Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
व्योमेश जुगरान 'तेरी सौं' का वह युवा जो तब मैदान में पढ़ाई छोड़ एक जज्बाती हालात में उत्तराखंड आंदोलन में कूदा था, आज अधेड़ होकर ठीक वैसी ही भावना के वशीभूत पहाड़ की समस्याओं से जूझने को अभिशप्त है। पलायन की त्रासदी पर बनी गंगोत्री फिल्मस् की ‘मेरु गौं’ को कसौटी पर इसलिए भी कसा जाना चाहिए कि यह फिल्म पलायन, परिसीमन और गैरसैंण जैसे सरोकारों के अलावा इस प्रश्न से भी टकराती है कि 35 साल उम्र के बावजूद गढ़वाली सिनेमा क्या उतना परिपक्व हो पाया है! पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ 1983 में आई थी। हालांकि तब से लेकर करीब ढाई दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी फिल्में आ चुकी हैं। इनमें कुछेक जरूर कलात्मक दृष्टि से अच्छी कही जा सकती हैं किन्तु गढ़वाली सिनेमा के नामचीन निर्देशक अनुज जोशी की ‘तेरी सौं.. (2003) से लेकर ‘मेरु गौं.. (2019) के सफर को पैमाना मान लें तो तस्वीर उत्साह नहीं जगाती। इन दोनों पिक्च...
जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

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हमारी संस्कृति हमारी विरासत उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले—थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग रहे हैं. कठिन दैनिकचर्या के बावजूद ये लोग इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी स्फूर्ति का संचार करते हैं, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी सामग्री का संग्रह भी करते हैं. सुदूर हिमालयी क्षेत्र में होने वाले मेले, शहरी मेलों से पूरी तरह अलग लोक के विविध रंगों से रंगे नजर आते थे किन्तु वर्तमान में वैश्वीकरण की आबो-हवा के चलते लोक संस्कृति के संवाहक रूपी मेले से वर्तमान पीढ़ी का मोहभंग होता जा रहा है, जिसके चलते इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वर्षों पूर्व अपार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने वाले कई मेले जहां अपने अस्त...
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उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god yo...
सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

उत्तराखंड हलचल, धर्मस्थल, साहित्‍य-संस्कृति
आस्था का अनोख़ा अंदाज  - दिनेश रावत देवलोक वासिनी दैदीप्यमान शक्तियों के दैवत्व से दीप्तिमान देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक एवं लौकिक विशष्टताओं के चलते सुविख्यात रही है। पर्व, त्यौहार, उत्सव, अनुष्ठान, मेले, थौलों की समृद्ध परम्पराओं को संजोय इस हिमालयी क्षेत्र में होने वाले धार्मिक, अनुष्ठान एवं लौकिक आयोजनों में वैदिक एवं लौकिक संस्कृति की जो साझी तस्वीर देखने को मिलती है वह अनायास ही आस्था व आकर्षण का केन्द्र बन जाती है। संबंधित लोक का वैशिष्टय है कि इस क्षेत्र में होने वाले तमाम आयोजनों में लोकवासियों तथा लोकदेवताओं के मध्य सहज संवाद, गीत—संगीत व नृत्य के कई नयनाभिराम दृश्य सहजता से सुलभ हो जाते हैं। श्रावण मास में मानो समूचा लोक शिवमय हो जाता है। श्रावण मास में जब लोक के ये देवी-देवता कैलाश प्रस्थान को तैयार होते हैं तो क्षेत्रवासी खासे चिंतित व भयभी...
नए कलेवर के साथ हिमांतर देखें वीडियो

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आपका अपना हिमांतर अब नए कलेवर में आपके सामने मौजूद है। हम वीडियो के जरिए भी आपके साथ बात करेंगे। हिमालय के ज्वलंत मुद्दों को उठाएंगे। आप हमें यूट्यूब पर भी देख सकते हैं।
Artificial intelligence really close to replacing artists?

Artificial intelligence really close to replacing artists?

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god yo...
आदमी को भूख जिंदा रखती है

आदमी को भूख जिंदा रखती है

साहित्यिक-हलचल
-  नीलम पांडेय "नील" ना जाने क्यों लगता है कि इस दुनिया के तमाम भूखे लोग लिखते हैं,  कविताएं या कविताओं की ही भाषा बोलते हैं। जो जितना भूखा, उसकी भूख में उतनी ही जिज्ञासाएं और उतने ही प्रश्न छिपे होते हैं। अक्सर कविताएं भी छुपी होती हैं। ताज्जुब यह भी है कि उस भूखे के पास अपने ही उत्तर भी होते हैं जो कभी—कभी आसमान से तारे तोड़ लाने जैसे होते हैं, और तो और उसकी भूख में दुखों को याद करने के लिऐ पहाड़े  होते हैं, बारहखड़ी, इमला होती है और कई बार बड़े-बड़े निबंध भी होते हैं बस उनको पढ़ने, सुनने और समझने वाला शायद कोई होता है। लिखने वाले को भाषा की भूख भी है, वह जितना लिखने का भूखा है उतना ही अपने देश—प्रदेश और स्थानीय भाषा के करीब होता चला जाता है, जिनकी भूख इनसे जुदा है वे किसी भी भाषा से काम चला लेने का दावा कर रहे हैं, उनको रचनाकार होने की नहीं, रचनाकार को खरीदने की भूख है। और किसी-किसी की...
‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

समसामयिक
रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक 'एक प्रेम कथा का अंत' — महाबीर रवांल्टा सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) व टीम रवांई लोक महोत्सव के संयुक्त तत्वावधान में यमुना वैली पब्लिक स्कूल नौगांव में आयोजित कार्यक्रम में रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक एक प्रेमकथा का अंत का लोकार्पण हेमवतीनन्दन बहुगुणा गढ़वाल(केन्द्रीय)विश्व विद्यालय श्रीगर गढ़वाल के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डा अजीत पंवार, जिला शैक्षणिक प्रशिक्षण संस्थान बडकोट के प्राचार्य वी पी सेमल्टी, रंगकर्मी पृथ्वीराज कपूर, वयोवृद्ध कवि खिलानन्द बिजल्वाण, डा मनमोहन रावत, युवा कवि दिनेश रावत, क्षेत्र पंचायत प्रमुख रचना बहुगुणा की मंच पर उपस्थिति के साथ हुआ ।अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्य क्रम का आरम्भ हुआ। लोक गायक जितेन्द्र र...
सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
अमेन्द्र बिष्ट मौण मेले के बहाने जीवित एक परंपरा जौनपुर, जौनसार और रंवाई इलाकों का जिक्र आते ही मानस पटल पर एक सांस्कृतिक छवि उभर आती है. यूं तो इन इलाकों के लोगों में भी अब परंपराओं को निभाने के लिए पहले जैसी गम्भीरता नहीं है लेकिन समूचे उत्तराखण्ड पर नजर डालें तो अन्य जनपदों की तुलना में आज भी इन इलाकों में परंपराएं जीवित हैं. पलायन और बेरोजगारी का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड के लोग अब रोजगार की खोज में मैदानी इलाकों की ओर रूख कर रहे हैं लेकिन रंवाई—जौनपुर एवं जौनसार—बावर के लोग अब भी रोटी के संघर्ष के साथ-साथ परंपराओं को जीवित रखना नहीं भूलते. बुजुर्गो के जरिये उन तक पहुंची परंपराओं को वह अगली पीड़ी तक ले जाने के हर संभव कोशिश कर रहे हैं. मौण मेला उत्तराखण्ड की परंपराओं में अनूठा मेला है, जिसमें दर्जनों गांव के लोग सामूहिक रूप से मछलियों का शिकार करते हैं. यूं तो इन इलाकों में बहु...
वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

इतिहास
— दिनेश रावत वसुंधरा के गर्भ से सर्वप्रथम जिस पादप का नवांकुर प्रस्फुटित हो जीवजगत के उद्भव का आधार बना है, लोकवासियों द्वारा उसे आज भी पूजा-अर्चना में शामिल किया जाता है. इसे लोकवासी ‘छामरा’ के रूप में जानते हैं। लोककाव्य के गुमनाम रचनाकार ऐसी काव्यमयी रचनाएं लोक को समर्पित कर गए, जो कालजयी होकर लोकवासियों की कंठासीन बनी हुई हैं. ये रचनाएं जीवित होकर आज भी उस काल, समय तथा सौरभ लिए प्रत्यक्ष रूप में लोकवासियों के लिए स्वीकार्य एवं हृदयग्राही बनी हुई है. मध्य हिमालयी क्षेत्र में प्रचलित लोकसाहित्य की इन विधाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं समसामयिक विषयों के साथ-साथ महाभारत एवं रामायणकालीन प्रसंग भी लोक भाषा के विशिष्ट लावण्य से रचे बसे हैं. लोक के अनाम कवियों ने ऐसी ही एक रचना में महाभारत के कालक्रम यानी आदि से अंत को समेटने का साहसिक प्रयास मिलता है. महाभारतकालीन देशकाल, परिस्थितियो...