Tag: Uttarakhand

पगडंडी

पगडंडी

संस्मरण
वो बचपन की सारी यादें… दीपशिखा गुसाईं ‘दीप’ आज फिर उसी पगडण्डी से होते हुए चलती हुई उन यादों में खो जाती हूँ, अपने गांव और गांव के नीचे बहती अलकनंदा की कलरव करती मधुर आवाज, सामने वही मेरा दृढ पहाड़, वही मेरे गांव के सरसों के खेत मानों मेरे आने पर पीली ओढ़नी ओढ़े बसंत संग मेरे आने के स्वागत में दोनों हाथों को फैलाये हो… इस बार फिर वही अहसास साथ "दी" का सारी यादें ताजा कर गई… वो बचपन की सारी यादें. बचपन उन दिनों सुबहें कितनी जल्दी हुआ करतीं थीं, शामें भी कुछ जल्दी घिर आया करती थीं तब... फूलों की महक भीनी हुआ करती थी और तितलियाँ रंगीन, और इन्द्रधनुष के रंग थोड़े चमकीले, थोड़े गीले हुआ करते थे, आँखों में तैरते ख़्वाब, सुबह होते ही चीं-चीं करती गौरैया छत पर आ जाया करतीं थीं दाना चुगने, उस प्यारी सी आवाज़ से जब नींदें टूटा करती थीं तो बरबस ही एक मुस्कुराहट तैर जाया करती थी होंठों पर.....
श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

पौड़ी गढ़वाल
डॉ. अरुण कुकसाल मानवीय बसावत में जीवन के because कई रंग दिखाई देते हैं. ये बात अलग है कि कुछ रंगों को हम अपनी सुविधा से सामाजिक मान-प्रतिष्ठा देकर गणमान्य बना देते हैं. और, कुछ रंग सामाजिक जीवन में बिखरे-गुमनाम से यहां-वहां दिखाई देते हैं. वे अपने आपको समेटे, पर पूरी संपूर्णता के साथ मदमस्त जीवन जीते हैं. यद्यपि दुनियादारी में फंसे लोग उनके प्रति बेचारगी और सहानुभूति के भाव से ऊपर नहीं उठ पाते हैं. but लेकिन ऐसे मस्त फक्कडों की जीवंतता सामान्य लोगों को हैरान करती है. जिस दिन वो न दिखे तो उससे उपजा खालीपन मन को कचौटता है. ऐसे ही हैं श्रीकोट के 'गुंया मामा' जो हर शहर-देहात के वो चेहरा हैं जिनसे चंद ही लोग सही पर वे बे-पनाह मोहब्बत और सम्मान करते हैं. भ्रमित फक्कड़ी का मस्तमौला because बादशाह ‘गुयां मामा’ बोलते कम और हंसते ज्यादा है, दुनिया पर और अपने आप पर. बरस 72 में 27 की उमर की उमंग...
हिमनदियों-गिरिस्रोतों का उद्गम स्थल उत्तराखंड झेल रहा है भीषण जल संकट

हिमनदियों-गिरिस्रोतों का उद्गम स्थल उत्तराखंड झेल रहा है भीषण जल संकट

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-30 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-1 अत्यंत चिंता का विषय है कि विभिन्न नदियों because का उद्गम स्थल उत्तराखंड पीने के पानी के संकट से सालों से जूझ रहा है. गर्मियों के सीजन में हर साल पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को भीषण जल संकट से गुजरना पड़ता है किन्तु उत्तराखंड राज्य का जल प्रबंधन इस समस्या के समाधान में नाकाम ही सिद्ध हुआ है. पढ़ें- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में परंपरागत जल संचयन प्रणालियां पिछले वर्ष 9 जुलाई 2018 को जारी की गई भारत but सरकार की नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश इस समय इतिहास में जल संकट के सबसे भयावह दौर से गुजर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 करोड़ लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं, जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं.रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत पानी दूषित है और पेयजल स्वच्...
स्मृतियों के उस पार…

स्मृतियों के उस पार…

संस्मरण
सुनीता भट्ट पैन्यूली कोई अदृश्य शक्ति किसी because हादसे के उपरांत स्वयं को संबल देने या मज़बूत बनाने की प्रक्रिया के अंतर्गत भावनाओं का उत्स है, यह किसी अदृश्य, दैवीय शक्ति को नकारने वालों का मत हो सकता है किंतु अपने संदर्भ में कहूं तो मेरा हृदय सहर्ष स्वीकार करता है कि मैंने जिंदगी में किसी अदृश्य शक्ति को  अपने जीवन में बार-बार महसूस किया है. ब्रह्मांड ईश्वर और अदृश्य शक्ति एक हैं नहीं जानती ह़ूं but किंतु ब्रह्मांड तक किसी दुखी दिल की आवाज़ पहुंचती है यह बहुत अच्छे से जानती हूं मैं बशर्ते आवाज़ किसी दूसरे दिल की अतल  से नि:स्वार्थ  निकल रही हो. बात उन दिनों की है जब पिता को गये साल भर हो चला था वक़्त अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था,मेरी ज़िन्दगी की गाड़ी भी कभी पीछे मुड़ती कभी आगे देखती अपनी दिशा में गतिमान हो रही थी.so हुआ यूं कि पहले वायरल  और फिर डेंगू के चपेट में आ जाने से घर ही घ...
न्यायदेवता ग्वेलज्यू की जन्मभूमि कहां? धूमाकोट में, चंपावत में या नेपाल में?

न्यायदेवता ग्वेलज्यू की जन्मभूमि कहां? धूमाकोट में, चंपावत में या नेपाल में?

अल्‍मोड़ा
डॉ. मोहन चन्द तिवारी उत्तराखंड के न्याय देवता ग्वेलज्यू के जन्म से सम्बंधित विभिन्न जनश्रुतियां एवं जागर कथाएं इतनी विविधताओं को लिए हुए हैं कि ग्वेल देवता की वास्तविक जन्मभूमि निर्धारित करना आज भी बहुत कठिन है. because न्याय देवता की जन्मभूमि धूमाकोट में है,चम्पावत में है या फिर नेपाल में? इस सम्बंध में भिन्न भिन्न लोक मान्यताएं प्रचलित हैं. कहीं ग्वेल देवता को ग्वालियर कोट चम्पावत में राजा झालराई का पुत्र कहा गया है तो किसी जागर कथा में उन्हें नेपाल के हालराई का पुत्र बताया जाता है. विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित पारम्परिक जागर कथाओं और लोकश्रुतियों में भी but न्यायदेवता ग्वेल की जन्मभूमि के बारे में अनिश्चयता की स्थिति देखने में आती है. पिछले कुछ वर्षों में जो ग्वेल देवता से सम्बंधित लिखित साहित्य सामने आया है,उसमें भी जन्मभूमि के सम्बंध में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. उदाहरण के लिए मथ...
हिप्पू का साहस

हिप्पू का साहस

बाल-चौपाल
बाल कहानी ललित शौर्य “तुम्हें अभी वहां नहीं जाना चाहिए. because वहां बहुत खतरा है.”, हिप्पू हाथी की माँ ने कहा. “नहीं माँ, मुझे जाने दो. मुझे अपने दोस्त but की जान बचानी है.वो चार दिन से भूखे प्यासे हैं.”, हिप्पू ने कहा. खतरा दरअसल भयंकर बारिस और बाढ़ के कारण because हिप्पू के दोस्त जंगल के एक टीले पर फंसे हुए थे. हिप्पू को जब ये बात पता चली वो तब से बहुत परेशान था. वो अपने दोस्तों को बचाना चाहता था. हिप्पू के पापा दूसरे जंगल में किसी काम से गए हुए थे. वो भी भारी बारिस के कारण because उधर ही फंसे हुए थे. माँ के मना करने पर हिप्पू ने माँ को बहुत समझाया. आखिर में माँ ने उसे मदद के लिए भेज ही दिया. हाथी की माँ सबसे पहले हिप्पू ने because अपने खेतों से केले की बड़ी–बड़ी घड़ियाँ काट ली. वो उन्हें अपनी पीठ पर लाद कर चल दिया. हाथी की माँ पूरे जंगल में ये बात आग की तरह फ़ैल चुकी...
आमरऽ उत्तराखंड क हाल

आमरऽ उत्तराखंड क हाल

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 (रवांल्टी कविता ) अनुरूपा “अनुश्री” उत्तराखण्ड बणी के कति साल हइगे, बेरोजगार यो पहाड़ी मुलुकई रइगो. कति पायो कति खोयो यूं सालु पोडो, त पु किचा न पड्यो आमार पला ओडो. इक्कीस साल बिचिगे यां आस मा, कि किचा रोजगार आलो कतरांई त आमर हातु मा. जियूं नेताऊं क बाना यो राज्य बणि्यो, तियं भाई-भतीजावाद की राजनीति आणी. जति पु नेता आये  ततियें राजनीति करी, ओर घर  सबुओं आपड़ई भरे. चंद लोगु को भलऽ कतरांई हई पु रल, त का बड़ो काम दयो यें करी. आपु वोटु को सोउदा करिके, गरीब शरीफ दये बदनाम करी. सोचो देई  मेर भाई - बइणियों, कोइच छुटिगे तियूंक स बड़-बड़ वादा. जागी जाओ अब त आमर पहाड़ क नवजवानो, आपड़ उत्तराखंड क विकास करनऽ क बाना.. नानई, मोरी, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)...
प्यारा उत्तराखंड

प्यारा उत्तराखंड

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 आदेश सिंह राणा  केदारखण्ड और मानसखण्ड, देवभुमि है मेरी उत्तराखंड. पहाड़ों और फूलों की घाटी, वीर धरा है मेरी राज्य की माटी. प्रदेश में मेरे मिलता है ऐसा सुकून, लगता है माँ का आँचल. देवभूमि के नाम से विख्यात है, यह है अपना प्यारा उत्तरांचल. गढ़वाल और कुमाऊँ दो खंड है, तेरह जिले है पहचान इसके. हिम शिखरों से सुसज्जित है, निवास यहाँ है सब देवों की. ऋषियाँ की है तप स्थली, मुनियाँ की यह जप स्थली है. पंच बदरी पंच केदार, पंच मठ है यहाँ पंच प्रयाग. वीरों की यह भूमि है, सैन्य धाम है उत्तराखंड. बलदानियों ने यहाँ जन्म लिया है, पूरी दुनिया हमने नाम किया है. चारों दिशाओं में चार धाम हैं, माँ गंगा जी उदगम है यहाँ. यमुना जी भी निकल है यहाँ से, स्वर्ग जाने का मिलता है पथ यहाँ. सैकड़ों नदियाँ बहती है यहाँ से, जो देतें है पूरे भा...
सरुली और चाय की केतली….

सरुली और चाय की केतली….

किस्से-कहानियां
लघु कथा अमृता पांडे सरुली चाय की केतली से because निकलती भाप को एकटक देख रही थी. पत्थरों का ऊंचा नीचा आंगन, एक कोने पर मिट्टी का बना कच्चा जिसमें सूखी लकड़ियां जलकर धुआं बनकर गायब हो जातीं. चाय उबलकर काढ़ा हो गई थी पर सरुली ना जाने किन विचारों में निमग्न थी. because न जाने कितने वर्षों पुरानी यात्रा तय कर ली थी उसने कुछ ही मिनटों में. बचपन में स्कूल नहीं जा पाई थी. मां खेत में काम पर जाती और जानवरों के लिए चारा लाती. सरुली घर में छोटे भाई बहनों की फौज को संभालती और सयानों की तरह उनका ध्यान रखती थी. प्यारे छोटी-सी उम्र में ही घर के सारे because काम से लिए थे उसने. सोलह वर्ष की कच्ची उम्र में तो इतनी काबिल हो गई थी कि विवाह तय हो गया था उसका. झट मंगनी, पट विवाह हो गया. सरुली का बचपन वैवाहिक ज़िम्मेदारियों की भेंट चढ़ गया. एक पत्नी, गृहणी और बहू से जो अपेक्षाएं होती हैं उन सभी को वह...
मुनिया चौरा की ओखलियां मातृपूजा के वैदिक कालीन अवशेष

मुनिया चौरा की ओखलियां मातृपूजा के वैदिक कालीन अवशेष

इतिहास
डॉ. मोहन चंद तिवारी मेरे लिए दिनांक 28 अक्टूबर, 2020 का दिन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन  रानीखेत-मासी मोटर मार्ग में लगभग 40 कि.मी.की दूरी पर स्थित सुरेग्वेल के निकट मुनिया चौरा में because पुरातात्त्विक महत्त्व की महापाषाण कालीन तीन ओखलियों के पुनरान्वेषण में सफलता प्राप्त हुई. सुरेग्वेल से एक कि.मी.दूर मुनिया चौरा गांव के पास खड़ी चढ़ाई वाले अत्यंत दुर्गम और बीहड़ झाड़ियों के बीच पहाड़ की चोटी पर गुमनामी के रूप में स्थित इन ओखलियों तक पहुंचना बहुत ही कठिन और दुस्साध्य कार्य था.अलग अलग पत्थरों पर खुदी हुई ये महापाषाण काल की तीन ओखलियां चारों ओर झाड़ झंकर से ढकी होने के कारण भी गुमनामी के हालात में पड़ी हुई थीं. दशक मैं पिछले कई वर्षों से नवरात्र में जब भी आश्विन नवरात्र पर अपने पैतृक निवास स्थान जोयूं आता हूं तो इन ओखलियों तक पहुंचने के लिए प्रयासरत रहा हूं. किन्तु एकदम खड़ी, बीहड़ b...