Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
अपनी खूबसरती और रहस्यमय के लिए प्रसिद्ध है रूपकुंड

अपनी खूबसरती और रहस्यमय के लिए प्रसिद्ध है रूपकुंड

इतिहास
मुर्दा और कंकाल का कुंड है रूपकुंड झील ऋचा जोशी आइए आज चलते है उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ों में स्थित रहस्यमय झील रूपकुंड तक. हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी-सी झील हैं. so यह झील 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊचाई पर स्थित हैं, जिसके चारो ओर ऊंचे ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर हैं. यहां तक पहुचने का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों की पसंदीदा जगह हैं. उत्तराखंड रूपकुंड झील को मुर्दा because और कंकाल का कुंड भी कहा जाता हैं. यह कुंड ना केवल अपनी सुन्दरता बल्कि मुर्दों के कुंड जैसे रहस्यमय इतिहास के लिए भी मशहूर हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुंड की स्थापना या निर्माण संसार के रचयिता भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती (नंदा) के लिए करवाया था. उत्तराखंड यह झील यहां पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित ह...
अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

साहित्‍य-संस्कृति
कैसे बनता है कोई समाज, कौन हैं ये लोग? डॉ. दीपा चौहान राणा बिना किसी व्यक्ति विशेष के किसी समाज का निर्माण नहीं हो सकता है. हम मानव ही सभी समाज की नींव हैं. लेकिन इसी समाज में हमें सामाजिक बुराई देखने को मिलती है, एक से एक घिनौनी कुरीतियां तब से becauseचली आ रही हैं जब से इंसान इस धरती पर पैदा हुआ. कुरीति उसी कुरीति में से एक है बलात्कार! क्या है बलात्कार? so जब किसी के साथ पूरे बल से उसकी मर्जी के बिना उसकी आत्मा, उसके शरीर तथा उसके अंगों को छुआ या नोचा जाए, वो होता है बलात्कार. कुरीति ऐसी भी क्या है कि कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ इतने बल का प्रयोग करता है? उसके साथ इतना दानव जैसा व्यवहार करता है. ये एक संवेदनशील विषय है, जिस पर सिर्फ तभी बातbecause होती है, जब कोई बेटी या महिला इस घटना की शिकार होती है तभी बस बात होती है, उससे पहले कोई बात नहीं?  इसके क्या कारण हो सकते हैं क...
जलाशय निर्माण में वास्तु संरचना और ग्रह-नक्षत्रों की भूमिका

जलाशय निर्माण में वास्तु संरचना और ग्रह-नक्षत्रों की भूमिका

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-23 डॉ. मोहन चंद तिवारी हमारे देश के प्राचीन जल वैज्ञानिकों ने because वास्तुशास्त्र की दृष्टि से भी जलाशय निर्माण के सम्बन्ध में विशेष मान्यताएं स्थापित की हैं. हालांकि इस सम्बंध में प्राचीन आचार्यों और वास्तु शास्त्र के विद्वानों के अलग अलग मत और सिद्धांत हैं. मूल अवधारणा यह है कि जिस स्थान पर जल के देवता या जल के सहयोगी देवों का पद या स्थान होता है उसी स्थान पर नौला, कूप, वापी, तालाब आदि जलाशयों का निर्माण शुभ माना गया है. जलविज्ञान जल के सहयोगी देव हैं-पर्जन्य,आपः, so आपवत्स, वरुण, दिति,अदिति, इंद्र, सोम, भल्लाट इत्यादि देवगण. टोडरमल के 'वास्तु सौख्यम्' नामक ग्रंथ  के अनुसार अग्निकोण में यदि जल की स्थापना की जाए तो वह अग्नि भय को देने वाला होगा. दक्षिण में यदि जलाशय हो तो becauseशत्रुभय होता है. नैर्ऋत्य में स्त्री विवाद को उत्पन्न करता है. पश्चिम में स्त...
चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर का अंधेरा

चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर का अंधेरा

पुस्तक-समीक्षा
"पति आमतौर पर सबसे अच्छे प्रेमी तब होते हैं, जब वे अपनी पत्नियों को धोखा दे रहे होते हैं"- मर्लिन मनरो प्रकाश उप्रेती मर्लिन के इस कथन को पूर्णतः सत्य because नहीं माना जा सकता लेकिन झुठलाया भी नहीं जा सकता है. पितृसत्ता का अभ्यास और स्त्री को भोग की वस्तु समझे जाने वाली मानसिकता की बारीक नस को यह वाक्य पकड़ता है. मर्लिन इस किताब को बहुत पहले 'गोरख पाण्डेय' हॉस्टल के कमरा नम्बर 45 में, पढ़ा था. तब किताब किसी फिल्म की भांति चल रही थी. हर अध्याय क्लाइमेक्स की उत्सुकता को बढ़ा देता था. इधर इसे दोबारा पढ़ा तो पाठ ही बदल गया. किसी भी रचना को समय, काल but और परिस्थितियों से काट कर नहीं देखा जा सकता है. तकरीबन एक दशक बाद जब इस किताब को दोबारा पढ़ा तो स्वाभाविक ही पाठ बदला था. अर्थ की कई छवियाँ और निर्मित हो गई थीं.  "सिर्फ 36 वर्ष की उम्र... और कितना लंबा जीवन! इतना लंबा कि वह उससे थक चली ...
इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली किसी किताब की सरसता,रोचकता,कौतुहलवर्धता उस किताब के मूलतत्व अथार्त विषय, तथ्य, भाषा, प्रमाण कथ्य,उद्देश्य पर निर्भर करती है। अपनी “हाशिये पर रौशनी" ध्रुव गुप्त जी द्वारा because लिखे गये एतिहासिक, पौराणिक, अध्यात्मिक, संगीत, साहित्य, कला, पर्यावरण से संबद्ध छब्बीस आलेखों के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो पाठकों के मष्तिष्क में जिज्ञासा पैदा करने हेतु उपरोक्त मापदंड पर खरी उतरती है। परिवेश इसमें विभिन्न रंग, परिवेश because और अपनी-अपनी लियाकत की कहानी बयां करती चित्रों की विथिका या अंधेरी गुफाओं में रौशनी के पुंज से सराबोर विभिन्न व्यक्तियों के जीवन चरित्र पर आधारित चित्रावली एक दम नया अहसास, अनोखी अनुभूति है। विलुप्त किताब में इतिहास की because दहलीज पर रोशनियों की दस्तक है, उन हाशिये पर पड़ी महानतम आत्माओं पर जिनके अमुल्य व अतुलनीय योगदान व उनके महान व्यक्...
मानसिक स्वास्थ्य के लिए चाहिए शान्ति और सौहार्द

मानसिक स्वास्थ्य के लिए चाहिए शान्ति और सौहार्द

सेहत
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र बचपन से यह कहावत सुनते आ because रहे हैं “जब मन चंगा तो कठौती में गंगा” यानी यदि मन प्रसन्न हो तो अपने पास जो भी थोड़ा होता है वही पर्याप्त होता है.  पर आज की परिस्थितियों मन चंगा नहीं हो पा रहा है और स्वास्थ्य और खुशहाली की जगह रोग व्याधि के चलते लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है. लोगों का मन खिन्न होता जा  रहा है और वे निजी जीवन में भी असंतुष्ट रह रहे हैं और संस्था तथा समुदाय के लिए भी उनका योगदान कमतर होता जा रहा है. समाज के स्तर  पर जीवन की गुणवत्ता घट  रही है और हिंसा, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म, अपराध और सामाजिक भेद-भाव जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं. चिंता की बात यह है की उन घटनाओं के प्रति संवेदनशीलता भी घट रही है और उनकी व्याख्या अपने लाभ के अनुसार की जा रही है. बचपन हम एक because  नए ढंग का भौतिक आत्मबोध ...
बड़ी खूबसूरती से निरूपित किया है जैव विविधता के सन्तुलन को सनातनी परम्परा में

बड़ी खूबसूरती से निरूपित किया है जैव विविधता के सन्तुलन को सनातनी परम्परा में

साहित्‍य-संस्कृति
भुवन चन्द्र पन्त प्रारम्भिक स्तर की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बेसिक हिन्दी रीडर में एक पाठ हुआ करता था, जिसका शीर्षक अक्षरक्षः तो स्मरण नहीं हो पा रहा है, कुछ यों था कि वनस्पति एवं जीव-जन्तु परस्पर एक दूसरे पर निर्भर हैं. तब जैव विविधता जैसे शब्द नहीं खोजे गये थे, लेकिन जिस खूबसूरती से बालमन को वनस्पति एवं जीवजन्तुओं की परस्पर उपयोगिता समझाई गयी थी, उसे जैव विविधता जैसे वजनदार शब्द से समझने से अधिक रोचक था. जैविक विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वन्य जीव वैज्ञानिक रेमंड एफ डेशमैन द्वारा 1968 में ’ए डिफरेंट काइंड ऑफ कन्ट्री’ नामक पुस्तक में किया है. पहले बायोलॉजिकल डायवर्सिटी के नाम से because और फिर सन् 1986 के बाद संक्षिप्तिीकरण कर बायोडायवर्सिटी यानी जैव विविधत शब्द चलन में आया. बात जब पर्यावरण व पारिस्थितिकीय की आती है, तो आज हर एक की जुबान पर जैव विविधता शब्द अपनी जगह बना चुका है. ...
“बृहत्संहिता में जलाशय निर्माण की पारम्परिक तकनीक”

“बृहत्संहिता में जलाशय निर्माण की पारम्परिक तकनीक”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-22 डॉ. मोहन चंद तिवारी पिछले लेखों में बताया गया है कि एक पर्यावरणवादी जलवैज्ञानिक के रूप में आचार्य वराहमिहिर द्वारा किस प्रकार से वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही करते हुए, जलाशय के उत्खनन because स्थानों को चिह्नित करने के वैज्ञानिक तरीके आविष्कृत किए गए और उत्खनन के दौरान भूमिगत जल को ऊपर उठाने वाले जीवजंतुओं के बारे में भी उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी गईं. जलविज्ञान जलविज्ञान के एक प्रायोगिक और प्रोफेशनल उत्खननकर्त्ता के रूप में वराहमिहिर ने भूगर्भीय कठोर शिलाओं के भेदन की जिन रासायनिक विधियों का निरूपण किया है,वे वर्त्तमान जलसंकट के because इस दौर में परम्परागत जलस्रोतों के लुप्त होने की प्रक्रिया और उनको पुनर्जीवित करने की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं.यानी हम जब इन नौलों और जल संस्थानों को पुनर्जीवित करने का संकल्प ले रहे हैं तो हमारे लिए...
प्रेमचंद के स्त्री पात्र एवं आधुनिक संदर्भ

प्रेमचंद के स्त्री पात्र एवं आधुनिक संदर्भ

साहित्यिक-हलचल
प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि (8 अक्टूबर) पर विशेष डॉ. अमिता प्रकाश 08 अक्टूबर आज प्रेमचंद को because याद करने का विशेष दिन है. आज उपन्यास विधा के युगपुरुष एवं महान कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि है. 31 जुलाई के दिन प्रेमचंद ने लमही में एक फटेहाल परिवार में जन्म लेकर तत्कालीन फटेहाल भारत को न सिर्फ जिया बल्कि उस समाज का जीता-जागता दस्तावेज हमेशा के लिए पन्नों पर दर्ज कर दिया. उस समय जब भारत उपनिवेशवाद और उसकी जनता उपनिवेशवाद की अनिवार्य बुराई सामंतवाद के चंगुल में फंसी छटपटाहट रही थी, उसको अपनी मुक्ति का मार्ग दिख नहीं रहा था वह सिर्फ हाथ-पैर मारकर अपनी छटपटाहट को व्यक्त कर रहा था. उस समय प्रेमचंद आचार्य शुक्ल, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे साहित्यकार महात्मा गांधी के जनांदोलनों को विचारों की ऊर्जा ही प्रदान नहीं कर रहे थे बल्कि जनता को उसकी सामर्थ्य-शक्ति का...
‘अब तक का सबसे गर्म महीना रहा सितम्‍बर’

‘अब तक का सबसे गर्म महीना रहा सितम्‍बर’

पर्यावरण
आर्कटिक में बर्फ न्‍यूनतम स्‍तर पर निशांत कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने becauseआज ऐलान किया कि सितंबर 2020 दुनिया में अब तक का सबसे गर्म सितंबर रहा. सितंबर 2020 पूरी दुनिया में सितंबर 2019 के मुकाबले 0.05 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा. जिससे इस तरह इस बीच, साइबेरियन आर्कटिक में तापमान में सामान्य से ज्यादा की बढ़ोत्‍तरी जारी रही और आर्कटिक सागर पर बर्फ का आवरण दूसरे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया. सी3एस इसके विश्लेषण से मिले डाटा से जाहिर होता है कि सितंबर 2020 मानक 30 वर्षीय जलवायु संदर्भ अवधि के तहत सितंबर में दर्ज किए गए औसत तापमानों के मुकाबले 0.63 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. becauseइस तरह सितंबर 2019 के मुकाबले इस साल इसी महीने में तापमान 0.05 डिग्री सेल्सियस और सितंबर 2016 के मुकाबले 0.08 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. इससे पहले सितम्‍बर 2019 सबसे गर्म सितम्‍बर रहा, ...