कमिश्नर मातादीन और झिमरू

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लघुकथा

  • डॉ. गिरिजा किशोर पाठक 

कमिश्नर मातादीन साहब को मन ही मन यह बात कचोट रही है कि वे झिमरू के भरोसे कैसे लुट गये.  झिमरु की निष्ठा पर विश्वास और अविश्वास के अन्तर्द्वन्द में वे कुलबुला रहे हैं. विगत दस साल से झिमरू इनके  साथ है. वह एक सजग और जागरुक प्रहरी है. किसी की हिकमत कि कोई दरवाजा खटखटा ले, घंटी बजा ले और झिमरु चुप रहे. एकदम ह्रिस्ट- पुष्ट, दूध ,नान वेज किसी की कमी नहीं है उसके लिए. वह सबका दुलरवा है. दादी ने उसे चम्मच से दूध पिलाया है. सैम्पू से नहलाया है. उसके चेहरे की चमक से आदमी तो आदमी चील -कौवे भी दीवार नहीं फांदते. हां, एसी में सोने की आदत ने उसे थोड़ा आलसी बना दिया है. फिर भी पूरा घर उसके भरोसे सोता है. उसकी रौबीली आवाज का पुरा मोहल्ला दीवाना है.

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मातादीन मराठे कमिश्नर साहब थे. इसलिेए बड़े -बड़े लोगों का आना जाना बंगले पर लगा रहता था. लेकिन झिमरु की नजर समाजवादी थी. सब पर बराबर. एक बार एक पटवारी साहब की झिमरूने ऐसी -तैसी कर दी, उनकी गलती ये थी कि बिना झिमरु की अनुमति के अंदर प्रवेश कर गये. झिमरु का याराना भी बड़े बड़े अफसरों से रहा. उसका  खान -पान, दवा -दारु सब नंवर एक. सुबह सुबह जब गेट से अखबार लाकर झिमरु  कमिश्नर साहब के साथ में देता है तो मातादीन जी की खुशी का भाव चेहरे पर पढ़ने लायक रहता है.  मातादीन साहब उसके सिर पर हाथ फेर कर शाबासी का भाव प्रकट करते हैं. झिमरु खुश हो जाता है.

औरतें तो यहां तक चटखारे ले- ले कर बतियाने लगीं कि इतने बड़े आदमी के यहां चोरी कैसे हो सकती है. कहीं किसी का माल हड़पने मातादीन यूं ही कहानी तो नहीं बना रहे.

पर सोमवार की रात गजब हो गया. कुछ चोर गेट फांद कर घर में घुस गये. सिटकनी तोड़ कर मातादीन साहब का माल साफ कर सब कुछ ले  गये. मातादीन साहब ने एफआइआर में एक लाख नगद और 170ग्राम सोने के जेवर चोरी जाना लिखाये. पूरे मोहल्ले में चौराहे-चौराहे चर्चा का बाजार गर्म हो गया. अरे! झिमरु के रहते कमिश्नर मातादीन के घर चोरी. औरतें तो यहां तक चटखारे ले- ले कर बतियाने लगीं कि इतने बड़े आदमी के यहां चोरी कैसे हो सकती है. कहीं किसी का माल हड़पने मातादीन यूं ही कहानी तो नहीं बना रहे. यूं भी मातादीन तीन माह पहले ही रिटायर हुए हैं. आकाश विहार में सुंदर सुरक्षित बंगले में रहते हैं. पता नहीं चोरों को भी कैसे मालूम कि मातादीन साहब की तिजोरी तीसरी मंजिल में है.

पुलिस की टीम पर टीम और बड़े अफसर विवेचना में लगे हैं. पूरे मोहल्ले के नाई, धोबी, कुक, कुत्ते घुमाने वाले, खाना बनाने वालों और कबाड़ बीनने वालों  से पुलिस पूछताछ कर रही है. पुलिस चकित है कि झिमरु चुप क्यों रहा?  झिमरु का रुतबा भी कालोनी में कुछ कम होता दिख रहा है.

रोज अखबारों में पुलिस की असफलता की कहानी छपती और विवेचकों का तनाव बढ़ा देती. पुलिस को कोई ओर-छोर पकड़ में नहीं आ रहा था. घटना स्थल पर कोई फुट प्रिंट या फिंगर प्रिंट भी नहीं मिले थे. जांच का जिम्मा सब इंस्पेक्टर आशीष को सौंपा गयी.

लखना के साथ झिंमरु रोज प्रातः की सैर पर जाता है. झिंमरु का खान- पान सब लखना के जिम्मे रहता है. लखना से पुलिस ने दो घंटे पूछताछ की. कोई उसके साथियों का हाथ तो नहीं चोरी में. सारे लोगों के मोबाइल के कालडिटेल खंगाले. 2-3 कुत्ते घुमाने वाले और सब्जी बेचने वालों की लोकेसन कालोनी में रात को मिली थी पर 12 बजे रात के बाद उनके मोबाइल भी  बंद थे. आशिफ,रमजान और संजू से खूब पूछताछ हुई पर वे नट गये. उनका कहना था कि वे हमेशा ही 12बजे के बाद मोबाइल बंद कर देते हैं. पुलिस को भी काल एनालिसिस में यही सही लगा. सो इनसे पूछताछ बंद हो गयी . सवाल फिर वही झिमरू चुप क्यों रहा ? विवेचक परेशान हैं.

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झिमरू की निष्ठा पर माताराम जी को तनिक भी संदेह नहीं है. आदमी हो तो भला धूर्तता और मक्कारी कर सकता है लेकिन वह तो डाबरमैन नस्ल का मजबूत कुत्ता है. माताराम जी नौकरों पर विश्वास कम करते हैं लेकिन झिमरू को निष्ठावान नं 1 मानते  हैं. माताराम जी बस एक ही प्रश्न पर अटके हैं कि झिंगरु चुप कैसे रहा ! उसको चोरों ने बेहोशी के लिए कुछ सुघा  तो नहीं दिया था?

रोज अखबारों में पुलिस की असफलता की कहानी छपती और विवेचकों का तनाव बढ़ा देती. पुलिस को कोई ओर-छोर पकड़ में नहीं आ रहा था. घटना स्थल पर कोई फुट प्रिंट या फिंगर प्रिंट भी नहीं मिले थे. जांच का जिम्मा सब इंस्पेक्टर आशीष को सौंपा गयी.

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सब इंस्पेक्टर आशीष ने फिर नये सिरे से पूछताछ शुरु की. लखना ,आसिफ ,रमजान और संजू से पूछताछ शुरु हुई. ये चारों कालोनी के साहब लोगों के कुत्ते घुमाते थे. 2-3 हजार रुपया महिना कमा लेते थे. एक दिन मातादीन जी के घर पर इंस्पेक्टर आशीष ने 7 संदिग्धों को बुलाया. 3 पर झिमरु चढ़ बैठा लेकिन, आसिफ, रमजान और संजू के घर के अंदर आने पर वह शांत था. सब इंस्पेक्टर आशीष का सिर चकराने लगा. इन तीनों से अनवरत कठोर पूछताछ में तीनों ने अपराध स्वीकार किया. नगदी और जेवर रमजान के घर केले के पेड़ के नीचे पोलीथीन बैग में गड्डे के भीतर छिपाना बताया.

आसिफ, रमजान और संजू को झिमरु कैसे जानता पहचानता था?  वह क्यों भौका नहीं चुप क्यों रहा? आसिफ ने झिमरु से अपनी जान पहचान का पर्दाफाश करते हुए बताया कि लखना रोज झिमरू को घुमाता था. मैं, रमजान और संजू अन्य साहब लोगों के कुत्तों को घुमाते थे. हम सबकी बैठकी का अड्डा था शिबू का चाय का होटल.

पुलिस ने आंखिर पोटली बरामद कर ली उसमें 6 लाख 10 हजार नगद और 280ग्राम सोना था. इन तीनों ने बताया कि ये सारा माल कमिश्नर साहब के वहां का ही है. तीनों ने बताया कि नगदी 6 लाख 40 हजार था हम लोगों ने 30 हजार अपने खर्चे के लिए आपस में बांट लिये थे. पुलिस ने माताराम जी से पुन: पूछताछ की पर उन्होंने इतना अधिक नगदी और 280 ग्राम सोने के जेवर उनके न होना  बताया. मात्र 1लाख नगद 170ग्राम सोने के गहने ही उनका होना स्वीकार किया. शायद इनकम टेक्स का रट्टा सबको परेशान करता है. यही कुछ संभावना बनती है.

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लेकिन मूल सवाल झिमरु चुप क्यों रहा? यह अभी अनुत्तरित था. आसिफ, रमजान और संजू को झिमरु कैसे जानता पहचानता था?  वह क्यों भौका नहीं चुप क्यों रहा? आसिफ ने झिमरु से अपनी जान पहचान का पर्दाफाश करते हुए बताया कि लखना रोज झिमरू को घुमाता था. मैं, रमजान और संजू अन्य साहब लोगों के कुत्तों को घुमाते थे. हम सबकी बैठकी का अड्डा था शिबू का चाय का होटल. जब हम  सब चाय पीते थे तो कुत्तों को बैंच पर बांध देते. कभी- कभी झिमरु को पैडिगिरी और विस्किट भी खिला देते थे.

धीरे-धीरे झिमरु आसिफ, रमजान और संजू का लायल हो गया था. वह कुत्ते की निष्ठा थी वह क्या जाने प्रपंच और छल. उस रात को जब आसिफ, रमजान और संजू बंगले में घुसे तो झिमरु सूंघ कर उनके पैर चाटने लगा. झिंमरु के सहज प्रेम का फायदा उठा कर इन चोरों ने मातादीन के माल पर हाथ साफ कर दिया. लेकिन चोरों की ईमानदारी देखिये! सख्ती से पूछताछ करने पर ही सही, कमिश्नर साहब का चोरी गया सारा का सारा सामान सही-सही बरामद करा दिया. साहब की बेमानी देखिए वे स्वीकार ही नहीं कर रहे अपना धन और सामान. घर की महिलायें अपने कलेजे पर पत्थर रख कर चुप हैं.

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आसिफ, रमजान और संजू पुलिस रिमांड पर हैं. सब इंस्पेक्टर आशीष ने इन तीनों के रात्रि 12 बजे के बाद प्रतिदिन मोबाइल बंद रखने का राज खोला है. सुबह-शाम कुत्ते घुमाना और रात्रि को 12 बजे के वाद अनेक घरों में चोरी करना उन्होंने स्वीकार  भी किया है. लखना अनजान और हैरान है.उसे कुछ सूझ नहीं रहा. झिमरू की चोरों के साथ संगत कराने की आत्मग्लानि से अंदर ही अंदर वह हुक्के के तंबाकू की तरह सुलग रहा है. मातादीन साहब सारी संपत्ति के मिल जाने और चोर पकड़े जाने के वावजूद तनाव में हैं. उनके परिवार वाले विशेष रुप से बहुओं का दुख असहनीय है पुलिस द्वारा  सबकुछ बरामद करने के बाद भी कमिश्नर साहब ने इन सबका परिवार के जेवर होने से ही मना कर दिया.

पुलिस खुश है क्योंकि बिना ज़्यादा हाथ पांव हिलाये कितने और घरों में घटित बारदातों के खुलने की संभावना है‌. जनता के भरोसे की बात जो है. झिमरु न खुश है न दुखी हैं. हां, घर में रोज के भीड़ भड़ाक्के से थोड़ा असहज हैं.

 (कविता, समाज और राष्ट्र के समसामयिक विषयों पर लेखन एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)

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