उत्तराखंड: मठ-मंदिरों के प्रति मैं श्रद्धा से नतमस्तक हो गई

जाख देवता (गुप्तकाशी) जाखधार देवशाल

सुनीता भट्ट पैन्यूली

यात्राओं का एक नैतिक व सकारात्मक कर्म यह भी होना चाहिए कि जहां-जहां हम जाते हैं, रहगुज़र जिस पर भी हमारी दृष्टि पड़ती है उसके बारे में कौतुहल, जिज्ञासा  इतनी विकराल होनी चाहिए कि हम उस वैशिष्ट्य और वैविध्य को दूसरों के संज्ञान में भी ला सकें. यदि हम पौराणिक और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर हैं तो यात्रायें निश्चित ही अपनी  परंपराओं और अपने सांस्कृतिक गौरव को बल देने के उद्देश्य से भी प्रेरित होनी चाहिए. अभी हाल ही में गुप्तकाशी जाना हुआ. गुप्तकाशी अपने आप में ही एक पौराणिक और सांस्कृतिक वैभव की नगरी है.

केदारघाटी के जाख देवता जिन्हें यहां के स्थानीय निवासी यक्ष के रूप में पूजते हैं,अपने रहस्यमयी और चमत्कारिक अवतरण के लिए देश-विदेश में भी प्रख्यात हैं. कहा जाता है कि जाख देवता अपने पशवा पर अवतरित होकर जलते अंगारों पर नृत्य करता है और आश्चर्यजनक यह कि उसका बाल-बांका भी नहीं होता है. 

गुप्तकाशी के बारे में कहा जाता है महाभारत के युद्ध के बाद पांडव शिव के दर्शन करना चाहते थे किंतु गोत्र हत्या के कारण शिवजी पांडवों से नहीं मिलना चाहते थे इसलिए वह  गुप्तकाशी में छिप गये. गुप्त का अर्थ छुपा हुआ होता है. संभवतः इसलिए गुप्तकाशी का यह नाम पड़ा होगा. मंदाकिनी नदी के तट पर बसा हुआ गुप्तकाशी प्राकृतिक और पौराणिक सौंदर्य की अद्भुत पराकाष्ठा है. नदी के पार दूसरी ओर उतना ही रमणीय ऊखीमठ है जो कि अपने पौराणिक इतिहास के लिए उतना ही प्रसिद्ध है जितना कि गुप्तकाशी.  देवर गांव देखने के बाद हम दूसरे दिन शाम की सैर करते हुए यहां के प्रसिद्ध जाख देवता के दर्शन हेतु देवशाली गांव के जाखधार गये.

 जाख देवता का मंदिर ग्यारहवीं सदी में बनाया गया था. केदारघाटी के जाख देवता जिन्हें यहां के स्थानीय निवासी यक्ष के रूप में पूजते हैं,अपने रहस्यमयी और चमत्कारिक अवतरण के लिए देश-विदेश में भी प्रख्यात हैं. कहा जाता है कि जाख देवता अपने पशवा (जिस मनुष्य पर देवता होते हैं) पर अवतरित होकर जलते अंगारों पर नृत्य करता है और आश्चर्यजनक यह कि उसका बाल-बांका भी नहीं होता है. जाख मंदिर की स्थापना से संबंधित बहुत सी किंवदंती हैं.

पहली यह कि जब पांच पांडव केदारनाथ की ओर जा रहे थे तो यहां जाख में उन्होंने विश्राम किया था. प्यास लगने पर जलाशय से पानी पीने से पहले  यक्ष ने पांडवों से प्रश्न पूछे,उत्तर न देने पर सभी पांडव बेहोश होकर गिर पड़े. युधिष्ठिर के सही उत्तर देने पर सभी पांडव होश में आये.कहते हैं पशवा को जलते हुए अंगारे पर नाचते हुए पानी से भरा हुआ जलाशय ही दिखाई देता है.

दूसरी जन प्रचलित श्रुति यह है कि कुछ पालसी अपनी भेड़ों को उर्गम घाटी की ओर ले जा रहे थे.रास्ते में उन्हें एक लिंगाकार पत्थर मिला.जिसे उन्होंने सोचा कि यह पत्थर उनकी ऊन साफ करने में काम आयेगा. उस पत्थर को उन्होंने रिंगाल की टोकरी में डाल दिया.टोकरी भारी हो गयी.रात को भगवान जाख उनके सपने में आये, कहा मैं जाख देवता हूं. जहां टोकरी की रस्सी टूटकर गिर जायेगी. मुझे वहीं स्थापित कर देना.पालसियों ने जहां टोकरी की रस्सी टूटी वहीं लिंग स्थापित कर दिया.

देवशाली गांव के जाख मंदिर में बैसाख मास की संक्रांति चौदह और पंद्रह अप्रैल को दो दिन का जाख मेला लगता है. मंदिर के रख-रखाव के लिए चौदह गांवों के सामुहिक प्रयास से इस मेले का आयोजन संपन्न होता है.

कहा जाता है कि दो दिन पहले ही देवशाल, नारायण कोटि और कोठेडा तीनों गांवों की संगोष्ठी के उपरांत विधिवत, वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हवन करने हेतु लकड़ी और प्रसाद सामग्री एकत्रित की जाती है.

गांव के हर घर से एक आदमी नंगे पांव चलकर जंगल से लकड़ी काटकर लाता है और मंदिर के परिसर में लगभग दस से तेरह फीट का अग्नि कुंड तैयार किया जाता है.जिसे मूंडी भी कहते हैं. देवशाल गांव स्थित मां विध्यावासिनी के मंदिर से भगवान जाख की मूर्ति रिंगाल की टोकरी से सुजज्जित जाख मंदिर लायी जाती है. परंपरानुसार जाख देवता अपने पशवा पर अवतरित होकर गंगा स्नान करके पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ जाख मंदिर पहुंचते हैं. सांध्यकाल में सभी अनुष्ठान और विधि-विधान के पश्चात अग्निकुंड में अग्नि प्रज्वलित की जाती है. रात भर गांव की स्त्रियां भजन-कीर्तन करती हैं. चार-पहर  पूजा-अर्चना के बाद यक्ष देवता के पशवा पर यक्ष आने के उपरांत  वह गर्म अंगारों पर नृत्य करता है और उसका बाल-भी बांका नहीं होता है. जाख के इस नृत्य और ईश्वर के इस चमत्कार को देखने के लिए देश-विदेश से आये  लोगों की भीड़ गवाह बनती है.यहां के लोगों की मान्यता है कि जाख देवता बाढ़ और सूखे से केदारघाटी के लोगों की रक्षा भी करते हैं.

यूं ही नहीं कहा जाता है उत्तराखंड को पौराणिक मान्यताओं, आस्थाओं और धार्मिक चमत्कारों का प्रदेश.आस्था और धार्मिक सद्भावना निश्चछल रचती-बसती है यहां.जाख मेला और जाख देवता के अंगारों पर नृत्य करने जैसे धार्मिक चमत्कार के बारे में  पहले ही सुना था किंतु साक्षात जाखधार जाकर देवशाली के जाखदेवता और मंदिर की पौराणिक मान्यता को स्थानीय लोगों से जानने के बाद उत्तराखंड के मठ-मंदिरों के प्रति मैं श्रद्धा से नतमस्तक हो गयी.

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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