
कंकट सिर्फ लकड़ी नहीं बल्कि पहाड़ की विरासत का औज़ार है
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—41
प्रकाश उप्रेती
पहाड़ जरूरत और पूर्ति के मामले में हमेशा से उदार रहे हैं. वहाँ हर चीज की निर्मिति उसकी जरूरत के हिसाब से हो जाती है. आज जरूरत के हिसाब से इसी निर्मिति पर बात करते हैं. because यह -"कंकट" है. इसका शाब्दिक अर्थ हुआ काँटा, काटने वाला. वैसे 'कंकट' मतलब जरूरत के हिसाब से तैयार वह हथियार जिसे काँटे वाली झाड़ियाँ काटते हुए प्रयोग किया जाता था. कुछ-कुछ गुलेल की तरह का यह हथियार झाड़ियाँ काटते हुए "बड्याट" (बडी दरांती) का हमराही होता था. दोनों की संगत ही आपको काँटों से बचा सकती थी. इनकी संगत के बड़े किस्से हैं.
ज्योतिष
कंकट बहुत लंबा नहीं होता था. एक हाथ भर का ही बनाया जाता था. ईजा कुछ छोटे और कुछ बड़े बनाकर रखे रहती थीं. because रखने की जगह या तो 'छन' की छत होती थी या फिर जहाँ सभी छोटी-बड़ी दराँती रखी रहती थीं, वहाँ होती थी. अमूमन तो सूखी लक...