लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-5

  • डॉ गीता भट्ट 

मातृभाषा से शिक्षा देने के महत्व को महात्मा गांधी ने इस प्रकार व्यक्त किया है “मां के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिये, वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से टूट जाता है. इस संबंध को तोड़ने वालों का उद्देश्य पवित्र ही क्यों न हो, फिर भी वे जनता के दुश्मन हैं.” आज अगर गांधी होते, तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की समग्रता और राष्टीय चेतना से संचित रूपरेखा देख अत्यंत संतुष्ट होते. 34 वर्षों के उपरांत एक नीति जो रचनांतर होने के साथ-साथ शैक्षणिक मापदंडों में एक नयी सोच को लायी है और आने वाले समय में शिक्षा पर लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप को मूलतः भारतीय करने में मील का पत्थर साबित होगी.

शिक्षा नीति पर विमर्श और प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी. शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि विश्व में शायद ही ऐसा उदाहरण हो जहां शिक्षा नीति पर समाज के सभी वर्गों से इतनी व्यापक राय ली गयी हो. समाज की सभी इकाईयों, जिनमें 2.5 लाख पंचायतें, शिक्षाविद, सिविल सोसायटी, अभिभावक, छात्र, शिक्षा से संबंधित संगठन, एनजीओ आदि शामिल हैं. इस प्रक्रिया में सहभागी बने. शिक्षा मानव जीवन में विचार, विवेक, विवेचन, समालोचनात्मकता और ज्ञान प्राप्ति की दिशा को प्रशस्त करती है. स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो चरित्र निर्माण के साथ बौद्धिक विकास और स्वावलंबी बनने में सहायक हो. शिक्षा के ऐसे प्रकरण के लिए आवश्यक है कि मूलरूप से स्व का भाव शिक्षा प्रणाली में उजागर हो.

एक लंबे समय तक शिक्षा संस्थानों और शिक्षा नीति निर्धारित करने में उन लोगों का वर्चस्व रहा जो भारतीय संस्कृति और सामाजिक पृष्ठभूमि से या तो अनभिज्ञ थे या किसी कारणवश रहना चाहते थे. खास कर भारतीय भाषाओं के प्रति के तठस्थता का भाव रहा. शिक्षा संस्थानों में ऐसी विडंबना भी देखने को मिली कि कुछ विद्यालयों में हिंदी की अध्यापिका को भी स्पीक इन इंग्लिश का बिल्ला लगाना पड़ता था. मातृभाषा में शिक्षण की आवश्यकता को समझते हुए शिक्षा नीति में 5वीं कक्षा तक शिक्षा को स्थानीय भाषा या मातृभाषा में देने का आग्रह है. राज्य सरकार, आशा है इस अवसर से अपने राज्य के लोगों को लाभान्वित करेंगी.

शिक्षा को अलग-अलग खंडों में न बांटकर, पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को एक ही व्यवस्था को भाग मानकर नीति निर्धारित की गई है. यह के समन्वित दृष्टिकोण से, प्राथमिक से लेकर, उच्च शिक्षा तक की कड़ी को जोड़े रखेगा. शिक्षा नीति ने स्कूली शिक्षा में व्यवसायिक एवं शैक्षणिक धारओं के बीच की दूरी को समाप्त कर – विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला, भाषा, खेल, गणित आदि विषयों को समकक्ष करने का सराहनीय कदम उठाया है.

यह बदलाव क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य और कला को भी बढ़ावा देगा. वैज्ञानिक रूप से भी यह प्रमाणित है कि अपनी मातृ भाषा में शिक्षा ग्रहण करना सरल होता है. साथ ही 8-9 वर्ष की आयु तक बच्चों में भाषाओं को सीखने की अपार क्षमता होती है. प्राथमिक शिक्षा पर जो विशेष ध्यान शिक्षा नीति में दिया गया है, उसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे.

शिक्षा को अलग-अलग खंडों में न बांटकर, पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को एक ही व्यवस्था को भाग मानकर नीति निर्धारित की गई है. यह के समन्वित दृष्टिकोण से, प्राथमिक से लेकर, उच्च शिक्षा तक की कड़ी को जोड़े रखेगा. शिक्षा नीति ने स्कूली शिक्षा में व्यवसायिक एवं शैक्षणिक धारओं के बीच की दूरी को समाप्त कर – विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला, भाषा, खेल, गणित आदि विषयों को समकक्ष करने का सराहनीय कदम उठाया है.

लंबे समय से खेल-कूद, कला, शिल्प से जुड़े विषयों को विद्यार्थी रूचि न होने के कारण नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में दूसरे दर्जे का स्थान होने के कारण छोड़ देते थे. यह विद्यार्थियों की प्रतिभा और विशिष्ट क्षमताओं को प्रोत्साहित करेगा. हालांकि, सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत, भारत की साक्षरता दर आज 75 प्रतिशत है. कई सर्वेक्षण यह बताते हैं कि स्कूल से परीक्षा उत्तीर्ण किया छात्र, व्यवहारिक रूप से मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त करने को सर्वोच्च प्राथमिकता देना, वास्तविक रूप में, खासकर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को सबल बनाने में सहयोगी होगा. पहली बार, शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों के रचनात्मक आंकलन के विषय को महत्व दिया गया है. आने वाले समय में विद्यार्थियों को सबल बनाने में सहयोगी होगा. पहली बार शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों के रचनात्मक आंकलन के विषय को महत्व दिया गया है. आने वाले समय में, शिक्षक के साथ-साथ, विद्यार्थी भी रिपोर्ट कार्ड में स्वयं का आंकलन लिखेंगे.

भारत में आर्थिक सामाजिक कारणों से कई विद्यार्थी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाते. 6 से 17 वर्ष के बीच की आयु के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या लगभग 3.22 करोड़ है. कक्षा 6 से 8 तक के आंकड़े बताते हैं कि ग्रॉस एनरोलमेंट रेशो (जीईआर), जो 90.9 प्रतिशत है. वह कक्षा 9-10 में घटकर 79.3 और कक्षा 11-12 में 56.5 प्रतिशत रह जाती है. ऐसे विद्यार्थी जो शिक्षा प्रणाली से बाहर हो जाते हैं, उन्हें पुनः जोड़ना एक चुनौती है. इस नीति में इस विषय पर विशेष ध्यान देते हुए, सरकारी विद्यालयों की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं. साथ ही व्यवस्था से बाहर हुए विद्यार्थियों का ट्रैक रखने और उन्हें मुख्य धारा से पुनः जोड़ने के प्रयासों पर बल दिया गया है.

4 वर्षीय स्नातक डिग्री, जिसमें अंतिम वर्ष में शोधकार्य का विशेष प्रावधान लिया गया है. साथ ही पाठ्यक्रम को लचीला रखा गया है, ताकि विद्यार्थी दूसरे या तीसरे वर्ष में आवश्यकता पड़ने पर एग्जिट कर सकें. विद्यार्थियों को उसी अनुसार डिप्लोमा, डिग्री दी जायेगी. सोध को महत्ता देते हुए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना का निर्णय, विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान आदि सभी विषयों में शोध का वित्तीय और शैक्षिक समर्थन देने का कार्य करेगी.

ऐसे मूलचूल परिवर्तन करते समय, संसाधनों का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कार्य है. हर संस्थान के पास विषय और वस्तु की विशिष्ट सुविधाएं होती हैं. ऐसे में एक सीमित भौगोलिक दायरे के भीतर आने वाले संस्थानों का आपस में संसाधनों और कुशल प्रशिक्षण की सुविधाओं को साझा करना, प्रभावी संचालन और रिसोर्स मैनेजमेंट का भाग बनेगा. विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास और 21वीं शताब्दी के आधुनिक, समसामयिक विषयों के कौशल को सीखने का प्रावधान उन्हें तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियों में प्रासंगिक रखेगा.

उच्च शिक्षा में लाए शैक्षणिक नवीनीकरण की वर्तमान वैश्विक परिपेश्य में अत्यधिक आवश्यकता थी. उच्च शिक्षा संस्थानों से यह अपेक्षा होती है कि वे प्रवुद्ध, चिंतनशील और समाज में योगदान देने वाले, समाधान ढूंढने वाले व्यक्ति को प्रोन्नत करे. उच्च शिक्षण संस्थानों में अलग-अलग प्रकार के इकोसिस्टम, विषयों के बीच एक संकीर्ण विभाजन, शोध कार्य के लिए संसाधनों की चुनौती, अत्याधिक संबद्ध विश्वविद्यालयों के कारण शिक्षा के स्टार में गिरावट जैसे आवश्यक विषयों को ध्यान में रखा गया है. 4 वर्षीय स्नातक डिग्री, जिसमें अंतिम वर्ष में शोधकार्य का विशेष प्रावधान लिया गया है. साथ ही पाठ्यक्रम को लचीला रखा गया है, ताकि विद्यार्थी दूसरे या तीसरे वर्ष में आवश्यकता पड़ने पर एग्जिट कर सकें. विद्यार्थियों को उसी अनुसार डिप्लोमा, डिग्री दी जायेगी. सोध को महत्ता देते हुए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना का निर्णय, विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान आदि सभी विषयों में शोध का वित्तीय और शैक्षिक समर्थन देने का कार्य करेगी. महत्मा गांधी ने 1931 की राउंड टेबल कांफ्रेंस में भारत में शिक्षा के जिस ब्यूटीफुल ट्री (सुंदर वृक्ष) की बात कही थी, आशा है शिक्षा नीति 2020 अपने 5+3+3+4 शैक्षणिक ढांचे और अन्य नवाचारों से पूर्ण करेगी.

साभार-दैनिक जागरण

(लेखिका नॉन कॉलेजिएट विमेंस एजुकेशन बोर्ड, दिल्ली विश्वविद्यालय कि निदेशिका के पद पर हैं.)

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1 Comment

  • D V Singh

    Four years course was launched in DU in 2013 and successfully implemented which was forced to withdraw in 2014.Education Ministry has come out with the same philosophy and content with little bit window dressing.It is old wine in bottle.
    Yes this policy shall introduce the students to their culture and real history not present one which is a lopsided manipulated far from fact .
    Once again I say it was a great mistake on the part of Gov.to force DU to withdraw four year course.

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