
पहाड़ की बेटी ने कायम की आत्मनिर्भरता की मिसाल!
तय किया नौकरी से लेकर सीइओ तक का सफर
- आशिता डोभाल
उत्तराखंड देवभूमि हमेशा से ही वीर यौद्धाओं
और वीरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. सदियों से यह कर्मयोगियों को तपस्थली रही है, जिसका क्रम आज भी जारी है. आज मैं आपका परिचय एक ऐसी शख्सियत से करवा रही हूं, जिनका अपनी जड़ों व संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव लगाव है, जिनके मुंह से सबसे पहला वाक्य ये था कि ‘जड़ें बुलाती हैं’ जिसने मुझे अन्दर से झकजोर दिया.उत्तराखंड
हम उत्तराखंडी संस्कृति सम्पन्न तो हैं ही पर पहाड़ के परिवेश में एक बात कहना चाहूंगी कि पहाड़ों में हर दस किमी पर बोली-भाषा और पानी का स्वाद एकदम बदला हुआ मिलेगा. पहाड़ जहां एक ओर पलायन की मार से जूझ रहा है, यहां का युवावर्ग यहां से पलायन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी है को महानगरों की जीवनशैली में पले बढ़े और अच्छी खासी नौकरी को दर किनार करके वापस अपने पहाड़ आ गए, क्योंकि ये पहाड़ हमारी जड़ हैं और इस जड़ से हमारा भावनात्मक जुड़ाव ही हमे बांधे रखता है. जब भी कोई व्यक्ति प्रवास में रहता है तो कहीं न कहीं आपके अंदर का वो पहाड़ आपको पहाड़ में आने को लालायित करता है, क्योंकि जड़ें बुलाती हैं, कहने वाली मंजू टम्टा ‘पिछोड़ी वूमेन’ मूलतः पिथौरागढ़ जिले के विकासखंड लोहाघाट की हैं और आज एक ब्रांड बन चुकी हैं.
उत्तराखंड
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पहाड़
महानगरों की जीवनशैली में पली बढ़ी होने के
बावजूद भी उनका पहाड़ों के प्रति गहरा लगाव बचपन से ही रहा. मंजू जी का कहना है कि बचपन के दिनों में पूरे सालभर में गर्मी के मौसम में पड़ने वाली दो महीने की छुट्टियों का उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता था कि कब छुट्टियां पड़ें और वो अपने ननिहाल पहुंचे. ये क्रम लगातार जारी रहा जिसके फलस्वरूप उन्हें यहां के सांस्कृतिक परिवेश का पता बचपन से ही था.जीवनशैली
अमूमन प्रवास में रहने वाले लोगों में से ज्यादातर लोग गांव आना पसंद नहीं करते हैं, सोशल मीडिया पर ही उनका पहाड़ प्रेम दिखता है जबकि मंजू टम्टा जी का कहना है कि पहाड़ के प्रति लगाव
और कुछ हट कर काम करने और उनके दृढ़ संकल्प और जुनून ने उन्हें उत्तराखंड बुलाया है, जबकि ताज ग्रुप ऑफ होटल और कितने ही ऐसे मौके आए जिनमें वो मॉडलिंग वाली लाइफ स्टाइल जी सकती थी पर उन्होंने वो सब ठुकरा कर उत्तराखंड में काम करने का मन बनाया. जो काम हमारी सरकार और पलायन आयोग नहीं कर पा रहा हैं वो हमारी संस्कृति से जुड़ाव होने की वजह से हो रहा है और लोग वापस अपनी मूल में आ रहे हैं.उत्तराखंड
मूंजू टम्टा बताती हैं कि कुमाऊं का एक पवित्र परिधान पिछौड़ा/पिछौड़ी जो कि उन्हें बचपन से ही आकर्षित करता था, पर मलाल इस बात का था कि अपनी खुद कि शादी में पिछौड़ा/पिछौड़ी नहीं पहन पाई, जिसका पछतावा उन्हें आज भी है. क्योंकि जिस परिवार में उनकी शादी हुई वो पंजाब में पले बढ़े होने के कारण वहीं की संस्कृति में रच बस गए हैं. बस यही एक कसक उनके दिल और दिमाग में घर कर गई. पिछौड़ा/पिछौड़ी पहनी हुई महिलाएं बहुत ही खूबसूरत दिखती है.
उत्तराखंड
आज उत्तराखंड कि
रंगीली पिछौड़ी सात समन्दर पार भी अपनी पहचान बना रही है, इसी रचनात्मक सोच के साथ संस्कृति संरक्षण में अपना योगदान देने वाली मंजू टम्टा के काम में उनका स्वयं का इनवेस्टमेंट है जिसे वह खुद ही वहन करती हैं.
मूंजू टम्टा
मंजू का कहना है कि अपने भाई की शादी में वो कसर पूरी करने का सुनहरा मौका उनके हाथ में आया और चंपावत में रहने वाली अपनी मौसी से जब उन्होंने 3 लेटेस्ट डिजायन
की पिछौड़ी मंगवाई. लेकिन जब वो पिछौड़ी मिली तो मन पशीज कर रह गया फिर भी जैसे कैसे शादी कि रस्म रिवाज पूरे किए और उसी दिन तय कर लिया कि अब इसी पिछौड़ी पर काम करना है.संस्कृति
उत्तराखंड में अन्य प्रदेशों के
रस्मों रिवाजों का प्रचलन दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है जिससे की हमारी आने वाली युवा पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ रहा है. लोग अपनी संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं. अपनी शादी में पिछौड़ा/पिछौड़ी का इस्तेमाल नहीं करेंगे बल्कि पंजाब का चूढ़ा, फुलकारी आदि इस्तेमाल करेंगी. बस यही एक सोच आगे बढ़ने के लिए काफी थी और इसी सोच को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से और अपने सपनों की उड़ान को पंख देने के लिए अपनी कम्पनी बनाई और दो साल तक गहन अध्ययन और चिंतन मनन करने के उपरांत दिल्ली और देहरादून के अपने कुछ मित्रों के साथ इस काम में अपना हाथ आजमाने का फैसला ले लिया.उत्तराखंड
शुरुआत में मात्र 30 पिछौड़ी के अलग
अलग डिजाइन तैयार किए और ज्यादा लोगों तक अपने उत्पाद को पहुंचाने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स अमेजॉन से संपर्क किया.उत्तराखंड
पिछौड़े की बढ़ती मांग के
साथ—साथ मंजू टम्टा का उत्साह बढ़ता ही गया और आज वे पहाड़ी ई—कार्ट की सीईओ हैं. वह अपने साथ काफी लोगों को रोजगार मुहैया करवा रही हैं और अपनी संस्कृति और विरासत को सजाने और संवारने का निरंतर प्रयास कर रही हैं.
उत्तराखंड
बेंगलुरु, भोपाल, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में रहने वाले लोगों ने जब अपने पहाड़ के उत्पाद को ऑनलाइन प्लेटफ़ार्म पर देखा तो उसे खूब पसंद किया और उसके ऑर्डर दिनों दिन बढ़ते गए.
बीते महीनों पहले बेल्जियम के एक प्रेमी युगल ने त्रिजुगीनारायण मंदिर में हिन्दू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार शादी की और मंजू टम्टा द्वारा बनाया गया पिछौड़ा पहना, जिसकी उन्होंने भूरी—भूरी प्रशंसा की. अन्य धर्मो की लड़कियां भी आज अपनी शादी में मंजू द्वारा निर्मित पिछौड़ी पहनना पसंद कर रही हैं, जो कि उनके लिए बड़े गर्व की बात है. आज उत्तराखंड कि रंगीली पिछौड़ी सात समन्दर पार भी अपनी पहचान बना रही है, इसी रचनात्मक सोच के साथ आज संस्कृति संरक्षण में अपना योगदान देने वाली मंजू टम्टा के काम में उनका स्वयं का इनवेस्टमेंट है जिसे वह खुद ही वहन करती हैं.उत्तराखंड
मंजू पिछले 3 सालों से पहाड़ी ई—कार्ट के
माध्यम से बेहतरीन कार्य कर रही हैं और उनका ये स्टार्टअप ऑनलाइन प्लेटफ़ार्म काफी प्रचलित है, पर प्रशासन स्तर पर आज तक उनको कोई प्रोत्साहन नहीं मिला. पिछौड़े की बढ़ती मांग के साथ—साथ मंजू टम्टा का उत्साह बढ़ता ही गया और आज वे पहाड़ी ई—कार्ट की सीईओ हैं. वह अपने साथ काफी लोगों को रोजगार मुहैया करवा रही हैं और अपनी संस्कृति और विरासत को सजाने और संवारने का निरंतर प्रयास कर रही हैं. मंजू आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम करने के नए—नए प्रयोग कर रही हैं.उत्तराखंड
आज वह अपनी मेहनत से उत्तराखंड
के गहने और परिधान को लोगों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं, जबकि पहाड़ में अधिकतर महिलाओं का जीवन संघर्षपूर्ण और कष्टदायक ही रहता है, महिलाओं की अपनी कोई जमा पूंजी भी नहीं रहती हैं वो आत्मनिर्भर होकर भी आत्मनिर्भर नहीं होती हैं, तो उस आत्मनिर्भरता की मिशाल कायम कर दिखाया है पहाड़ की इस बेटी ने.उत्तराखंड
मंजू टम्टा आज उन लोगों के लिए एक
सीख है जो आए दिन कहते रहते हैं कि पहाड़ों में रोजगार नहीं है. एक बार अपने स्वयं का मूल्यांकन करके देखिए, हमारे पहाड़ों में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
Swati singh says:
Beautifully written article… superb 👍
Ashi says:
Thnku🙏
Manju Tamta says:
बेहद खूबसूरत लेख। धन्यवाद आपका।