Month: August 2020

“इजा मैंले नौणि निकाई, निखाई”

“इजा मैंले नौणि निकाई, निखाई”

लोक पर्व-त्योहार
घृत संक्रान्ति 16 अगस्त पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी ‘घृत संक्रान्ति’ के अवसर पर समस्त देशवासियों और खास तौर से उत्तराखण्ड वासियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कृषिमूलक हरित क्रान्ति से पलायन करके आधुनिक औद्योगिक क्रान्ति के लिए की गई दौड़ ने हमें इस योग्य तो बना दिया है कि हम पहाड़ों की देवभूमि में देशी और विलायती शराब की नदियां घर घर और गांव गांव में बहाने में समर्थ हो गए हैं पर ये देश का कैसा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नौनिहालों को शुद्घ घी की बात तो छोड़ ही दें गाय और भैंस का ताजा और शुद्ध दूध भी नसीब नहीं है. संक्रान्ति के दिन उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में प्रतिवर्ष  ‘घृत संक्रान्ति’ का लोकपर्व मनाया जाता है.  इस पर्व को अलग अलग स्थानों में ‘सिंह संक्रान्ति’, 'घ्यू संग्यान', अथवा 'ओलगिया' के नाम से भी जाना जाता है. मूलतः यह वर्षा ऋतु (चौमास) में मनाया जाने वाला ऋतुपर्...
उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

कला-रंगमंच
रंगमंच महाबीर रवांल्टा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में संस्कृति विभाग एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 21वां भारत रंग महोत्सव 6 फरवरी से 12 फरवरी 2020 तक हुआ. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा भारत रंग महोत्सव देश के चार शहरों में पांडिचेरी, नागपुर, शिलांग व देहरादून में आयोजित किए गए जिनमें देश के चयनित नाट्य दलों के साथ ही विदेशी नाट्य दलों की प्रस्तुतियां भी शामिल रही. 6 फरवरी को रिस्पना पुल के निकट नवनिर्मित प्रेक्षागृह के लोकार्पण एवं नाट्य महोत्सव के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद के उपाध्यक्ष घनानंद गगोड़िया, संस्कृति विभाग की निदेशक डॉ बीना भट्ट की उपस्थिति में प्रेक्षागृह को रंगकर्मियों को समर्पित किया. उदघाटन सत्र में सुप्रसिद्ध कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रख्यात रंगमंच ए...
‘वन्दे मातरम्’: जन-गण-मन के आंदोलन का राष्ट्रगीत  

‘वन्दे मातरम्’: जन-गण-मन के आंदोलन का राष्ट्रगीत  

समसामयिक
डॉ. मोहन चंद तिवारी देश 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की 74वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. हर देश का स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलन से जुड़ा एक संघर्षपूर्ण इतिहास होता है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी एक क्रांतिकारी और देशभक्ति पूर्ण इतिहास है, जिसकी जानकारी प्रत्येक भारतवासी को होनी चाहिए. हमें अपने संविधान सम्मत राष्ट्रगान, 'जन गण मन' राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्’ और तिरंगे झंडे के इतिहास के बारे में भी यह तथ्यात्मक जानकारी होनी चाहिए कि स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में इन राष्ट्रीय प्रतीकों की कितनी अहम भूमिका रही थी? यह इसलिए भी आवश्यक होना चाहिए जैसे हम हर वर्ष 15 अगस्त को लालकिले पर राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराना राष्ट्रीय महोत्सव के रूप में मनाते हैं, उसी तरह स्वन्त्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले राष्ट्रगान 'जन गण मन', राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्’ तथा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के बारे में जानकारी ...
स्‍त्री श्रम का बढ़ता अवमूल्‍यन

स्‍त्री श्रम का बढ़ता अवमूल्‍यन

आधी आबादी
भावना मासीवाल  कोविड-19 महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है. इसके कारण वैश्विक स्तर पर देश की सीमाओं से लेकर व्यापार तक को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया, जिसका सीधा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर देखने को मिल रहा है. अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. उत्पादन की कमी के कारण रोजगार सीमित हो रहे हैं और श्रम का तेजी से अवमूल्यन हो रहा है. देश को इससे उबारने के लिए लगातार इस पर चर्चा व बहस जारी है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नए विकल्पों की तलाश की जा रही है जिससे कि इस महामारी के समय में विश्वव्यापी बंदी के कारण जब आम आदमी की आर्थिक स्थिति बदतर हो चली है तो उसमें उसे कुछ राहत मिल सके, इस पर लगातार विचार किया जा रहा है. अर्थव्यवस्था व जी.डी.पी की वृद्धि में रोजगार और श्रम का विशेष महत्व होता है. किंतु रोजगार की कमी और श्रम के अवमूल्यन के कारण जी.डी.पी ...
‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

स्मृति-शेष
पूर्णानन्द नौटियाल (सन् 1915 - 2001) डॉ. अरुण कुकसाल बचपन में मिले अभावों की एक खूबी है कि वे बच्चे को जीवन की हकीकत से मुलाकात कराने में संकोच या देरी नहीं करते. घनघोर आर्थिक अभावों में बीता बचपन जिंदगी-भर हर समय जीवनीय जिम्मेदारी का अहसास दिलाता रहता है. उस व्यक्ति को पारिवारिक-सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन करते हुए ही अपने व्यक्तिगत विकास की गुंजाइश का लाभ उठाना होता है. जीवनीय 'अभावों के प्रभावों' में उस व्यक्ति के साथ अन्य मनुष्यों का व्यवहार सामान्यतया तटस्थता के भावों को लिए रहता है. यह सामाजिक तटस्थता अक्सर निष्ठुरता के रूप में मुखरित होती है. लेकिन वह व्यक्ति अपने प्रति इस सामाजिक संवेदनहीनता को सहजता से ही ग्रहण करता है. एक शताब्दी पूर्व हमारे समाज में जन्मे पूर्णानंद नौटियाल जी को मेरी तरह आप भी नहीं जानते होंगे. यह स्वाभाविक भी है. क्योंकि हमारे परिवार-समाज में...
उच्चतर शिक्षा में देश को नयी उड़ान देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

उच्चतर शिक्षा में देश को नयी उड़ान देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-6 आनंद सौरभ “उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है.” -गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंजूरी दे दी है. देश में शिक्षा के क्षेत्र में यह इस सदी की सबसे बड़ी नीतिगत पहल है.  पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 34 साल पहले 1986 में आयी थी, जिसमें कुछ संशोधन 1992 में लाये गए. इन तीन दशकों में देश की अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव आया है, और यह निरंतर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग, बिग डाटा, ऑटोमेशन आदि तकनिकी विकास ने औद्योगिक क्रांति के चौथे चरण की नींव रख दी है.  इसके फलस्वरूप ज्ञान का क्षेत्र भी बहुत तेजी से बदल रहा है. आज उच्चतर शिक्षा...
बुदापैश्त में गुरुदेव स्मृति

बुदापैश्त में गुरुदेव स्मृति

संस्मरण
बुदापैश्त डायरी-9 डॉ. विजया सती गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को because मई माह के आरम्भ से अगस्त तक कई रूपों में याद किया गया. बुदापैश्त से मेरे मन की भी यह एक मधुर स्मृति ! ज्योतिष बुदापैश्त में मार्च महीने के because अंतिम सप्ताह में सामान्यत: ऐसा मौसम नहीं होता था. किन्तु उस दिन अप्रत्याशित because रूप से सुखद हल्की ठंडक लिए धीरे-धीरे बहती ठंडी हवा और चमकती धूप ने शहर के पूरे वातावरण को खुशनुमा बना दिया था. ज्योतिष इस प्रिय माहौल में संपन्न एक सार्थक आयोजन की स्मृतियाँ अब भी उतनी ही जीवंत बनी हुई हैं. भारतीय दूतावास, यहाँ के प्रसिद्ध एत्वोश लोरांद विश्वविद्यालय और दिल्ली स्थित because भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद के संयुक्त प्रयासों से एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी विश्वविद्यालय के प्रांगण में हुई जो बंगाल और भारत से बाहर  गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रति एक सामयिक स...
लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-5 डॉ गीता भट्ट  मातृभाषा से शिक्षा देने के महत्व को महात्मा गांधी ने इस प्रकार व्यक्त किया है “मां के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिये, वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से टूट जाता है. इस संबंध को तोड़ने वालों का उद्देश्य पवित्र ही क्यों न हो, फिर भी वे जनता के दुश्मन हैं.” आज अगर गांधी होते, तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की समग्रता और राष्टीय चेतना से संचित रूपरेखा देख अत्यंत संतुष्ट होते. 34 वर्षों के उपरांत एक नीति जो रचनांतर होने के साथ-साथ शैक्षणिक मापदंडों में एक नयी सोच को लायी है और आने वाले समय में शिक्षा पर लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप को मूलतः भारतीय करने में मील का पत्थर साबित होगी. शिक्षा नीति पर विमर्श और प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी. शिक्षा मंत्री रमेश...
करछी में अंगार

करछी में अंगार

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—16 रेखा उप्रेती कुछ अजीब-सा शीर्षक है न… नहीं, यह कोई मुहावरा नहीं, एक दृश्य है जो कभी-कभी स्मृतियों की संदूकची से बाहर झाँकता है… पीतल की करछी में कोयले का अंगार ले जाती रघु की ईजा… जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती… अपने घर की ओर जाती ढलान पर उतर रही है, बहुत सम्हल कर… कि करछी से अंगार गिरे भी नहीं और बुझे भी नहीं. चूल्हा कैसे जलेगा वरना… तीस-चालीस साल पहले जो पहाड़ में रह चुके हैं या बचपन पहाड़ों में बिताया है, उनके लिए यह दृश्य अपरिचित नहीं होगा. चूल्हे में आग बचाकर रखना या ज़रुरत पड़ने पर दूसरे घरों से आग जलाने के लिए जलता कोयला ले जाना, उस वक़्त की ज़रुरत भी थी और सीमित संसाधनों के बीच एक ऐसी जीवन-शैली का उदाहरण भी, जहाँ मामूली से मामूली वस्तु भी ‘यूज़ एंड थ्रो’ की ‘कैटेगरी’ में नहीं थी. मुझे याद है सुबह का भोजन बन जाने के बाद अधजली लकड़ियों को बुझा कर अलग रख दिया ज...
पहाड़ और परोठी…

पहाड़ और परोठी…

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभाल पहाड़ों की संस्कृति में बर्तनों का एक अलग स्थान रहा है और ये सिर्फ हमारी संस्कृति ही नहीं हमारी धार्मिक आस्था का केंद्र भी रहे है, जिसमें हमारी सम्पन्नता के गहरे राज छुपे होते हैं. धार्मिक आस्था इसलिए कहा कि हमारे घरों में मैंने बचपन से देखा कि दूध से भरे बर्तन या दही, मठ्ठा का बर्तन हो उसकी पूजा की जाती थी और खासकर घर में जब नागराजा देवता (कृष्ण भगवान) की पूजा होती है, तो घर में निर्मित धूप (केदारपाती, घी,मक्खन) का धूपाणा इन बर्तनों के पास विशेषकर ले जाकर पूजा की जाती थी, जिससे हमें कभी भी दूध दही की कमी न हो और न हुई. हमारे घर में 6, 4, 2 सेर की एक, एक परोठी हुआ करती थी और मठ्ठा बनाने के लिए एक बड़ा—सा जिसे स्थानीय बोली में परेडू कहा जाता है, होता था और मठ्ठा मथने की एक निश्चित जगह होती थी, उस जगह पर मथनी, रस्सी और दीवार पर मकान बनाते समय ही दो छेद बनाए जाते हैं, जिस...