Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
क्या यही राज्य हमने मांगा था

क्या यही राज्य हमने मांगा था

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 धीरेन्द्र सिंह चौहान खटीमा मसुरी रामपुर तिराह में हुआ आंदोलनकारियों का  हत्या कांड उन शहीदों के बदौलत है आज उत्तराखंड, जिन्होंने हिलाया था ब्रह्मांड राज्य बनाने की खातिर आंदोलनकारी रहे सलाखों में खाई लाठी और गोलियां सलामत रहेगी कब तक देवभूमि में भ्रष्टाचार अधिकारी, शराब माफियों की टोलियां मंत्री, संतरी नेता और विधायक, सांसद अधिकारी सारे पड़े हैं, कमिशन की मौज में देख रहे हैं आंदोलनकारी, बोल रही है जनता क्या यही राज्य हमने माँगा, पड़ी है सोच में अधिकारियों में पनपा भ्रष्टाचार नेताओं में पनपा है पाखंड गढ़वाल कुमाऊँ की जनता ने इस खातिर नहीं माँगा था उत्तराखंड नौरी पुरोला, उत्तराखंड...
चक्रपाणि मिश्र के भूमिगत जलान्वेषण के वैज्ञानिक सिद्धांत

चक्रपाणि मिश्र के भूमिगत जलान्वेषण के वैज्ञानिक सिद्धांत

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-26 डॉ. मोहन चंद तिवारी आचार्य वराहमिहिर की तरह चक्रपाणि मिश्र का भी भूमिगत जलान्वेषण के क्षेत्र में  महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है,जो वर्त्तमान सन्दर्भ में भी अत्यन्त प्रासंगिक है. चक्रपाणि मिश्र ने भारतवर्ष के विविध क्षेत्रों because और प्रदेशों की पर्यावरण और भूवैज्ञानिक पारिस्थिकी के सन्दर्भ में देश की भौगोलिक पारिस्थिकी को जलवैज्ञानिक धरातल पर पांच वर्गों में विभक्त किया है और प्रत्येक क्षेत्र की वानस्पतिक तथा भूगर्भीय विशेषताओं को अलग अलग लक्षणों से परिभाषित भी किया है. प्राचीन भारत के परंपरागत जल संसाधनों के सैद्धांतिक  स्वरूप को जानने के लिए भी चक्रपाणि मिश्र का 'विश्ववल्लभवृक्षायुर्वेद’ नामक ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है. 'विश्ववल्लभवृक्षायुर्वेद’ में जलवैज्ञानिक सिद्धांत सोलहवीं शताब्दी में महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.) के समकालीन रहे ज्योतिर्विद पं.चक्र...
हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा - भाग-4 सुनीता भट्ट पैन्यूली हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में becauseलाने के लिए कभी-कभी लेखक को मरना भी होता है ताकि पाठकों द्वारा विसंगतियों का वह सिरा पकड़ा जा सके जिसकी स्वीकारोक्ति सामाजिक पायदान पर हरगिज़ नहीं होनी चाहिए. सत्य ऐसी घटनाओं और अनुभव लिखने के because लिए कलम की रोशनाई यदि कम पड़ेगी  तो उन स्मृतियों की स्याह छाप प्रगाढ होकर पाठकों को झकझोरेगी कैसे? मेरे अपने बीते हुए अनुभवों पर प्रकाश डालने से शायद कुछ छुपा हुआ, ढका हुआ बाहर निकल कर आ जाये कालेजों की मौज़ूदा हालत के रूप में. सत्य ऐसा ही उपरोक्त अनुभव जो कि कुछ because अप्रत्याशित, अशोभनीय और हिकारत भरा था मेरे लिए,मज़बूर हो गयी थी मैं सोचने के लिए कि कोई इतना असभ्य कैसे हो सकता है? पढ़ें — वो बचपन वाली ‘साइकिल गाड़ी’ चलाई सत्य हां..! आनन्द प्रकाश सर के कहे because अनुसार उ...
अपना गाँव

अपना गाँव

कविताएं
अंकिता पंत गाँवों में फिर से हँसी ठिठोली है बुजुर्गों ने, फिर किस्सों की गठरी खोली है. रिश्तों में बरस रहा फिर से प्यार मन रहा संग, खुशी से हर त्यौहार. गाँवों में फिर से खुशियाँ छाई हैं परदेसियों को बरसों बाद, घर की याद आई है. महामारी एक बहाना बन कर आ गई खाली पड़े मकानों को, बरसों बाद घर बना गई. पहाड़ अब और अधिक चमकने लगे हैं अपनों से जुड़कर, ये रिश्ते और अधिक महकने लगे हैं. रिश्तों की चाहत, अपनी मिट्टी से फिर जुड़ने लगी है अब मेरे पहाड़ों को, सुकूँ भरी राहत मिलने लगी है. विजयपुर  (खन्तोली) जनपद – बागेश्वर, उत्तराखंड  ...
सरुली और चाय की केतली….

सरुली और चाय की केतली….

किस्से-कहानियां
लघु कथा अमृता पांडे सरुली चाय की केतली से because निकलती भाप को एकटक देख रही थी. पत्थरों का ऊंचा नीचा आंगन, एक कोने पर मिट्टी का बना कच्चा जिसमें सूखी लकड़ियां जलकर धुआं बनकर गायब हो जातीं. चाय उबलकर काढ़ा हो गई थी पर सरुली ना जाने किन विचारों में निमग्न थी. because न जाने कितने वर्षों पुरानी यात्रा तय कर ली थी उसने कुछ ही मिनटों में. बचपन में स्कूल नहीं जा पाई थी. मां खेत में काम पर जाती और जानवरों के लिए चारा लाती. सरुली घर में छोटे भाई बहनों की फौज को संभालती और सयानों की तरह उनका ध्यान रखती थी. प्यारे छोटी-सी उम्र में ही घर के सारे because काम से लिए थे उसने. सोलह वर्ष की कच्ची उम्र में तो इतनी काबिल हो गई थी कि विवाह तय हो गया था उसका. झट मंगनी, पट विवाह हो गया. सरुली का बचपन वैवाहिक ज़िम्मेदारियों की भेंट चढ़ गया. एक पत्नी, गृहणी और बहू से जो अपेक्षाएं होती हैं उन सभी को वह...
लोकतंत्र

लोकतंत्र

कविताएं
भारती आनंद तानाशाही का अंत हुआ, फिर भारत में लोकतंत्र आया. जनता के द्वारा शासन यह, जनता का शासन कहलाया. जनता के हित की ही खातिर, नव नियमों का विधान किया. जन अधिकारों को आगे रखा, संविधान इसे नाम दिया. जन-जन की बात सुनेगा जो, जन-जन के लिए जियेगा जो. उसको ही चुनेंगे अपना शासक, जनता के साथ चलेगा जो. वो अपना ही तो भाई होगा, अपनी हर बात सुनायेगे. जो होगा भारत के हित में, हम काम वही करवायेंगे. मौलिक अधिकार मिले जनता को, जख्म पुराने भर जायेंगे. लोकतंत्र से चलता है भारत, दुनिया को दिखलायेंगे. लिखी जायेगी नई इबारत नया दौर फिर से आयेगा. बनकर कोई भी तानाशाही, अत्याचार न कर पायेगा. सत्तर वर्षो में देखो कैसे बदल गयी है परिभाषा. लोकतंत्र भी बदल गया है, बदल गयी सब अभिलाषा. काम के सारे रंग ढंग बदले,जनप्रतिनिधी हो गये नेताजी. कुछ दलों में हुए विभाजित, कुछ अपने में ही राजी. क्षेत्र...
नै लिख्वार, नै पौध

नै लिख्वार, नै पौध

कविताएं
                            कुछ गढवाली रचना                                दिशा धियाण नवरात्रों बेटी पूजदा                                ना जाणि कै दौ बलात्कार ह्वोणू जे समाज देश मा                                   बेट्यूं इज्जत तार तार ह्वोणू रावण अथा घूमण लग्या                          हर बेटी जांगणी न्यो निसाफ तख राम जी का भेस मा.                       बेटी जन्म ह्वोण किले च पाप. गर्भ बटिन भला बीज डाळा बलात्कारी नीच सोच ना पाळा जन नौनी अपडि होंदि हक्कै भी तनी मांणा दूं बिरांणा नौन्यूं सम्मान कन नौन्याळू घौरै बटि समझा दूं. अश्विनी गौड़, राउमावि पालाकुराली, रूद्रप्रयाग अबकि बार मैनत से बणाई सजांई कूडी बांजा पडिगिन चौक तिबार यखुलि छूटी गैन. तुमारी सैती बांज बुराश पैंया मोळिगिन झपझपी घास काटणो हवेगिन. यि बण डाळा पुंगणा देखी देखी थकी गैन तुमारि जग्वाळ ...
बज उठेंगी हरे कांच की चूडियाँ…! 

बज उठेंगी हरे कांच की चूडियाँ…! 

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-5 मंजू काला चूडियाँ पारंपरिक गहना है,because जिसका प्रयोग अमूनन हर भारतीय नारी करती है और जब तक उनकी कलाइयों पर ये सुंदर-सा गहना सज नहीं जाता, तब तक श्रंगार भला कैसे पूरा होगा! प्यारे हम भारतीय नारियाँ रंग-बिरंगी because चमकीली चूड़ियाँ कलात्मक एव सुरुचिपूर्ण ढंग से पहनकर अपनी कोमल कलाइयों का श्रंगार करती हैं. यह शृंगार शताब्दियों से कुमारियों एवं नारियों को रुचिकर प्रतीत होता है, साथ ही स्वजन-परिजन भी हर्षित होते हैं. हाथ की चार चूड़ियाँ उनके अहिवात को सुरक्षित रखने के लिए ही पर्याप्त हैं. कवि देव के शब्दों में नारियों की प्रभु से चिर प्रार्थना यही है- संग ही संग becauseबसौ उनके अंग अंगन देव तिहरे लूटीए. साथ में राखिए नाथ उन्हें हम हाथ में because चाहती चार चुरिए.. प्यारे बचपन की बात है जब मैं because खरीदारी करने बाजार जाती माँ के साथ, बाजार जिद् करके चली ...
राजनीति में लोकतांत्रिक संस्कार की जरूरत

राजनीति में लोकतांत्रिक संस्कार की जरूरत

समसामयिक
गिरीश्वर  मिश्र राजनीति सामाजिक जीवन की व्यवस्था चलाने की एक जरूरी आवश्यकता है जो स्वभाव से ही व्यक्ति  से मुक्त हो कर लोक की ओर उन्मुख होती है. because दूसरे शब्दों में वह सबके लिए साध्य न हो कर उन बिरलों के लिए ही होती है जो निजी सुख को छोड़ कर लोक कल्याण के प्रति समर्पित होते हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दौर में राजनीति में जाना सुख की लालसा से नहीं बल्कि अनिश्चय और जोखिम के साथ देश की सेवा की राह चुनना था. स्वतंत्रता मिलने के बाद धीरे-धीरे राजनीति की पुरानी स्मृति धुंधली पड़ने लगी और नए अर्थ खुलने लगे जिसमें देश. लोक और समाज हाशिए पर जाने लगे और अपना निजी हित प्रमुख होने लगा. यह प्रवृत्ति हर अगले चुनाव में बलवती होती गई और अब सत्ता, अधिकार और अपने लिए धन संपत्ति का अम्बार लगाना ही राजनीति का प्रयोजन होने लगा है. विचारधारा राजनैतिक विचारधारा because और आदर्श तो अब पुरानी या दकियानूसी...
बच्चे की आंखों में जीवनभर की चमक शिक्षक ही ला सकता है

बच्चे की आंखों में जीवनभर की चमक शिक्षक ही ला सकता है

शिक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘दिवास्वप्नों के मूल में वास्तविक अनुभव हों, तो वे कभी मिथ्या नहीं होते. यह दिवास्वप्न जीवन्त अनुभवों में से उपजा है और मुझको विश्वास है कि प्राणवान, क्रियावान और निष्ठावान शिक्षक इसको वास्तविक स्वरूप में ग्रहण कर सकेंगे.’ -गिजुभाई        पहाड़ (गांधी जी का जो योगदान भारतीय because राजनीति में है, वही योगदान गिजुभाई का भारतीय शिक्षा जगत में है. गिजुभाई ने अपने अध्यापकीय अनुभवों की डायरी ‘दिवास्वप्न’ की प्रस्तावना में उक्त पक्तियां लिखी थी. बाल मनोविज्ञान एवं शिक्षण के क्षेत्र में ‘दिवास्वप्न’ पुस्तक को एक अनमोल कृति माना जाता है.) पहाड़ शिक्षिका एवं कवियत्री रेखा चमोली की because ‘मेरी स्कूल डायरी’ को गहनता से पढ़ने के बाद इस पुस्तक पर मेरे मन-मस्तिष्क की पहली अभिव्यक्ति गिजुभाई की उक्त पक्तियां ही हैं. इस शैक्षिक डायरी को पढ़ते हुए एक साथ कई किताबों और विषयों को पढन...