देबूली का दुःख

नीमा पाठक

मार्च का महिना था अभी भी सर्दी बहुत अधिक थी गरम कपड़ों के बिना काम नहीं चल रहा था, रातें और भी ठंडी. करीब रात के दस बजे होंगे आज फिर देबूली खो गई थी, उसका करीब एकbecause हफ्ते से यही क्रम चल रहा था. दिन तो ठीक था, पर रात होते ही वह घर से गायब हो जाती थी. घर के पीछे बांज का घना जंगल था, जंगली जानवर रात होते ही बाहर निकल आते थे और भयंकर आवाजें करते थे,  किसी की भी इतनी  हिम्मत नहीं होती थी कि वह रात में जंगल की तरफ अकेले जाए. पर यह आठ-नौ  साल की  बच्ची  पता नहीं किस हिम्मत से सारी रात अकेले जंगल में गुजार देती है, कोई भी इसे नहीं समझ पा रहा था.

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लालटेन व टौर्च की रोशनी में ढूढने वाले  बड़ी अधीरता से उसे आवाज दे रहे थे, आवाज से ही उनकी चिंता साफ समझ में आ रही थी लेकिन कभी भी देबुली उनको नहीं मिली. ढूढने के लिए उसकी जवान भाभी और एक दो पड़ोस के आदमी जाते थे. पूरी कोशिश करने पर भी वह कभी मिलती नहीं थी पर सुबह होते ही वह खुद घर आ because जाती थी. उसकी इस हालत के लिए उसकी स्वर्गवासी माँ को जिम्मेदार माना  गया जिसकी एकाध महीने पहले ही मृत्यु हो गई थी. उसकी भाभी का कहना था कि देबुली रात भर अपनी मरी हुई माँ से चिपकी रही और उसका दूध पीती रही, अब उसी का प्रेत उसे अपने पास बुला रहा है. घटना आश्चर्यजनक और अकल्पनीय थी पर रोज ही घटित हो रही थी.

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सुबह नाश्ता करके वह नियम से because अपनी गायों को चराने आ जाती थी साथ में उसके कुत्ते बिल्ली भी आते… वह अपने में ही मस्त रहती थी, कभी तो वह अपने मधुर कंठ से पहाड़ी गाने गाती और कभी खुद ही गाने बना कर गा लेती. उसका स्वर जितना मधुर था उतना ही ऊँचा भी था.

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देबुली माँ की बहुत लाडली थी उसका पूरा समय माँ के इर्द गिर्द ही बीतता था. वैसे भी वह बड़ी मासूम व प्यारी थी, सभी को बहुत प्यार करती थी. वह अन्य लड़कियों की because तरह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी, उसका प्रिय काम था नदी के बगड़ में अपनी गायों को चराना. उसका घर जंगल से लगा हुआ था और सामने ही नदी थी और खेत थे. सुबह नाश्ता करके वह नियम से अपनी गायों को चराने आ जाती थी साथ में उसके कुत्ते बिल्ली भी आते… वह अपने में ही मस्त रहती थी, कभी तो वह अपने मधुर कंठ से पहाड़ी गाने गाती और कभी खुद ही गाने बना कर गा लेती. उसका स्वर जितना मधुर था उतना ही ऊँचा भी था.

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सभी सांकेतिक फोटो pixabay.com से साभार

खेतों में काम करने वाली महिलाओं का भी उसके गीतों से खूब मनोरंजन हो जाता था. जिस दिन भी वह नहीं आती सब उसे याद करने लग जाते. पेड़ों की डाल पकड़ कर वह झूलती रहती because और गाते रहती. उसकी एक खूबी यह भी थी कि  वह अपनी गायों को बड़े प्यार से नाम से ही बुलाती थी और उनसे बड़ी मीठी-मीठी बातें करती. किसी और की  गाय की  भी देखभाल करनी हो तो वह पहले उस गाय का नाम पूछती फिर उस गाय को प्यार से कुछ समझा देती. गाते -गाते मन ऊब जाय तो वह नदी में डुबकी भी लगा लेती या गहरे पानी में चट्टान से छलांग लगाती, कपड़े सूखने तक फिर गाती रहती. वह  सभी की चहेती थी शाम को घर जा कर सारी बातें अपनी माँ को बताती.

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माँ  की मृत्यु के बाद देबुली because गुमशुम हो गई, उसका चुलबुलापन पता नहीं कहाँ गायब हो गया. प्यार तो उसे अभी भी सबका मिल रहा था पर उसकी गहरी उदासी को कोई नहीं समझ  रहा था.

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माँ बहुत बीमार रहती थी हमेशा बिस्तर पर पड़ी रहती. गायों को  चराने का काम देबूली करती बाकी काम उसकी भाभी करती जो कि जवान और बहुत सुन्दर थी. भाई सेना में because था जो साल में एकबार घर आता था दो महीने की छुट्टी लेकर. तब देबुली खूब खुश रहती थी क्योंकि भाई बड़े प्यार से उसे अपने कंधे पर बैठा कर दुकान में ले जाता और उसकी मनपसंद टॉफी दिलाता.

माँ  की मृत्यु के बाद देबुली गुमशुम हो गई, उसका चुलबुलापन पता नहीं कहाँ गायब हो गया. प्यार तो उसे अभी भी सबका मिल रहा था पर उसकी गहरी उदासी को कोई नहीं समझ because रहा था. उसकी भाभी जहाँ भी जाती उसे अपनी पीठ पर लाद लेती और हर मिलने वाले से बड़े ही विस्तार में उसकी बातें बताती, बड़े बड़े आंसू टपकाती और प्यार से उसके सर को सहलाती. हर बार, हर बात का अंत इसी निष्कर्ष से होता कि इसे इसकी माँ लग गई है किसी पूछ करने वाले से इसका इलाज करवाओ.

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एक दिन पता चला देबुली अपने घर के पीछे बांज के पेड़ के नीचे मरी पड़ी है. बेचारी देबुली चली गई और हमेशा के लिए  एक किस्सा बन गई. उसके भाई को उसकी बीमारी because का पता लगा तो संयोग से वह उसी दिन पहुँच गया जिस दिन उसका अंतिम संस्कार था. जब उसके शव को नहलाया जा रहा था तो मदद करने वाली पड़ोसन अचंभित रह गई क्योंकि उसके शरीर में जगह-जगह पिटाई के तथा दागने के निशान थे!

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देबुली से अधिक सहानुभूति उसकी भाभी बटोर रही थी, शिव शिव कैसे लाड़ प्यार से रखती है बेचारी,ऐसी भाभी भगवान सबको दे, देवी है देवी! कितनी चिंता करती है? हमेशा साथ लिए घूमती है. देबुली गर्दन लटकाए भाभी के पीठ पर रहती किसी की भी बात का कोई उत्तर नहीं देती, बाद में तो उसने आँखें भी बंद कर ली थी. because कोई प्यार से पीठ सहला दे तो चीख पड़ती. थोड़ी गर्मी हो गई थी फिर भी देबुली को उसकी भाभी पूरा ढक कर रखती थी और वह भी गठरी की तरह सिमटी रहती. उसके अपार कष्ट एक पहेली बन गए थे, हर तरफ  उसी की चर्चा रहती, इलाज के नाम पर देवताओं का जागर या झाड़ फूंक.

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एक दिन पता चला देबुली अपने घर के पीछे बांज के पेड़ के नीचे मरी पड़ी है. बेचारी देबुली चली गई और हमेशा के लिए  एक किस्सा बन गई. उसके भाई को उसकी बीमारी because का पता लगा तो संयोग से वह उसी दिन पहुँच गया जिस दिन उसका अंतिम संस्कार था. जब उसके शव को नहलाया जा रहा था तो मदद करने वाली पड़ोसन अचंभित रह गई क्योंकि उसके शरीर में जगह-जगह पिटाई के तथा दागने के निशान थे! उसने यह बात उसके भाई को बता दी.

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अंतिम संस्कार के बाद जब भाई घर आया तो पूरे घर को देखने के बाद गोठ गया जहाँ थोड़ी सी पिरूल के ऊपर चीथड़े बिछे थे तथा थाली में सूखा भात! उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी पत्नी ने लोगों की आँखों में धूल झोंक कर इतनी बड़ी साजिस रची. बहुत देर तक सिर झुकाए वह सारी बातों पर विचार करता रहा, because फिर अपना सामान उठा कर वह चल दिया फिर कभी लौट कर घर नहीं आया.

(सेवानिवृत विभागाध्यक्षा हिंदी, मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल अजमेर)

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