Month: August 2020

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-8 प्रो. गिरीश्वर मिश्र देश की नई शिक्षा नीति के संकल्प के अनुकूल भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब “शिक्षा मंत्रालय” के नाम से जाना जायगा. इस पर राष्ट्रपति जी की मुहर लग गई  है और गजट भी प्रकाशित हो गया है. इस फौरी कारवाई के लिये सरकार निश्चित ही बधाई की पात्र है. यह कदम भारत सरकार की मंशा को भी व्यक्त करता है. पर सिर्फ मंत्रालय के नाम की तख्ती बदल देना काफी नहीं होगा अगर शेष सब कुछ पूर्ववत ही चलता रहेगा. आखिर पहले भी शिक्षा मंत्रालय का नाम  तो था ही. स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद, के एल श्रीमाली जी,  छागला साहब,  नुरुल हसन साहब और प्रोफेसर वी के आर वी राव  जैसे लोगों के हाथों में इसकी बागडोर थी और संसद में पूरा समर्थन भी हासिल  था. सितम्बर 1985 में जब ‘मानव संसाधन’ का नामकरण हुआ तो श्री पी वी नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे और इस मंत्रालय...
महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

स्मृति-शेष
डॉ. अरुण कुकसाल महात्मा रामरत्न थपलियाल जी की लिखित सन् 1930 में प्रकाशित पुस्तक 'विश्वदर्शन' को पढ़कर दो बातें एक साथ मेरे मन-मस्तिष्क में कौंधी, कि हम कितना कम जानते हैं अपने आस-पास के परिवेश को, और अपनों को. दूसरी बात कि हमारे स्थानीय समाज में अपने घर-परिवार-इलाके-समाज के व्यक्तित्वों की विद्वता एवं उनके प्रयासों-कार्यों को यथोचित सहयोग-सम्मान देने की मनोवृत्ति क्यों नहीं विकसित हो पाई है? 'विश्वदर्शन' किताब दार्शनिक जगत की बहुचर्चित रचना है. विश्चस्तर पर यह पुस्तक जानी जाती है. 'महात्मा गांधी', 'महामना मदन मोहन मालवीय', 'रवीन्द्रनाथ टैगोर', 'पुरुषोत्तम दास टंडन', 'महिर्षि अरविन्द', आदि ने इस किताब पर महत्वपूर्ण प्रशंसनीय टिप्पणियां दी हैं. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के कल्जीखाल विकासखंड के 'चिलोली' गांव में सन् 1901 में जन्मे, बड़े हुए और आजीवन अपने गांव में रहे महात्मा रामरत्...
जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

पुस्तक-समीक्षा
कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं... प्रकाश उप्रेती इस किताब ने 'भाषा में आदमी होने की तमीज़' के रहस्य को खोल दिया. 'काशी का अस्सी' पढ़ते हुए हाईलाइटर ने दम तोड़ दिया. लाइन- दर- लाइन लाल- पीला करते हुए because कोई पेज खाली नहीं जा रहा था. भांग का दम लगाने के बाद एक खास ज़ोन में पहुँच जाने की अनुभूति से कम इसका सुरूर नहीं है. शुरू में ही एक टोन सेट हो जाता और फिर आप उसी रहस्य, रोमांस, और औघड़पन की दुनिया में चले जाते हैं. यह उस टापू की कथा है जो सबको लौ... पर टांगे रखता है और उसी अंदाज में कहता है- "जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में". ज्योतिष "धक्के देना और धक्के खाना, जलील करना और जलील होना, गालियां देना और गालियां पाना औघड़ संस्कृति है. अस्सी की नागरिकता के मौलिक अधिकार और कर्तव्य. because इसके जनक संत कबीर रहे हैं और संस्थापक औघड़  कीनाराम. चंदौली के गांव से नगर आए एक आप्रवासी संत....
‘वड’ झगडै जड़

‘वड’ झगडै जड़

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—43 प्रकाश उप्रेती आज बात “वड” की. एक सामान्य सा पत्थर जब दो खेतों की सीमा निर्धारित करता है तो विशिष्ट हो जाता है. 'सीमा' का पत्थर हर भूगोल में खास होता है. ईजा तो पहले से कहती थीं कि-because “वड झगडै जड़” (वड झगड़े का कारण). 'वड' उस पत्थर को कहते हैं जो हमारे यहाँ दो अलग-अलग लोगों के खेतों की सीमा तय करता है. सीमा विवाद हर जगह है लेकिन अपने यहाँ 'वड' विवाद होता है. पहाड़ में वाद-विवाद और 'घता-मघता' (देवता को साक्षी मानकर किसी का बुरा चाहना) का एक कारण 'वड' भी होता था. ईजा के जीवन में भी वड का पत्थर किसी न किसी रूप में दख़ल देता था . ज्योतिष जब भी परिवार में भाई लोग “न्यार” (भाइयों के बीच बंटवारा) होते थे तो जमीन के बंटवारे में, वड से ही तय होता था कि इधर को तेरा, उधर को मेरा. 'पंच', खेत को नापकर बीच because में वड रख देते थे. यहीं से तय हो जाता था...
“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

स्मृति-शेष
बडोनी जी की पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 18 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में ‘पहाड के गांधी’ के रूप में याद किए जाने वाले श्री इन्द्रमणि बडोनी जी की पुण्यतिथि है. मगर दुःख के साथ कहना पड़ता है कि उत्तराखंड की जनता के द्वारा इस जन नायक की पुण्यतिथि जिस कृतज्ञतापूर्ण हार्दिक संवेदनाओं के साथ मनाई जानी चाहिए उसका अभाव ही नजर आता है. इससे सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की राजनीति आज किस प्रकार की विचारशून्य, स्वार्थपूर्ण और निराशा के दौर से विचरण कर रही है? इतिहास साक्षी है कि जो कौम या समाज अपने स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला देता है, वह ज्यादा दिनों तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता. उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने महानायक के पीछे लामबन्द हो गयी थी. बीबीसी ने तब कहा था, ‘‘यदि आपने जीवित एवं चलते फिरते गांधी को देखना है तो...
पलायन का दर्द

पलायन का दर्द

किस्से-कहानियां
पार्वती जोशी ओगला में बस से उतरते ही पूरन और उसके साथी पैदल ही गाँव की ओर चल दिए. सुना है अब तो गाँव तक सड़क बन गई है. मार्ग में अनेक परिचित गाँव मिले; जिन्हें काटकर सड़क बनाई गई है . वे गाँव अब बिल्कुल उजड़ चुके हैं. वे गाँव वाले सरकार से अपने खेतों का मुआवज़ा लेने के लिए गाँव आए होंगे; उसके बाद किसी ने गाँव की सुध भी नहीं ली होगी. जो लोग गाँव छोड़कर नहीं जा पाए, दूर-दूर उनके खंडहर नुमा घर दिखाई दे रहे हैं. दूसरों को क्या दोष दें ,वे लोग भी तो आठ साल बाद गाँव लौट रहे हैं. अभी भी कहाँ लौट पाते, अगर करोना नाम की महामारी ने मुम्बई शहर को पूरी तरह से अपने चपेट में नहीं ले लिया होता. एक तरह से वे लोग जान बचाकर ही भागें हैं. पूरन सोच रहा है कि जिस स्कूल में उन्हें क्वॉरंटीन में रखा जाएगा,वहीं से तो कक्षा पाँच पास करके वह हरिद्वार भाग गया था. वहीं के गुरुकुल महाविद्यालय से पूर्व मध्यमा...
प्राकृतिक आपदाओं से कराहते लोग…

प्राकृतिक आपदाओं से कराहते लोग…

संस्मरण
बंगाण क्षेत्र की आपदा का एक वर्ष… लोगों का दर्द और मेरे पैरों के छाले… आशिता डोभाल बंगाण क्षेत्र का नाम सुनते ही मानो दिल और दिमाग पल भर के लिए थम से जाते हैं  क्योंकि बचपन से लेकर आजतक न जाने कितनी कहानियां, दंत कथाएं वहां के सांस्कृतिक और धार्मिक परिवेश पर सुनी हैं, बस अगर कहीं कमी थी, तो वो ये कि वहां की सुन्दरता और सम्पन्नता को देखने का मौका नहीं मिल पा रहा था जो सौभाग्यवश इस भ्रमण के दौरान देखने को भी मिल गया था. विगत वर्ष दिनांक 17.08.19 व 18.08.19 को बारिश के कहर से पूरी बगांण वैली का तबाह होना या यूं कहें कि एक पूरी सभ्यता की रोजी-रोटी (स्वरोजगार) के साधनों का तबाह होना किसी भी सभ्यता के लिए अच्छे संकेत तो बिल्कूल भी नहीं थे, साधन विहीन हो चुकी बगांण वैली इस वेदना से गुजर रही थी, जिसकी चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं था. आसमान का कहर उनका इतने कम समय में सब कुछ खत्म कर देगा,...
पहाड़ में बालिका शिक्षा की दशा एवं दिशा: नई शिक्षा नीति के संदर्भ

पहाड़ में बालिका शिक्षा की दशा एवं दिशा: नई शिक्षा नीति के संदर्भ

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-7 डॉ. अमिता प्रकाश शिक्षा, वह व्यवस्था जिसे मनुष्य ने अपने कल्याण के लिए, अपनी दिनचर्या में शामिल किया . मनुष्य की निरंतर बढ़ती मानसिक शक्तियों ने स्वयं को अपने परिवेश को, अपने सुख-दुख, आशाओं–आकांक्षाओं को व्यक्त और अनुभूत करने के लिए जो कुछ किया, वह जब दूसरों के द्वारा अनुकृत किया गया या अपने जीवन में उतारा गया तो वह सीख या शिक्षा कहलाया. धीरे-धीरे बदलते मानव समाज के साथ यह स्वाभाविक प्रक्रिया अस्वाभाविक और यांत्रिक होती चली गयी. भारत में शिक्षा को लेकर आजादी के समय से ही दोहरा रवैया रहा है. एक ओर राजा राममोहन राय जैसे विद्वान थे जो पश्चिमी शिक्षा से ही भारतवासियों की उन्नति को संभव देख रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधीजी का विचार था कि भारतीय जीवन पद्धति के अनुसार यहां   की परंपरागत शिक्षा को बढ़ावा दिया जाय, और ग्रामीण स्तर से भारत को मजबूत किय...
बंद सांकल

बंद सांकल

किस्से-कहानियां
लघु कथा   डॉ. कुसुम जोशी  ऊपर पहाड़ी में खूब हरी भरी घास देख कर लीला को अपनी गैय्या गंगी की खुशी आंखों में नाच उठी. गंगी की उम्र बढ़ रही है, इसीलिये उसे मुलायम-सी हरी घास, भट्ट और आटे को पीस कर बनाया दौ बहुत पसन्द था. अधिक से अधिक घास काटने के चक्कर में लीला को घर पहुंचते बहुत देर हो गई थी. ऊपर से घास का गट्ठर भी बहुत भारी होने से तेज चलना भी मुश्किल था,  उसे थकान महसूस होने लगी, उसने घास का गट्ठर सर से नीचे पटक कर रखा और वहीं पर पांव फैला कर वहीं पर बैठ गई. लम्बी गहरी सांस ली और आंगन में सरसरी नजरें दौड़ाई. बिखरी हुई घास, पत्तियां, लकड़ी के टुकड़े ज्यों के त्यों पड़े थे, सुबह जंगल जाते समय उनसे सोये हुये पति को चाय का गिलास पकड़ाते हुये आग्रह किया था  कि "उसके घास लेकर आने तक अगर वे आंगन बुहार लेगें तो कल से काटे  गेहूं को धूप लगाने के लिये फैला देगीं".  घर पर नजर पड़ी तो द्वार पर स...
गगनचुंबी इमारतों से सोसायटी तो बन गई पर पुस्तकालय क्यों नहीं बन रहे?

गगनचुंबी इमारतों से सोसायटी तो बन गई पर पुस्तकालय क्यों नहीं बन रहे?

समसामयिक
हिमांतर ब्‍यूरो नोएडा एक्सटेंशन के एस एस्पायर सोसायटी में रविवार को लघु पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ. सोसायटी के वरिष्ठ जनों, युवाओं और महिलाओं की उपस्थिति में विधिवत सरस्वती पूजन के जरिए पुस्तकालय को सोसायटी के निवासियों के लिए खोला गया. हिंदी और अंग्रेजी की ढ़ाई सौ से ज्यादा किताबों के जरिए सोसायटी में पुस्तकालय की नींव पड़ी और अन्य सोसायटी के निवासियों को भी अपने-अपने यहां पुस्तकालय खोलने का संदेश दिया गया. सोसायटी के निवासियों के साथ ही अन्य मुख्य अतिथियों की मौजूदगी में सामूहिक विमर्श के जरिए पुस्तकों के महत्व पर प्रकाश डाला गया. मंच का संचालन करते हुए अमर उजाला के चीफ सब एडिटर ललित फुलारा ने कहा कि पुस्तकों के जरिए ही हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं. पुस्तकें, उसी तरह से हैं, जैसे हमारे घर के बुजुर्ग. जिस तरह से घर के बुजुर्गों की छांव में हमें सबल मिलता है और हमारा चारित्रिक...