पर्यावरण

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में वनस्पतियों का उपयोग

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में वनस्पतियों का उपयोग

पर्यावरण
डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल विज्ञान शिक्षक रा.इ.का. भंकोली उत्तरकाशी (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक सम्मान 2022) हिमालयी राज्य उत्तराखंड समृद्ध जैव विविधता का घर है। यह राज्य अपनी जैव विविधता से जितना समृद्ध है, उतना ही हिमालय की ऊपरी पहुंच में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के उपयोग से जुड़ी पौराणिक कहानियों का भी भंडार है। ऐसे अनेक उदाहरण लिए जा सकते हैं जहां समुदाय जड़ी-बूटियों, झाड़ियों और पेड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के अलावा धार्मिक समारोहों के लिए भी करता है। हालांकि, कटाई और उनके उपयोग की सामुदायिक प्रथाएं अत्यधिक दोहन को भी रोकती हैं। पिछले कुछ समय में उत्तराखंड ने हर्बल राज्य के रूप में भी पहचान हासिल कर ली है। विभिन्न योजनाएं और सरकार के नेतृत्व वाले कार्यक्रम समुदाय को आजीविका कमाने के लिए औषधीय पौधे उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन सा...
अस्कोट-आराकोट अभियान : 25 मई 2024 से आरंभ होगी अभियान की छठी यात्रा

अस्कोट-आराकोट अभियान : 25 मई 2024 से आरंभ होगी अभियान की छठी यात्रा

पर्यावरण
यह अभियान का पचासवां साल है। इस बार अभियान की थीम 'स्रोत से संगम' है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई और जलागमों को समग्रता में समझा जा सके।   यात्रा प्रारम्भ – 25 मई, 2024, 11 बजे सुबह, पांगू यात्रा समाप्ति – 8 जुलाई, 2024, आराकोट आगामी 25 मई 2024 से आरंभ होने वाल अस्कोट-आराकोट अभियान छठी यात्रा है। यह अभियान का पचासवां साल भी है। इस बार अभियान की केंद्रीय विषयवस्तु या थीम स्रोत से संगम रखी गई है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई और जलागमों को समग्रता में समझा जा सके। अभियान में उत्तराखण्ड की विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्ता; विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी और प्राध्यापक, उत्तराखंड-हिमाचल के इंटर कालेजों, हाईस्कूलों के विद्यार्थी और शिक्षक, पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा देश के अन्य हिमालय प्रेमी भी शिरकत करेंगे। इस बार मुख्य यात्रा के साथ-साथ अनेक...
क्या असमान वार्मिंग से हो रहा है वसंत का अंत? 

क्या असमान वार्मिंग से हो रहा है वसंत का अंत? 

पर्यावरण
क्लाइमेट सेंट्रल के एक नए विश्लेषण से भारत के सर्दियों के तापमान में एक चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है. जहां एक ओर पूरे देश में सर्दियाँ तो पहले से गर्म हो रही हैं, वहीं तापमान बढ़ने की दर, क्षेत्र, और महीने की बात करें तो उसमें एक जैसी प्रवृत्ति नहीं. इस असमान वार्मिंग पैटर्न के कारण भारत के कुछ हिस्सों में वसंत का मौसम कम दिनों में सिमट रहा है.  ग्लोबल वार्मिंग का भारत पर प्रभाव  यह अध्ययन साल 1970-2023 की अवधि पर केंद्रित था. इसमें पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग, जो मुख्य रूप से फोस्सिल फ्यूल जलाने से बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड एमिशन से प्रेरित है, ने भारत के सर्दियों के मौसम (दिसंबर-फरवरी) को काफी प्रभावित किया है. विश्लेषण किए गए प्रत्येक क्षेत्र में 1970 के बाद से सर्दियों के तापमान में शुद्ध वृद्धि देखी गई. हालाँकि, वार्मिंग की भयावहता काफी भिन्न थी.  पूर्वोत्तर भारत तेजी से गर्म हो...
पृथ्वी का सुरक्षा कवच ओजोन परत

पृथ्वी का सुरक्षा कवच ओजोन परत

पर्यावरण
ओजोन दिवस पर विशेष डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल विज्ञान शिक्षक रा.इ.का. भंकोली उत्तरकाशी (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक सम्मान 2022) ओजोन एक प्रकार की गहरी नीली गैस है जो आक्सीजन के तीन परमाणुओं के संयुक्त होने से बनती है। यह आक्सीजन तत्व का ही एक रूप है। ओजोन ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है 'सूंघना'। वर्ष 1840 में शोनबीन ने इसका सबसे पहले नामकरण किया‌‌, क्योंकि इसमें एक विशेष प्रकार की गंध थी। ओजोन परत पृथ्वी के समताप मंडल ( स्ट्रैटोस्फियर ) के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक पाई जाती है। यह सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकती है।  इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है। समताप मंडल में ओजोन परत खतरनाक नहीं है लेकिन पृथ्वी पर पाए जाने वाली ओजोन खतरनाक है। बहुत ही सरल शब्दों में बात...
सिर्फ सेल्फ़ी के लिए नहीं, अब पौधे ग्रीन क्रेडिट के लिए लगाएं

सिर्फ सेल्फ़ी के लिए नहीं, अब पौधे ग्रीन क्रेडिट के लिए लगाएं

पर्यावरण
भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 'ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (जीसीपी)' कार्यान्वयन नियमों के मसौदे को सार्वजनिक करते हुए एक बेहतर और पर्यावरण हित में एक साहसिक कदम उठाया है. इस अभूतपूर्व पहल का उद्देश्य एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार का लाभ उठाते हुए उसमें शामिल विभिन्न हितधारकों द्वारा स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करना है. ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम शुरू करके, सरकार घरेलू कार्बन बाजार का पूरक बनाना चाहती है और कंपनियों, व्यक्तियों और स्थानीय निकायों को 'ग्रीन क्रेडिट' नामक प्रोत्साहन की एक अनूठी इकाई के माध्यम से उनके द्वारा किए गए पर्यावरण के संदर्भ में टिकाऊ या सस्टेनेब्ल कार्यों के लिए पुरस्कृत करना चाहती है. क्या है नया? पारंपरिक कार्बन क्रेडिट प्रणालियों के विपरीत, ग्रीन क्रेडिट सिस्टम पर्यावरणीय दायित्वों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करने के लिए CO2 ...
पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

पर्यावरण ही जीवन का स्रोत है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  हमारा पर्यावरण पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पंच महाभूतों या तत्वों से निर्मित है. आरम्भ में मनुष्य इनके प्रचंड प्रभाव को देख चकित थे. ऐसे में यदि इनमें देवत्व के दर्शन की परम्परा चल पड़ी तो कोई अजूबा नहीं है. आज भी भारतीय समाज में यह एक स्वीकृत मान्यता के रूप में आज भी प्रचलित है. अग्नि, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी, और वायु आदि ईश्वर के ‘प्रत्यक्ष’ तनु या शरीर कहे गए है. अनेकानेक देवी देवताओं की संकल्पना प्रकृति के उपादानों से की जाती रही है जो आज भी प्रचलित है. शिव पशुपति और पार्थिव हैं तो गणेश गजानन हैं. सीता जी पृथ्वी माता से निकली हैं. द्रौपदी यज्ञ की अग्नि से उपजी ‘याज्ञसेनी’ हैं. वैसे भी पर्यावरण का हर पहलू हमारे लिए उपयोगी है और जीवन को सम्भव बनाता है. वनस्पतियाँ हर तरह से लाभकर और जीवनदायी हैं. वृक्ष वायु-संचार के मुख्य आ...
विश्व पृथ्वी दिवस: जीना है तो धरती की भी सुनें

विश्व पृथ्वी दिवस: जीना है तो धरती की भी सुनें

पर्यावरण
विश्व पृथ्वी दिवस पर (22 अप्रैल 2022) विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  जाने कब से यह धरती मनुष्यसमेत सभी प्राणियों, जीव - जंतुओं और वनस्पतियों आदि के लिए आधार बन कर जीवन और भरण-पोषण का भार वहन करती चली आ रही है. कभी मनुष्य भी (आज की तरह का) कोई विशिष्ट प्राणी न मान कर अपने को प्रकृति का अंग समझता था. मनुष्य की स्थिति शेष प्रकृति के अवयवों के  एक सहचर  के रूप में थी.  मनुष्य को प्रकृति के रहस्यों ने बड़ा आकृष्ट किया because और अग्नि, वायु, पृथ्वी, शब्द आदि सब में देवत्व की प्रतिष्ठा होने लगी और वे पूज्य और पवित्र माने गए. प्रकृति के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखते हुए उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखा गया . उसके  उपयोग को सीमित और नियंत्रित करते हुए त्यागपूर्वक भोग की नीति अपनाई गई. विराट प्रकृति ईश्वर की उपस्थिति से अनुप्राणित होने के कारण मनुष्य उसके प्रति स्नेह और प्रीति के रिश्तों से अभिभूत ...
ग्लासगो के संकल्प हिमालय को बर्बाद कर देंगे?

ग्लासगो के संकल्प हिमालय को बर्बाद कर देंगे?

पर्यावरण
गगनदीप सिंह स्काटलैंड के शहर ग्लासगो में सीओपी26 (कान्फ्रेंस ऑफ पार्टिस 26) का आयोजन 1 नवंबर से शुरु हुआ था. भारत का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें शामिल होते हुए जिन समझौतों और संकल्पों पर हस्ताक्षर किए हैं इससे न केवल भारत पर अमेरिका, ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी देशों को शिकंजा बुरी तरह से कसा जाएगा बल्कि यह पूरे देश सहित because हिमालय क्षेत्र के लिए बुरे नतीजे निकलने वाले हैं. नेट जिरो 2070, गो ग्रीन गो 2030, वन ग्रीड वन सोलर, कार्बन उत्सर्जन में कटौती, नवीकरणीय उर्जा जैसे जो नारे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत आकर्षित और सुंदर लग रहे हैं लेकिन इससे उतर भारत में जल संकट, बाढ़ और पूरे because पर्यावरण के लिए खतरा पैदा होगा. इन समझौतों से भारत में जलवायु वित्त के नाम से विदेशी निवेश के बढ़ावे से देश के जल-जंगल-जमीन जैसे मूलभूत संसाधन ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियों के ह...
अकेले सरकार नहीं, अब दिल्लीवाले खुद भी निपटेंगे दिल्ली के वायु प्रदूषण से!

अकेले सरकार नहीं, अब दिल्लीवाले खुद भी निपटेंगे दिल्ली के वायु प्रदूषण से!

पर्यावरण
नागरिक संगठन के प्रतिनिधि दिल्ली नगर निगम अधिकारियों के साथ करेंगे समन्वय निशांत वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में तेज़ी लाने के लिए, देश की राजधानी में 2500 से अधिक निवासी कल्याण संघों (RWAs) के एक संघ, यूनाइटेड रेजिडेंट्स जॉइंट एक्शन (URJA) ने शुक्रवार because को एक नागरिक संचालित मॉनिटरिंग अभियान शुरू किया. दिल्ली के 13 चिन्हित हॉटस्पॉट के प्रतिनिधि दिल्ली नगर निगम के साथ मिलकर काम करेंगे और अपने क्षेत्र में कचरा जलाने, मलबा डंपिंग या अन्य उल्लंघन की घटनाओं की रिपोर्ट करने में मदद करेंगे. हरताली 2019 में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने because रोहिणी, द्वारका, ओखला फेज़ -2, पंजाबी बाग़, आनंद विहार, विवेक विहार, वज़ीरपुर, जहांगीरपुरी, आर.के. पुरम, बवाना, मुंडका, नरेला और मायापुरी को शहर में हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना. हॉटस्पॉट का वार्षिक औसत PM1...
जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9% अध्ययन

जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9% अध्ययन

पर्यावरण
निशांत लगभग शत-प्रतिशत शोध यह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन किसी प्राक्रतिक नियति का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी आपकी गतिविधियों का ही नतीजा है. because इस बात को सामने लायी है एक रिपोर्ट जिसने 88,125 जलवायु-संबंधी अध्ययनों के एक सर्वेक्षण में पाया कि 99.9% से अधिक अध्ययन यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव जनित ही है. ज्योतिष ध्यान रहे कि साल 2013 में, 1991 और 2012 के बीच प्रकाशित अध्ययनों पर हुए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि 97% अध्ययनों ने इस विचार का समर्थन किया कि मानव because गतिविधियां पृथ्वी की जलवायु को बदल रही हैं. वर्तमान सर्वेक्षण 2012 से नवंबर 2020 तक प्रकाशित साहित्य की जांच से यह बताता है कि आंकड़ा 97% से बढ़ कर 99.9% हो गया है. ज्योतिष कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एलायंस फॉर because साइंस के एक विजिटिंग फेलो एवं इस पत्र के प्रमुख लेखक मार्क लिनास ने कहा की, "ह...