Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
हिंदी में हत्यारे पहचान लिए जाते हैं!

हिंदी में हत्यारे पहचान लिए जाते हैं!

साहित्‍य-संस्कृति
(हिंदी दिवस पर विशेष)   चंद्रेश्वर सारे विरोधों एवं अंतर्विरोधों के बावज़ूद हमारी हिंदी खिल रही है, खिलखिला रही है. हिन्दी को दबाने,पीछे करने या  किनारे लगाने के अबतक के सारे षडयंत्र विफल  होते रहे हैं. हिन्दी के नाम पर चाहे जो भी राजनीति होती रही हो; पर उसे कोई धूल नहीं चटा पाया है तो  इसी कारण से कि वह वास्तव में इस देश की मिट्टी की सुगंध  से पैदा हुयी भाषा है. इसमें कोटि-कोटि मेहनतकश कंठों की समवेत आवाज़ एवं पुकार शामिल है. यह समय के सुर-ताल को पहचानने वाली भाषा है. यह ज़्यादा लचीली एवं समावेशी प्रकृति की भाषा है. इस  भाषा एवं भारतीयता के बीच एक साम्य है कि दोनों में सहज स्वीकार्यता का भाव देखने को मिलता रहा है. जिस तरह भारतीयता के ताने-बाने का युगों-युगों से निर्माण होता रहा है,समन्वय के विविध रंगीन धागों से, ठीक उसी तरह हिन्दी भी बनी है कई बोलियों एवं भाषाओं के शब्दों को आत्मस...
ज्ञान की कब्रगाहों में हिंदी का प्रेत

ज्ञान की कब्रगाहों में हिंदी का प्रेत

साहित्‍य-संस्कृति
हिंदी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष प्रकाश उप्रेती हर वर्ष की तरह आज फिर से हिंदी पर गर्व और विलाप का दिन आ ही गया है. हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को इस दिन कई जगह ‘जीमना’ होता है. मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि “14 सितंबर because को हिंदी का श्राद्ध होता है और हम जैसे हिंदी के पंडितों का यही दिन होता जब हम सुबह से लेकर शाम तक बुक रहते हैं”.  कहते तो सही थे. इन 68 वर्षों में हिंदी प्रेत ही बन चुकी है. तभी तो स्कूल इसकी पढाई कराने से डरते हैं और अभिभावक इस भाषा को पढ़ाने में संकोच करते हैं. सरकार ने इसके लिए खंडहर बना ही रखा है. अब और कैसे कोई भाषा प्रेत होगी. हिंदी पर सेमिनार, संगोष्ठी, अखबारों के लंबे-लंबे संपादकीय और गंभीर मुद्रा में चिंतन व चिंता का आखिर यही एक दिन है. ज्योतिष ...आज के हिंदी विभाग because लेखकों के नहीं, लिपिकों के उत्पादन केंद्र बन गए हैं" और गमों-रंजिश में ढहते हिं...
भाषाई  स्वराज्य है  लोकतंत्र  की अपेक्षा 

भाषाई  स्वराज्य है  लोकतंत्र  की अपेक्षा 

साहित्‍य-संस्कृति
हिंदी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  कहते हैं कि जब अंग्रेज भारत में पहुंचे थे तो यहाँ के समाज में शिक्षा और साक्षरता की स्थिति देख  दंग  रह गए थे. इंग्लैण्ड की तुलना में यहाँ के विद्यालयों और शिक्षा की व्यवस्था अच्छी थी. because यह बात कहीं और से नहीं उन्हीं के द्वारा किए सर्वेक्षणों से प्रकट होती है. जब वे शासक बने तो यह उन्हें गंवारा न हुआ और आधिपत्य के लिए उन्होंने भारत की शिक्षा और ज्ञान को अप्रासंगिक और व्यर्थ बनाने का भयानक षडयंत्र रचा. because वे  अपने प्रयास में कामयाब  रहे और भारतीय शिक्षा का सुन्दर सघन बिरवा को निर्ममता से उखाड़  फेंका. उन्होंने संस्कृति और ज्ञान के देशज प्रवेश द्वार पर कुण्डी लगा दी और एक नई पगडंडी पर चलने को बाध्य कर दिया जिसके तहत हम ‘ ए फार एपिल एपिल माने सेव’ याद करते हुए नए ज्ञान को पाने  के लिए  तत्पर हो गए. ज्योतिष जब अंग्रेज  देश ...
हिंदी प्रशासनिक शब्दावली के निर्माण में संस्कृत का योगदान

हिंदी प्रशासनिक शब्दावली के निर्माण में संस्कृत का योगदान

साहित्‍य-संस्कृति
हिंदी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष  डॉ. मोहन चंद तिवारी 14 सितम्बर का दिन पूरे देश में ‘हिन्‍दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राजभाषा बनाने का फैसला लिया गया था. because 14 सितंबर के दिन का एक खास महत्त्व इसलिए भी है कि इस दिन राजभाषा हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् और हिंदी के उन्नायक व्यौहार राजेन्द्र सिंह का भी जन्म दिन आता है.इनका जन्म 14 सितम्बर 1900, को हुआ था और 14 सितम्बर 1949 को उनकी 50वीं वर्षगांठ पर भारत सरकार ने संविधान सभा में हिन्‍दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था. तब से 14 सितंबर को  हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. स्वतंत्रता प्राप्ति दरअसल, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाना बहुत कठिन कार्य रहा था. समूचे देश में अंग्रेजी का इतना वर्चस्व छाया हुआ था, कि हिंदी...
हमारी आत्मा का उत्सर्ग है हिंदी भाषा!

हमारी आत्मा का उत्सर्ग है हिंदी भाषा!

साहित्‍य-संस्कृति
14 सितंबर यानी हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता...  —डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सुनीता भट्ट पैन्यूली हिंदी भाषा विश्व की एक प्राचीन ,समृद्ध because तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राज्य भाषा भी है भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी.इस महत्त्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु राष्ट्र भाषा प्रचार समिति,वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है. ज्योतिष दरअसल भाषा  की संस्कृति कोई because बद्धमूल विषय नहीं, कालांतर यह गतिमान होती रहनी चाहिए हमारी व्यवहारिकता हमारी बोली हमारे रहन-सहन में. संस्कृति तो यही कहती है जो हमने ग्रहण किया ह...
क्रांति और भ्रांति के बीच उलझी देश की जनता!

क्रांति और भ्रांति के बीच उलझी देश की जनता!

समसामयिक
भावना मासीवाल इस वर्ष हम सभी देशवासी आज़ादी के पिचहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं. आजादी के यह वर्ष हम सभी के जीवन में बहुत सारे विरोध-प्रतिरोध को लेकर आया है. सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत आजादी जैसे प्रश्न मुखर होकर उभरें हैं. ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व तक यह प्रश्न मुखर नहीं थे. यह प्रश्न आजादी से पूर्व भी थे लेकिन उस समय तक देश की आजादी एक प्रमुख मुद्दा और उससे भी अधिक वह एक जज्बा बनकर देश की रंगों में दौड़ रहा था. आज स्थितियाँ और समय बदल गया है. आज आजादी मिले चौहत्तर वर्ष पूरे हो गए है. महात्मा गाँधी ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा’ का उद्बोधन भी मुहम्मद इकबाल के साथ चला गया है. ‘हम एक है’ कहने का भावबोध भी आज टुकड़ों-टुकड़ों में बटा हुआ देखा जा रहा है. कहीं व्यक्ति का अपमान हो रहा है तो कहीं देश का. हमसे पूर्व की पीढ़ी ने जिस युग को जिया वो देश की आजादी के लिए कुछ भी कर गुजरने का य...
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जल उपलब्धता का संकट और संभावित निदान!

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जल उपलब्धता का संकट और संभावित निदान!

पर्यावरण
डॉ. दिनेश सती भूविज्ञान/भू-अभियांत्रिकी विशेषज्ञ दुनिया की कुल जनसंख्या का 10% भाग के साथ हमारे देश में मीठे पानी की उपलब्धता दुनिया का मात्र 4% ही है, जो कि पर्याप्त नहीं है. जल संसाधन मंत्रालय (MoWR) के एक अनुमान के अनुसार हमारे पास वर्तमान में प्रति व्यक्ति 1,545 घन मी. (m3) ही जल उपलब्ध है, जो यह बताता है कि because हमारा देश पहले ही पानी की कमी की (Water Stressed) स्थिति में पहुंच चुका है. इसी अनुमान के अनुसार यदि हम समस्त जल का उपयोग भी ठीक से कर पाएं, तभी भी सन 2050 तक हमारे देश में पानी की कमी (Water Scarced) हो जाएगी, जो वाकई एक बुरी स्थिति को दिखाता है! गणेश अफसोसजनक बात तब हो जाती है जब उत्तराखंड प्रदेश, जहां से देश की सबसे बड़ी नदियां - गंगा और यमुना निकलती हैं और जो देश के मैदानी इलाकों (Indo-gangetic plains) में करोड़ो की प्यास बुझाती हैं, उनकी गोद में बसे कई क्षेत्र अभी...
प्रेम मात्र पा लेना तो नहीं…

प्रेम मात्र पा लेना तो नहीं…

कविताएं
सपना भट्ट कविता कई मायनों में जीवन राग भी है. व्यक्ति के जीवन का व्यक्त- अव्यक्त, दुःख-सुख, प्रेम- वियोग, संघर्ष- सफलता की ध्वनि काव्य में सुनाई देती है. भले ही ‘लेखक की मृत्यु’ की घोषणा हुए पाँच दशक गुजर गए हों लेकिन रचना को आज भी लेखक के संघर्ष और जीवन-अनुभवों से काट कर नहीं देखा जा सकता है. कविता में तो जीवनानुभव और सघन रूप में मौजूद रहते हैं. जीवन की इन्हीं सघन अनुभूतियों को व्यक्त करने वाली कवियत्री हैं- सपना भट्ट. यहाँ सपना भट्ट की पाँच कविताएँ दी जा रही हैं. इन कविताओं में प्रेम की सघन अनुभूति भी है और निश्छल मन की बैचेनी भी है- (1) सहानुभूति के लेप से आत्मा के अदृश्य घाव नहीं भरते कोरे दिलासों से मन की चिर अतृप्त तृष्णाएं तृप्ति नहीं पाती। किसी स्वप्न में किये आलिंगन की स्मृति की सुवास से देह नहीं महकती। पीठ पर हाथ भर फेर देने से रीढ़ की टीस नहीं जाती हाथ की रेखाएं बदल ल...
कुमाऊं,गढ़वाल में गणपति गणेश की मूर्तिकला का इतिहास

कुमाऊं,गढ़वाल में गणपति गणेश की मूर्तिकला का इतिहास

लोक पर्व-त्योहार
गणेश चतुर्थी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज गणेश चतुर्थी है. हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है. गणेशजी के जन्म के बारे में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. उस सन्दर्भ में कुमाऊं स्थित देवभूमि उत्तराखंड के पाताल भुवनेश्वर में भगवान गणेश के आदिकालीन इतिहास के सांस्कृतिक और पुरातात्त्विक अवशेष आज भी संरक्षित हैं. यह स्थान श्रद्धालु because भक्तों के लिए बहुत ही पवित्र और गणेश के सांस्कृतिक महत्त्व को उजागर करने वाली देवभूमि है. यद्यपि शैव संस्कृति का मुख्य केंद्र होने के कारण उत्तराखंड में गणेश पूजा एक स्वतंत्र धार्मिक परम्परा के रूप में यहां विकसित नहीं हो सकी किन्तु यहां के शैव मंदिर हों या वैष्णव मंदिर अथवा शाक्त सम्प्रदाय के मंदिर सभी में देवपूजा के अंतर्गत गणपति की पूजा और अर्चना को प्रमुखता से स्थान मिला है. कुमाऊं प्रदेश में चाहे किसी प्रकार की धार्मिक पू...
हरताली’: सामवेदी तिवारी ब्राह्मणों का यज्ञोपवीत पर्व

हरताली’: सामवेदी तिवारी ब्राह्मणों का यज्ञोपवीत पर्व

लोक पर्व-त्योहार
एक धर्मशास्त्रीय विवेचन डॉ. मोहन चंद तिवारी  इस बार 9 सितंबर,2021 (भादो 24 पैट) because को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया  तिथि और हस्त नक्षत्र के पावन अवसर पर हरताली तीज और सामवेदी ब्राह्मणों का उपाकर्म का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन अखंड सौभाग्य व उत्तम वर की कामना से महिलाएं व युवतियां निर्जल निराहार रहकर शिव-पार्वती का पूजन करती हैं. कोलकाता धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन हस्त नक्षत्र के अवसर पर कुमाऊं उत्तराखंड के सामवेदी तिवारी ब्राह्मणों द्वारा यज्ञोपवीत धारण तथा रक्षासूत्र बंधन का पर्व 'हरताली' मनाया जाता है. सदियों से चली आ रही इस 'हरताली' की परम्परागत मान्यता के अनुसार because कुमाऊं में तिवारी, तिवाड़ी, तेवारी, तेवाड़ी, त्रिपाठी, त्रिवेदी आदि उपनामों से प्रचलित सामवेदी ब्राह्मण ‘हस्त’ नक्षत्र में ही ‘हरताली’ तीज पर जनेऊ धारण करते हैं. हरताली के दिन प्रा...