दिल्ली जन्नूहू, हेर्या जन

लच्छू की रईसी के किस्से

  • कमलेश चंद्र जोशी

बात तब की है जब दूर दराज गॉंव के लोगों के लिए दिल्ली सिर्फ एक सपनों का शहर हुआ करता था. उत्तराखंड के लगभग हर पहाड़ी परिवार का एक बच्चा फौज में होता ही था बाकी जो भर्ती में रिजेक्ट हो जाते वो या तो आवारा घूमते बीड़ी फूंकते नजर आते या फिर दिल्ली जाने की जुगत लगाते. उस समय में गॉंव के इक्का—दुक्का लड़के ही दिल्ली में नौकरी करते थे जिस वजह से गॉंव में उनकी पूछ और आव-भगत खूब होती थी. अलबत्ता पूरे गॉंव में मालूम किसी को नहीं होता था कि असल में लड़के दिल्ली में करते क्या हैं लेकिन बातें कहोगे तो ऐसी कि गॉंव के नाकारा निकम्मे लड़कों को मिसाल के तौर पर इन्हीं दिल्ली वाले लड़कों के उदाहरण दिये जाते थे. ईजा-बाज्यू तो बात-बात में कई बार कह देते थे “तुमर चेल त कति समझदार भै हो, टाइम में दिल्ली नौकरी में लाग गौ. एक हमर लाट छ दिन भर फेरिने में भै बस” (तुम्हारा बेटा तो कितना समझदार है, टाइम से दिल्ली नौकरी में लग गया. एक हमारा गधा है दिन भर भटकने में ही हुआ बस).

“भैरव, लच्छू क बाज्यू त्वे भेटनन आ रयान ला” (भैरव, लच्छू के पापा तेरे से मिलने आए हैं रे). भैरव दिल्ली से आया था तो इतनी आसानी से बाहर तो उसने क्या ही आना था. लगभग 20-25 मिनट के बाद वो बाहर आया और चचा प्रणाम बोलते हुए लच्छू के बाज्यू के हाल-चाल जानने लगा.  

गॉंव में ऐसा ही एक लड़का हुआ लच्छू जो दस में फेल होने के बाद फौज की भर्ती के काबिल भी न रह पाने की शर्म की वजह से भागकर दिल्ली चला गया. घर वाले खोजबीन में ज्यादा परेशान न हो इसलिए लच्छू एक कागज में लिख गया “दिल्ली जन्नूहू, हेर्या जन” मतलब “दिल्ली जा रहा हूँ, ढूँढना मत.” लाजमी है 16-17 साल के लड़के का भागकर एक अनजान शहर चले जाना बहुत परेशान करने वाली बात थी लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में खोजबीन के लिए जाएगा भी कौन ये सोचकर घरवाले इस उम्मीद में शांत रहे कि शहर में अधिक दिक्कत होगी तो लौटकर वापस घर आ ही जाएगा.

सांकेतिक तस्वीर

लगभग तीन साल तक लच्छू घर नहीं आया. आमा-बूबू लगभग हर दिन अपने पोते की याद में ऑंसू बहाते. वहीं ईजा-बाज्यू भी इसी उम्मीद में ऑंसू पोंछते अपने दिन काट रहे होते कि लच्छू एक दिन लौटकर जरूर आएगा. इसी बीच पड़ोसी गॉंव का एक लड़का भैरव दिल्ली से घर आया. लच्छू की खोज खबर जानने के लिए लच्छू के बाज्यू भैरव के घर गए. भैरव की ईजा ने आवाज लगाई-“भैरव, लच्छू क बाज्यू त्वे भेटनन आ रयान ला” (भैरव, लच्छू के पापा तेरे से मिलने आए हैं रे). भैरव दिल्ली से आया था तो इतनी आसानी से बाहर तो उसने क्या ही आना था. लगभग 20-25 मिनट के बाद वो बाहर आया और चचा प्रणाम बोलते हुए लच्छू के बाज्यू के हाल-चाल जानने लगा. “हाल-चाल त ठीके छन यार भैरव लेकिन चिंता लच्छू की छ सब्बू कै घर में” (हाल-चाल तो ठीक ही हैं यार भैरव लेकिन घर में चिंता सब को लच्छू की ही है)-लच्छू के बाज्यू बोले.

आप टेंशन मत लो. जल्दी ही वो घर भी आने वाला है. इतना सुनते ही लच्छू के बाज्यू ने आव देखा न ताव उछलते हुए घर की तरफ दौड़ लगा दी. घर में सब लच्छू की कुशल मंगल सुनकर खुशी के मारे नाचने लगे.

अरे चचा डॉन्ट टेक टेंशन, लच्छू इज आलराइट-भैरव अपना विलायतीपन दिखाते हुए बोला. पूरे वाक्य में लच्छू के बाज्यू को बस टेंशन शब्द समझ में आया और वो बोले-हॉं यार टेंशन ही तो ठैरी इसीलिए तो सब परेशान हुए घर में. तूने लच्छू को दिल्ली में कहीं देखा क्या? हॉं चचा यही तो कह रहा हूँ मैं लच्छू से एक बार मिला था वो बिल्कुल ठीक है, आप टेंशन मत लो. जल्दी ही वो घर भी आने वाला है. इतना सुनते ही लच्छू के बाज्यू ने आव देखा न ताव उछलते हुए घर की तरफ दौड़ लगा दी. घर में सब लच्छू की कुशल मंगल सुनकर खुशी के मारे नाचने लगे. अब सबको बस उस दिन का इंतजार था जब लच्छू लौटकर घर आ जाए.

एक दिन अचानक शाम के समय कच्ची सड़क पर धूल उड़ाती हुई एक सफेद गाड़ी तेजी से गॉंव की तरफ आती दिखी. गाड़ी सीधा लच्छू के घर पर जाकर रूकी और गाड़ी के अंदर से जीन्स और शर्ट पहना एक लड़का उतरा. वो लड़का और कोई नहीं लच्छू ही था. आमा-बूबू और ईजा-बाज्यू लच्छू को देखकर रोने लगे. सबने मिलकर लच्छू को बहुत लाड़ प्यार दिया. गॉंव में चार पहिये की गाड़ी पहली बार आई थी इसलिए लच्छू के आँगन में पूरे गॉंव का जमावड़ा लग गया. बच्चे उस अंबेसडर कार को उचक-उचक कर देखने लगे. लच्छू का पहनावा और गाड़ी देखकर लोगों को लगा लच्छू बहुत पैसे वाला आदमी हो गया है. अगले कुछ दिन तक गॉंव में लच्छू की ही चर्चा रही.

ध्रुमपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. सांकेतिक तस्वीर.

लच्छू घर से भागने के बाद पहली बार गॉंव आया था तो अपनी उस छवि को बरकरार रखना चाहता था जो पिछले कुछ दिनों में गॉंव वालों के दिमाग में बन गई थी. वैसे तो लच्छू दिल्ली में ड्राइवरी करने वाला हुआ लेकिन बचपन से ही फेंका-फॉंकी में तेज होने की वजह से लोगों के पूछने पर वह कहता कि एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर हूँ और अंबेसडर भी कंपनी ने ही मुझे दी है. जिस दिन मैं रिटायर हो जाऊँगा उस दिन ये गाड़ी भी मेरे ही नाम हो जाएगी. वह लगभग 20 दिन की छुट्टी लेकर गॉंव आया था. टाइम पास के लिए वो गॉंव के खलिहर लड़को को अपने पास बैठाता और खूब लंबी-लंबी फेंकता. गॉंव के जो लड़के कभी बीड़ी से आगे नहीं बढ़ पाए थे लच्छू उनके सामने हर दिन सिगरेट का धुँआ छोड़ता. कोई दिल्ली शहर के बारे में पूछता तो लच्छू अपनी टूटी—फूटी अंग्रेजी झाड़ते हुए कहता-यू नो दिल्ली इज वैरी बिग. तुम विेलेजर तो वहॉं खो जाओगे. सर्वाइवल टफ है वहॉं.

गॉंव के लड़के सुबह से शाम तक लच्छू के आसपास ही मंडराते रहते. कुछ तो हमेशा इसी जुगत में लगे रहते कि बस एक बार लच्छू उन्हें सफेद गाड़ी में घुमा दे. लेकिन असलियत तो लच्छू ही जानता था कि अंबेसडर में गॉंव के लड़कों को घुमाना उसकी जेब पर कितना भारी पड़ सकता था.

कोई लच्छू के कपड़ों के बारे में पूछता तो वह कहता मैं सिर्फ ब्रांडेड कपड़े पहनता हूँ. जींस तीन हजार से कम की नहीं पहनता मैं और शर्ट लगभग ढेड़ दो हजार की. जिस फ्लैट में रहता हूँ उसका किराया ही 7-8 हजार है ऊपर से बिजली पानी का बिल अलग. लड़के उसकी रईसी के क़िस्से सुन कहते-लच्छू दा अगली बार आओगे तो हमारे लिए क्या लाओगे? कंजूसी में नंबर एक लच्छू लड़कों के सामने हवा बनाने के लिए कहता तुम सब अपने-अपने सामान की लिस्ट बना के दे दो अगली बार तुम सबके लिए कुछ न कुछ जरूर लेकर आऊँगा. गॉंव के लड़के सुबह से शाम तक लच्छू के आसपास ही मंडराते रहते. कुछ तो हमेशा इसी जुगत में लगे रहते कि बस एक बार लच्छू उन्हें सफेद गाड़ी में घुमा दे. लेकिन असलियत तो लच्छू ही जानता था कि अंबेसडर में गॉंव के लड़कों को घुमाना उसकी जेब पर कितना भारी पड़ सकता था. हर बार लड़कों को वो बस यही कह कर टरका देता कि इस बार नहीं अगली बार तुम्हें दूसरे गॉंव तक गाड़ी में जरूर ले जाऊँगा.

सांकेतिक तस्वीर.

जब तक पैसे थे लच्छू ने गॉंव के लौंडों के सामने खूब रईसी का प्रदर्शन किया. लेकिन अब जेब खाली होने लगी थी और सिगरेट से बीड़ी में आने की नौबत आने लगी थी. गॉंव के लौंडों को बीड़ी पीता देख लच्छू कहता-क्या ये बीड़ी पीते रहते हो यू पूअर पीपल. दिखाओ जरा मैं भी देखूँ इस बीड़ी में ऐसा भी क्या है. दो कस लेने के बाद वो बोला-हाउ डिसजस्टिंग (डिसगस्टिंग). कितनी बुरी है ये. मत पिया करो इस घटिया चीज को और इतना कहकर बीड़ी का बंडल अपनी जेब में रखकर वहॉं से चला गया. गॉंव के लौंडों को लगता लच्छू कितना अमीर हो गया है और अंग्रेजी भी बोलता है. कुछ लौंडों ने सोच लिया कि वो इस बार लच्छू की खाली गाड़ी में दिल्ली तक का सफर तय कर के ही रहेंगे.

लच्छू ने अंग्रेजी के चार-पॉंच कठिन शब्द रट रखे थे. वह बोला-अच्छा बेटा, चल तू नॉलेज (Knowledge) की स्पेलिंग बता दे, तुझे दिल्ली मैं खुद ले के जाऊँगा. लड़कों को एबीसीडी तो पूरी आती नहीं थी नॉलेज की स्पेलिंग कहॉं से आनी थी.

अगले दिन जैसे ही लच्छू गॉंव के लौंडों की टोली के बीच पहुँचा एक लड़का झट से बोल पड़ा लच्छू दा हमें भी दिल्ली ले चलो. हम भी कुछ काम धाम कर के आपकी तरह बड़े आदमी बनना चाहते हैं. लच्छू ने मन ही मन सोचा-मैं कितना बड़ा आदमी हूँ ये तो मैं ही जानता हूँ और अगर इनमें से एक भी दिल्ली पहुँच गया तो बनी बनाई इज्जत का फालूदा हो जाएगा और अगर इन्हें सच्चाई पता लगी तो पूरे गॉंव में बदनामी होगी सो अलग. इसलिए लौंडों को डराते हुए लच्छू ने कहा हलुआ है क्या दिल्ली जाना? इट्स नॉट ईजी. अंग्रेजी आती है तुम में से किसी को? एक लड़का बोला सीख लेंगे. लच्छू ने अंग्रेजी के चार-पॉंच कठिन शब्द रट रखे थे. वह बोला-अच्छा बेटा, चल तू नॉलेज (Knowledge) की स्पेलिंग बता दे, तुझे दिल्ली मैं खुद ले के जाऊँगा. लड़कों को एबीसीडी तो पूरी आती नहीं थी नॉलेज की स्पेलिंग कहॉं से आनी थी. लच्छू फिर बोला-चलो तुम में से जो चॉक (Chalk) की स्पेलिंग बता देगा उसे दिल्ली ले जाऊँगा. अपना अंग्रेजी में डब्बा गुल देख लौंडे निराश हो गए. अब तक लच्छू लौंडों को एहसास करा चुका था कि दिल्ली जाना उनके बस की बात नहीं है.

पूरा गॉंव लच्छू की विदाई के लिए खड़ा था और तब तक उसकी अंबेसडर को टकटकी लगाए देखता रहा जब तक कि वो आँखों से ओझल नहीं हो गई. अब बस गॉंव था, गॉंव के आवार लौंडे थे, लच्छू की रईसी के किस्से थे और मॉं-बाप के चेहरे पर लच्छू के सही सलामत लौटने का शुकून था.

लच्छू की वापसी का दिन आ गया था. गॉंव के लौंडों ने अपने-अपने सामान की लिस्ट लच्छू को इस उम्मीद में पकड़ा दी थी कि अगली बार जब लच्छू वापस गॉंव आएगा तो उन सबके लिए गिफ्ट के तौर पर सामान जरूर लेकर आएगा. पूरा गॉंव लच्छू की विदाई के लिए खड़ा था और तब तक उसकी अंबेसडर को टकटकी लगाए देखता रहा जब तक कि वो आँखों से ओझल नहीं हो गई. अब बस गॉंव था, गॉंव के आवार लौंडे थे, लच्छू की रईसी के किस्से थे और मॉं-बाप के चेहरे पर लच्छू के सही सलामत लौटने का शुकून था.

(लेखक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं)

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