Month: April 2020

यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
उत्तराखंड के प्रत्येक गांव की अपनी एक जल संस्कृति हैं. यहां किसी न किसी गांव में एक स्रोत का पानी आपको जरूर मिलेगा,जिसकी अपनी एक परम्परा होती है, संस्कृति होती है। उसका वर्णन वहां किसी न किसी देवात्मा से जुड़ा मिलता है। यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल स्रोतों के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ प​त्रकार प्रेम पंचोली— जल संस्कृति भाग—1 उत्तराखंड हिमालय में जल सहजने की परम्परा अपने आप में एक मिशाल है। आप जहां कही भी जल सस्कृति के प्रति लोगों का जुड़ाव देखेंगें वहां पानी को सिर्फ देवतुल्य ही मानते है, अर्थात पानी के संरक्षण को यहां आध्यात्म का एक मूल आधार मान गया है. उत्तराखंड की जल संस्कृति को लोग वेद पुराणों में लिखित कथा के अनुरूप मानते हैं। यह सच है कि अधिकांश स्थानों के नाम इन पुराणों में मिलते-जुलते भी है. यमुना घाटी में जल संरक्षण की संस्कृति के अब अवशेष भर रह गये है तथा अधिकतर स्थानों पर ...
उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

उत्तराखंड में बेहतर रोजगार का जरिया हो सकती है केसर की खेती!

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
जे. पी. मैठाणी आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. ये नकली है इसके झाड़ीनुमा पौधो पर गुच्छों में उगने वाले फूलों को सुखकर केसर जैसा रंग निकलता है. इसलिए कृपया सावधान रहिये! जैसे ही हम केसर का नाम सुनते हैं हमें कश्मीर का ध्यान आता है. पूजा पाठ, भोजन , प्रसाद, आयुर्वेदिक ओषधियां और इसके अलावा केसर के कई उपयोग हैं. केसर के तंतु जो धागे जैसे होते हैं वो फूल के मध्य भाग के बारीक रेशे वाले पुंकेसर होते हैं. केसर के फूल की पंखुड़ियों से केसर नहीं बनता बल्कि फूल के मध्य भाग में जो धागे सदृश तंतु यानी पुंकेसर होते हैं उनको सुखाकर असली केसर बनती है! इसकी खेती सबसे अधिक खेती कश्मीर के पम्पौर और किश्तवाड़ में होती है. आजकल आप नकली केसर यानी कुसुम के कंटीले फूलों के बारे में भी ये सुनते हैं की ये केसर है लेकिन सावधान रहिये. य...
राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

Uncategorized, इतिहास, हिमाचल-प्रदेश, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी कुछ गीत हमारी चेतना में बचपन से रहे हैं। बाल-सभाओं से लेकर प्रभात फेरियों में हम उन गीतों को गाते रहे हैं। एक तरह से इन तरानों ने ही हमें देश-दुनिया देखने का नजरिया दिया। जब हम छोटे थे तो एक गीत अपनी प्रार्थना-सभा में गाते थे। बहुत मधुर संगीत और जोश दिलाने वाले इस गीत को हम कदम-ताल मिलाकर गाते थे। गीत था- 'कदम-कदम बढाये जा, खुशी के गीत गाये जा/ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पै मिटाये जा।' उन दिनों अन्तरविद्यालयी प्रतियोगिताएं होती थी, जो क्षेत्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग-अलग चरणों में होती थी। उसमें विशेष रूप से एक प्रतियोगिता थी- 'राष्ट्र-गान गायन प्रतियोगिता।' इसे एक विशेष धुन और नियत समय 52 सेकेंड में पूरा करना होता था। इसमें झंडारोहण, सलामी, राष्ट्र गान की सावधान वाली मुद्रा के सभी मानकों पर भी अंक मिलते थे। इस प्रतियोगिता में हमारी टीम मंडल स्तर तक प्रथम आती थी। तब हमें...
सागर से शिखर तक का अग्रदूत

सागर से शिखर तक का अग्रदूत

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी स्वामी मन्मथन जी की पुण्यतिथि पर विशेष। हमने 'क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़' की ओर से हमेशा याद किया। हमने श्रीनगर में उनका पोस्टर भी जारी किया था। उन्हें याद करते हुये- हे ज्योति पुत्र! तेरा वज्र जहां-जहां गिरा ढहती कई दीवारें भय की स्वार्थ की, अह्म की, अकर्मण्यता की तू विद्युत सा कौंधा और खींच गया अग्निपथ अंधकार की छाती पर तुझे मिटाना चाहा तामसी शक्तियों ने लेकिन तेरा सूरज टूटा भी तो करोड़ों सूरजों में। उनकी हत्या के बाद गढ़वाल में शोक की लहर दौड़ गई। अंजणीसैंण (टिहरी गढ़वाल) में उनके द्वारा स्थापित श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के आनन्दमणि द्विवेदी ने इस कविता से अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। कौन है यह ज्योति पुत्र! निश्चित रूप से स्वामी मन्मथन। इस नाम से शायद ही कोई गढ़वाली अपरिचित हो। साठ-सत्तर के दशक में गढ़वाल में सामाजिक चेतना के अग्रदूत। एक ऐसा व्यक्तित्व ...
सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी । सुप्रसिद्ध स्याल्दे-बिखौती मेला विशेष । सत्तर का दशक। 1974-75 का समय। हम बहुत छोटे थे। द्वाराहाट को जानते ही कितना थे। इतना सा कि यहां मिशन इंटर कॉलेज के मैदान में डिस्ट्रिक रैली होती थी। हमें लगता था ओलंपिंक में आ गये। विशाल मैदान में फहराते कई रंग के झंडे। चूने से लाइन की हुई ट्रैक। कुछ लोगों के नाम जेहन में आज भी हैं। एक चौखुटिया ढौन गांव के अर्जुन सिंह जो बाद तक हमारे साथ वालीबाल खेलते रहे। उनकी असमय मौत हो गई थी। दूसरे थे महेश नेगी जो वर्तमान में द्वाराहाट के विधायक हैं। ये हमारे सीनियर थे। एक थे बागेशर के टम्टा। अभी नाम याद नहीं आ रहा। उनकी बहन भी थी। ये सब लोग शाॅर्ट रेस वाले थे। अर्जुन को छोड़कर। वे भाला फेंक, चक्का फेंक जैसे खेलों में थे। महेश नेगी जी का रेस में स्टार्ट हमें बहुत पसंद था। वे स्पोर्टस कालेज चले गये। बाद में राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी जीते। हम ...
अलौकिक प्राकृतिक सुंदरता का खजाना-बण्डीधूर्रा ट्रैक

अलौकिक प्राकृतिक सुंदरता का खजाना-बण्डीधूर्रा ट्रैक

पर्यटन
कम और ना जाने, जाने वाले ट्रैंकिंग रूट – पार्ट-1 जे. पी. मैठाणी ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है पर्यटक स्थल पीपलकोटी। पीपलकोटी को एक वर्ष पूर्व ही नगर पंचायत बनाया गया। इसकी उत्तर पश्चित दिशा में अलकनन्दा नदी है और इसके आसपास विस्तारित है एक बड़ी घाटी जिसमें कई ग्राम पंचायत हैं। हालांकि पीपलकोटी को बद्रीनाथ एवं हेमकुण्ड का प्रमुख पड़ाव माना जाता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि पीपलकोटी के आसपास कई शानदार रोचक कम जाने जाने वाले ट्रैकिंग रूट्स हैं। इन्हीं में से एक बेहद रोमांचक थोड़ा कठिन लेकिन शानदार ट्रैकिंग रूट है पीपलकोटी बण्डीधूर्रा लाॅर्ड कर्जन पास ट्रैक। पीपलकोटी में बायोटूरिज़्म पार्क से नौरख, सल्ला-सोड़ियाणी तक ट्रैकिंग रूट सामान्य है और अधिकतर गाँव के बीच से होकर गुजरता है। सल्ला-सोड़ियाणी तक बीच में पानी के जल स्रोत हैं लेकिन स...
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
दिनेश रावत रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है। इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस्तुत...