Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
इतिहास के पन्नों से आज भी गायब हैं उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के कुछ मेले

इतिहास के पन्नों से आज भी गायब हैं उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के कुछ मेले

लोक पर्व-त्योहार
हरियाली पर्व के उपलक्ष्य में लगने वाला नगदूण कीजातर/ जातोर (मेला) (जखोल गांव नगदूण का मेला) चैन सिंह रावत  उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती विकास खंड मोरी के जखोल गांव में सावन महीने की संक्रांति 15-16 अगस्त के मध्य मनाए जाने वाला एक प्राचीन औषधीय मेला नगदूण मेले के नाम से जाना जाता है, इस मेले का आयोजन पंजगायींपट्टी के आठ गांव जखोल, धारा,सावनी, सटुडी, सुनकुण्डी सिरगा पाँवतल्ला पाँवमल्ला एवं बाहर से आए हुए आगंतुक जो कि सावन महीने में अपनी बहनों की ढोकरी/कंडी (मायके पक्ष से बेटी के ससुराल में लिया जाना वाला यादगार खाद्य सामग्री) लेकर आते हैं इस मेले के एक दिन पहले ही आ जाते हैं तथा मेले में सम्मिलित होते हैं. नगदूण मेले का आयोजन 1 दिन पहले 8 गांव के लोगों एवं बाहर से आए आगंतुक गण नगदूण के लिए जंगल की छनियों मे (जहां पशुचारक अल्पकाल के लिए निवास करते हैं) अपने साथ प्राथम...
आज महाभारत में शकुनि हैं दुर्योधन हैं पर न कृष्ण हैं, न अर्जुन

आज महाभारत में शकुनि हैं दुर्योधन हैं पर न कृष्ण हैं, न अर्जुन

लोक पर्व-त्योहार
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व समूचे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है.आज के ही दिन भगवान् कृष्ण ने द्वापर युग में दुराचारी कंस के अत्याचार और आतंक से मुक्ति दिलाने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जन्म लिया था. गीता में भगवान् कृष्ण स्वयं कहते हैं कि "जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तो मैं धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतार लेता हूं- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत. अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् . धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥" -गीता‚ 4.7-8 ज्योतिष गीता में धर्म की अवधारणा सज्जन के संरक्षण और दुर्जन के विनाश से जुड़ी है तो वहीं आधुनिक संदर्भ में ‘धर्म’ से तात्पर्य है समाज व्यवस्था को युगानुसारी मानवीय मूल्यों की दृष्टि से पुन...
कृष्ण को पाने के लिए हमें कृष्ण ही होना होगा!

कृष्ण को पाने के लिए हमें कृष्ण ही होना होगा!

लोक पर्व-त्योहार
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष सुनीता भट्ट पैन्यूली ऐसा क्यों है कि बहुत सारे लोग मुझे जान नहीं पाते हैं? भगवदगीता में श्री कृष्ण ने कहा है. ऐसा इसलिए है शायद हम अपनी भौतिकता में इतने रत हैं कि स्वयं से परिचित होने के लिए कभी समय ही नहीं निकाला है हमने स्वयं के लिए. जीवन में आत्म तत्व का दर्शन बहुत साधारण सी परिभाषा है कृष्ण होने की. ज्योतिष जैसे मक्खन परिष्कृत उपादान है दूध का उसी तरह आत्मा का विशुद्ध रूप ही कृष्ण होना है अथार्त जिस तरह दूध से दही व दही को बिलोकर, मथकर मक्खन  ऊपरी सतह पर पहुंच जाता है गडमड,संघर्ष करते हुए उसी तरह जीवन प्रक्रिया में धक्के खाकर तूफानी व पथरीले संघर्ष से गुज़र कर  आत्मा के परिष्कृत स्वरुप में पहुंचने कि प्रकिया ही कृष्ण होना है. ज्योतिष कृष्ण बनने के लिए गूढ़ होना अपरिहार्य नहीं है कृष्ण यानी  भौतिकता और अध्यात्म के मध्य वह समतल ज़मीन का संतुलन जहां व्यक्...
 सबके और सबसे परे: अतिक्रामी श्रीकृष्ण

 सबके और सबसे परे: अतिक्रामी श्रीकृष्ण

लोक पर्व-त्योहार
जन्माष्टमी (30 अगस्त) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय जीवन में आस्था के सजीव आधार because भगवान श्रीकृष्ण के जितने नाम और रूप हैं वे मनुष्य की कल्पना की परीक्षा लेते से लगते हैं. देवकीसुत, यदुनंदन, माधव, मुकुंद, केशव, श्याम, गोपाल, गोपिका-वल्लभ, गोविन्द, अच्युत, दामोदर, मोहन, यशोदानंदन, वासुदेव, राधावर, मधुसूदन, गोवर्धनधारी, कन्हैया, नन्द-नंदन, मुरारी, लीला-पुरुषोत्तम, बांके-बिहारी, मुरलीधर, लालबिहारी, वनमाली, वृन्दावन-विहारी आदि सभी नाम ख़ास-ख़ास देश-काल से जुड़े हुए हैं और उनके साथ-साथ जुडीं हुई हैं अनेक रोचक और मर्मस्पर्शी कथाएँ जो श्रीकृष्ण की अनेकानेक छवियों की सुधियों में सराबोर करती चलती हैं. संसाधनों पूरे भारत में साहित्य, लोक-कला, संगीत, नृत्य, चित्र-कला, तथा स्थापत्य सभी क्षेत्रों में श्रीकृष्ण की अमिट छाप देखी जा सकती है. चित्रों में माखन चोर बाल श्रीकृष्ण, मोर पंख, क...
शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ!

शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ!

स्मृति-शेष
जेपी मैठाणी देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान क्रांतिकारी शहीद मेजर दुर्गामल्ल को शत शत नमन. शहीद मेजर दुर्गा मल्ल मूल रूप से देहरादून जिले के डोईवाला के रहने वाले थे. महान क्रांतिकारी दुर्गामल्ल का जन्म एक जुलाई  1913  को गोरखा राइफल के नायब सूबेदार गंगाराम मल्ल के घर हुआ था. माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था. बचपन से ही दुर्गा मल्ल अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे. गोरखा मिलिट्री मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है. देहरादून के विख्यात गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर चन्दन सिंह, बीर खड़क बहादुर सिंह बिष्ट, पंडित ईश्वरानंद गोरखा  और अमर सिंह थापा से प्रेरित होकर दुर्गा मल्ल ने् स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कवि और समाज सुधारक  मेजर  बहादुर सिंह बराल  और संगीत...
उत्तराखंड राज्य नेपाली भाषा समिति ने शहीद मेजर दुर्गामल का 77वां श्रद्धांजलि दिवस मनाया

उत्तराखंड राज्य नेपाली भाषा समिति ने शहीद मेजर दुर्गामल का 77वां श्रद्धांजलि दिवस मनाया

देहरादून
हिमांतर ब्यूरो, देहरादून  उत्तराखंड राज्य नेपाली भाषा समिति एवं सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में आज भारत स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड के प्रथम शहीद मेजर दुर्गा मल्ल (आजाद हिंद फौज) के बलिदान के स्मरण में 77वां श्रद्धांजलि दिवस, शहीद मेजर दुर्गा मल्ल पार्क गढ़ी कैंट में मनाया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, विशिष्ट अतिथि कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी,गोर्खाली सुधार सभा अध्यक्ष पदम सिंह थापा एवं समिति अध्यक्ष बालकृष्ण बराल द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया. तत्पश्चात शहीद मेजर दुर्गा मल्ल जी की प्रतिमा के समक्ष माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि एवं अतिथियों द्वारा किया गया. मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने शहीद को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि भविष्य ऐसे कार्यक्रमों को बड़े स्तर पर किया जाएगा, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी वीर सपूतों को ह...
सालम के क्रांतिकारी शहीदों को नहीं भुलाया जा सकता

सालम के क्रांतिकारी शहीदों को नहीं भुलाया जा सकता

स्मृति-शेष
शहीदी दिवस (25 अगस्त) पर विशेष   डॉ. मोहन चंद तिवारी आज के ही के दिन 25 अगस्त,1942 को जैंती तहसील के धामद्यो में देश की आजादी के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रहे सालम के निहत्थे लोगों पर अंग्रेज सैनिकों द्वारा जिस बर्बरता से because गोलियां चलाई गईं,उसमें चौकुना गांव के नर सिंह धानक और कांडे निवासी टीका सिंह कन्याल शहीद हो गये थे. नैनीताल भारत छोड़ो’ आंदोलन में कुमाऊं के because जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.अल्मोड़ा जनपद के पूर्वी छोर पर बसे सालम क्षेत्र को पनार नदी दो हिस्सों में बांटती है. यहां की 25 अगस्त 1942 की अविस्मरणीय घटना इतिहास के पन्नों में ‘सालम की जनक्रांति’ के नाम से जानी जाती है. नैनीताल किंतु देश इन सालम के क्रांतिकारियों के बारे में कितना जानता है? वह तो दूर की बात है,उत्तराखंड के बहुत कम लोगों को ही यह मालूम है कि देश की आजादी...
उत्‍तराखंड : एक मंदिर ऐसा भी जहां 68 वर्षों से चल रहा है पुराण सप्ताह

उत्‍तराखंड : एक मंदिर ऐसा भी जहां 68 वर्षों से चल रहा है पुराण सप्ताह

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी समूचे उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल के अंतर्गत द्वाराहाट स्थित श्री नागार्जुन देव का प्राचीन विष्णु मन्दिर एक ऐसा मन्दिर है,जहां विगत 68 वर्षों से नागार्जुन ग्रामवासी मिलकर प्रतिवर्ष नियमित रूप से भाद्रपद मास में 2 गते से पुराण ‘सप्ताह’ का आयोजन करते आए हैं,जिसमें अठारह पुराणों में से किसी एक पुराण की कथा का प्रवचन प्रतिवर्ष किया because जाता है. इस वर्ष इस पुराण सप्ताह के अंतर्गत श्री विष्णु महापुराण कथा यज्ञ का आयोजन 18 अगस्त, 2021 से 25 अगस्त तक होगा. ‘श्री विष्णु मन्दिर निर्माण एवं भागवत कथा समिति', ग्राम नागार्जुन द्वारा आयोजित इस कथा-सप्ताह के व्यासाचार्य चनोली ग्राम के प्रसिद्ध कथावाचक श्री गणेशदत्त शास्त्री, साहित्याचार्य विशारद हैं,जो पिछले अनेक वर्षों से नागार्जुन’ के कथा सप्ताहों में व्यासाचार्य का दायित्व निर्वहन करते आए हैं. इसी पुराण सप्ताह के दौरान शास्त्र...
यों ही नहीं कहा गया था प्रताप भैया को पहाड़ का मालवीय

यों ही नहीं कहा गया था प्रताप भैया को पहाड़ का मालवीय

स्मृति-शेष
ग्यारहवीं पुण्यतिथि विशेष भुवन चंद्र पंत कहते हैं कि यदि एक महिला को शिक्षित करोगे तो उसकी आने वाली पूरी पीढ़ी शिक्षित होगी और यदि एक स्कूल खुलेगा तो 100 जेलों के स्वतः दरवाजे बन्द होंगे. शिक्षा सभ्य because समाज का वह प्रवेश द्वार है, जहां से व्यक्तित्व के विकास के सारे दरवाजे खुलते हैं. इसलिए विद्यादान को सर्वोपरि माना गया है. एक विद्यालय खोलना मतलब अनन्त काल तक उसके माध्यम से अनन्त पीढ़ियों का उद्धार. लेकिन यदि आपने सैंकड़ों स्कूल खोलकर समाज को शिक्षित करने का कार्य किया है, तो निःसंदेह इससे बड़ा परोपकार कोई हो नहीं सकता. नैनीताल नैनीताल के प्रताप भैया ने दर्जनों विद्यालय खोलकर ऐसा ही कुछ कर दिखाया, जिससे उन्हें उत्तराखण्ड के मालवीय कहा गया. इन विद्यालयों के प्रारंभिक दौर में घर-धर जाकर चन्दा इकट्ठा करने से लेकर आवश्यक संसाधन जुटाने को लेकर किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा यह तो या उन ...
देबूली का दुःख

देबूली का दुःख

किस्से-कहानियां
नीमा पाठक मार्च का महिना था अभी भी सर्दी बहुत अधिक थी गरम कपड़ों के बिना काम नहीं चल रहा था, रातें और भी ठंडी. करीब रात के दस बजे होंगे आज फिर देबूली खो गई थी, उसका करीब एकbecause हफ्ते से यही क्रम चल रहा था. दिन तो ठीक था, पर रात होते ही वह घर से गायब हो जाती थी. घर के पीछे बांज का घना जंगल था, जंगली जानवर रात होते ही बाहर निकल आते थे और भयंकर आवाजें करते थे,  किसी की भी इतनी  हिम्मत नहीं होती थी कि वह रात में जंगल की तरफ अकेले जाए. पर यह आठ-नौ  साल की  बच्ची  पता नहीं किस हिम्मत से सारी रात अकेले जंगल में गुजार देती है, कोई भी इसे नहीं समझ पा रहा था. संसाधनों लालटेन व टौर्च की रोशनी में ढूढने वाले  बड़ी अधीरता से उसे आवाज दे रहे थे, आवाज से ही उनकी चिंता साफ समझ में आ रही थी लेकिन कभी भी देबुली उनको नहीं मिली. ढूढने के लिए उसकी जवान भाभी और एक दो पड़ोस के आदमी जाते थे. पूरी कोशिश करने प...