किस्से-कहानियां

मालपा की ओर

मालपा की ओर

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी मालपा मेरा गरीब मालपा रातों-रात पूरे देश में, शायद विदेशों में भी प्रसिद्व हो गया है. मैं बूढ़ा, बीमार बेबस हूँ. बाईपास सर्जरी कराकर लौटा हूँ. बिस्तर पर पड़े-पड़े सिवाय आहत होने और क्रंदन करने के मैं मालपा के लिए कर भी क्या सकता हूँ? अन्दर कमरे से पत्नी गंगा और दोनों बेटों को आपसी बातचीत के स्वर कानों में पड़ रहे हैं. मैं भलीभांति जानता हूँ कि इलकी मालपा जाने की तैयारी अपनी सगे-सम्बन्धियों को कोई राहत पहुंचाने के लिए नहीं है वरन् यह तैयारी है वहां जाकर अपने को मृतक आश्रित दिखाकर सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि पर दावा करना. गंगा उदास और दुखी होने का अभिनय बखूबी कर लेती है. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. सुबह अल्ल-सबेरे मेरे बिस्तर के पास आकर नेक सलाह दे गई है- ‘‘सुनों जी, जीवन को घर भेज देते हैं. अभी हम लोग सूतक भी तो नहीं मना सकते है, जब तक जेठ और जेठानी जी ...
सिस्टम द्वारा की गई हत्या!

सिस्टम द्वारा की गई हत्या!

किस्से-कहानियां
पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाओं, अस्पतालों व डॉक्टरों की अनुपलब्धता के कारण बहुत—सी गर्भवती महिलाएं असमय मृत्यु का शिकार हो जाती हैं. ऐसी ही पीड़ा को  उजागर करती है यह कहानी कमलेश चंद्र जोशी रुकमा आज बहुत खुश थी कि उसकी जिंदगी में एक नए मेहमान का आगमन होने वाला था और अब वह दो से तीन होने वाले थे. गांव  से लगभग 100 किलोमीटर दूर शहर में स्थित अस्पताल से रिपोर्ट लेने के बाद रुकमा अपनी सास के साथ वापस घर की ओर चल दी. रुकमा मैदानी क्षेत्र में पली बड़ी थी इसलिए पहाड़ों की घुमावदार सड़कों की उसे आदत नहीं थी जिस वजह से वह जब भी पहाड़ों में बस या कार से सफर करती तो उल्टियां करते परेशान हो जाती. लेकिन आज उसका ध्यान बस के सफर पर नहीं बल्कि अपनी जिंदगी में आने वाले नए मेहमान पर केंद्रित था. वह उसको लेकर न जाने कितने ही सपने बुन रही थी. इस दौरान उसे पता ही नहीं चला कि कब शहर से गांव तक की इतनी ल...
मां, बचपन और सोनला गांव 

मां, बचपन और सोनला गांव 

किस्से-कहानियां
डॉ. अरुण कुकसाल (भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे श्री गोविन्द प्रसाद मैठाणी, देहरादून में रहते हैं. ‘कहीं भूल न जाये-साबी की कहानी’ किताब श्री गोविन्द प्रसाद मैठाणीजी की आत्मकथा है. अपने बचपन के ‘साबी’ नाम को जीवंत करते हुये बेहतरीन किस्सागोई लेखकीय अंदाज़ में यह किताब हिमालिका मीडिया फाउण्डेशन, देहरादून द्वारा वर्ष-2015 में प्रकाशित हुई है.) ‘साबी, जीवन में कहां-कहां नहीं भटका और कैसे-कैसे खतरों का बचपन से बुढ़ापे तक सामना नहीं किया. मन-तन की भटकन और मृत्यु से भिडंत उसकी कहानी रही है. सोनला से नन्दप्रयाग, नन्दप्रयाग से देहरादून वहां से बरेली, श्रीनगर, कानपुर होते हुए मध्य प्रदेश और अन्ततः वापस देहरादून. देहरादून लगता है शारीरिक अटकन की अन्तिम कड़ी होगी. भटकनों की इस यात्रा में साबी का मन तो सोनला में ही अटका रहा. अपने गांव के कूड़े का बौंड, ओबरा, हाट्टि, तिबारी, गाड़ का मंगरा, धार का ...
मिलाई

मिलाई

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी वह 18 जून 2013 का दिन था वैसे तो जून अपनी प्रचण्ड गर्मी के लिए हमेशा से ही बदनाम रहा है परन्तु उस वर्ष की गर्मी तो और भी भयावह थी पारा 46 के पार जा पहुँचा था ऐसी सिर फटा देने वाली गर्मी की दोपहर में माया बरेली से लखनऊ के लिए जनरल क्लास के डिब्बे में बैठ गई थी जनरल क्लास का वह उसका पहला सफर था वह कहाँ बैठी है किन लोगो के बीच में बैठी है आज उसका उसके लिए कोई महत्व नहीं रह गया था अपनी दाहिनी हथेली को उसने साड़ी के पल्लू से पूरी तरह से ढक लिया था बरेली जेल में मिलाई की मुहर ने जैसे उसे स्वयं गुनहगार बना दिया था. वह कनखियों से आस पास जानवरों की तरह ठुंसे हुए सहयात्रियों को कनखियों से देखती है उसे वे सारे लोग मिलाई के वक्त घंटो से इंतजार में बैठे कांतिहीन. गौरवहीन लोगों से लग रहे थे परन्तु उनमें से किसी की हथेली में मिलाई की मुहर नहीं दिख रही थी. किसी ने न अपनी हथेल...
‘गंगा’

‘गंगा’

किस्से-कहानियां
कहानी सीता राम शर्मा ‘चेतन’ रात्रि के आठ बज रहे थे. हमारी कार हिमालय की चोटियों पर रेंगती हुई आगे बढ़ रही थी. नौजवान ड्राइवर मुझ पर झुंझलाया हुआ था - “मैनें आपसे कहा था भाई साहब, यहीं रूक जाओं, आपने मेरी एक ना सुनी, अब इस घाटी में दूर-दूर तक कोई होटल-धर्मशाला है भी या नहीं क्या मालूम, शरीर थक चुका है.” ड्राइवर की बात सुन मित्र झुंझला उठा था “ये किसी की बात मानता ही नहीं. इसका क्या है अकेला है. यहां मेरा पूरा परिवार है. बीवी है, बच्चे है, कहीं कोई हादसा हुआ तो पूरा वंश खत्म हो जाएगा, कोई नाम लेने वाला भी नहीं होगा. देखों तो, बाप रे बाप, यहां से थोड़ी सी गलती से भी अगर गाड़ी का पहिया एक इंच इधर-उधर हो जाए तो हजारों फीट नीचे खाई में जा गिरेगे.” “आप लोगों को ऐसा लगता था तो रूक जाना था वहीं, मैनें तो बस इतना सोचा था कि चालीस किलोमीटर का रास्ता शेष है, पांच बज रहे हैं आठ बजे तक हम आराम...
तर्पण

तर्पण

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी तप्त कुण्ड के गर्म जल में स्नान करके मोहन की सारी थकान चली गयी थी और वह अब अपने को काफी स्वस्थ महसूस करने लगा था. तप्त कुण्ड के नीचे अलकनन्दा अत्यंत शांत एवं मंथर गति से अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी. पहाड़ों में बहने वाली नदियां वैसे तो किसी अल्हण किशोरी सी चहकती, फुदकती, बलखाती अपनी मंजिल की तरफ दौड़ लगाती हैं परन्तु बद्रीनाथ धाम में बहने वाली अलकनन्दा का यह रूप मनुष्य को अपने प्राणवान होने का अहसास कराना चाहती थी शायद. अलकनन्दा को मालूम था उसके शोर-शराबे तथा उच्छृंखलता से भगवान नारायण की तपस्या में खलल पड़ सकता है. बद्रीनाथ में आकर मनुष्य भले ही अपना संयम भूल जाये परन्तु अलकनन्दा अनादिकाल से अपनी मर्यादा तथा संयम को नहीं भूली थी. जोशीमठ से बद्रीनाथ की 40 किलोमीटर की यात्रा ने मोहन को बीमार कर दिया था. वह सोचता है उसे रात्रि विश्राम जोशीमठ में करना चाहि...
गुफा की ओर

गुफा की ओर

किस्से-कहानियां
कहानी   एम. जोशी हिमानी चनी इतनी जल्दी सारी खीर खा ली तूने? ‘‘नही मां मैने खीर जंगल के लिए रख ली है. दिन में बहुत भूख लगती है वहीं कुछ देर छांव में बैठकर खा लूंगी. अभी मैंने सब्जी रोटी पेट भर खा ली है. मां आप प्याज की सूखी सब्जी कितनी टेस्टी बनाती हो. मैं तीन की जगह पांच रोटी खा जाती हूँ फिर भी लगता है कि पेट नही भरा...’’ भगवती समझी की पीपल पानी होने के कुछ दिन बाद यह शहर में पली लड़की कहां इस पिछड़े गांव में रह पायेगी. चली जायेगी अपने मायके. कहा भी जाता है- ‘‘तिरिया रोये तेरह दिन माता रोये जनम भर.’’ भगवती का विश्वास झूठा साबित हो रहा था. चनी को शायद जनम भर-यहीं पर रोना मंजूर था. चनी अपनी सास भगवती को अपनी मीठी बातों से खुश कर देती है. अपनी सास के साथ चनी का बहुत प्यारा रिश्ता बन गया है. सास को जब वह मां कहती है तो भगवती को बेटे का गम काफी हद तक कम हो जाता है. ऐसे वक्त में भग...
दिल्ली जन्नूहू, हेर्या जन

दिल्ली जन्नूहू, हेर्या जन

किस्से-कहानियां
लच्छू की रईसी के किस्से कमलेश चंद्र जोशी बात तब की है जब दूर दराज गॉंव के लोगों के लिए दिल्ली सिर्फ एक सपनों का शहर हुआ करता था. उत्तराखंड के लगभग हर पहाड़ी परिवार का एक बच्चा फौज में होता ही था बाकी जो भर्ती में रिजेक्ट हो जाते वो या तो आवारा घूमते बीड़ी फूंकते नजर आते या फिर दिल्ली जाने की जुगत लगाते. उस समय में गॉंव के इक्का—दुक्का लड़के ही दिल्ली में नौकरी करते थे जिस वजह से गॉंव में उनकी पूछ और आव-भगत खूब होती थी. अलबत्ता पूरे गॉंव में मालूम किसी को नहीं होता था कि असल में लड़के दिल्ली में करते क्या हैं लेकिन बातें कहोगे तो ऐसी कि गॉंव के नाकारा निकम्मे लड़कों को मिसाल के तौर पर इन्हीं दिल्ली वाले लड़कों के उदाहरण दिये जाते थे. ईजा-बाज्यू तो बात-बात में कई बार कह देते थे “तुमर चेल त कति समझदार भै हो, टाइम में दिल्ली नौकरी में लाग गौ. एक हमर लाट छ दिन भर फेरिने में भै बस” (तुम्...
ट्यूलिप के फूल

ट्यूलिप के फूल

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी आज दिसम्बर की 26 तारीख हो गई है. ठंड अपने चरम पर पहुंच चुकी है. मौसम के मिजाज से लग रहा है एकाध दिन में यहां अच्छी बरफ गिरेगी. गंगा खुश है कि बरफ अच्छी गिरेगी तो उसकी क्यारियों में ट्यूलिप भी बहुत अच्छे फूल देंगे तथा बगीचे में लगे सेबों की मिठास भी बढ़ जायेगी गंगा ऊनी टोपी तथा मफलर से अपने कानों को अच्छी तरह ढक लेती है. साड़ी उससे अब पहनी नहीं जाती. ऊनी गाउन के नीचे ऊनी लैगिंस, ऊपर से गरम ओवर कोट डाले, होंठों में मौसम के अनुकूल लिपस्टिक, चेहरे से टपकते अभिजात्य को देखकर पहली नजर में गंगा को हर कोई अंग्रेज मैम समझता था. मुक्तेश्वर के टाप में बना उसके दादा के जमाने का वह घर, जिसमें गर्मियों में परिवार के एकाध सदस्य अपने नौकरों के साथ जानवरों को लेकर आकर रहते थे यहां पर चार महीने तथा अगले 6-8 महीने के लिए जानवरों तथा जलावन के लिए सूखी लकड़ियों का ढेर कमरों के भीतर...
मुआवजा

मुआवजा

किस्से-कहानियां
एम. जोशी हिमानी भादों के पन्द्रह दिन बीत गये हैं बारिश है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही है, जयंती अपने छज्जे से चारों तरफ देखने की असफल कोशिश करती है। उसके घर की तीनों तरफ की पहाड़ियां घने सफेद कोहरे से पूरी तरह से ढकी हैं, समझ में नहीं आ रहा कहां तक कोहरा जा रहा है कहां से बादलों की सीमा रेखा शुरू हो रही है, धरती आसमान सब एक से लग रहे हैं। जयंती एक अनजाने भय से रात भर सो नहीं पाती उसे लगता है इतनी ही बारिश यदि होती रही तो यह भी हो सकता है कि उसके घर के पीछे की पहाड़ी किसी दिन नीचे खिसक आये और वह यह धुंधली कोहरे भरी सुबह भी न देख पाये। पहाड़ों से भगवान भी इधर कई वर्षों से बुरी तरह नाराज चल रहे हैं इसीलिए तो वे हर बरसात में जिस तरह से बरसते हैं लगता है कि वे पूरे पहाड़ों को ढहाकर नीचे मैदानों के साथ मिला देंगे। पिछली बरसात की अमावस की रात जयंती को अभी भी बुरी तरह से खौफजदा कर देती है पल्ली...