सब पता चल चुका है, चार दिन से में रोज ही पिट रही हूं, मुझे ब्राह्मण कुल की कंलकिनी कहा जा रहा है. बाबू कह रहे है कि "जात और जान दोनों से जायेगी. क्यों...
प्रेमचंद की वापसी…

प्रेमचंद की वापसी…

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व्यंग्य दलजीत कौर  स्वर्ग में कई दिन से उथल-पुथल because मची थी. ऐसा पहली बार हुआ था कि स्वर्ग में किसी ने धरना दिया हो. स्वर्ग में किसी ने अन्नजल त्याग दिया हो. यमदूत ने आकर यमराज को बताया- “एक व्यक्ति स्वर्ग छोड़ कर पृथ्वी पर जाना चाहता है. यमराज  ने हैरान हो कर so पूछा- “स्वर्ग छोड़ कर कौन मूर्ख पृथ्वी पर जाना चाहता है ?नरक से जाना चाहे तो बात समझ में आती है.” भ्रमित यमदूत ने बड़े अदब से because नाम लिया- “जी! महापुरुष प्रेमचंद.” यमराज अपने सिहाँसन so से उठ खड़े हुए- “क्या? मुंशी प्रेमचंद? लेखक प्रेमचंद? वही प्रेमचंद जिनकी but अभी-अभी जयंती मनाई गई पृथ्वी पर?” “जी हजूर जी.” because यमदूत लगातार हाँ में सिर हिला रहा था. मगर यमराज को यक़ीन so ही नहीं हो रहा था. उन्होंने फिर पूछा,  कफ़न, पूस की रात, गोदान, निर्मला वाले प्रेमचंद? “वह व्यक्ति जो मरने के इतने वर्ष बाद...
सरुली और चाय की केतली….

सरुली और चाय की केतली….

किस्से-कहानियां
लघु कथा अमृता पांडे सरुली चाय की केतली से because निकलती भाप को एकटक देख रही थी. पत्थरों का ऊंचा नीचा आंगन, एक कोने पर मिट्टी का बना कच्चा जिसमें सूखी लकड़ियां जलकर धुआं बनकर गायब हो जातीं. चाय उबलकर काढ़ा हो गई थी पर सरुली ना जाने किन विचारों में निमग्न थी. because न जाने कितने वर्षों पुरानी यात्रा तय कर ली थी उसने कुछ ही मिनटों में. बचपन में स्कूल नहीं जा पाई थी. मां खेत में काम पर जाती और जानवरों के लिए चारा लाती. सरुली घर में छोटे भाई बहनों की फौज को संभालती और सयानों की तरह उनका ध्यान रखती थी. प्यारे छोटी-सी उम्र में ही घर के सारे because काम से लिए थे उसने. सोलह वर्ष की कच्ची उम्र में तो इतनी काबिल हो गई थी कि विवाह तय हो गया था उसका. झट मंगनी, पट विवाह हो गया. सरुली का बचपन वैवाहिक ज़िम्मेदारियों की भेंट चढ़ गया. एक पत्नी, गृहणी और बहू से जो अपेक्षाएं होती हैं उन सभी को वह...
हर लड़की का एक सपनों का राजकुमार होता है…

हर लड़की का एक सपनों का राजकुमार होता है…

किस्से-कहानियां
मंजु पांगती “मन”   यात्राएं कई प्रकार की होती हैं. because जीवन यात्रा, धार्मिक यात्रा, पर्यटन यात्रा, प्रेम यात्रा. जीवन में जब ये यात्राएं घटित होती हैं तो परिवेश में दृष्टिगोचर होती ही हैं. इन सब के साथ एक यात्रा और और होती है हर समय होती है जो दिखाई नहीं देती महसूस की जाती है. दशक कितना सुन्दर होता है but सपनों का संसार, जो कुछ हम चाहते हैं वही होता रहता है.  हकीकत की तपती रेत पर सपनों के सुखद कोमल नंगे पैर ज्यूँ ही खेलने को मचलते हैं तो तपती रेत पैरों को अकसर जला देती है. हर लड़की का एक सपनों का राजकुमार होता है. दशक मुख्य यात्रा तो जीवन यात्रा ही है न. यह सोचते-सोचते कविता की यादों की कड़ी जुड़ती जाती है. जब उसने होश सम्भाला तो सभी बच्चों की भांति वह भी सपनों के पंख फैलाए रंगीन सपनों के संसार में गोते लगा रही थी. so कितना सुन्दर होता है सपनों का संसार, जो कुछ हम चाह...
निर्णय

निर्णय

किस्से-कहानियां
लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी रात को खाना खात हुऐ जब बेटी because अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो... अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.” फोन क्यों...? मम्मी पापा so दोनों साथ ही बोल पड़े... “मैंने अपने लिये लड़का पसंद कर लिया है, because आप लोग भी 'सोहम' को शायद अच्छी तरह से जानते है”. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से because भास्कर बेहद चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही. फोन पति पत्नी हैरान, “इतना बड़ा निर्णय” becauseहम बेखबर हैं! बम ही फट पड़ा हो जैसे, पर बेटा मन्द- मन्द मुस्कुरा रहा था, शायद वो बहन का राजदार हो. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से भास्कर बेहद because चिन्तित...
रनिया की तीसरी बेटी

रनिया की तीसरी बेटी

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कहानी मुनमुन ढाली ‘मून’ आंगन में चुकु-मुकु हो कर बैठी, because रनिया सिर पर घूंघट डाले, गोद मे अपनी प्यारी सी बेटी को दूध पिलाती है और बीच-बीच मे घूंघट हटा कर, अपने आस -पास देखती है और उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान छलक जाती है. सप्तेश्वर रनिया की सास गुस्से में तमतमाई चूल्हे से but गरम कोयला, चिमटे में दबाई बड़बड़ाती हुई रनिया की तरफ बढ़ी और गरम कोयला रनिया के पीठ पर झोंक दिया और करकश आवाज़ में बोली “झूठी, कलमुई फिर बेटी जानी तुने”. सप्तेश्वर सास,पास ही सर पकड़ के बैठbecause जाती है, ज़ोर-ज़ोर से बोलती है, हे मारा राम जी! कैसे उलट -फेर हो गया, डाक्टरनी जी ने तो बेटा बोला था. डाक्टरनी कहे झूठ बोलेगी, हमारी बहु ही चुड़ैल है. सप्तेश्वर सास को सर पिटता देख, रनिया सोचने लगी so और उसकी आंखें डब-डब भर गई. यही हिम्मत पहले कर ली होती तो, मेरी दोनो बेटियाँ जिंदा तो होती, पहले कितनी मूरख थ...