सरुली और चाय की केतली….

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लघु कथा

  • अमृता पांडे

सरुली चाय की केतली से because निकलती भाप को एकटक देख रही थी. पत्थरों का ऊंचा नीचा आंगन, एक कोने पर मिट्टी का बना कच्चा जिसमें सूखी लकड़ियां जलकर धुआं बनकर गायब हो जातीं. चाय उबलकर काढ़ा हो गई थी पर सरुली ना जाने किन विचारों में निमग्न थी. because न जाने कितने वर्षों पुरानी यात्रा तय कर ली थी उसने कुछ ही मिनटों में. बचपन में स्कूल नहीं जा पाई थी. मां खेत में काम पर जाती और जानवरों के लिए चारा लाती. सरुली घर में छोटे भाई बहनों की फौज को संभालती और सयानों की तरह उनका ध्यान रखती थी.

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छोटी-सी उम्र में ही घर के सारे because काम से लिए थे उसने. सोलह वर्ष की कच्ची उम्र में तो इतनी काबिल हो गई थी कि विवाह तय हो गया था उसका. झट मंगनी, पट विवाह हो गया. सरुली का बचपन वैवाहिक ज़िम्मेदारियों की भेंट चढ़ गया. एक पत्नी, गृहणी और बहू से जो अपेक्षाएं होती हैं उन सभी को वह निभाती रही.

भारत—नेपाल बार्डर, झूला घाट, पिथौरागढ़ में चूल्हे पर चाय बनती हुई. फोटो : गौरव बोहरा

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कच्ची उम्र में ही चार-पांच बच्चों के because मां बन गई. जिनमें से 3 ही जीवित रहे. उम्र से पहले ही वह परिपक्व हो गई थी, वैसे भी थोड़ा कम ही बोलती थी बचपन से ही. मगर अब कुछ ज़्यादा ही चुप हो गई थी. पति फौज में थे जो घर बहुत कम आ पाते थे. सारा दिन लंबे चौड़े because परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में चला जाता. रसोई का सारा ज़िम्मा उसी का था. जैसे मायके में मां खेतों से लौट कर उसे चूल्हे में चाय बनाने को कहती, वैसे ही ससुराल में भी जब सांस खेतों से आती तो सरुली लोटे में चाय भरकर तैयार रखती.

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आज सरुली खुद सास बन गई थी. because फर्क इतना ही था कि उसके लिए चाय बनाने वाली बहू वहां नहीं थी, वह बेटे के साथ परदेस में थी. सरुली का मन करता था कि कोई उसे एक गिलास चाय बना कर दे दे पर वहां कोई नहीं था.

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अचानक उसकी तंद्रा भंग हुई. because उसने केतली का ढक्कन उठाकर देखा तो सारा पानी सूख चुका था. चूल्हे की आग भी बुझ गई थी. because धुएं के छल्लों के साथ उसकी सारी उम्मीदें भी धूमिल हो गई. सरुली फिर उठी, लकड़ी के छिलके बटोरने और फिर से चाय बनाने.

(हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड)

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