चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर का अंधेरा

“पति आमतौर पर सबसे अच्छे प्रेमी तब होते हैं, जब वे अपनी पत्नियों को धोखा दे रहे होते हैं”- मर्लिन मनरो

  • प्रकाश उप्रेती

मर्लिन के इस कथन को पूर्णतः सत्य because नहीं माना जा सकता लेकिन झुठलाया भी नहीं जा सकता है. पितृसत्ता का अभ्यास और स्त्री को भोग की वस्तु समझे जाने वाली मानसिकता की बारीक नस को यह वाक्य पकड़ता है.

मर्लिन

इस किताब को बहुत पहले ‘गोरख पाण्डेय’ हॉस्टल के कमरा नम्बर 45 में, पढ़ा था. तब किताब किसी फिल्म की भांति चल रही थी. हर अध्याय क्लाइमेक्स की उत्सुकता को बढ़ा देता था. इधर इसे दोबारा पढ़ा तो पाठ ही बदल गया. किसी भी रचना को समय, काल but और परिस्थितियों से काट कर नहीं देखा जा सकता है. तकरीबन एक दशक बाद जब इस किताब को दोबारा पढ़ा तो स्वाभाविक ही पाठ बदला था. अर्थ की कई छवियाँ और निर्मित हो गई थीं.  “सिर्फ 36 वर्ष की उम्र… और कितना लंबा जीवन! इतना लंबा कि वह उससे थक चली थी… उसका अंत लिखने को उत्सुक थी… ” यह ‘अंत’ सिर्फ अंत नहीं था. उसके इस अंत में आरम्भ भी था.

मुक़ाम

सपने भी एक मुक़ाम के बाद बोझ बन सकते हैं. इस निपट अकेलेपन में फिर से इस किताब को पढ़ा तो ‘मर्लिन मनरो’ की जिंदगी की तड़प, घुटन और अकेलेपन को महसूस किया. so वह बहुत लोगों के बीच भी अकेले थी. वह जानती थी कि “वह” उसे धोखा देगा, फिर भी उसके साथ रहती थी.

चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर बहुत अंधेरा था. वह जो नहीं थी, वही दिखाई देने के दबाव ने उससे सबकुछ छीन लिया जिसका उसको अंत में अफसोस होता है. वह जो जिंदगी because जी रही थी उसका आरम्भ में चुनाव उसका था लेकिन बाद में वही जिंदगी बोझ बन गई. मर्लिन इसको न कह पाई और न इससे बाहर निकल पाई. उसने जीवन में प्रेम से ज्यादा धोखा पाया. उसे अपनी सुंदरता पर नाज़ था लेकिन यही उसे बाद में परेशान करने लगी थी. जीवन को वह संन्यास तक ले जाती है. परंतु अंत हताश और स्वप्नों के बिखर जाने से ही होता है.

विवाह

उसका जीवन प्रेम और द्वंद के बीच रहा. उसने तीन विवाह किए और तीनों उसके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए. इन तीन विवाहों के बाद उसके जीवन में एक but चौथा मोड़ आया अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और उनके छोटे भाई के साथ प्रेम-संबंधों के रूप में. एक समय दोनों की प्रेम कहानी बहुत चर्चित रही.

प्रेम

मर्लिन का जीवन रीयल से ज्यादा रील पर घटता हुआ नजर आता है. उसका जीवन मध्यवर्ग के स्वप्न का जीवन है लेकिन इस स्वप्न because में जो पीड़ा है वह नितांत निजी है. मर्लिन का सार्वजनिक जीवन जितना चमकदार दिखाई देता है उससे कहीं ज्यादा अँधेरा उसके निजी जीवन में है. उसकी यह मजबूरी है कि वह इसे प्रकट भी नहीं कर सकती है. वह स्वयं की इच्छाओं, आकांक्षाओं की कठपुतली बन गई थी. उसने शोहरत की बुलंदियों को  छुवा लेकिन शुकुन उसमें भी नहीं है. उसके लिए उसका जीवन ही एक समय में बोझ हो गया था.

जीवन

उसका जीवन प्रेम और द्वंद के बीच रहा. उसने तीन विवाह किए और तीनों उसके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए. इन तीन विवाहों के बाद उसके जीवन में एक चौथा मोड़ आया so अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और उनके छोटे भाई के साथ प्रेम-संबंधों के रूप में. एक समय दोनों की प्रेम कहानी बहुत चर्चित रही. यह 1962 का दौर था लेकिन यहाँ से भी मर्लिन को धोखा ही मिला. वह खुद के बनाए रास्तों पर ही ठोकर खा रही थी. वह जिंदगी, खूबसूरती और चकाचौंध, जिसकी उसको सबसे ज्यादा चाह थी वही उसके लिए बोझ बन गई थी.

मर्लिन स्वप्न में थी और स्वप्नपरी भी थी. because उसे स्वयं से भी धोखा ही मिला था. मर्लिन की मृत्यु पर ‘लाइफ’ पत्रिका ने लिखा- ‘ उसके निधन से लगता है मानो दुनिया से प्यार ही खत्म हो गया हो’. यह सच है.

प्यार

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)

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