
चिपको: खेतिहर देश में खेल नहीं खेत जरुरी हैं…
प्रकाश उप्रेती चिपको आंदोलन कुछ युवकों द्वारा ‘दशौली ग्राम स्वराज्य संघ’ बनाने की कहानी से शुरू होता है. चिपको के दस साल पहले कुछ पहाड़ी नौजवानों ने चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर में ‘दशौली ग्राम स्वराज्य संघ’ बनाया. जिसका मकसद था वनों के नजदीक रहने वाले लोगों को वन सम्पदा के माध्यम से सम्मानजनक रोजगार और जंगल की लकड़ियों से खेती-बाड़ी के औज़ार बनाना . यह गाँव में एक प्रयोग के बतौर था . 1972 -73 के लिए उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने संस्था के काष्ठ कला केंद्र को अंगू के पेड़ देने से इनकार कर दिया . गाँव वाले इस हल्की और मजबूत लकड़ी से खेती-बाड़ी के औज़ार और हल बनाते थे गाँव के लोगों को इससे कोई शिकायत नहीं थी कि अंगू के पेड़ से खेलों का सामान बने . वो तो केवल इतना चाहते थे कि “पहले खेत की जरूरतें पूरी की जाएँ because और फिर खेल की. एक खेतिहर देश में यह माँग नाजायज़ भी नहीं थी”[1] लेकिन सरकार को...









