Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

संस्मरण
प्रकाश उप्रेती मूलत: उत्तराखंड के कुमाऊँ से हैं. पहाड़ों में इनका बचपन गुजरा है, उसके बाद पढ़ाई पूरी करने व करियर बनाने की दौड़ में शामिल होने दिल्ली जैसे महानगर की ओर रुख़ करते हैं. पहाड़ से निकलते जरूर हैं लेकिन पहाड़ इनमें हमेशा बसा रहता है. शहरों की भाग-दौड़ और कोलाहल के बीच इनमें ठेठ पहाड़ी पन व मन बरकरार है. यायावर प्रवृति के प्रकाश उप्रेती वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. कोरोना महामारी के कारण हुए 'लॉक डाउन' ने सभी को 'वर्क फ्राम होम' के लिए विवश किया. इस दौरान कई पाँव अपने गांवों की तरफ चल दिए तो कुछ काम की वजह से महानगरों में ही रह गए. ऐसे ही प्रकाश उप्रेती जब गांव नहीं जा पाए तो स्मृतियों के सहारे पहाड़ के तजुर्बों को शब्द चित्र का रूप दे रहे हैं. इनकी स्मृतियों का पहाड़ #मेरे #हिस्से #और #किस्से #का #पहाड़ नाम से पूरी एक सीरीज में दर्ज़ है. श्रृंखला, पहाड़ और because वहाँ ...
रिस्पना की खोज में एक यायावर…

रिस्पना की खोज में एक यायावर…

संस्मरण
नदियों से जुड़ाव का सफर वर्ष 1993 में रिस्पना नदी से आरम्भ हुआ तो फिर आजीवन बना रहा. DBS  कॉलेज से स्नातक और बाद में DAV परास्नातक, पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान भी रिस्पना पर शोध कार्य जारी रहा. हिमालय की चोटियों से निकलने वाली छोटी-बड़ी जलधाराएँ- धारा के विपरीत बहने की उर्जा ने मुझे देहरादून की नदियों और जलधाराओं के अध्ययन के लिए वर्ष 1996-1997 से ही प्रेरित किया. जलान्दोलन के तहत पूरे उत्तराखंड में पनचक्कियों के संरक्षण, जलधाराओं को प्रदुषण मुक्त रखने- पहाड़ के हर गाँव में सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने को लेकर- जलान्दोलन के तहत- पदम् भूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी जी के नेतृत्व में गंगोत्री से दिल्ली पदयात्रा का समन्वयन किया. पहाड़ के प्राकृतिक जल संसाधनों और जंगल और जमीन के मुद्दे पर सदैव सक्रिय रहे. शराब विरोधी आन्दोलन की वजह से मुकद्दमे झेले और जेल भी जाना पड़ा. आज भी जनपद चमोली, देहरादून, बागेश्...
गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्री

गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्री

समसामयिक
सुनीता भट्ट पैन्यूलीगांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहां श्रम है,सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है, दया है, उन्नयन है अस्तित्व का, प्राचीनता में नवीनता है, स्वप्न हैं, स्वाधीनता है, स्वराज है, रोजगार है. गांधी जी के विचार व दृष्टिकोण आधुनिक व उन्नतशील भारत की क्रांति की वह मुहिम है because जिसका बेहद अहम हिस्सा स्त्री है जो महात्मा गांधी के सुधार और परिवर्तन और विकास जैसे विचारों के सरोकार में महत्त्वपूर्ण केंद्र रही है.सामान्यतः महात्मा गांधी धार्मिक, सांस्कृतिक समाज so और स्वदेशी परंपरा के उदार समर्थक हैं किंतु जहां समाज में स्त्रियों की स्थिती और उसकी उन्नति का प्रश्न है वहां गांधी जी ने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्त्रियों के संदर्भ में जो दृष्टव्य और आधुनिक विचार अपने भीतर विकसित किये वह आज की इस अत्याधुनिक इक्क...
शैलेश मटियानी जन्मतिथि पर भावपूर्ण स्मरण

शैलेश मटियानी जन्मतिथि पर भावपूर्ण स्मरण

स्मृति-शेष
जन्मतिथि (14  अक्टूबर) पर विशेषडॉ. अमिता प्रकाश“दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूँ आज जो नहीं कही.” निराला जी की ये पंक्तियाँ जितनी हिंदी काव्य के महाप्राण निराला के जीवन को उद्घाटित करती हैं उतनी ही हमारे कथा साहित्य में अप्रतिम स्थान रखने वाले so रमेश चंद्र सिंह मटियानी का, जिन्हें विश्व साहित्य शैलेश मटियानी के नाम से जानता है. जुआरी बिशन सिंह के बेटे और बूचड़ के भतीजे कि रूप में दुत्कारित यह ’मुल्या छोरा’ किस so प्रकार हिंदी साहित्याकाश का दैदिप्यमान नक्षत्र बना यह अपने आप में कम रोचक कथा नहीं है. उनका साहित्य वस्तुतः उनके जीवन का विस्तार है जो कुछ भोगा वही शब्दों में ढाला. because उनके पास लेखन के लिये इतना भी समय नहीं था कि वह अपने लेखन का सौंदर्यीकरण कर पाते,  दस -बीस पृष्ठ लिखे नहीं कि दो पैसे की चाह में उन्हें छपवाने भेज दिया करते थे.मत लेखन उनके लिए जुनून के साथ-सा...
सामरिक इतिहास के लिए विख्यात मातृवंशीय नंबूदरी ब्रह्मणों की विवाह पद्धति

सामरिक इतिहास के लिए विख्यात मातृवंशीय नंबूदरी ब्रह्मणों की विवाह पद्धति

ट्रैवलॉग
मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. so आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं.  नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है. इनकी लेखक की विभिन्न विधाओं को हम हिमांतर के माध्यम से 'मंजू दिल से...' नामक एक पूरी सीरिज अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पेश है मंजू दिल से... की प्रथम किस्त... ...
मुनिया चौरा की कपमार्क ओखली उत्तराखंड के आद्य इतिहास का साक्ष्य

मुनिया चौरा की कपमार्क ओखली उत्तराखंड के आद्य इतिहास का साक्ष्य

इतिहास
डॉ. मोहन चंद तिवारीएक वर्ष पूर्व दिनांक 11अक्टूबर, 2019 को जालली-मासी मोटरमार्ग पर स्थित सुरेग्वेल से एक कि.मी.दूर मुनियाचौरा गांव में मेरे द्वारा खोजी गई कपमार्क ओखली मेरी because नवरात्र शोधयात्रा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है. महापाषाण काल की यह  कपमार्क मेगलिथिक ओखली उत्तराखंड के पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को उजागर करने वाली एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक अवशेष भी है. बुदापैश्त इस ओखली के मिलने का घटनाक्रम भी बहुत रोचक है. राष्ट्रीय इतिहास लेखन की चिंताओं को लेकर नवरात्र यात्रा because के दौरान मैंने जब दिनांक 11 अक्टूबर, 2019 को कपमार्क ओखलियों का सर्वेक्षण करने के लिए 'मुनिया की धार' जाने का मन बनाया और वहां सुरेग्वेल जाकर मैंने अनेक स्थानीय लोगों से ओखलियों के रास्ते के बारे में पूछा तो उन्हें कोई ओखली की जानकारी नहीं थी. मैं फिर भी अपनी पुरानी स्मृतियों के सहारे अ...
ग़म-ए-ज़िदगी तेरी राह में

ग़म-ए-ज़िदगी तेरी राह में

संस्मरण
बुदापैश्त डायरी-14डॉ. विजया सतीग़म-ए-ज़िदगी तेरी राह में, शब-ए-आरज़ू तेरी चाह में .............................जो बिछड़ गया वो मिला नहीं !बुदापैश्त शान्दोर कोरोशी चोमा के लिए हम यही कह सकते हैं! so बुदापैश्त जाकर इन्हें जानना संभव हुआ क्योंकि हंगेरियन इंडोलोजी के इतिहास में कोरोशी चोमा का काम मील का पत्थर माना जाता है.बुदापैश्त ट्रांससिल्वानिया, (अब रोमानिया में) के कोरोश because गाँव में जन्मे चोमा ने अध्ययन के दौरान बहुत सी भाषाओं पर अच्छा अधिकार पाया, इनमें मुख्य थीं- ग्रीक और लैटिन, हिब्रू, फ्रेंच, जर्मन और रोमानियन भी. चोमा ने तुर्की और अरबी भाषा भी सीखी. अपने भारत प्रवास में चोमा ने संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं पर भी अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रयास किया.बुदापैश्त एक समय उनकी दिलचस्पी हंगेरियन लोगों के मूल स्थान की खोज में हुई. भाषिक संबंधों के आधार पर इ...
वराहमिहिर का जलान्वेषण विज्ञान आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर

वराहमिहिर का जलान्वेषण विज्ञान आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-24डॉ. मोहन चंद तिवारीभारतीय जलविज्ञान की पिछली पोस्टों में बताया जा चुका है कि वराहमिहिर के भूमिगत जलान्वेषण विज्ञान द्वारा वृक्ष- वनस्पतियों,भूमि के उदर में रहने वाले जीव-जन्तुओं की निशानदेही और भूमिगत शिलाओं या चट्ठानों के लक्षणों और संकेतों के आधार पर भूमिगत जल को कैसे खोजा जा सकता है? आज इस पोस्ट के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया because जा रहा है कि वर्त्तमान विज्ञान और टैक्नौलौजी के इस युग में भी वराहमिहिर के जलवैज्ञानिक सिद्धांत कितने प्रासंगिक और उपयोगी हैं? जिनकी सहायता से आज भी पूरे देश की जलसंकट की समस्या का हल निकाला जा सकता है तथा अकालपीड़ित और सूखाग्रस्त इलाकों में भी हरित क्रांति लाई जा सकती है.जलविज्ञान अब देश विदेश के आधुनिक भूवैज्ञानिकों ने भी वराहमिहिर के इन फार्मूलों की वैज्ञानिक धरातल पर जांच पड़ताल और अनुसंधान का कार्य प्रारम्भ कर द...
‘चलो गांव की ओर’ मुहिम के तहत डॉ. जोशी ने  उत्तरकाशी में लगाया फ्री मेडिकल हैल्थ कैम्प

‘चलो गांव की ओर’ मुहिम के तहत डॉ. जोशी ने  उत्तरकाशी में लगाया फ्री मेडिकल हैल्थ कैम्प

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‘विचार एक नई सोच’ संस्था ने बांटे मास्क और सैनिटाइजर, कोरोना को लेकर किया लोगों को जागरूकहिमांतर ब्‍यूरो, देहरादूनडॉक्‍टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है. कुछ लोग इसको साकार करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इन्हीं में से एक हैं डॉक्‍टर एसडी जोशी. उत्तराखंड के लोकप्रिय फिजीशियन डॉ. एसडी जोशी किसी पहचान के मोहताज नहीं है. अपने व्यवहार और समर्पण से मरीजों में खासा लोकप्रिय डॉ. जोशी की लोकप्रियता का अंदाजा आप but इस बात से लगा सकते हैं कि जिन-जिन जनपदों में इन्होंने अपने रिटायरमेंट से पहले सेवाएं दे वहां से आज भी मरीज इनकी सलाह लेने या इनको दिखाने के लिये देहरादून स्थित इनके शंकर क्लीनिक में आते हैं. डॉ. जोशी भी किसी को निराश नहीं करते हैं. चिकित्सा सेवा के तमाम संगठनों से जुड़े डॉ. एसडी जोशी प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के 2 बाद निर्विरोध अध्यक्ष भी रह चुके हैं.उत्तरकाशी में लगाया फ्री...
पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं उरख्यालि और गंज्यालि

पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं उरख्यालि और गंज्यालि

साहित्‍य-संस्कृति
विजय कुमार डोभालहमारे पहाड़ी दैनिक-जीवन में भरण-पोषण की पूर्त्ति के लिये हथचक्की (जंदिरि) और ओखली मूस (उरख्यलि-गंज्यालि) से कूटने-पीसने की प्रक्रिया सनातनकाल से चली आ रही है. because यह भी कहा जा सकता है कि ये हमारे पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं, जिनके बिना जीवन कठिन है.ओखल-मूसल और हथचक्की प्राचीन प्रोद्यौगिकी के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं.पत्थर पहले जब गांव के निकट कोई चक्की नहीं होती थी, तब से ही इनका उपयोग अनाज कूटने-पीसने, तिलहनों से तेल निकालने because तथा छाल-छिलकों से चूर्ण बनाने के लिए किया जाता रहा है. पहाड़ी क्षेत्र में प्रायः सड़क-निर्माण करते समय चट्टानों पर ओखली खुदी हुई मिलती हैं, जो पुरातात्विक सामग्री होने के साथ-साथ सभ्यता के विकास और प्रसार का द्योतक भी हैं. इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि कभी यहाँ मानव बस्तियां रही होंगी.पत्थर ओखली (उरख्यालि) का निर्माण butएक म...