- मंजु पांगती “मन”
यात्राएं कई प्रकार की होती हैं.
जीवन यात्रा, धार्मिक यात्रा, पर्यटन यात्रा, प्रेम यात्रा. जीवन में जब ये यात्राएं घटित होती हैं तो परिवेश में दृष्टिगोचर होती ही हैं. इन सब के साथ एक यात्रा और और होती है हर समय होती है जो दिखाई नहीं देती महसूस की जाती है.दशक
कितना सुन्दर होता है
सपनों का संसार, जो कुछ हम चाहते हैं वही होता रहता है. हकीकत की तपती रेत पर सपनों के सुखद कोमल नंगे पैर ज्यूँ ही खेलने को मचलते हैं तो तपती रेत पैरों को अकसर जला देती है. हर लड़की का एक सपनों का राजकुमार होता है.
दशक
मुख्य यात्रा तो जीवन यात्रा ही है न. यह सोचते-सोचते कविता की यादों की कड़ी जुड़ती जाती है. जब उसने होश सम्भाला तो सभी बच्चों की भांति वह भी सपनों के पंख फैलाए रंगीन सपनों के संसार में गोते लगा रही थी.
कितना सुन्दर होता है सपनों का संसार, जो कुछ हम चाहते हैं वही होता रहता है. हकीकत की तपती रेत पर सपनों के सुखद कोमल नंगे पैर ज्यूँ ही खेलने को मचलते हैं तो तपती रेत पैरों को अकसर जला देती है. हर लड़की का एक सपनों का राजकुमार होता है.जो उसके मन की हर इच्छा को पूरी कर देता है. वह सपना वाकई में बेहद खूबसूरत होता है.
दशक
उसे याद आया कैसे उसे विनोद से प्रेम हो गया था.
और विनोद भी कविता पर जान छिडक देता था. कविता को लगा ऐसा ही तो था उसके सपनों का राजकुमार जो कविता के सुख-दुःख को अपना समझ कर जीता था. कविता और विनोद जल्दी ही शादी के बंधन में बंध गये. दोनो के माता-पिता को कोई ऐतराज नहीं था. जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे प्रेम की खुमारी भी उतर रही थी. वर्ष भर के भीतर ही हालात इतने बिगड़ गए कि साथ निभाना मुश्किल हो गया था.दशक
दोनों ने आपसी सहमति से अलग होना
ही ठीक समझा और कानूनी तरीके से अलग हो गये थे. कविता अपने मन ही मन उस राजकुमार को कोसती काश तुम हकीकत बन जाते. पर ऐसा कहाँ होता है. समय की गति निर्बाध है. उसकी गति के साथ चलना ही होता है. इस बार माता-पिता की मर्जी से कविता का विवाह राजीव से हो गया. राजीव निहायत ही शरीफ़ और प्रेम करने वाला व्यक्ति था. उसने कोई कसर नहीं छोड़ी कविता को सुखी व खुश रखने की. कविता खुश थी फिर भी उसके सपनों का राजकुमार बीच-बीच में दस्तक दे ही देता था, परन्तु अब कविता हकीकत और सपनों के अंतर को समझ गई थी.दशक
आज उसे विनोद का खयाल आया कि
प्रेम करना कितना आसान है, पर निभाना उतना ही मुश्किल. उनके रिश्ते में प्रेम की जगह अधिकार व स्वार्थ ने ले ली थी. सपनों का राजकुमार तब भी नहीं मिला और अब भी. आज भी जब वह नितांत अकेली होती है तो अपने सपनों के राजकुमार को याद करती है. और एक अजीब सी मुस्कान उसके होटों पर तैर जाती है. अपने यादों की कड़ी को तोड़ते हुए उसने महसूस किया इस जीवन में होने वाली सामान्य यात्राएं अपने गंतव्य पर पहुँच कर वापसी करती हैं. मगर मन की यात्रा वापसी नहीं करती बल्कि समाप्त हो जाती हैं शरीर की समाप्ति के साथ.दशक
(लेखिका मुनस्यारी, पिथौरागढ़ की मूल निवासी एवं वर्तमान में प्र.अ.रा.प्रा. विद्यालय ग्वालदम, चमोली हैं)