हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्राभाग-4

  • सुनीता भट्ट पैन्यूली

हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में becauseलाने के लिए कभी-कभी लेखक को मरना भी होता है ताकि पाठकों द्वारा विसंगतियों का वह सिरा पकड़ा जा सके जिसकी स्वीकारोक्ति सामाजिक पायदान पर हरगिज़ नहीं होनी चाहिए.

सत्य

ऐसी घटनाओं और अनुभव लिखने के because लिए कलम की रोशनाई यदि कम पड़ेगी  तो उन स्मृतियों की स्याह छाप प्रगाढ होकर पाठकों को झकझोरेगी कैसे? मेरे अपने बीते हुए अनुभवों पर प्रकाश डालने से शायद कुछ छुपा हुआ, ढका हुआ बाहर निकल कर आ जाये कालेजों की मौज़ूदा हालत के रूप में.

सत्य

ऐसा ही उपरोक्त अनुभव जो कि कुछ because अप्रत्याशित, अशोभनीय और हिकारत भरा था मेरे लिए,मज़बूर हो गयी थी मैं सोचने के लिए कि कोई इतना असभ्य कैसे हो सकता है?

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सत्य

हां..! आनन्द प्रकाश सर के कहे because अनुसार उनको दीवान के नीचे से उनकी चप्पलें निकालकर दी मैंने किंतु मन में मेरा आत्म-सम्मान ज़ार-ज़ार होकर मुझमें ही समाहित हो गया था क्योंकी कोई दूसरा समाधान भी तो नहीं मेरे पास.

मन में क्रोध के because भाव उगे किंतु मेरे स्त्रैण को कमज़ोर पड़ता देख मेरे विद्यार्थी मन ने जो कि पूर्णरूपेण हावी था मुझ पर, मुझे समझाया कि तो क्या हुआ छात्रा हो तुम..! तुम्हें अपने पंखों को परवाज़ देना है सो बहती जाओ समय के बहाव में और  मैंने तुरंत नीचे झुककर हाथ से चप्पलों को निकाल कर आनंद प्रकाश सर के सुपुर्द कर दिया…

सत्य

ज़िंदगी ने कभी लौह होने के because लिए मुझे कोई ऐसा अवसर भी तो नहीं दिया था मुझे कि बेलौस-बेमुरव्वत  विरोध कर सकती मैं उन आफिस बाबू द्वारा मुझे निर्देशित किये गये शब्दों का. मन में क्रोध के भाव उगे किंतु मेरे स्त्रैण को कमज़ोर पड़ता देख मेरे विद्यार्थी मन ने जो कि पूर्णरूपेण हावी था मुझ पर, मुझे समझाया कि तो क्या हुआ छात्रा हो तुम..! तुम्हें अपने पंखों को परवाज़ देना है सो बहती जाओ समय के बहाव में because और  मैंने तुरंत नीचे झुककर हाथ से चप्पलों को निकाल कर आनंद प्रकाश सर के सुपुर्द कर दिया, लब्बोलुआब यह कि वह जवैं तोड़ती मैंम यथावत बिना नज़रें उठाये अपना काम करती रहीं, आज सोचती हूं अपने काम के लिए इतना भी कोई कैसे समर्पित हो सकता है? इसे समर्पण कहेंगे या दिमाग की शुन्यता?

सत्य

अन्तत: आगे-आगे आफिस बाबू  because आनन्द प्रकाश सर और पीछे-पीछे मैंने कालेज की ओर राह पकड़ी  उन्होंने आफिस का दरवाजा खोला और के.पी. मल्होत्रा सर की तरफ से मेरे असाइनमेंट जमा कर लिए. आख़िर एक सेमेस्टर के असाइनमेंट जमा हो गये थे,आफिस because से बाहर आकर राहत की सांस ली. चलो अनथक कोशिश की मैंने और मेरा काम हो भी गया, अब अगली बारी थी मेरी. सीधे एक्ज़ाम देने सहारनपुर आने की जिसके लिए अब जी तोड़ मेहनत भी करनी थी मुझे.

… तभी मेरी भूख because को जैसे सुकून मिला, जब डाटकाली में गरमागरम हलवे वाला दोना भरा हाथ बस की खिड़की से मेरी तरफ़ बढ़ा, उत्सुकतावश बाहर झांका तो कई लोग हलुआ दोने में लिए बसों में यात्रियों को पकड़ा रहे थे एक दोने से भूख शांत नहीं हुई तो मैंने झट से दूसरा दोना भी लपककर ले लिया. आज भी उस सुस्वादु हलुवे का स्वाद मेरे ज़ेहन से नहीं उतरता…

सत्य

ख़ैर अभी ये सब नहीं सोचना because चाहती थी मैं, अभी तो बस राहतभरा बस का सफ़र तय करना चाहती थी अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए, ख़ूब फुर्सत भरी नींद सोती रही मैं बस में, लेकिन साथ ही दिमाग से वह चप्पल उठाने वाला एपिसोड हट ही नहीं रहा था दिमाग से मेरे, साथ ही भूख भी कुलबुलाता रही थी मेरे  भीतर. लेकिन तभी मेरी भूख को जैसे सुकून मिला, जब डाटकाली में गरमागरम हलवे वाला दोना because भरा हाथ बस की खिड़की से मेरी तरफ़ बढ़ा, उत्सुकतावश बाहर झांका तो कई लोग हलुआ दोने में लिए बसों में यात्रियों को पकड़ा रहे थे एक दोने से भूख शांत नहीं हुई तो मैंने झट से दूसरा दोना भी लपककर ले लिया. आज भी उस सुस्वादु हलुवे का स्वाद मेरे ज़ेहन से नहीं उतरता, भंडारे के हलुवे का अपना ही मज़ा होता है.

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सत्य

घर पहुंच कर असाइनमेंट जमा हो because जाने की ख़बर सभी को दी सिवाय चप्पल वाली घटना के,बता देती तो मेरा कोर्स करना ही मुश्क़िल हो जाता और जायज़ भी था घर वालों का मुझ पर अपना फैसला थोपना लेकिन अब तो  सभी जान ही जायेंगे.

दो तीन दिन आराम से व्यतीत किये घर because पर किंतु परीक्षाओं का बोझ तो था ही सिर पर जो कि जनवरी के दूसरे हफ़्ते में शुरू होने वाले थे और फिर उसके बाद कोई कोताही नहीं बरती मैंने. पढ़ाई रोचक भी लग रही थी मुझे, रात-रात भर देर तक जग कर पढ़ा क्योंकि दिन मेरा दूसरों के लिए समर्पित था किंतु रात  सिर्फ़ मेरी अपनी थी.

सत्य

जनवरी के उदास से कुड़कुड़ाते दिन because उस पर बंद कमरे में एकांत में पढ़ना और सखी सहेलियों का मदमस्त होकर यहां-वहां घूमना और मेरा किट्टी पार्टी में भी न जाना किसी समय मुझे बोझिल और उबाऊ लग भी लग रहा था लेकिन क्या करती नदी में छलांग मैंने स्वयं ही लगायी थी और तैरकर भी स्वयं ही साहिल किनारे मुझे आना था.

सत्य

आख़िर दिन गिनते-गिनते वह परीक्षा because वाली सुबह भी आ गयी लेकिन आज मैं पहली बार स्वयं को आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस कर रही थी एक उम्मीद की पौ फटती हुई महसूस की मैंने अपने भीतर.

समय की बहुत किल्लत because थी मेरे पास टाईम से कालेज जो पहुंचना था. पतिदेव कार आईएसबीटी के बाहर लगाकर तुरंत अंदर गये बस का पता करने और वैसे ही भागे-भागे बाहर भी आ गये  यह कहते हुए कि आज तो बसों की हड़ताल है यह सुनते ही  मेरा माथा ठनका, हाथ-पांव कांपने लगे मेरे कि अब क्या करूं मैं?

सत्य

हमेशा की तरह जल्दी उठकर because दिन तक का प्रबंध किया मैंने, घर में भी एक स्पेशल ट्रीटमेंट मिल रहा था मुझे क्योंकि आज से परीक्षा जो शुरू हो रही थी मेरी इसलिए पतिदेव ने आज मुझे आईएसबीटी तक कार से छोड़ने की आफ़र दी और मैंने सहर्ष स्वीकार कर ली.

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सत्य

आज न जाने क्यों कोई भी because बस सहारनपुर जाने के लिए तैयार खड़ी हुई नज़र नहीं आ रही थी. समय की बहुत किल्लत थी मेरे पास टाईम से कालेज जो पहुंचना था. पतिदेव कार आईएसबीटी के बाहर लगाकर तुरंत अंदर गये बस का पता करने और वैसे ही भागे-भागे बाहर भी आ गये  यह कहते हुए कि आज तो बसों की हड़ताल है यह सुनते ही  मेरा माथा ठनका, हाथ-पांव कांपने लगे मेरे कि अब क्या करूं मैं?

सत्य

क्रमशः

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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