अजनबी
ललित फुलारा
जो सच है उसे छिपाना क्यों? मैं स्वछंद हूं. जो मन में आता है, बिना किसी के परवाह के करती हूं. उसने भी मुझे इसी रूप में स्वीकारा था. हाथ पकड़ कहा था, ‘जो बित गया, उससे मुझे कोई लेना नहीं.‘ मैं फिर भी नहीं मानी थी. जानती थी पुरुष के कहने और करने में बहुत फर्क होता है. वो जिद्दी था. पूरे पांच साल इंतजार करता रहा. जब हम करीब आए, मैंने ऐसे बंधन की कल्पना नहीं की थी. वह मेरा दोस्त और लाल-पीले-नीले रंगों से भरी डायरी के पन्नों का राजदार था. छोटी-छोटी ख्वाहिशों, फरमाइशों से लेकर प्यार और चाहत हर चीज़ से वाकीफ. शादी के बाद क्या औरत की चाहत खत्म हो जाती है? वह तकिए को छाती से लगाकर किसी के ख्वाब नहीं समेट सकती. किसी का साथ, हाथों का स्पर्श और बातें उसे नहीं भा सकती. समझौतों से दबी, सारी चाहत दफ्न कर देती है एक औरत और वह मर्द कभी नहीं समझता जो ख्वाबों तक ले जाने का दंब भरता है.
सप...