अभिनव पहल

उत्तराखण्ड में कण्डाली की खेती हो सकती है रोजगार का सशक्त साधन

उत्तराखण्ड में कण्डाली की खेती हो सकती है रोजगार का सशक्त साधन

अभिनव पहल
लेख एवं शोध जे.पी. मैठाणी उत्तराखण्ड में प्रमुखतः दो प्रकार की कण्डाली पाई जाती है, 400 मीटर से 1400 मीटर तक की ऊँचाई तक उगने वाली सामान्य कण्डाली जिसे बिच्छू घास या बिच्छू बूटी भी कहते हैं। because डांस कण्डाली का वानस्पतिक नाम Girardinia heterophylla जिरार्डिनिया हैट्रोफाइला या Girardinia diversifolia जिरार्डिनिया डाइवर्सिफोलिया है। जबकि सामान्य कण्डाली का वानस्पतिक नाम Dioca urtica डायोका because अर्टिका है। कण्डाली की कोमल पत्तियों और शीर्ष वाले भाग को जिन पर तेज चुभने वाले कांटे होते हैं। और शरीर पर लगने से बेहद जलन होती है। इसका प्रयोग उत्तराखण्ड में सब्जी, काफली बनाने में किया जाता है। (यह आयरन का प्रमुख स्रोत है।) यही नहीं कोरोना लॉकडाउन के दौरान कण्डाली because चाय के निर्माण और प्रयोग पर कई अभिनव प्रयास पूरे प्रदेश में हुए हैं और सामान्य कण्डाली रोजगार का अच्छा साधन बनक...
रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ती नई पीढ़ी

रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ती नई पीढ़ी

अभिनव पहल
‘प्रिया’ एक विचार है सूर्या सिंह पंवार मेरे लिए प्रिया मेरी बेटी ही नहीं एक विचार है. एक ऐसा विचार जो हमारे समाज में लड़कियों के सम्मान, स्वाभिमान, सशक्तीकरण से जुड़ा है. शिक्षा में उन विचारों को स्थापित करने से है जिसमें सभी कामों का सम्मान हो. कोई भी काम छोटा व बड़ा नहीं हो. हमारे समाज में जो स्कूली शिक्षा हम अपने बच्चों को दे रहे हैं उसके परिणाम में हमने ऐसे कौशल व व्यवसायों को स्थापित किया है जो उसे खेती-बाड़ी और अपने पुश्तैनी काम-धंधों से दूर करते हैं. हेय दृष्टि से देखने लगते हैं. अधिकांशतः अभिभावक अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर बनने के सपने ही दिखाते हैं. दफ्तर का काम श्रेष्ठ माना जाता है. खेती किसानी का काम छोटा माने जाने लगा है. इस तरह की आंकाक्षाएं किसी को भी शहर की ओर ही ले जाने का काम करती हैं. हमारे समाज में महिलाएं खेती के सभी काम करती हैं परन्तु हल नहीं चल...
भवाली के जगदीश नेगी के प्रयासों ने दिलवाया शिप्रा नदी को पुनः जीवनदान

भवाली के जगदीश नेगी के प्रयासों ने दिलवाया शिप्रा नदी को पुनः जीवनदान

अभिनव पहल
भुवन चन्द्र पन्त इन्सान भी कितना अहसान फरामोश है कि जिन नदियों के किनारे कभी मानव सभ्यता का विकास हुआ, उन्हीं नदियों को इन्सान ने अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए कूड़े कचरे के ढेरों में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कुछ लोग यदि जागरूक हुए भी तो समाज की इस तरह की घिनौनी करतूतों के तमाशबीन बनकर रह जाते हैं. कुछ इसके लिए समयाभाव का रोना रोते हैं तो दूसरे कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो संबंध खराब होने की गरज से लफड़े में पड़ने से कन्नी काट जाते हैं. ऐसे बिरले लोग होते हैं जो “लोग क्या कहेंगे’’ की परवाह किये बिना निकल पड़ते हैं, समाजहित के लिए और आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य का सपना संजोये अपनी राह पर. फिर व्यक्तिगत संबंध समाजहित के सामने गौण हो जाते हैं. ऐसे जुनूनी शख्स समाज की परवाह किये बिना जब निकल पड़ते हैं लक्ष्य की ओर, तो मुड़कर नहीं देखते. यह समाज की मानसिकता है कि जब भी समाजहित में कोई काम के ...
ऑनलाइन शिक्षा में रचनात्मकता की मिसाल: जश्न-ए-बचपन ग्रुप

ऑनलाइन शिक्षा में रचनात्मकता की मिसाल: जश्न-ए-बचपन ग्रुप

अभिनव पहल
कोरोना महामारी के इस वैश्विक दौर में बुरी तरह प्रभावित होने वाले तमाम क्षेत्रों में से एक है शिक्षा का क्षेत्र. पूरे देश में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक के लगभग 33 करोड़ विद्यार्थी इस महामारी के कारण अपनी पढ़ाई-लिखाई से समझौता करने को विवश हैं. ऑनलाइन माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाने की कोशिश तमाम स्कूलों व विश्वविद्यालयों द्वारा की जा रही है लेकिन रचनात्मकता व इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण कई विद्यार्थी इस तरह की कक्षाओं में अपनी रूचि खोते जा रहे हैं. एक ढर्रे में चलाई जा रही ऑनलाइन कक्षाएँ कई बार पढ़ाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति जैसी ही लगती हैं. इस खानापूर्ति रूपी ऑनलाइन पढ़ाई से परे उत्तराखंड के सरकारी शिक्षकों से जुड़े “रचनात्मक शिक्षक मंडल” ने “जश्न ए बचपन” नाम से एक व्हाट्सऐप ग्रुप का निर्माण किया है जिसकी चर्चा आजकल राज्य के लगभग हर स्थानीय अखबार व सोशल मीडिया ग्रुप में जोर...
गिलोय : एक बहुउपयोगी बेल जिसके हैं सैकड़ों उपयोग

गिलोय : एक बहुउपयोगी बेल जिसके हैं सैकड़ों उपयोग

अभिनव पहल, हिमालयी राज्य
जे. पी. मैठाणी सेहत के लिए अमृत है गिलोय! गिलोय- गिलोय को अंग्रेजी में टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया, गढ़वाली में गिले और मराठी में गुड़ची बोलते हैं. संस्कृत में गिलोय का नाम अमृता है. यह एक बेल है और आंशिक परजीवी के रूप में दूसरे पेड़ों पर लिपट कर बढ़ती है. लेकिन गिलोय को क्यारियों और गमलों में भी उगाया जा सकता है. गिलोय की बेल को मकान या चारदीवारी पर पिलर और तारों के सपोर्ट से भी आगे बढ़ाया जा सकता है. यह बेहद सरलता से उगाई जाने वाली बेल है. जिसको उगाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत और खाद-पानी की आवश्यकता नहीं होती. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखण्ड में 800-1000 मीटर से ऊपर नीम के पौधे जाड़ों में बच नहीं पाते हैं. लेकिन पहाड़ों में 1600 मीटर की ऊँचाई तक सड़क किनारे बकैण जिसको गढ़वाल में डैकण भी कहते हैं देखा गया है, इसलिए डैकण के पेड़ों पर भी गिलोय को विकसित किया जा सकता है. नीम और डैक...
उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
जे. पी. मैठाणी आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. ये नकली है इसके झाड़ीनुमा पौधो पर गुच्छों में उगने वाले फूलों को सुखकर केसर जैसा रंग निकलता है. इसलिए कृपया सावधान रहिये! जैसे ही हम केसर का नाम सुनते हैं हमें कश्मीर का ध्यान आता है. पूजा पाठ, भोजन , प्रसाद, आयुर्वेदिक ओषधियां और इसके अलावा केसर के कई उपयोग हैं. केसर के तंतु जो धागे जैसे होते हैं वो फूल के मध्य भाग के बारीक रेशे वाले पुंकेसर होते हैं. केसर के फूल की पंखुड़ियों से केसर नहीं बनता बल्कि फूल के मध्य भाग में जो धागे सदृश तंतु यानी पुंकेसर होते हैं उनको सुखाकर असली केसर बनती है! इसकी खेती सबसे अधिक खेती कश्मीर के पम्पौर और किश्तवाड़ में होती है. आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. य...
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
दिनेश रावत रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है। इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस्तुत...
एक लंबे संघर्ष की कहानी है “माऊंटेन विलेज स्टे-धराली हाईट्स”

एक लंबे संघर्ष की कहानी है “माऊंटेन विलेज स्टे-धराली हाईट्स”

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
विनय केडी समय कि उपलब्धता के अनुसार छोटी—छोटी यात्राएं बनाते हुए जानकारियां एकत्रित करने के काम को जारी रखा। और इन सभी यात्राओं से यह समझ में आ गया था कि आध्यात्मिक पर्यटन के साथ—साथ ग्रामीण पर्यटन की संभावनाओं पर भी काम करना होगा अन्यथा हासिल शून्य ही रहेगा।  18 अप्रैल वर्ष 2009 में आध्यात्मिक पर्यटन हेतु उत्तराखंड टेंपल्स प्रोजेक्ट की शुरुआत की। पेशे से फ़ोटोग्राफ़र और अपने करीबी मित्र मुकेश के साथ उस दौरान मैने उत्तराखंड के पौड़ी और टिहरी जनपद के कई मंदिरों का भ्रमण किया। हमें दिन भर सुदूर गावों में मंदिरों की जानकारी और फ़ोटोग्राफ़्स एकत्र करने के बाद रात्रि विश्राम हेतु शाम होते किसी बड़े कस्बे में लौटना होता था, जो अपने आप में बड़ा मुश्किल काम होता था। और उस दौरान मैने महसूस किया कि आध्यात्मिक पर्यटन की परिकल्पना बिना ग्रामीण पर्यटन के अधूरी है क्योंकि पहाड़ के गावों में अच्छे रात्रि...
जानिये क्या है चिलगोजा और क्या हैं इसके फायदे

जानिये क्या है चिलगोजा और क्या हैं इसके फायदे

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
अधिकतर लोग ये समझते हैं कि उत्तराखंड में उगने वाले चीड़ से ही चिलगोजा ड्राई फ्रूट निकलता है लेकिन यह जानकारी गलत है! जे.पी. मैठाणी क्या आपने चिलगोजा का नाम सुना है? शायद नहीं सुना होगा, क्योंकि बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि चिलगोजा क्या होता है, चिलगोजा खाने के फायदे क्या हैं, और चिलगोजा का उपयोग कैसे किया जाता है? यदि सचमुच आपको चिलगोजा के फायदे के बारे में जानकारी नहीं है, तो यह जानकारी आपके लिए बहुत उपेयागी है। यदि आप जानते हैं कि चिलगोजा का इस्तेमाल किस काम में किया जाता है, तो भी यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपको चिलगोजा से होने वाले एक-दो फायदे की जानकारी होगी, लेकिन सच यह है कि चिलगोजा के अनेकों फायदे हैं। चिलगोजा का इस्तेमाल मेवे के रूप में होता है। यह एक पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ एक औषधि भी है। चिलगोजा के तेल का भी प्रयोग औषधि के र...
उत्तराखंड औद्योगिक भांग की खेती आधारित स्वरोजगार का इतिहास 210 वर्ष पुराना

उत्तराखंड औद्योगिक भांग की खेती आधारित स्वरोजगार का इतिहास 210 वर्ष पुराना

अभिनव पहल, इतिहास, उत्तराखंड हलचल
औद्योगिक भांग की खेती को लेकर विभागों एवं एजेंसियों में तालमेल का अभाव जे.पी. मैठाणी उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है जहां औद्योगिक भांग के व्यावसायिक खेती का लाइसेंस इसके कॉस्मेटिक एवं औषधिय उपयोग के लिए दिया जाने लगा है, लेकिन दूसरी तरफ औद्योगिक भांग के लो टीचीएसी (टेट्रा हाइड्रा कैनाबिनोल) वाले बीज कहां से मिलेंगे इसके बारे में कोई जानकारी स्पष्ट नहीं है। पर्वतीय क्षेत्रों में 1910 से पूर्व अंग्रेजों के जमाने से अल्मोड़ा और गढ़वाल जिलों (वर्तमान का पौड़ी, चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़) में रेशे और मसाले के लिए भांग की व्यावसायिक खेती की अनुमति का प्रावधान कानून में है। हालांकि राज्य में विभिन्न एजेंसियां भांग की व्यावसायिक खेती शुरू करने की बात पिछले दो वर्ष कर रही हैं, लेकिन उत्तराखंड में लो टीचीएससी का बीज किसी एजेंसी के पास आम पहाड़ी किसानों के लिए जब उपलब...