मिलाई

कहानी

  • एम. जोशी हिमानी

वह 18 जून 2013 का दिन था वैसे तो जून अपनी प्रचण्ड गर्मी के लिए हमेशा से ही बदनाम रहा है परन्तु उस वर्ष की गर्मी तो और भी भयावह थी पारा 46 के पार जा पहुँचा था ऐसी सिर फटा देने वाली गर्मी की दोपहर में माया बरेली से लखनऊ के लिए जनरल क्लास के डिब्बे में बैठ गई थी जनरल क्लास का वह उसका पहला सफर था वह कहाँ बैठी है किन लोगो के बीच में बैठी है आज उसका उसके लिए कोई महत्व नहीं रह गया था अपनी दाहिनी हथेली को उसने साड़ी के पल्लू से पूरी तरह से ढक लिया था बरेली जेल में मिलाई की मुहर ने जैसे उसे स्वयं गुनहगार बना दिया था.

वह कनखियों से आस पास जानवरों की तरह ठुंसे हुए सहयात्रियों को कनखियों से देखती है उसे वे सारे लोग मिलाई के वक्त घंटो से इंतजार में बैठे कांतिहीन. गौरवहीन लोगों से लग रहे थे परन्तु उनमें से किसी की हथेली में मिलाई की मुहर नहीं दिख रही थी. किसी ने न अपनी हथेली और न कुछ और कुछ छुपा रखा था. छुपाने लायक शायद उनके पास कुछ था भी नहीं.

पूरे चार घंटे के सफर में वह बुत बनी रही समझ में नही आ रहा था उसे अपने भोले भाले बच्चों की वह उनके पिता के बारे में क्या बतायेगी. उसके दोनों बेटे बहुत ही संवेदनशील एवं मासूम थे पता नहीं इस सदमे को वे सह पायेंगे कि नहीं. 

पति से मिल कर उसने अपनी हथेली को धोकर मिलाई के निशान को मिटाने का बहुत प्रयास किया था परन्तु वह असफल रही थी वह सोचने लगी कि चुनाव के समय नाखून में लगा स्याही का निशान जिस तरह हफ्तों बाद मिट पाता है शायद उसकी हथेली का यह निशान भी हफ्तों उसकी हथेली में सजा रहेगा. ट्रेन में वह टी0टी0 की टिकट बाएं हाथ से ही देती है प्यास से गला सूखा जा रहा है परन्तु वह एक बोतल पानी खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है पर्स खोलने के प्रयास में जिला कारागार बरेली की ताजा मुहर उसे अंजान लोगों के बीच में आवरणहीन कर सकती थी.

पूरे चार घंटे के सफर में वह बुत बनी रही समझ में नही आ रहा था उसे अपने भोले भाले बच्चों की वह उनके पिता के बारे में क्या बतायेगी. उसके दोनों बेटे बहुत ही संवेदनशील एवं मासूम थे पता नहीं इस सदमे को वे सह पायेंगे कि नहीं. आज की दुनिया की चतुराई तथा छल कपट अभी उनमें नहीं आया था घर पहुंचने  से पहले  क्या किसी पत्थर से रगड़कर उसे छील छील कर अपनी हथेली साफ करनी चाहिये.

वह विचारों के भंवर में फंस जाती है. डार्बिन की लिखी बात उसे याद आने लगती है- सरवाइल ऑफ द फिटेस्ट…  आदि काल से ही  प्रकृति का यह शाश्वत नियम रहा है कि फिटेस्ट ही इस धरती पर सरवाइव कर सकता है उसके पति की सरलता तथा ईमानदारी बनने जूनून ने उसे जेल के सीखचों में पहुँचा दिया था सेना की सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद अमूमन सैनिक सिक्योरिटी सर्विस ही ज्वाइन करते हैं रमेश जैसे विरले भूतपूर्व सैनिक ही अपनी योग्यता के बल पर सिविल सेवा में उच्च पद प्राप्त कर पाते हैं.

रमेश शर्मा ने एक नौ सैनिक के रूप में अपनी सेवा शुरू की थी. एक नौ सैनिक की कठिन दिनचर्या के बावजूद उसने  सेवा काल में ही व्यक्तिगत अभ्यर्थी के रूप में अच्छे नंबरों से परास्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी. नौ सेना में रहने से रमेश का व्यक्तित्व शानदार हो गया था  फर्राटेदार अंग्रेजी तो हर नौ सैनिक की खासियत होती है इन्ही सब कुशलताओं ने उसे लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल बना कर उच्च पद पर पहुँचा दिया था.

सांकेतिक फोटो: गूगूल से साभार

श्रमजीवी एक्सप्रेस के लखनऊ स्टेशन पहुँचने पर जब लोगों की रेलमपेल पटना जाने के लिए डिब्बे में चढ़ने लगी तब उसकी तन्द्रा टूटी अपनी हथेली को खुलने से बचाते हुए वह डब्बे से उतर कर कुछ देर सुस्ताने के लिए बेंच ढूढ़ने लगती है. दो चार बेंचे जो स्टेशन पर बनी थीं सबकी सब खचाखच भरी थीं वह लड़खड़ाते कदमों से स्टेशन से बाहर निकलती है.

कारागार में रमेश की आँखों से बहती हुए आंसुओं की धारा उसकी आँखों में भी तैरने लगती है… हाय री किस्मत तूने आज मेरा गरूर खत्म कर दिया. रमेश बड़े गर्व से अपने सादगी, ईमानदारी के किस्से लोगों को बताया करते थे वे कहते सरकार अब तो अपने कर्मियों को इतनी तनख्वाह दे रही है यदि अपनी आवश्यकताएं सीमित रखी जायें, संस्कारी जीवन जिया जाये तो किसी कर्मचारी को बेईमानी करने, रिश्वत लेने की जरूरत ही नही पड़ सकती है….

रमेश घर आये मेहमानों तथा अपने सहयोगियों से अक्सर ही कहा करते थे वे कहते ही नहीं थे, अपनी बातों पर कट्टरता से अम्ल भी करते थे. ऐसा नही था कि माया रमेश की आदर्शवादिता की हमेशा सहगामिनी रही हो. रमेश के आदर्शवादी जीवन ने उसे अभाव में रखा था वह भी अच्छा जीवन स्तर चाहती थी परन्तु उसका पूरा जीवन रमेश के उपदेश सुनते हुए बीता था. रमेश के स्टाफ वालों की शान-शौकत भरा जीवन देखकर माया जली-भुनी रहती थी…. तुम हमेशा भिखारी के भिखारी ही रहोगे… तुम केवल चेको पर साइन करते रहना और अपने स्टाफ को माल कमवाते रहना वह झल्लाकर व्यंग से कहती है- देखा नहीं तुम्हारा जूनियर इंजीनियर अजय वर्मा कैसे इस छोटी सी नौकरी में भी इण्टर कालेज चला रहा है और दूसरा तुम्हारा एकाउन्टेट गोबर्धन सिंह कैसे टाटा सफारी में घूमता है…..

…माया शायद मैं शतप्रतिशत ईमानदार नही हूं पर मैं चाहता हूँ कि विकास का कम से कम 80 प्रतिशत पैसा विकास कार्यों में ही लगे. परन्तु हो यह रहा है कि 80 प्रतिशत का बटवारा हो जाता है जमीन तक 20 प्रतिशत ही पहुंच पाता है. वे बहुत पीड़ा के साथ माया को बताते.

माया मैं किसी से रिश्वत लेकर फिर उससे आंख नही मिला सकता हूं. मैं तुम्हें अपनी तनख्वाह का एक-एक रूपया गिनकर दे देता हूं. तुमसे अपने निजी खर्चों के लिए पैसा नही मांगता मेरी व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा कार्यालय के खर्चों एवं मिलने जुलने वालों के आतिथ्य का खर्चा मेरा स्टाफ ही पूरा करता है. रमेश बड़ी सादगी से कहते – माया शायद मैं शतप्रतिशत ईमानदार नही हूं पर मैं चाहता हूँ कि विकास का कम से कम 80 प्रतिशत पैसा विकास कार्यों में ही लगे. परन्तु हो यह रहा है कि 80 प्रतिशत का बटवारा हो जाता है जमीन तक 20 प्रतिशत ही पहुंच पाता है. वे बहुत पीड़ा के साथ माया को बताते.

माया जानती थी इन्ही सब कारणों से उसके पति का हर वर्ष ट्रांसफर होता था कहीं पर भी वह साल-दो साल टिक नही पाते थे. उसे याद है उस वर्ष की घटना जब रमेश ने गुस्से में आडिट पार्टी को मात्र दाल, चावल और अचार पापड़ खिलाया था. आडिट पार्टी ने आडिट में ऐसी-ऐसी कमियां निकाल दी थी जिनका समाधान रमेश अभी तक नही करवा पाएं थे. दो वर्ष बाद उनका रिटायरमेन्ट है यह भी हो सकता है कि उस आडिट की वजह से उनकी पेंशन बनने में बहुत बड़ी बाधा खड़ी हो जाये.

उस घटना के बाद रमेश के उस व्यवहार से खिन्न होकर पीछे से उसका स्टाफ माया से मिला था…. मैडम सर को आज के तौर तरीके बताइये. वे पता नही कौन से युग में जी रहे हैं…. रमेश का मुंह लगा स्टेनो बोल पड़ा था… मैडम आपने धर्म सिंह रावत आई0ए0एस0 का नाम तो सुना ही होगा. भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने नायक बनने की कोशिश की थी लेकिन वे नायक तो नही बन पाये परन्तु उनको पागल अवश्य घोषित कर दिया गया था…..

13 जून की उस भयावह रात में जब सैलाब ने पूरे केदारनाथ को तहस नहस कर दिया था. हजारों व्यक्ति काल-कलवित हो गये थे. उसी रात उसके जीवन में भी सैलाब आया था. माया शिव की परम् आराधिका थी. ऐसा कैसा अजब सहयोग था कि केदारनाथ का प्रलय एवं उसके जीवन का प्रलय एक साथ घटित हुआ था.

रमेश बरेली से फोन पर कांपती आवाज में बोल रहे थे… माया मैं बुरी तरह से फंसा लिया गया हूँ इन्दिरा आवासों के आबंटन में बैंक कर्मियों की मिली-भगत से गलत लोगों को लोनिंग हो गयी है. लोनिंग की फाइल में किसी ने मेरे फर्जी साइन बनाकर मेरी मोहर लगा रखी है. इस समय मेरे लिये अपने को बचा पाना असम्भव है. तुम यदि कल सुबह तक किसी तरह से 10 लाख का इन्तिजाम कर सको तो शायद मैं गिरफ्तारी से बच जाऊं….. रमेश के रूंधे गले की आवाज आ रही थी.

माया सन्न रह गयी थी रात के 9 बजे तक सो जाने वाली माया उस दिन 10 बजे रात तक केदारनाथ की तबाही की न्यूज देखते-देखते सो नहीं पायी थी. रात के 10 बजे वह किससे 10 लाख रुपये मांगेगी. रातभर वह अपने भाईयों रमेश के भाईयों तथा अपने सब रिश्तेदारों, दोस्तों को फोन करती रही और रो-रो कर अपने परिवार पर आयी विपदा का हाल बताती रही थी.

उसे आशा थी कि सुबह तक सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा कर 10 लाख रुपये जमा करा देंगे जिनको लेकर वह बरेली की ओर भागेगी और रमेश को गिरफ्तारी से बचा लेगी. रहीमदास जी अपने समय में कितना सही लिख गये थे…. रहिमन विपदा हूं भली, जो थोड़े दिन होय, हित अनहित या जगत में जान परे सब कोय.

सभी ने उसे टका सा जवाब दे दिया था लेकिन बिन मांगें अपनी सलाहों एवं उपदेशों से उसकी झोली भर दी थी-यदि रमेश सही होंगे तो उन्हें किसी को रुपये देने की जरूरत क्यों पड़ेगी- सांच को आंच नहीं-बिना कसूर के थोड़े ही पुलिस पकड़ती है….

माया को कहीं से भी एक रुपये की मदद नही मिली थी परन्तु मुफ्त में उसने अपने परिवार की बदनामी जरूर करा ली थी वह डिप्रेेशन में दहाड़ मारकर रोने लगी. वह बहुत भयभीत हो गयी थी. अब रही सही कसर मीडिया निकाल देगा. वह कल्पना कर थर-थर कांपने लगी-थोड़ी देर में ही टी0वी0 पर ब्रेकिंग न्यूज आने लगेगी-प्रदेश सरकार का एक भ्रष्ट एवं घूसखोर अधिकारी रमेश शर्मा गिरफ्तार. कल के अखबारों में रमेश के बारे में चटपटी खबरे आने लगेंगी. क्या पता उसके घर पर पुलिस का छापा पड़ जाये.

सुबह छोटा भाई जरूर सशरीर उपस्थित हुआ था. पहले उसने अपने खर्चों का ब्यौरा दिया था जो सही भी था. उसके बाद माया के घावों पर नमक मिर्च छिड़कते हुए बोला था-जीजा जी ने कहीं तो गलती जरूर की होगी कुछ लोग ईमानदारी का केवल राग अलापते है पर हकीकत उनकी कुछ और होती है. यदि अधिकारी ईमानदारी होते तो हमारे देश की आज यह हालत न होती. एक पक्के राजनेता की तरह वह भाषण देने लगा था. दीदी तुम शान्त रहो उन्होंने जैसा किया है उन्हें भोगने दो…..

माया को कहीं से भी एक रुपये की मदद नही मिली थी परन्तु मुफ्त में उसने अपने परिवार की बदनामी जरूर करा ली थी वह डिप्रेेशन में दहाड़ मारकर रोने लगी. वह बहुत भयभीत हो गयी थी. अब रही सही कसर मीडिया निकाल देगा. वह कल्पना कर थर-थर कांपने लगी-थोड़ी देर में ही टी0वी0 पर ब्रेकिंग न्यूज आने लगेगी-प्रदेश सरकार का एक भ्रष्ट एवं घूसखोर अधिकारी रमेश शर्मा गिरफ्तार. कल के अखबारों में रमेश के बारे में चटपटी खबरे आने लगेंगी. क्या पता उसके घर पर पुलिस का छापा पड़ जाये. उसके घर पर मुश्किल से 5-6 हजार रुपये घर खर्च के मिलेंगे और बैंक के सेविंग खाते में रमेश ने किसी अचानक आने वाले खर्चों का सामना करने के लिए पाई-पाई करके 70 हजार रुपये जमा कर रखे हैं. खांटी तनख्वाह में इस मंहगाई के समय में माया के लिए कुछ बचत कर पाना नामुकिन जैसा था. रमेश की तनख्वाह का अधिकांश हिस्सा मकान के लोन की किश्त देने, दोनों बेटों की बीटेक, बी0सी0ए0 की ऊंची फीस भरने में ही चली जाती थी. माया सरकार को दुवाएं देती थी क्योंकि उसकी बदौलत उसके दोनों बेटे इण्टर पास करने के बाद लैपटाप पा गये थे नही ंतो उन्हें लेपटाप भी किश्तों में लेना पड़ता.

अब पुलिस छापा मारकर उसके घर से लाखों करोड़ों की बरामदगी भी दिखा सकती है वह भयानक आशंकाओं से थर-थर कांपने लगी. डर एवं परेशानी के मारे हर 10 मिनट में वह बाथरूम की तरफ भागती.

रमेश का फोन लगातार बन्द चल रहा था उससे सम्पर्क करने का माया के पास कोई साधन नही था. उसे यह भी नही मालूम था कि रमेश को कहां रखा गया है और उससे कौन सी एजेन्सी पूंछ-तांछ कर रही है.

दोनों बेटे बुत बने खड़े थे उनकी हालत देखकर माया ने अपने को संभालने का प्रयत्न किया. तनुज तुम भैया का ख्याल रखना मैं बरेली जा रही हूं मैं पापा को लेकर आऊगी…. वह जोर-जोर से बोलने लगती है- हमने किसी के साथ कभी बुरा नही किया. हमेशा दूसरों की मदद की, भगवान पर पूरा भरोसा किया हमारा कभी बुरा नहीं होगा बेटा…. कमरे में बने मन्दिर में जाकर वह कान्हा की तस्वीर के आगे बैठकर हाथ जोड़कर कातर स्वर में याचना करने लगी….. कान्हा तुमने हमेशा विपदा में पड़े लोगों का साथ दिया है, सत्य के तुम हमेशा साथ रहे हो, कान्हा तुम अन्र्तयामी हो मेरे परिवार में दाग मत लगने देना. मेरे खानदान में दूर-दूर तक कभी कोई जेल नहीं गया- कान्हा जेल की पीड़ा तुमसे अधिक और कौन जान सकता है, स्यामन्तक मणि चुराने का लांछन तुम पर लग चुका है पर तुमने अपने को कैसे निर्दोष साबित किया था, मेरे पति को भी उसी तरह निर्दोष साबित कर दो कान्हा… आसुओं से उसका पूरा आंचल भीग गया था.

माया की प्रार्थना में शायद कोई दम नहीं था अथवा उस समय भगवान अपने बैकुण्ठ में योगनिद्रा में सोये हुए थे. उन तक उसकी कातर आवाज नहीं पहुंच पायी थी.

दो दिन बाद एक अंजान नम्बर से आई फोनकाल ने उसे जड़ से काटकर फेंक दिया था…. मैं जांच एजेन्सी का इंस्पेक्टर संग्राम सिंह बोल रहा हूं, क्या आप रमेश शर्मा की पत्नी माया देवी बोल रही है? उधर से कड़कदार आवाज आयी थी…… वह कांपती आवाज में बोली थी क्या हुआ मेरे पति को? वह कहां हैं?….. हमने आपके पति को गबन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है आपको सूचित करना हमारी ड्यूटी है…..

वह पूरी ताकत लगाकर कातरता से विनती कर रही थी- इंस्पेक्टर साहब यह आप क्या कह रहे हैं मेरे पति की इमानदारी को सारे बड़े अधिकारी भी जानते हैं आपको कोई गलतफहमी हो गयी है कृपया उनको छोड़ दीजिए मैं आपकी मांग पूरी कर दूंगी मुझे समय दीजिए….. माया एकतरफा पता नहीं कब से बोले जा रही थी उधर का फोन कब का कट चुका था या काटकर बन्द कर दिया गया था.

जेल क्या होती है? कोर्ट की प्रक्रिया कैसे चलती है कैसे जमानत करायी जाती है आदि किसी बात का उस नादान औरत को कुछ इल्म न था.

आड़े वक्त के लिए जोड़ी गयी 70 हजार की रकम लेकर वह दूसरे ही दिन बरेली पहुंच गयी थी. बच्चों के एक-दो दोस्त ऐसे बुरे वक्त में काम आये थे उनके ही जरिए एक वकील रखा गया था वकील ने माया से फौरन 25 हजार रुपये ले लिये थे जमानत करवाने और जेल में रमेश से आसानी से मिलवाने के नाम पर.

वकील साहब आपने पहले क्यों नही बताया यह सब? आपको मैं बता चुकी हूँ मेरे पति बहुत ईमानदार रहें हैं. मेरे पास कोर्ट कचेहरी करने की सामर्थ्‍य नहीं है. प्लीज आप कोर्ट में मेरी तरफ से लिखकर दे दीजिए कि कोर्ट द्वारा हमारी सारी सम्पत्ति, बैंक खातों आदि की जांच करा ली जाय.

दो दिन तक माया एक धर्मशाला में पड़ी रही. अच्छा होटल करने की उसकी औकात नही रह गयी थी किसी रिश्तेदार का दरवाजा खटखटाने लायक अब उनकी इज्जत नही रह गयी थी. किसी हत्यारे को लोग शरण दे देते हैं क्योंकि हत्या क्षणिक आवेश में आकर तथा परिस्थितियोंवश की जाती है लेकिन गबन तो पूरी चतुराई के साथ तथा होशो-हवास में किया जताा है इसलिए यह अपराध कतई क्षम्य नहीं है.

वकील साहब इतने दिन हो गये है मेरे पति की जमानत कब होगी? वह गिड़गिड़ायी थी.

देखो पहले सेशन कोर्ट में जमानत याचिका खारिज करानी होगी फिर जिला कोर्ट से भी पक्का मानो यह याचिका खारिज हो जायेगी. तुम्हारे पति पर आई0पी0सी0 की गम्भीर धाराएं लगी हैं इतना आसान नही हैं जमानत मिलना…. वह पैसा लेने के बाद बेरूखी से बोला था.

वकील साहब आपने पहले क्यों नही बताया यह सब? आपको मैं बता चुकी हूँ मेरे पति बहुत ईमानदार रहें हैं. मेरे पास कोर्ट कचेहरी करने की सामर्थ्‍य नहीं है. प्लीज आप कोर्ट में मेरी तरफ से लिखकर दे दीजिए कि कोर्ट द्वारा हमारी सारी सम्पत्ति, बैंक खातों आदि की जांच करा ली जाय. यदि मेरे पति ने गबन किया होगा तो आखिर उसको रखा कहां है? किसी रूप में तो वह रुपया हमारे पास होना चाहिए…. नक्कार खाने में तूती की तरह गूंज रही थी उसकी आवाज.

मिलाई के आधा घण्टा का समय दोनों ने आंसुओं की न रूकने वाली धारा के साथ बिताया था. चार दिन में ही जेल के अन्दर रमेश सूखकर कांटा रह गये थे. रमेश माया से एक शब्द भी नही बोल पा रहे थे.

हमें किन जन्मों के पापों का भुगतान करना पड़ रहा है रमेश? क्या तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी थी तुमने मुझसे कभी जिक्र क्यों नही किया? तुम सब कुछ मुझसे छिपाते रहे…… अब मैं क्या करूं, कहा जाऊं बच्चों को लेकर……. माया अधीर हो उठी थी.

माया सरकारी नौकरी में बहुतों से दोस्ती भी होती है और दुश्मनी भी रहती है पर सब कुछ अस्थायी होता है इंसान का काम निकलते ही सब लोग दोस्ती दुश्मनी सब भूल जाते हैं. माया मुझे पूरा संदेह हो रहा है एम0एल0ए0 काशी सिंह ने ही मुझसे बदला लिया है क्योंकि मैंने उसका दबाव मानने से इन्कार कर दिया था और उसके गुर्गों को सरकारी कामों के ठेके देने से इन्कार कर दिया था. रमेश धीमी कांपती आवाज में बोले थे- मुझे लगता है मेरे अधिनस्थों ने भी मेरे साथ धोखा किया है मेरे रहते सबकी कमाई बन्द हो गयी थी. अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता माया मैं सिस्टम के चक्रव्यूह में फंस गया हूँ जिससे बाहर निकलना अब मेरे लिए आसान नही है. मुझे कोई नही बचा सकता है तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो…. बस वही आखिरी वाक्य रमेश के सुने थे उसने.

सात महीने की लम्बी जद्दो-जहद के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से रमेश की जमानत हो पायी थी इस सारी प्रक्रिया में उनका चार कमरे का मकान बैंक को बंधक हो गया था.  रमेश निलम्बित हो चुके थे हाईकोर्ट की वकीलों की मोटी फीस तथा इतनी लम्बी अवधि तक बिना तनख्वाह के घर चलाने के लिए माया के पास और कोई साधन नहीं था.

पिछली बार जेल से मुलाकात कर लौटते हुए उसकी रमेश के जूनियर इंजीनियर अजय गुप्ता से रास्ते में मुलाकात हुए थी. वह संवेदना जताने का अभिनय करते हुए बोला था- मैडम सर के साथ बड़ा बुरा हुआ- हमने सर को बहुत पहले ही सलाह दी थी सेटिंग कराकर इस मामले से स्वयं को मुक्त कराने की. उनके साथ के बहुत से लोग जो इस मामलें में डायरेक्ट इन्वाल्ब थे वे सब ले देकर क्लीन चिट पा गये हैं पर सर तो अपने को हरीशचन्द्र की औलाद समझते थे…… माया की जलती निगाहों का वह ज्यादा देर तक सामना नही कर पाया था और खिसक लिया था. माया जानती है यह वहीं अजय गुप्ता है उसके पति से जिसको आधा वेतन मिलता है परन्तु बरेली में उसके डिग्री कालेज, आई0टी0आई0 चल रहे हैं और अब वह नर्सिंग होम खोलने की तैयारी में व्यस्त था. इनको पूछने वाला कोई नहीं है. यदि कोई इन्हें पूछे भी तो ऐसे लोग आसानी से अपने को जस्टीफाई करा लेते हैं.

सात महीने की लम्बी जद्दो-जहद के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से रमेश की जमानत हो पायी थी इस सारी प्रक्रिया में उनका चार कमरे का मकान बैंक को बंधक हो गया था.  रमेश निलम्बित हो चुके थे हाईकोर्ट की वकीलों की मोटी फीस तथा इतनी लम्बी अवधि तक बिना तनख्वाह के घर चलाने के लिए माया के पास और कोई साधन नहीं था. ऊपर से उसे रमेश को जेल में मेहनत मशक्कत का कोई काम न करना पड़े इसके लिए जेल में अन्दरूनी व्यवस्था करने के लिए भी हर माह बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती थी वकील द्वारा ही उसे पैसों के बल पर भीतर मिलने वाली इन सारी सुविधाओं की जानकारी मिली थी. उसे एक ही चिन्ता थी बस रमेश का जीवन बचा रहे. उसे डर था रमेश जैसा स्वाभिमानी व्यक्ति इस तरह की जिल्लत भरी जिन्दगी को ज्यादा दिन तक नही खींच पायेगा.

माया याद करती है उन दिनों को जब रमेश माया के साथ नौ सेना के अपने गौरवपूर्ण दिनों को साझा करते थे- माया तुम जानती हो नौ सेना में महिलाओं का कितना सम्मान करना सिखया जाता है? वहां पर यदि शिप में कोई महिला सफाईकर्मी भी आ जाये तो प्रत्येक नौ सैनिक के लिए उसे सम्मान पूर्वक रास्ता देना अनिवार्य होता है. नौ सेना के युद्धपोत ‘‘विक्रांत” की वीर गाथाओं के संस्मरण सुनाते हुए वे थकते नहीं थे कैसे विक्रांत ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजय पताका फहराई थी. सैनिकों के इस्तकबाल के लिए कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरागांधी स्वयं आई0एन0एस0 विक्रांत में आयी थीं.

जमानत मिलने के बाद उसका दुःख काफी हल्का हो गया था वह इलाहाबाद से ट्रेन पकड़कर सीधे बरेली जाना चाहती थी. रमेश कितना अभिमान करेंगे माया पर. उसने धर्मपत्नी होने का पूरा कर्तव्य निभाया था. जमानत होने के बाद भी बीस-बीस लाख के दो गारण्टर ढ़ूंढ़ने में उसे दो महीने लग गये थे. गारण्टर ढ़ूंढ़ने में उसकी कमर टूट गयी थी. कोई गारण्टी देने को तैयार नहीं था अब माया न्याय प्रक्रिया की चक्की में पिस रही थी. ऐसी जमानत का कोई मतलब नहीं था जब तक कोई गारण्टर न मिले. माया अपना सारा धैर्य खो चुकी थी यह तो ऐसी स्थित थी कि सामने आपका मकान दिख रहा है परन्तु नदी का बहाव इतना तेज है कि आप उसे पार नहीं कर सकते हैं और नदी पर कोई पुल भी नही बना है. बस इस किनारे से दूसरे किनारे पर अपना घर देखते रहना आपकी नियति बन गया हो. यही दशा माया की हो गयी थी.

आठ महीनों बाद उसकी कातर पुकार शायद बैकुण्ठनाथ तक पहुंच गयी थी. इतने महीनों से जेल के चक्कर लगाते-लगाते डिप्टी जेलर त्रिवेदी को उसके ऊपर दया आ गयी थी. शायद उसका ब्राह्मण होना भी काम कर गया था. अपनी जाति तथा क्षेत्र के लिए हर किसी के दिल में एक साफ्टकार्नर होता है. एक अकेली औरत की हालत पर डिप्टी जेलर त्रिवेदी पसीज गये थे पता नहीं कैसे-कैसे उन्होंने स्वयं ही गारण्टर का इंतिजाम कर दिया था- बहन यह बात किसी को गलती से भी कभी मत बताना कि मैने तुम्हारी मदद की है…… मैं भी एक सरकारी कर्मचारी हूँ मैं तुम्हारी हालत को समझ रहा हूँ. अभी तो तुम्हें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी है यह लड़ाई तो उसका एक चैथाई भाग भी नहीं है. माया धन्यवाद कहने लायक भी नहीं रह गयी थी. वह न अब किसी पर विश्वास करने योग्य रह गयी थी, न क्रोध, न शिकवा, न शिकायत.

आठ महीने बाद पिजड़े में बन्द पंछी की तरह आजाद कराकर माया रमेश को घर ले आयी थी. रमेश हमेशा के लिए मौन हो गये थे. बाहर आते समय एक जेलकर्मी ने उसे बताया था कि रमेश को जेल के भीतर किसी से बात करते कभी किसी ने नहीं देखा था. सुना है आत्मा अमर होती है परन्तु रमेश की आत्मा शायद मर चुकी थी. वह निस्तब्ध, खामोश अन्तरिक्ष में अपलक निहारता रहता है चिकित्सकों का कहना है कि किसी गम्भीर सदमे के कारण उसकी यह स्थिति हुई है. माया हैरान है क्या एक लाश को संरक्षित रखने के लिए उसने आठ माह तक यह लड़ाई लड़ी और आगे भी जंग का पूरा मैदान पड़ा है. अब माया को उसके ऊपर दया भी नही आती है यदि रमेश ने आदशर्वाद का चोला न पहना होता तो वह भी आज सम्मानित एवं सम्पन्न जीवन जी रहा होता. रमेश को समय पर समझ जाना चाहिए था कि इस युग की सबसे बड़ी ताकत रूपया है और बिना ताकत के इस दुनिया में ज्यादा दिन तक टिके रहना सम्भव नहीं है.

माया भविष्य के प्रति भी सशंकित है. छः-सात वर्षों में कोर्ट का फैसला आ जायेगा. वह सोचती है क्या वह रमेश को कोर्ट में बेगुनाह साबित करा पायेगी. उसने सुना है मन माफिक फैसले भी किसी हद तक रूपयों की ताकत से प्राप्त होते हैं. उसके पास तो किसी भी तरह की ताकत नहीं है……

लेखिका पूर्व संपादक/पूर्व सहायक निदेशक— सूचना एवं जन संपर्क विभागउ.प्र.लखनऊ. देश की विभिन्न नामचीन पत्र/पत्रिकाओं में समय-समय पर अनेक कहानियाँ/कवितायें प्रकाशित. कहानी संग्रह-पिनड्राप साइलेंस’  ‘ट्यूलिप के फूल’, उपन्यास-हंसा आएगी जरूर’, कविता संग्रह-कसक’ प्रकाशित)

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