अध्यात्म

नवरात्रि : जानें क्या हैं इस बार शुभ मुहूर्त!

नवरात्रि : जानें क्या हैं इस बार शुभ मुहूर्त!

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इस साल 15 अक्टूबर 2023 को नवरात्रि का आरंभ हो रहा है और 23 अक्टूबर को नवरात्रि समाप्त होगी। नवरात्रि के 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने का बड़ा धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा-उपासना से वह प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को विधिवत कलश स्थापित किया जाता है और नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लिया जाता है। मान्यता है कि इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर आ रही हैं। वैसे तो माता का वाहन शेर हैं, लेकिन धरती पर माता अपने अलग-अलग वाहनों से आती हैं। भागवत पुराण के अनुसार, जब भी माता हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो वह अपने साथ सुख-समृद्धि और खुशहाली लेकर आती हैं। आइए शारदीय नवरात्रि की पूजा और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त जानते हैं। नवरात्रि पर्व पर मुख्यमंत्री ने की प्रदेशवासियों के ...
आज की अपरिहार्य आवश्यकता है योग

आज की अपरिहार्य आवश्यकता है योग

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योग दिवस (21 जून) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र  चिकित्सा-विज्ञान के ताजे अनुसंधान हमारी जीवन-शैली और स्वास्थ्य के बीच बड़ा निकट का रिश्ता बता रहे हैं. इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि अवसाद, चिंता, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह जैसे जानलेवा रोगों के शिकार लोगों की संख्या में जो तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है वह बहुत हद तक जीवन-शैली में आ रहे बदलावों के समानांतर है. जीवन-शैली मुख्यतः हमारे स्वभाव, रहन-सहन, तथा खान–पान की आदतों से जुड़ी होती है. अब सुख-सुविधा के अधिकाधिक साधन आम लोगों की पहुँच के भीतर आते जा रहे हैं. वैश्वीकरण के साथ ही सामाजिक और भौगोलिक गतिशीलता भी तेज़ी से बढ रही है. ऊपर से सूचना और संचार की प्रौद्योगिकी घर और बाहर (नौकरी) के कार्य का स्वरूप भी अधिकाधिक डिजिटल बनाती जा रही है. इन सब परिवर्तनों के चलते शरीर के रख-रखाव के लिए ज़रूरी व्यायाम का अभ्यास क...
विभाण्डेश्वर महादेव को अतिप्रिय है श्रावण मास में पूजा-अर्चना

विभाण्डेश्वर महादेव को अतिप्रिय है श्रावण मास में पूजा-अर्चना

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डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से आठ कि.मी.की दूरी पर स्थित विभांडेश्वर महादेव उत्तराखंड का प्रसिद्ध तीर्थधाम है. स्कंदपुराण के मानसखंड में भी इस शैव तीर्थ के विशेष because माहात्म्य का वर्णन मिलता है.मान्यता है कि भगवान शिव के विश्राम के दौरान यहां शिव का दायां हाथ पड़ा था. इस तीर्थ क्षेत्र की विशेष महिमा यह है कि मंदिर में विद्यमान त्रिजुगी धूनी त्रेतायुग से लगातार प्रज्ज्वलित रही है. पौराणिक मान्यता के अनुसार सुरभि, नंदिनी और गुप्त सरस्वती की त्रिवेणी के संगम पर स्थित इस मंदिर को उत्तराखंड की काशीधाम की मान्यता प्राप्त है. ज्योतिष ऐतिहासिक दृष्टि से विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर शक सम्वत 376 (ईसवी सन 301) में स्थापित हुआ था. मंदिर का वर्तमान स्वरूप 11वीं सदी में कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित किया गया.चंद because राजाओं के शासन काल में भी मंदिर में न...
भगवान महावीर का पुण्य स्मरण 

भगवान महावीर का पुण्य स्मरण 

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महावीर जयंती पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र ‘जैन’ वह है जो ‘जिन’ का अनुयायी हो और जिन वह होता है जो राग-द्वेष से मुक्त हो. जैन साधु निर्ग्रन्थ  होते हैं यानी अपने पास गठरी में रखने योग्य कुछ भी नहीं रखते. निवृत्ति  और मोक्ष पर बल देने वाली श्रमण ज्ञान परम्परा  सांसारिक जीवन को चक्र की तरह  उत्थान पतन के  क्रम में चलता हुआ देखती  है  जिसमें  अपने कर्म से अलग किसी  ईश्वर की भूमिका नहीं है. ‘तीर्थ’ जन्म मृत्यु के चक्र से उद्धार के  मार्ग को कहते हैं और तीर्थंकर वह होता है  जो उस मार्ग को प्रशस्त करे. श्री ऋषभ देव वर्तमान जैन परम्परा के प्रथम तीर्थंकर थे.  तेइसवें पार्श्वनाथ थे और इस श्रृंखला में अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर हुए . तीर्थंकर छठीं सदी ईसा पूर्व आज के बिहार के में पटना के निकट कुंडलपुर में तकालीन विदेह के इक्ष्वाकु राजवंश में सिद्धार्थ और त्रिशला के पुत्र के रूप में इन...
कैसा रहेगा नव संवत्सर बता रहे हैं आचार्य यमुना पुत्र सुरेश उनियाल

कैसा रहेगा नव संवत्सर बता रहे हैं आचार्य यमुना पुत्र सुरेश उनियाल

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राक्षस संवत्सर के फलस्वरुप जनता में दुःख व क्लेशमय की अनुभूति राक्षस संवत्सर से ही स्पष्ट होता है, इसमें रोग बढ़ेंगे, भय so और अकाल तथा संक्रामक रोगों से प्रभावित होने की भी संभावना रहेगी. चैत शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) त्यौहार तथा चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) एवं हिंदू नव वर्ष (Hindu New Year) संवत-2078 का शुभारम्भ 13 अप्रैल 2021 से 'राक्षस' सम्वत्सर प्रारंभ हो रहा है. राक्षस संवत्सर के फलस्वरुप जनता में दुःख व क्लेशमय की अनुभूति because राक्षस संवत्सर से ही स्पष्ट होता है, इसमें रोग बढ़ेंगे, भय और अकाल तथा संक्रामक रोगों से प्रभावित होने की भी संभावना रहेगी. इस बार नवरात्रि 13 अप्रैल 2021 से शुरू हो रही हैं, आज के दिन ही नववर्ष भी मनाया जाता है. ऐतिहासिक धरोहर यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार 13 अप्रैल को ही बैसाखी का पर्व भी है. इसके साथ ही 13 अप्रैल से शुर...
कुंभ मेले में आने वाली प्रदेश की महिलाओं को उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में मिलेगी निशुल्क यात्रा की सुविधा

कुंभ मेले में आने वाली प्रदेश की महिलाओं को उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में मिलेगी निशुल्क यात्रा की सुविधा

अध्यात्म, हरिद्वार
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सूबे की मातृशक्ति को एक शानदार सौगात दी है। कुंभ के मुख्य पर्व दिवसों पर यहां महिलाओं को उत्तराखंड परिवहन की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलेगी। मातृशक्ति के सम्मान की दिशा में मुख्यमंत्री का यह कदम बेहद अहम है। इन दिनों देवभूमि की धर्मनगरी में महाकुंभ की धूम है। बड़ी तादाद में देश विदेश के श्रद्धालु यहां पुण्य लाभ के लिए पहुंच रहे हैं। संतों के अखाड़ों का वैभव यहां की रौनक बढ़ा रहे हैं। सरकार के बेहतर प्रबंधन में संचालित हो रहे इस भव्य आयोजन में गंगा मैया के जयकारों व मंत्रोच्चार से धर्मनगरी गुंजायमान हो रही है। इस कुंभ का विशेष महत्व होता है, इस दौरान यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचेंगे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर हरिद्वार आने वाली महिलाओं के लिए उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में आवाजाही की निशुल्क सुविधा दी जा रही है। मुख्यमंत्री के नि...
समूचे विश्व को सम्मोहित किया है गीता के मानवतावादी चिंतन ने

समूचे विश्व को सम्मोहित किया है गीता के मानवतावादी चिंतन ने

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गीता जयंती पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी     भारतीय कालगणना के because अनुसार मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रतिवर्ष गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गीता जयंती की 5157वीं वर्षगांठ 25 दिसंबर 2020 को मनाई जा रही है. ब्रह्मपुराण के अनुसार, द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी दिन गीता का उपदेश दिया था. गीता का उपदेश मोह का क्षय करने के लिए है, इसीलिए because गीता जयंती के दिन पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा गया है. यह भी दुर्लभ संयोग ही है कि आज ईसा मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस पर्व का बड़ा दिन भी है. आज के दिन 'श्रीमद्भगवद्गीता' की सुगन्धित पुष्पों द्वारा पूजा अर्चना कर गीता का पाठ करना चाहिए.गीता का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान क...
गीता का संदेश…

गीता का संदेश…

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गीता जयंती  (25 दिसम्बर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज के दौर में चिंता, अवसाद और तनाव निरन्तर बढ रहे हैं. बढती इछाओं की पूर्ति न होने पर क्षोभ और कुंठा होती है. तब आक्रोश और हिंसा  का तांडव शुरू होने लगता है. because दुखद बात तो यह है कि सहिष्णुता और धैर्य कमजोर पड़ने लगे हैं. आपसी रिश्ते, भरोसा और पारस्परिकता की डोर टूटती सी दिख रही है. धन सम्पदा भी बढ रही है, शायद ज्यादा तेजी से और अधिक मात्रा में. पर हर कोई बेचैन सा दिख रहा है. किसी के मन को शांति नहीं है, चैन नहीं है. इसकी खोज में लोग दौड़ लगा रहे हैं. वे पहाड़ों  पर जाते हैं, सिद्ध और संत महात्मा की खोज में लगे रहते हैं, नशा करते हैं, मदिरा का सेवन करते हैं और किस्म किस्म के व्यसन में जुट जाते हैं. अच्छे जीवन की तलाश जारी है पर प्रसन्नता दूर ही भागती रहती है. त्तृप्ति नहीं मिलती. कुछ और पाने की दौड़ लगी रहती है और संतुष्टि नही...
भारतीय काल गणना में ‘अधिमास’ की अवधारणा

भारतीय काल गणना में ‘अधिमास’ की अवधारणा

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डॉ. मोहन चंद तिवारी इस वर्ष 18 सितंबर से 'अधिमास' प्रारंभ becauseहो चुका है,जो 16 अक्टूबर को समाप्त होगा.और 17 अक्टूबर से नवरात्र प्रारम्भ होंगे. यह 'अधिमास','अधिक मास', 'मलमास' और 'पुरुषोत्तम मास' आदि नामों से भी जाना जाता है. 'अधिमास' के कारण इस बार दो आश्विन मास पड़े हैं. साथ ही चतुर्मास भी पांच महीनों का हो गया है और नवरात्रि जो श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ ही शुरू हो जाती थी वह भी एक महीने पीछे खिसक गई है. घासी विदित हो कि भारतीय पंचांग के becauseअनुसार वर्त्तमान विक्रम संवत 2077 में मान्य 60 संवत्सरों में 47वां 'प्रमादी' नामक संवत्सर चल रहा है. 'संवत्सर' उसे कहते हैं जिसमें मास आदि भली भांति निवास करते रहें. इसका दूसरा अर्थ है बारह महीने का काल विशेष. इस नए संवत की खास विशेषता यह है कि इस बार दो आश्विन मास होने के कारण वर्ष बारह नहीं बल्कि तेरह महीनों का होगा और श्राद्ध ...
पितृपक्ष में पितरों का ‘श्राद्ध’ क्यों किया जाता है? 

पितृपक्ष में पितरों का ‘श्राद्ध’ क्यों किया जाता है? 

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डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल 1 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है,जिसका समापन 17 सितंबर, 2020 को होगा. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों का पितृपक्ष प्रतिवर्ष ‘महालय’ श्राद्ध पर्व के रूप में मनाया जाता है. 'निर्णयसिन्धु’ ग्रन्थ के अनुसार आषाढी कृष्ण अमावस्या से पांच पक्षों के बाद आने वाले पितृपक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितर जन क्लिष्ट होते हुए अपने वंशजों से प्रतिदिन अन्न जल पाने की इच्छा रखते हैं- “आषाढीमवधिं कृत्वा पंचमं पक्षमाश्रिताः. कांक्षन्ति पितरःक्लिष्टा अन्नमप्यन्वहं जलम् ..” आश्विन मास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि देकर संतुष्ट करेंगे. इसी इच्छा को लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक में आते हैं. पितृपक्ष में यदि पितरों को पिण्डदान या तिलांजलि नहीं मिलत...