दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

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  • सुनीता भट्ट पैन्यूली

एक बेहद ख़ूबसूरत, मासूम-सी कविता जहां मुन्नी गुप्ता के कविता संग्रह “कविता पर मुकदमा” का संपूर्ण सार छुपा हुआ है आप सभी  पाठक भी पढिय़े न..!

अपने फैसले के साथ जीना
चांद होना है
गर तुम जी सको
चांद बनकर
तो
सारा आकाश तुम्हारा है…

आकाश

“कविता पर मुकदमा” संग्रह  सामान्य दैनिक जीवन की ऊहापोह और संघर्ष की अनूभूतियों का संग्रह ही नहीं हैं अपितु धुंआ निकालती, दमखम से भरी हुई, सुलगती कविताओं का झुंड है’,so जिनकी आंच की ज़द में आकर शायद समाज में कहीं बदलाव की किरण महसूस की जा सके या नये जाग्रत समाज का उन्नयन हो. उपरोक्त वर्णित कविता संदेश दे रही है कि अपने फैसलों और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही ओजस्वी और  सफल होना है अथार्त किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए निर्भीक चरित्र और  जीवन मुल्य के सिद्धांतो पर अडिगता अपरिहार्य है. यदि आप डटे रहते हैं अपने जीवन के सिद्धांतों और उसूलों पर तो सारा आकाश तुम्हारा है.

आकाश

उक्‍त कविता संग्रह में मुन्नी गुप्ता द्वारा लिखित 54 कविताओं का संग्रह है. “कविता पर मुकद्दमा” अथार्त नदी#मिथक#इतिहास#वर्तमान so की चुप्पी पर आधारित कविताओं का रोचक संग्रह है, जहां कवयित्री की निर्भीक, प्रखर और विदग्ध आवाज़ वर्तमान समाज और इतिहास से आह्वान करती करारा प्रहार करती हुई प्रतीत होती है. बौद्धिक समाज, उसकी सड़ी-गली, लिजलिजी व्यवस्था, दुरभिसंधि, और गुटबाजी पर.

आकाश

कविताएं जो हम आज सृजित कर रहे हैं, वह नींव हैं भविष्य के ओजस व स्वस्थ निर्माण कि जो निश्चित रूप से दस्तावेज़ होंगी भविष्य के पुस्तकालय में या किसी अभिलेखागार में या फिर हमारी डायरियों में, so तो क्यों न ऐसी कविताएं गढ़ी जायें, जिनमें जज़्बा हो अपने समय और इतिहास के तहखाने में दफ़न हुई संत्रास, संताप, त्रासदी, अवज्ञा, अत्याचार, दुरभिसंधि, एकाधिकार की भावना से मुखर होने का. उनका परिचय जनमानस से कराने का या ऐसा कुछ लिखा जाये जिसे जनमानस में चेतना  व जाग्रति का प्रसार हो इन्हीं विशेषताओं का पुट मुझे मुन्नी जी की कविताओं को पढ़कर महसूस हुआ.

आकाश

प्रेम में पड़ी हुई कविताओं के सौंदर्य को बहुत अंतरंगता से जिया है मैंने किंतु “कविता पर मुकदमा” अलहदा अनुभूति है साहित्यिक पायदान पर जो विदग्ध हैं, जिनमें वर्जनाओं का द्वंद व so उबाल है जिनके अभ्यंतर  समकालीन बद्धमूल  व्यवस्था, योजनाओं, परियोजनाओं और बुद्धिजीवियों के किसी निषेध व आपत्तिजनक व्यवहार और नियोजन पर किसी विशेष क्षेत्र  के एकाधिकार में  साधी हुई चुप्पी और उन पर अपनी कविताओं में मुन्नी जी की बेलौस प्रतिक्रिया हम पाठकों को भी प्रेरित करती हैं किसी बेलगाम व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए.

कविता संग्रह में विशेषकर दामोदर-बंगाल का अभिशाप, संजय और विद्याधर पर केंद्रित कविताओं का संकलन है जिसमें कवयित्री ने आरंभ में ही चेता दिया है कि यह वह इतिहास नहीं जो so समुद्र में मिलने से पहले हुगली में मिल गया वह इतिहास से वर्तमान तक आज भी  बंगाल का अभिशाप है कुछ सहायक हैं इस परियोजना के -संजय और विद्याधर

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आकाश

यहां कवयित्री द्वारा दामोदर नदी के प्रलयकारी विध्वंश और उसे रोकने और नियंत्रित करने हेतु दामोदर नदी के निर्माण और वर्तमान में दामोदर नदी के अस्तित्व को बचाने की कवायद है so और साथ ही दामोदर नदी के उदर में बैठी हुई मंझियारिन बुद्धिया के जीवन की त्रासदी,संत्रास के पक्ष को खंगालने के प्रयास के माध्यम से एक स्त्री की पीड़ा उसके उसके अस्तित्व के हनन के स्याह पक्ष को सामाजिक पटल पर रोशनी देने का भी प्रयास प्रतीत होता है.

आकाश

यहां दामोदर नदी के माध्यम से संभवतः so कवयित्री ने उड़ीसा से बंगाल होती हुई नदी के पड़ावों पर अवस्थित इतिहास और उन मिथक घटना की ओर इंगित किया है, जो कवयित्री की रचनाओं में अदृश्य पैठ बनाकर हम पाठकों को बहुत कुछ जो अनसुलझा है, उसे खोलने का प्रयास है.

सुनो! विद्दाधर, तुम ब्रहम नहीं…

यहां एक पेचीदगी, एक भ्रम जैसा पैदा हो रहा है so और मैंने महसूस किया यह कविता संभवतः इतिहास के सवाई जयनगर को बसाने वाला विद्याधर  नहीं न ही दामोदर कृष्ण है बल्कि यह बंगाल के अभिशाप दामोदर और उसके पेट में मिली हुई नालों और उपनालों के नदी में मिली हुई और इतिहास के संजय की चौसर पर बिसात बिछाये लामबंद बुद्धिजीवियों की मिलीजुली भगत पर कविताओं का कटाक्ष है.

आकाश

यहां शिक्षण संस्थानों और विधा के सागर की so गलीज व्यवस्थाओं और पनपते षड्यंत्रों पर उनकी बौद्धिकता पर प्रश्नचिह्न लगाती हुई मानो मुन्नी जी अपनी इस कविता में उग्र और व्यथित होकर उन्हें  इस दूषित कर्म को बंद कर समृद्ध विद्या के सागर को गंदा न करने की नसीहत देती हुई उन्हें छोड़कर जाने के लिए कह रही हैं साथ ही वह आभास भी करा रही हैं कि ऐसा न हो तुम्हारे कुकृत्य इतिहास के काले पन्नों में एक नवीन अध्याय जोड़ दें.

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मैं किस बात पर हंसूं…

यहां कविता में स्त्री मन की व्यथा का हास्य रूप so व्यंग्य तत्व में दृष्टिगत है, जहां उसके व्यक्तिगत रुप से भी आहत होने की भी संभावनाएं हैं और समाज के किसी पक्ष द्वारा भी वह आक्रांत हो सकती है जहां अपने प्रताड़ित व उद्वेलित होने पर मन का गुब्बार वह हंसकर निकाल रही है.

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आकाश

हाड़ी में भात तभी पकता है..

कविता इस संदर्भ में समझी जा सकती है so कि विभिन्न माध्यमों द्वारा अलग-अलग विचार जब एकजुट होते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरुप जो परिणाम निकलता है निश्चित ही रूप से वह किसी षड्यंत्र का भात पकता है.अर्थ गूढ़ है और किसी घटना की ओर कवयित्री इशारा कर रही है.

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आकाश

भेड़िये आते रहेंगे…

यहां कवयित्री का विदग्ध और आहत मन so समाज के धर्म मठाधीश,सत्ता प्रतिष्ठान , ठेकेदारों कोसंस्कृति और सभ्यताओं में निहित बुराईयों को दूर करने हेतु चेतावनी देती हुई प्रतीत होती है.

यहां रुचिकर यह भी है कि कवयित्री so जागरूकता और बदलाव की मशाल जलाने के लिए समाज से आह्वान नहीं करती अपितु संपूर्ण दायित्व पाठकों के कंधों पर रख देती है कि कैसे और किस तरह का कदम उनके द्वारा उठाया जाये.

जंगल में भेड़िये…

आकाश

इस कविता में संभवत: चिड़िया so कवयित्री स्वयं को कह रही है जो इस विकृत समाज को खदेड़ने व न्याय दिलाने के लिए अन्याय के युद्ध में कूद गयी है जहां उसे अपेक्षा है कि उसी के जैसा मसीहा आकर कोई इस मुहिम को आगे बढ़ाने में साथ देगा.

चुप्पी साधे रखना, मेरी चुप्पी, मेरे समय के बुद्धिजीवी…

कवितायें कहीं न कहीं प्रतिबिंब हैं समाज के बुद्धिजीवियों के विद्रुप समाज के दुराग्रह,अन्याय के प्रति मौन साध लेने का जिसकी आंतरिक व्यथा उक्त कविताओं में जहां-तहां उजागर हो रही हैं जहां कवयित्री के स्वयं को भी चुप रहकर समाज द्वारा आवाज़ दबाये जाने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है.

आकाश

मैं महसूस करती हूं कि मुन्नी गुप्ता की कविताएं प्रत्येक कविता विमर्श और विश्लेषण की मांग करती हैं. इनकी कविताओं में समाज की वास्तविक  विद्रुपता, ढंकोसला, पाखंड, षडयंत्र, समाज so और घर में किसी स्त्री पर बंदिशें उसकी वास्तविक क्षमता की अनदेखी कर उसके अस्तित्व का महत्वहीन मुल्यांकन, उसकी आंतरिक विदग्धता, मन का उबाल बहुत कुछ मन को झकझोरने वाले विषय हैं, जिनको न पढ़कर कदाचित नज़र अंदाज़ नहीं किया सकता है स्त्री मन के अंतर्द्वंद को समझने हेतु.

इन सभी कविताओं के इतर आकर्षण का जो विषय है जिसके नाम पर ही कविता का शीर्षक भी आधारित है “कविता पर मुकदमा” जो इतना रुचिकर है कि कविताओं के स्तर का अंदाजा पढ़ने से पहले ही पाठकों  so को निश्चित रूप से हो जाता है.

किताब के अंतिम पांच पृष्ठों पर कविताओं का ट्रायल चल रहा है जहां नाले, परनाले, महानालों का एकजुट होकर समुद्र और नदियों के अस्तित्व को खत्म करने का षडयंत्र जारी है so जहां दामोदर नदी के मिथकीय इतिहास को खंगाला जा रहा है, जहां तर्क वितर्कों के माध्यम से नदी के उदर में बैठे बुद्धिजीवियों, ठेकेदारों, परियोजनाओं, अप्रिय घटनाओं पर मुबाहिसों द्वारा उनकी लाशों को खोदकर निकाले जाने का प्रयास है, so जहां अच्छाई पर विकृति की विजय पर करारा तंज कसा गया है. जहां नालों परनालों और महानालों को माध्यम बनाकर समाज के विभिन्न संभ्रांत और बौद्धिक वर्ग पर आक्षेप है कि दामोदर  यानी ज्ञान के पवित्र सागर को विदूषित करने का उन्हीं की विकृतियों का ही परिणाम है.

आकाश

पांच कविताओं के भीतर यह ट्रायल so कवियित्री द्वारा उन मुद्दों पर प्रकाश डालने का भी प्रयास है जिनकी आवाजें इतिहास के गर्भ में कहीं दब गयी हैं जिनको न्याय दिलाने की कवायद इस ट्रायल में स्पष्ट रूप से दृष्टिगत है और साथ ही वर्तमान के संदर्भ में उन शिष्ट, संभ्रांत, बौद्धिक वर्ग पर कविताओं की बहस व मुबाहिसें हैं जो लामबंद होकर चुप्पी साधे कलुषित भावनाओं के मद में अपराध, अत्याचार, हनन, प्रताड़ना, क्षरण के विरूद्ध उठती आवाजों द्वारा सत्य, न्याय, विकास, जागरुकता की मांग करने वालों की आत्माओं को दबाये जा रहे हैं.

अभिव्यक्त करने के लिए कविताओं so में अथाह विषय हैं किंतु अपनी क्षमता को असमर्थ महसूस कर रही हूं जो भी समझा है जितना जाना है “कविता पर मुकदमा”  पढ़कर मुन्नी जी  अपने विचार यहां साझा कर रही हूं आपकी कविताओं को समझने का अल्प प्रयास है.

काव्य भाषा प्रांजल, धाराप्रवाह व सीधी सपाट है किंतु कविताओं के गर्भ में बहुआयामी तथ्य व रहस्य छुपे हुए है, जिनकी गहन पड़ताल करना ही मुन्नी जी के कविता संग्रह “कविता पर मुकदमा” के साथ वास्तविक न्याय करना होगा. साहित्य के क्षेत्र में एक प्रखर, निर्भीक, जागरुक, न्यायोचित व्यवहार, जनाधिकार व स्वयं के लिए आवाज़ मुखर करती एक ओजस्वी व चेती हुई कवयित्री मुन्नी गुप्ता को उनके भविष्य के लिए मेरी तरफ से असीम शुभकामनाएं.

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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