Month: July 2020

बरसात के मौसम में करें फल पौधों का रोपण

बरसात के मौसम में करें फल पौधों का रोपण

समसामयिक
डॉ. राजेंद्र कुकसाल बरसात के मौसम में मुख्यत: आम, अमरूद, अनार, आंवला, लीची, कटहल,अंगूर तथा नीम्बू वर्गीय फल पौधों का रोपण किया जाता है. उद्यान लगाने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक हैं. स्थल का चुनाव- वर्षाकालीन फलदार पौधों के बगीचे समुद्रतल से 1500 मी॰ ऊंचाई तक लगाये जा सकते हैं ढाल का भी ध्यान रखें पूर्व व उत्तरी ढाल वाले स्थान पश्चमी व दक्षिणी ठाल वाले स्थानौ से ज्यादा ठंडे होते हैं जो क्षेत्र हिमालय के पास हैं वहां पर आम, अमरूद, लीची के पौधों का रोपण व्यवसायिक दृष्टि से लाभकर नहीं रहते हैं, ऐसे स्थानों पर नींबू वर्गीय फलदार पौधों से उद्यान लगाने चाहिए. उद्यान लगाने से पूर्व यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस फल की ज्यादा मांग हो उसी फल के उद्यान लगाये जायें. उद्यान सडक के पास होना चाहिये यदि यह सम्भव न हो तो यह आवश्यक है कि उद्यान में पहुंचने के लिए रास्ता सु...
हम छुं पहाड़ि

हम छुं पहाड़ि

साहित्यिक-हलचल
कुमाऊनी कविता  अमृता पांडे हम पहाड़िनाक काथे-काथ् खाणपिणे की नि कौ बात् ठुल्ल गिलास में भरि चाहा कत्तु गज्जब हुनि हम पहाड़ी आहा, कप में चाहा पि जै नि लागें गिलास में मांगनूं चुड़कन चाहा ककड़ी को रैत, झलमल राई लूण,हल्द,मिर्च लै मिलायी पूरी ,आलू टमाटर सब्जी़ दगड़ खाई मस्तमौला भयां हम पहाड़ी. मिल-बांटि बैर खांण वाले भयिं.   परुलि इजा चाहा बणायि माया आलुक गुटुक लै आयि बसंती लै कै चना-चबैना पोटलि में धर लाई , घास काटि,पुला बणायिं बीच में थोड़ा टाइम निकालि झटपट आलु खायिं, चाहा पिवायि फिर अपुण काम में लग गयिं. आजाल है रे छि धान रोपाई गोपालदा खेतम बे पाणि चुरायि है गयिं वि आगबबूला दि हालि वयिं बे द्वि-चार गायि माया, बसन्ती वयिं रे गयि् परुलि सरपट घरहुं भाजि आइ. (हल्द्वानी नैनीताल, देवभूमि उत्तराखंड)...
“सिन्धु सभ्यता के ‘हड़प्पा’ और ‘मोहन जोदड़ो’ नगरों  का जलप्रबंधन”

“सिन्धु सभ्यता के ‘हड़प्पा’ और ‘मोहन जोदड़ो’ नगरों  का जलप्रबंधन”

जल-विज्ञान
डॉ. मोहन चन्द तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं। वैदिक ज्ञान-विज्ञान के गहन अध्येता, प्रो.तिवारी कई वर्षों से जल संकट को लेकर लिखते रहे हैं। जल-विज्ञान को वह वैदिक ज्ञान-विज्ञान के जरिए समझने और समझाने की कोशिश करते हैं। उनकी चिंता का केंद्र पहाड़ों में सूखते खाव, धार, नोह और गध्यर रहे हैं। हमारे पाठकों के लिए यह हर्ष का विषय है कि प्रो. तिवारी जल-विज्ञान के संदर्भ में ‘हिमांतर’ पर कॉलम लिखने जा रहे हैं। प्रस्तुत है उनके कॉलम ‘भारत की जल संस्कृति’ की 9वीं कड़ी... भारत की जल संस्कृति-9 डॉ. मोहन चन्द तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुडकी में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जल...
“शहीदों की निशानियों पर बदहाली की धूल”

“शहीदों की निशानियों पर बदहाली की धूल”

ट्रैवलॉग
विजय भट्ट जब कफस से लाश निकली उस बुलबुले नाशाद की. इस कदर रोये कि हिचकी बंध गयी सैयाद की.  कमसिनी में खेल खेल नाम ले लेकर तेरे. हाथ से तुर्बत बनायी, पैर से बबार्द की. शाम का वक्त है, कबरों को न ठुकराते चलो.  जाने किस हालत में हो मैयत किसी नाशाद की. भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी. ये दौर था वर्ष 1930 के अगस्त माह के दूसरे सप्ताह का. जब चंद्रशेखर "आजाद", हजारीलाल, रामचंद्र, छैलबिहारी लाल, विश्वम्भरदयाल और दुगड्डा निवासी उनके साथी क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत दिल्ली से गढ़वाल की ओर चल पड़े. यह सभी भवनी सिंह रावत के दुगड्डा के पास नाथूपुर गांव जा रहे थे. कोटद्वार में रेल से उतर कर सभी दुगड्डा के लिए प्रस्थान करते हैं. दिन का तीसरा प्रहर बीत रहा था. शाम के समय सीला नदी पार कर जंगल के रास्ते सभी आगे बढ़ रहे थे. सुहाने मौसम में पकड़ंडी पर चलते हुए आजाद अपने प्रिय उक्त गीत को गुनगुना रहे ...
कैद होते जंगलों के बीच पतरोल का आतंक

कैद होते जंगलों के बीच पतरोल का आतंक

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—33 प्रकाश उप्रेती आज बात- "पतरौ" और जंगलात की. 'पतरौ' का मतलब एक ऐसा व्यक्ति जिसे सरकार ने ग्राम -प्रधान के जरिए हमारे जंगलों की रक्षा के नाम पर तैनात किया हुआ था. रक्षा भी हमसे और वह भी हमारे जंगलों की. धीरे-धीरे हमें पता चला कि रक्षा की आड़ में हमारे जंगलों पर सरकारी कब्जा हो गया. अब सारे जंगलों को पत्थरों की दीवारों से कैद किया जा रहा था. कैद जंगल एकदम "चिड़ियाघर"(कितना विरोधाभाषी नाम है) की तरह लग रहे थे. हमारे घर के बाहर कदम रखते ही जंगल था. अब तक वो हमारा और हम उसके थे. एक दिन 15-20 लोग आए और उन्होंने हमारे 'छन' (गाय-भैंस-बैल बांधने की जगह) के पास से 'खोई' (दीवार) देना शुरू कर दिया. अब वह जंगल, उसी के पत्थरों से कैद हो रहा था. हम नीचे खड़े होकर बस देख रहे थे. तब तक ये बात गाँव में फैल चुकी थी कि सरकार का ऑर्डर आया है- "अब सब जंगों में खोई चीणि...
बहुत ही लोकप्रिय थी बेरीनाग की चाय!

बहुत ही लोकप्रिय थी बेरीनाग की चाय!

खेती-बाड़ी
‘मालदार’ दान सिंह बिष्ट प्रकाश चन्द्र पुनेठा जिला पिथौरागढ़ के पूर्व दिशा में 36 किलोमीटर दूर काली नदी के किनारे झूलाघाट नाम का कस्बा है. काली नदी हमारे देश भारत और नेपाल के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा का कार्य करती है. काली नदी के किनारे हमारे कस्बे को झूलाघाट कहते है. और काली नदी के पार नेपाल के कस्बे को जूलाघाट कहा जाता है. हमारे जिले पिथौरागढ़ के झूलाघाट कस्बे में हमारे देश की स्वतंत्रता से पूर्व, क्वीतड़ गाँव निवासी देव सिंह बिष्ट एक छोटी सी दुकान में घी का व्यवसाय करते थे. झूलाघाट में घी व्यवसाय करने से पूर्व, देव सिंह बिष्ट के पूर्वज नेपाल के जिला बैतड़ी के निवासी थे. बाद में नेपाल के जिला बैतड़ी से आकर पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गाँव में बस गए थे. सन् 1906 में देव सिंह के घर क्वीतड़ में उनके पुत्र दान सिंह का जन्म हुआ था. म्यांमार से वापस पिथौरागढ़ आने के बाद दान सिंह अपने पिता के ...
जय हो ग्रुप की अनूठी पहल

जय हो ग्रुप की अनूठी पहल

समसामयिक
बेसहारा और बेजुबान जानवरों का सहारा बना जय हो ग्रुप, 111 दिनों तक खिलाई रोटियां हिमांतर ब्‍यूरो, उत्‍तरकाशी नगर पालिका परिषद, बड़कोट क्षेत्र में लॉक डाउन प्रथम से लेकर 111 दिनों तक सामाजिक चेतना की बुलन्द आवाज ‘‘जय हो” ग्रुप के कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवियों ने बेजुबान जानवरों को रोटी दान मांगकर खिलाने का काम किया. ग्रुप ने नगर के सभी रोटी दानदाताओं का आभार जताते हुए मौहल्लों में स्वंय आवारा बेजुबान जानवरों को रोटी या घर में बचा हुआ भोजन देने का आह्वान किया है. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड 19) के चलते देश में हुए लॉक डाउन के दौरान बाजार सहित आम लोग अपने घरों में कैद हो गयें थे. सड़को और गलियों में घुमने वाले इन बेजुबान जानवरों की कोई सुध लेने वाला नहीं था, ऐसे में जय हो ग्रुप के युवा बेसहारा जानवरों के सहारा बन एक नई मिसाल पेश की वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड 19) के ...
जंगली कं​टीली झाड़ी से रोजगार का स्रोत बन रहा है टिमरू

जंगली कं​टीली झाड़ी से रोजगार का स्रोत बन रहा है टिमरू

चमोली
कम उपजाऊ और बेकार भूमि में आसानी से उगता है उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में खेती को जंगली जानवरों से बचाव के लिए शानदार बाड़/बायोफेन्सिंग भी है टिमरू खेती-बाड़ी बचाएगा टिमरू तो रूकेगा जंगली जानवरों की वजह से होने वाला पलायन जे. पी. मैठाणी हिन्दू धर्म ग्रंथों में जिन भी पेड़-पौधों का रिश्ता पूजा-पाठ तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है. उन सभी पेड़-पौधों, वनस्पतियों में कुछ न कुछ दिव्य और आयुर्वेदिक गुण जरूर हैं. और उनका उपयोग हजारों वर्ष पूर्व से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद और इथ्नोबॉटनी में किया जाता रहा है. यानी पेड़—पौधों का महत्व उसके औषधीय गुणों के कारण है और उनके संरक्षण के लिए उनको धर्म ग्रंथों में विशेष स्थान दिया गया है. ऐसे ही एक बहुप्रचलित लेकिन उपेक्षित कंटीला झाड़ीनुमा औषधीय वृक्ष है टिमरू. टिमरू सिर्फ पूजा-पाठ और भूत पिशाच भगाने के लिए कंटीली डंडी नहीं है. व...
‘प्यारी दीदी, अपने गांव फिर आना’

‘प्यारी दीदी, अपने गांव फिर आना’

उत्तराखंड हलचल
गंगोत्री गर्ब्याल डॉ. अरुण कुकसाल ‘‘प्रसिद्ध इतिहासविद् डॉ. शिव प्रसाद डबराल ने ‘उत्तराखंड के भोटांतिक’ पुस्तक में लिखा है कि यदि प्रत्येक शौका अपने संघर्षशील, व्यापारिक और घुमक्कड़ी जीवन की मात्र एक महत्वपूर्ण घटना भी अपने गमग्या (पशु) की पीठ पर लिख कर छोड़ देता तो इससे जो साहित्य विकसित होता वह साहस, संयम, संघर्ष और सफलता की दृष्टि से पूरे विश्व में अद्धितीय होता’’ (‘यादें’ किताब की भूमिका में- डॉ. आर.एस.टोलिया) ‘गाना’ (गंगोत्री गर्ब्याल) ने अपने गांव गर्ब्याग की स्कूल से कक्षा 4 पास किया है. गांव क्या पूरे इलाके भर में दर्जा 4 से ऊपर कोई स्कूल नहीं है. उसकी जिद् है कि वह आगे की पढ़ाई के लिए अपनी अध्यापिका दीदियों रन्दा और येगा के पास अल्मोड़ा जायेगी. गर्ब्याग से अल्मोड़ा खतरनाक उतराई-चढ़ाई, जंगल-जानवर, नदी-नालों को पार करते हुए 150 किमी. से भी ज्यादा पैदल दूरी पर है. मां-पिता समझाते...
एक दौर ऐसा भी था- गुजरे जमाने की चिट्ठी-पत्री का

एक दौर ऐसा भी था- गुजरे जमाने की चिट्ठी-पत्री का

संस्मरण
भुवन चन्द्र पन्त गुजरे जमाने के साथ ही कई रवायतें अतीत के गर्भ में दफन हो गयी,  इन्हीं में एक है- चिट्ठी-पत्री. एक समय ऐसा भी था कि गांव में पोस्टमैंन आते ही लोगों की निगाहें उस पर टिक जाती कि परदेश में रह रहे बच्चों अथवा रिश्तेदारों की कुशल क्षेम वाला पत्र पोस्टमैन ला रहा होगा. खाकी यूनिफार्म में सिर पर खाकी रंग की ही नुकीली टोपी, जिसमें आगे की ओर एक लाल पट्टी लगी होती, तथा कन्धे पर पोस्ट आफिस का ही एक विशेष बैग लटका होता. अपने इलाके में पोस्टमैन खूब इज्जत पाता था, हर कोई घर आने पर उसे बिना चाय पिलाये घर से नहीं लौटाता. अगर मनीआर्डर लाया हो तो आवभगत पक्की. लाने वाले पत्र के मजमून पर पोस्टमैन के साथ व्यवहार होता, अगर अच्छी खबर लाता तो ग्रामीणों से खूब इज्जत बटोरता, लेकिन यदि कोई बुरी खबर वाला समाचार लाता तो लोगों की नजरों से हमेशा के लिए खटक जाता. शायद यही बात प्रख्यात कथाकार शैलेश मटिय...