जल-विज्ञान

सूख न जाएं कहीं पहाड़ों के प्राकृतिक जलस्रोत : नौल व धार

सूख न जाएं कहीं पहाड़ों के प्राकृतिक जलस्रोत : नौल व धार

जल-विज्ञान
अंतरराष्ट्रीय जल दिवस पर विशेष  चन्द्रशेखर तिवारी उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक जलस्रोत नौल तथा ’धार्’ अथवा ’मंगरा’ के रुप में मिलते हैं। यहां के गांवो में नौल का सामाजिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपर्ण स्थान रहा है। यहां के कई नौल अत्यंत प्राचीन हैं। इतिहासविदों के अनुसार उत्तराखंड के कुमांऊ अंचल में स्थित अधिकांश नौल मध्यकाल से अठारहवीं शती ई. के बने हुए हैं। चम्पावत के समीप एक हथिया ’नौल्’, बालेश्वर का नौल, गणनाथ का उदिया नौल, पाटिया का स्यूनराकोट नौल तथा गंगोलीहाट का जाह्नवी नौल सहित कई अन्य नौलअपनी स्थापत्य कला के लिए आज भी प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि कभी अल्मोड़ा नगर में एक समय 300 से अधिक ’नौल’ थे, जिनका उपयोग नगरवासियों द्वारा शुद्ध पेयजल के लिए किया जाता था। कुमाऊं अंचल के कई गांवों अथवा मुहल्लों का नामकरण ’नौल’ व ’धार्’ के नाम पर मिलता है यथा- पनुवानौल्...
उच्च हिमालयी शीतजलीय मछली असेला के प्रजनन में मानवीय हस्तक्षेप

उच्च हिमालयी शीतजलीय मछली असेला के प्रजनन में मानवीय हस्तक्षेप

जल-विज्ञान
डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल विज्ञान शिक्षक रा.इ.का. भंकोली उत्तरकाशी (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक सम्मान 2022) गढ़वाल हिमालय की नदियों में पाई जाने वाली प्रमुख शीतजलीय मछली- असेला या साइजोथोरेक्स (स्नोट्राउट), के प्रजनन और आबादी पर पर बदलते जलवायु और मानवीय हस्तक्षेप के दुष्परिणाम दिख रहे हैं। इनका शरीर चिकना एवं हल्का चमकीला होता है। इसकी मुख्यतः दो प्रजातियां साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी एवं साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में पायी जाती है। शीतजल में प्रजनन साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी शीतजलीय प्रजाति होने के कारण अधिकांशतः नदी के मध्य भाग में रहती हैं। गर्मी के मौसम में बर्फीली चोटियों (ग्लेशियर) से बर्फ पिघलने से नदियों के जल का तापमान कम हो जाता है। इस मौसम में इस मत्स्य प्रजाति की वृद्धि दर अन्य मौसमों की अपेक्षा अधिक रहत...
जैनेटिक विज्ञान का नया दावा : क्या जल से पहले पौधों की उत्पत्ति हुई?

जैनेटिक विज्ञान का नया दावा : क्या जल से पहले पौधों की उत्पत्ति हुई?

जल-विज्ञान
डॉ. मोहन चंद तिवारी क्या है भारतीय सृष्टि विज्ञान की अवधारणा? दो साल पहले उपर्युक्त शीर्षक से लिखे अपने  फेसबुक लेख को अपडेट करते हुए इस लेख के माध्यम से यह जानकारी देना चाहता हूं कि भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु (1858-1937) because ने उन्नीसवीं शताब्दी में जैनेटिकविज्ञान के क्षेत्र में यह खोज पहले ही कर दी थी कि पौधों में भी जीवन होता है. आधुनिक बायोफिजिक्स के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान यह था की उन्होंने अपने अनुसंधानों द्वारा यह दिखाया की पौधो में उत्तेजना का संचार वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल ) माध्यम से होता हैं न की केमिकल के माध्यम से. बाद में इन दावों को वैज्ञानिक प्रोयोगों के माध्यम से सच साबित किया गया था. ज्योतिष आचार्य बसु ने सबसे पहले माइक्रोवेव के वनस्पति के टिश्यू पर होने वाले असर का अध्ययन किया था. उन्होंने पौधों पर बदलते हुए मौसम से होने वाले असर का अध्ययन ...
‘नौला फाउंडेशन’ : लुप्त होते जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का अभियान

‘नौला फाउंडेशन’ : लुप्त होते जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का अभियान

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-37 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-8 लेखमाला के बारे में किंचित्वक्तव्य ('हिमांतर' ई पत्रिका में प्रकाशित 'भारत की जल संस्कृति' के धारावाहिक लेख माला का यह 37 वां और 'उत्तराखंड जल प्रबंधन' का 8वां लेख है. मेरे छात्रों, सहयोगी अध्यापकों और अनेक मित्रों का परामर्श है कि ये जल विज्ञान से सम्बंधित सभी लेख पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित हों. पिछले दस वर्षों में एक शोधकर्त्ता और जल संकट की विभिन्न समस्याओं के प्रति गम्भीरता और संवेदनशीलता की भावना से लिखे गए इन because लेखों में यथा सामर्थ्य जल संस्कृति के ज्ञान-विज्ञान और उसके परम्परागत इतिहास को समेटने का यथा सामर्थ्य प्रयास  किया गया है. मेरे छात्रवर्ग, सहयोगी अध्यापकगण और विद्धान् मित्रों द्वारा समय समय पर इन लेखों का जो संज्ञान लिया गया और अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किए गए, उन सब के प्रति मैं ...
जल आंदोलन के प्रणेता सच्चिदानन्द भारती: आधुनिक वराहमिहिर

जल आंदोलन के प्रणेता सच्चिदानन्द भारती: आधुनिक वराहमिहिर

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-36 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-7 (12मार्च,2014 को because ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आई आई टी’ रुड़की में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों व जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध ‘भारतीय जलविज्ञान’ पर संशोधित लेख का सार) वाटर हारवैस्टिंग वृक्षों, वनस्पतियों द्वारा भूमिगत जल because नाड़ियों को सक्रिय करते हुए केवल तीन दशकों में ही सात सौ हेक्टेयर हिमालय भूमि पर जंगल उगाने और तीस हजार तालाब पुनर्जीवित करने वाले 'पाणी राखो' आंदोलन के प्रणेता उत्तराखण्ड के सच्चिदानन्द भारती को यदि आधुनिक वराहमिहिर की संज्ञा दी जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी. वाटर हारवैस्टिंग उत्तराखण्ड के दूधातोली क्षेत्र में सच्चिदानन्द भारती ने प्राचीन जलवैज्ञान...
जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने वाले उत्तराखण्ड के जलपुरुष व जलनारियां

जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने वाले उत्तराखण्ड के जलपुरुष व जलनारियां

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-35 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-6 प्रस्तुत लेख 1 जुलाई, 2017 को 'प्रज्ञान फाउंडेसन' द्वारा नई दिल्ली स्थित अल्मोड़ा भवन में 'उत्तराखंड में पानी की समस्या तथा समाधान' विषय पर आयोजित संगोष्ठी because में दिए गए मेरे वक्तव्य का संशोधित तथा परिवर्धित सार है, जो वर्त्तमान सन्दर्भ में भी अत्यंत प्रासंगिक, उपयोगी और गम्भीरता से विचारणीय है. वाटर हारवैस्टिंग इस लेख के द्वारा दूधातोली के जलपुरुष सच्चिदानन्द भारती और अल्मोडा जिले की जलनारी बसंती बहन भुवाली के जगदीश नेगी और नैनीताल के चंदन सिंह नयाल द्वारा अत्यंत विषम परिस्थियों में भी जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए विशेष योगदान से जन सामान्य को अवगत कराया गया है और यह भी because बताया गया है कि अनेक प्रकार की चुनौतियों और संघर्षों से जूझते हुए इन उत्तराखंड के जल पुरुषों और ज...
उत्तराखंड के ऐतिहासिक नौले : जल संस्कृति की अमूल्य धरोहर

उत्तराखंड के ऐतिहासिक नौले : जल संस्कृति की अमूल्य धरोहर

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-34 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-5 उत्तराखंड की जल समस्या because को लेकर मैंने पिछली अपनी पोस्टों में परम्परागत जलप्रबंधन और वाटर हार्वेस्टिंग से जुड़े गुल,नौलों और धारों पर जल विज्ञान की दृष्टिसे प्रकाश डाला है. इस लेख में  परम्परागत ऐतिहासिक नौलों और उनसे उभरती जलसंस्कृति के बारे में कुछ जानकारी देना चाहूंगा. वाटर हारवैस्टिंग कुमाऊं,गढ़वाल के अलावा हिमाचल प्रदेश और नेपाल में भी जल आपूर्ति के परंपरागत प्रमुख साधन नौले ही रहे हैं. ये नौले हिमालयवासियों की समृद्ध-प्रबंध परंपरा और लोकसंस्कृति के प्रतीक हैं. कौन नहीं जानता है कि अल्मोड़ा नगर,जिसे चंद राजाओं ने 1563 में राजधानी के रूप में बसाया था,वहां परंपरागत जल प्रबंधन के मुख्य because वहां के 360 नौले ही थे. इन नौलों में चम्पानौला, घासनौला, मल्ला नौला, कपीना नौला, सुनारी नौला, उमापति का न...
संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-33 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-4 उत्तराखंड के जल वैज्ञानिक डॉ. ए.एस. रावत तथा रितेश शाह ने ‘इन्डियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नौलिज’ (भाग 8 (2‚ अप्रैल 2009, पृ. 249-254) में प्रकाशित एक लेख‘ ट्रेडिशनल नॉलिज ऑफ वाटर मैनेजमेंट इन कुमाऊँ हिमालय’ में उत्तराखण्ड के परम्परागत जलसंचयन संस्थानों because पर जलवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डालते हुए, इन जलनिकायों को उत्तराखण्ड के परम्परागत ‘वाटर हारवेस्टिंग’ प्रणालियों की संज्ञा दी है. स्थानीय भाषा में इन जल प्रणालियों के because परंपरागत नाम हैं- गूल‚ नौला‚धारा‚ कुण्ड, खाल‚ सिमार‚ गजार इत्यादि.उत्तराखण्ड के जल प्रबन्धन के सांस्कृतिक स्वरूप को जानने के लिए ‘पीपल्स साइन्स इन्स्टिट्यूट’‚ देहारादून से प्रकाशित डॉ.रवि चोपड़ा की लघु पुस्तिका ‘जल संस्कृति ए वाटर हारवेस्टिंग कल्चर’ भी उल्लेखनीय है. वाटर हारवैस्टिंग ...
उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन तथा जलवैज्ञानिकों की रिपोर्ट

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन तथा जलवैज्ञानिकों की रिपोर्ट

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-32 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-3 भारत के लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में स्थित उत्तर पश्चिम से उत्तर पूर्व तक फैली हिमालय की पर्वत शृंखलाएं न केवल प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, वनस्पति‚ वन्यजीव, खनिज पदार्थ जड़ी-बूटियों का विशाल भंडार हैं, बल्कि देश में होने वाली मानसूनी वर्षा तथा तथा because विभिन्न ऋतुओं के मौसम को नियंत्रित करने में भी इनकी अहम भूमिका है. हिमालय पर्वत से प्रवाहित होने वाली नदियों एवं वहां के ग्लेशियरों से पिघलने वाले जलस्रोतों के द्वारा ही उत्तराखण्ड हिमालय के निवासियों की जलापूर्ति होती आई है. जनसंख्या की वृद्धि तथा समूचे क्षेत्र में अन्धाधुंध विकास की योजनाओं के कारण भी स्वतः स्फूर्त होने वाले हिमालय के ये प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं तथा भूगर्भीय जलस्तर में भी गिरावट आ रही है. पर्यावरण सम्बन्धी इसी पारिस्थितिकी ...
उत्तराखंड में वनों की कटाई से गहराता जलस्रोतों का संकट

उत्तराखंड में वनों की कटाई से गहराता जलस्रोतों का संकट

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-31 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-2 प्राकृतिक जल संसाधनों because जैसे तालाब, पोखर, गधेरे, नदी, नहर, को जल से भरपूर बनाए रखने में जंगल और वृक्षों की अहम भूमिका रहती है.जलवायु की प्राकृतिक  पारिस्थितिकी का संतुलन बनाए रखने और वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग के प्रकोप को शांत करके आकाशगत जल because और भूमिगत जल के नियामक भी वृक्ष और जंगल हैं. इसलिए   जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न जलसंकट से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिए वनों  की सुरक्षा करना परम आवश्यक है. वानिकी उत्तराखण्ड के अधिकांश वानिकी क्षेत्र नदियों के संवेदनशील प्रवाह क्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत स्थित हैं. ये वानिकी क्षेत्र न केवल उत्तराखण्ड हिमालय की जैव-विविधता because (बायो-डाइवरसिटी) का संवर्धन करते हैं बल्कि समूचे उत्तराखण्ड की पर्यावरण पारिस्थितिकी, जलवायु परिवर्तन ...