Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
निर्णय

निर्णय

किस्से-कहानियां
लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी रात को खाना खात हुऐ जब बेटी because अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो... अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.” फोन क्यों...? मम्मी पापा so दोनों साथ ही बोल पड़े... “मैंने अपने लिये लड़का पसंद कर लिया है, because आप लोग भी 'सोहम' को शायद अच्छी तरह से जानते है”. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से because भास्कर बेहद चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही. फोन पति पत्नी हैरान, “इतना बड़ा निर्णय” becauseहम बेखबर हैं! बम ही फट पड़ा हो जैसे, पर बेटा मन्द- मन्द मुस्कुरा रहा था, शायद वो बहन का राजदार हो. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से भास्कर बेहद because चिन्तित...
चुनाव के बहाने वजूद तलाशते प्रवासी पहाड़ी!

चुनाव के बहाने वजूद तलाशते प्रवासी पहाड़ी!

समसामयिक
शशि मोहन रावत ‘रवांल्‍टा’ आज लॉक डाउन के लगभग सात माह बाद अपने पुराने साथी से मुलाकात हुई. रात साढ़े ग्यारह बजे चाय पी गई और उसके बाद वो दूसरे रूम में सोने चला गया, क्योंकि सात माह से गांव में रहने के कारण जल्दी सोना उसकी आदत में शुमार हो गया है. मैं चाय पी लेता हूं तो नींद तकरीबन 1 घंटे बाद ही आती है. 12 बजे करीब बिस्तरbecause पर लेटा ही था कि— मेरे फोन की घंटी बजी. मैं चौंका. इतनी रात किसका फोन आया होगा? अचानक से दिमाग में कई तरह के ख्याल आने लगे. चूंकि नंबर नया था इसलिए और समय भी अधिक हो चुका था तो फोन उठाना भी जरूरी समझा. फोन फोन उठाते ही— हैलो, कौन? हां भाई प्रवासी क्या हाल हैं? अनयास ही मुंह के निकाला, तू बता भाई because घरवासी. अबे... तू इतनी रात को कैसे फोन कर रहा है ? और वो भी नए नंबर से? फोन बोला, फेसबुक पर तेरी because पोस्ट देखी तो समझ गया कि तू अभी सोया नहीं होगा....
रिस्पना की खोज में एक यायावर…

रिस्पना की खोज में एक यायावर…

संस्मरण
नदियों से जुड़ाव का सफर वर्ष 1993 में रिस्पना नदी से आरम्भ हुआ तो फिर आजीवन बना रहा. DBS  कॉलेज से स्नातक और बाद में DAV परास्नातक, पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान भी रिस्पना पर शोध कार्य जारी रहा. हिमालय की चोटियों से निकलने वाली छोटी-बड़ी जलधाराएँ- धारा के विपरीत बहने की उर्जा ने मुझे देहरादून की नदियों और जलधाराओं के अध्ययन के लिए वर्ष 1996-1997 से ही प्रेरित किया. जलान्दोलन के तहत पूरे उत्तराखंड में पनचक्कियों के संरक्षण, जलधाराओं को प्रदुषण मुक्त रखने- पहाड़ के हर गाँव में सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने को लेकर- जलान्दोलन के तहत- पदम् भूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी जी के नेतृत्व में गंगोत्री से दिल्ली पदयात्रा का समन्वयन किया. पहाड़ के प्राकृतिक जल संसाधनों और जंगल और जमीन के मुद्दे पर सदैव सक्रिय रहे. शराब विरोधी आन्दोलन की वजह से मुकद्दमे झेले और जेल भी जाना पड़ा. आज भी जनपद चमोली, देहरादून, बागेश्...
पहाड़ की बेटी ने कायम की आत्‍मनिर्भरता की मिसाल!

पहाड़ की बेटी ने कायम की आत्‍मनिर्भरता की मिसाल!

इंटरव्‍यू
तय किया नौकरी से लेकर सीइओ तक का सफर  आशिता डोभाल उत्तराखंड देवभूमि हमेशा से ही वीर यौद्धाओं Because और वीरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. सदियों से यह कर्मयोगियों को तपस्थली रही है, जिसका क्रम आज भी जारी है. आज मैं आपका परिचय एक ऐसी शख्सियत से करवा रही हूं, जिनका अपनी जड़ों व संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव लगाव है, जिनके मुंह से सबसे पहला वाक्य ये था कि 'जड़ें बुलाती हैं' जिसने मुझे अन्दर से झकजोर दिया. उत्तराखंड हम उत्तराखंडी संस्कृति सम्पन्न तो हैं ही पर पहाड़ के परिवेश में एक बात कहना चाहूंगी कि पहाड़ों में हर दस किमी पर बोली-भाषा और पानी का स्वाद एकदम बदला हुआ मिलेगा. Because पहाड़ जहां एक ओर पलायन की मार से जूझ रहा है, यहां का युवावर्ग यहां से पलायन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी है को महानगरों की जीवनशैली में पले बढ़े और अच्छी खासी नौकरी को दर किनार क...
अर्थ और सौंदर्य से ही स्‍त्री जीवन में आता है नयापन!

अर्थ और सौंदर्य से ही स्‍त्री जीवन में आता है नयापन!

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा भाग-1 सुनीता भट्ट पैन्यूली वर्तमान की मंजूषा में सहेजकर रखी गयी स्मृतियां अगर उघाड़ी जायें तो वे पुनरावृत्ति हैं उन अनुभवों को but तराशने हेतु जो तुर्श भी हो सकती हैं, मीठी भी या फिर दोनों… यक़ीनन कुछ न कुछ because हासिल हो ही जाता है इन स्मृतियों के सफ़र के दौरान कुछ खोने के बावजूद भी, चाहे उस यात्रा का हासिल आत्मविश्वासी बनना हो, निर्भीक हो जाना हो या स्वयं के अस्तित्व को खोजना हो या फिर लौह हो जाना हो वक्त के हथौड़े से चोट खाकर. प्रेम स्त्री जीवन में कुछ अर्थ और सौंदर्य हों so तभी उसके जीवन में एक उत्साह और नयापन बना रहता है. सौंदर्य से अभिप्राय आत्ममुग्धता या भौतिकवादिता नहीं वरन कुछ उसके मन का गुप-चुप कुलांचे मारता रूहानी संगीत है जिसकी धुन व लय पर उसके पैर थिरकें या एक नीला विस्तीर्ण नीरभ्र आकाश जिस पर वह सिर्फ़  अपने अन्वेषण और हुनर की कूं...
जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

साहित्‍य-संस्कृति
देश ही नहीं विदेशों में भी धमाल मचा रही है रंगीली पिछौड़ी... आशिता डोभाल उत्तराखंड में दोनों मंडल गढ़वाल so और कुमाऊं अपनी—अपनी संस्कृति के लिए जाने जाते हैं. हम जब बात करते हैं अपने पारंपरिक परिधानों की तो हर जिले और हर विकासखंड का या यूं कहें कि हर एक क्षेत्र में थोड़ा भिन्नता मिलेगी पर कहीं न कहीं कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो एक समान होती हैं. जैसे— कुमाऊं की 'रंगीली पिछौड़ी' है, जो पूरे कुमाऊं मंडल का एक विशेष तरह का परिधान है, अंगवस्त्र है, इज्जत है और इसे पवित्र परिधान की संज्ञा Because भी दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस परिधान का इतिहास बेहद रूचिपूर्ण है. राजे—रजवाड़े और सम्पन्न घरानों से पैदा हुआ ये परिधान स्वयं घरों में तैयार किया जाता था, बल्कि मंजू जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुमाऊं की रानी 'जियारानी' से इसका इतिहास जुड़ा हुआ बताती हैं. परिधान एक दिन जैसे...
जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी समूचे देश में शारदीय नवरात्र का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. दुर्गा सप्तशती में इसे वार्षिक देवी पूजा की संज्ञा दी गई है.उत्तराखंड के द्वाराहाट क्षेत्र में जालली के निकट स्थित so जोयूं ग्राम आदिकालीन मातृ उपासकों का एक ऐसा ग्राम है,जहां आज भी शारदीय नवरात्र में प्रतिवर्ष मां जगदम्बा की सामूहिक रूप से अखंड जोत जलती है और अष्टमी एवं दशमी की वार्षिक पूजा का पर्व विशेष रूप से मनाने की परंपरा भी रही है. पलायन हालांकि यह ग्राम भी पलायन के अभिशाप के कारण उत्तराखंड के अन्य ग्रामों की भांति बदहाली के दौर से गुजर रहा है.  पिछले तीन चार सालों में सड़क चौड़ीकरण के दौरान पीडब्‍ल्‍यूडी so विभाग ने जोयूं मार्ग में पड़ने वाले वन वृक्षों को नष्ट कर दिया है और गांव में जाने के लिए पुश्तैनी मार्ग भी बेरहमी से तोड़ दिए हैं. ग्रामसभा की उपेक्षा के कारण नागरिक सुविधाओं का यहां सर्वथा...
हीर की फुलकारी…

हीर की फुलकारी…

ट्रैवलॉग
‘फुलकारी पुलाव’ पंजाब की लुप्‍त होती जा रही एक रेसीपी है… मंजू दिल से… भाग-3 मंजू काला सोहने फुल्लां विच्चों फुल गुलाब नी सखि सोहणे देशां विच्चों देश पंजाब नी सखियों बगदी रावी ते झेलम चनाय नी सखियों देंदा भुख्या ने रोटी पंजाब दी सखियों... पंजाब यानी जिसके ह्रदय स्थल पर पांच नदियां- झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज, व्यास नामक जलधाराऐं अठखेलियां करती हैं. इस प्रदेश के बारे में दावा किया जाता है कि यही वो धरती है because जहाँ वोल्गा से विहार करती हुई आर्य सभ्यता ने सिंधु नदी के तट को अपना आशियाना बनाया. प्यारे पंजाब की माटी का परिचय उसकी जीवन को स्फूर्ति और गति देने वाली सभ्यता में छिपा है. सरिताओं के स्वच्छ जल से सिंचित लहलहाते अन्न की बालियों से हरे-भरे खेत, गिद्दा और भांगड़ा so की ताल पर थिरकते “मुटियार” और लहलहाती फसलें, दूध और दही की नदियों के साथ फिजाओं में तैरती “बुल्ले शाह...
यतो धर्मस्ततो  जय: 

यतो धर्मस्ततो  जय: 

लोक पर्व-त्योहार
विजया दशमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय लोक-जीवन में गहरे पैठे हुए हैं और उनकी कथा आश्चर्यजनक रूप से हजारों वर्षों से विभिन्न रूपों में आम जनों के सामने न केवल आदर्श प्रस्तुत करती so रही है बल्कि उसे जीवन के संघर्षों के बीच खड़े रहने के लिए सम्बल भी देती आ रही है. विजयादशमी की तिथि श्री राम की कथा का एक चरम बिंदु है जब वे आततायी रावण से धरती को मुक्त करते हैं और ऐसे राम राज्य की स्थापना करते हैं so जिसमें जन जीवन संतुष्ट और प्रसन्न है. उसे दैहिक, दैविक या भौतिक किसी तरह  का ताप  नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वराज के रूप में राम राज्य की कल्पना की थी . पर इस कल्पना को साकार करने के मार्ग में हम अभी भी बहुत दूर खड़े हैं. राम श्रीराम की कथा आज भी अत्यंत so लोकप्रिय है. अब दशहरा के पूर्व धूम धाम से दुर्गा पूजा का उत्सव भी जुड़ गया है. द...
दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली एक बेहद ख़ूबसूरत, मासूम-सी कविता जहां मुन्नी गुप्ता के कविता संग्रह “कविता पर मुकदमा” का संपूर्ण सार छुपा हुआ है आप सभी  पाठक भी पढिय़े न..! अपने फैसले के साथ जीना चांद होना है गर तुम जी सको चांद बनकर तो सारा आकाश तुम्हारा है… आकाश “कविता पर मुकदमा” संग्रह  सामान्य दैनिक जीवन की ऊहापोह और संघर्ष की अनूभूतियों का संग्रह ही नहीं हैं अपितु धुंआ निकालती, दमखम से भरी हुई, सुलगती कविताओं का झुंड है’,so जिनकी आंच की ज़द में आकर शायद समाज में कहीं बदलाव की किरण महसूस की जा सके या नये जाग्रत समाज का उन्नयन हो. उपरोक्त वर्णित कविता संदेश दे रही है कि अपने फैसलों और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही ओजस्वी और  सफल होना है अथार्त किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए निर्भीक चरित्र और  जीवन मुल्य के सिद्धांतो पर अडिगता अपरिहार्य है. यदि आप डटे रहते हैं अपने जीवन के सिद्धांत...