उत्तराखंड की सल्ट क्रांति: ‘कुमाऊँ की बारदोली’

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शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर विशेष

  • डॉ. मोहन चन्द तिवारी

देश की आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के सल्ट क्रांतिकारियों की भी अग्रणी भूमिका रही थी. 5 सितंबर 1942 को महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रेरणा से जन्मे सल्ट के क्रांतिकारियों ने अपने क्षेत्र में स्वाधीनता आन्दोलन की लड़ाई लड़ते हुए सल्ट क्षेत्र के ‘खुमाड़’ नामक स्थान पर खीमानंद और उनके भाई गंगा राम, बहादुर सिंह मेहरा और चूड़ामणि चार क्रांतिकारी शहीद हो गए थे. किन्तु दुर्भाग्य यह रहा है कि साम्राज्यवादी इतिहासकारों और राजनेताओं को इन क्रांतिवीरों के बलिदान को जितना महत्त्व दिया जाना चाहिए उतना महत्त्व नहीं मिला है. आज राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में सल्ट क्रांति और स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले क्रांतिकारियों का कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता यहां तक कि हमारे उत्तराखंड के लोगों को भी इस आन्दोलन के बारे में बहुत ही कम जानकारी है.

आजादी से पहले सल्ट क्षेत्र अल्मोड़ा जिले का वह बीहड़, जंगलों से घिरा, संचार और यातायात के साधनों से विहीन पिछड़ा क्षेत्र था जहां पटवारी-पेशकार बड़े अफसरों को घूस देकर अपने तबादले करवाते थे. नदी में बहने डूबने व पेड़ से गिरने से हुई मौतों के लिये भी वे घूस लेते थे. गांव में पहली बार पहुंचने पर पटवारी-पेशकार के टीके (दक्षिणा) का पैसा वसूला जाता था. फसल पर हर परिवार से एक पसेरी अनाज और खाने-पीने का सामान जबरन इकट्ठा किया जाता था.

वास्तव में‚ प्रशासनिक अत्याचार से उत्पीड़ित सल्ट क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की आग 1921 से ही सुगलने लगी थी जब 14 जनवरी,1921 को उत्तरायणी मेले के अवसर पर बागेश्वर में बद्रीदत्त पाण्डे, हरगोबिन्द पन्त और विक्टर मोहन जोशी आदि क्रांतिकारी नेताओं के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू को समर्पित कर देने की घटना हुई थी. तब हजारों लोगों ने कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया. यहीं से राष्ट्रीय आन्दोलन की चिंगारी सल्ट में भी पहुंच गई.

अंग्रेज प्रशासकों ने पौड़ी गढवाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने के फैसले की सूचना जब हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस.डी.एम.के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये. वहां विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया.

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार स्व.देवेन्द्र उपाध्याय ने सल्ट क्रांति की घटना का जो ऐतिहासिक और राजनैतिक विश्लेषण अपने ‘सल्ट क्रांति- स्वाधीनता आन्दोलन का एक अविस्मरणीय अध्याय’ (म्यर पहाड़  5 मार्च, 2010) नामक लेख में किया है उससे पता चलता है कि उत्तराखंड के सल्ट क्षेत्र में आजादी की लड़ाई की शुरुआत कुली बेगार के आन्दोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकुमत के जनविरोधी एवं दमनकारी फैसलों की प्रतिक्रिया के कारण हुई थी. अंग्रेज प्रशासकों ने पौड़ी गढवाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने के फैसले की सूचना जब हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस.डी.एम.के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये. वहां विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया.

खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तब जिला बोर्ड के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर होते थे. उन्हीं के नेतृत्व में सल्ट क्षेत्र खुमाड़ को आन्दोलन का गढ़ बनाया गया और वहीं से अंग्रेजों के विरुद्ध जन आन्दोलन की गतिविधियां संचालित होने लगी. इस जन आंदोलन के साथ साथ  खुमाड़ निवासी पंडित पुरुषोत्तम उपाध्याय और लक्ष्मण सिंह अधिकारी के नेतृत्व में सल्ट क्षेत्र में आजादी की जंग भी शुरू  हो चुकी थी. धीरे-धीरे इस जन आंदोलन ने इतना व्यापक रूप ले लिया कि सल्ट में ब्रिटिश शासन बेअसर होता गया. आजादी की लडाई में सल्ट क्षेत्र का योगदान इसलिए भी अविस्मरणीय है कि ब्रिटिश हुकुमत के दौरान सल्ट कुमाऊं का क्षेत्र ही एक ऐसा इलाका था,जहां अंग्रेजों का कोई हुक्म नहीं चलता था. यही कारण था कि यह क्षेत्र अंग्रेजी हुकुमत की आंखों में किरकिरी बना हुआ था. यहां  वर्ष 1931 में मोहान में जंगल आंदोलन के दौरान भी ब्रिटिश हुकुमत द्वारा बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुईं और आन्दोलनकारियों पर बेरहमी से लाठी चार्ज किया गया. सन् 1921 में बागेश्वर के कुली बेगार आंदोलन  आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा जन आंदोलन था और इस आंदोलन के बाद सल्ट में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ आजादी का संघर्ष लगातार चलता ही रहा, लेकिन देश में गांधीवादी आन्दोलन के कारण 1930 के बाद यह संघर्ष और तेज हो गया.

वर्त्तमान में 5 सितंबर को जो शिक्षक दिवस मनाया जाता है, उस सन्दर्भ में भी यह उल्लेखनीय है कि व्यवसाय से शिक्षक रहे खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तथा लक्ष्मण सिंह अधिकारी के योगदान की चर्चा करना इसलिए भी आज जरूरी है, ताकि लोग जान सकें कि देश की आजादी की लड़ाई में खासकर सल्ट क्रांति के आन्दोलन को व्यवस्थित रूप से संचालित करने में उत्तराखंड के इन देशभक्त शिक्षकों की कितनी अहम भूमिका रही थी?

गांधी जी का ‘ग्राम स्वराज’ आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महामंत्र बन गया था. इसी आंदोलन के तहत 22 मार्च,1922 को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की सूचना जब सल्ट में पहुंची तो वहां की जनता में असंतोष का स्वर तीव्र हो गया था. क्षेत्रीय जनता ने पुरुषोत्तम उपाध्याय के घर पर बैठक रखकर इलाके में गांधी जी के ‘ग्राम स्वराज’ के समर्थन में ग्राम सभाओं के माध्यम से लोकहित में रचनात्मक कार्य करने का ऐतिहासक फैसला ले लिया. सल्ट की चारों पट्टियों में ग्राम पंचायतें बनाई गई और स्वच्छता, सफाई, ऊन कताई, अछूतोद्धार व रास्तों की मरम्मत का अभियान युद्धस्तर पर छेड़ा गया.पंचायतों में बड़े-बड़े संगीन मामलों में भी आम सहमति से फैसले  लिये जाने लगे. स्वयं सेवकों की भर्ती होने लगी, उस समय पुरुषोत्तम उपाध्याय जो सरकारी नौकरी में रहते हुये स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे. किन्तु इस जन आन्दोलन के जोर पकड़ने पर और इस आन्दोलन के मुख्य सूत्रधार होने के कारण उन्होंने 1927 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उनके साथ ही सहायक अध्यापक लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने भी इस्तीफा दे दिया. उस इलाके के समृद्ध ठेकेदार पान सिंह पटवाल भी इनके साथ तन मन धन से आन्दोलन में शामिल हो गये. इस सल्ट क्रांति ने उत्तराखंड को ही नहीं बल्कि समूचे देश को भी यह संदेश दिया है कि भारत की आजादी को सशक्त  और सफल बनाने में ग्राम पंचायतों और शिक्षक समुदाय की कितनी अहम भूमिका रही थी थी?

वर्त्तमान में 5 सितंबर को जो शिक्षक दिवस मनाया जाता है, उस सन्दर्भ में भी यह उल्लेखनीय है कि व्यवसाय से शिक्षक रहे खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तथा लक्ष्मण सिंह अधिकारी के योगदान की चर्चा करना इसलिए भी आज जरूरी है, ताकि लोग जान सकें कि देश की आजादी की लड़ाई में खासकर सल्ट क्रांति के आन्दोलन को व्यवस्थित रूप से संचालित करने में उत्तराखंड के इन देशभक्त शिक्षकों की कितनी अहम भूमिका रही थी?

सन् 1942 में महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो और ‘करो या मरो’ के नारे की सल्ट क्षेत्र में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई. सल्टवासियों की वीरता व एकजुटता से बौखलाकर 5 सितम्बर 1942 को अंग्रेजी हुकूमत ने एस.डी.एम. जॉनसन को विद्रोह को कुचलने के लिए सशस्त्र पुलिस बल के साथ सल्ट भेजा.उसी समय खुमाड़ में भारी जन समुदाय की मौजूदगी में आन्दोलनकारियों की सभा भी चल रही थी. सल्ट पहुंचकर जॉनसन ने वहां हो रही सभा में गोली चलाने के आदेश दे दिये, जिसमें खीमानंद, उनके भाई गंगा राम और बहादुर सिंह मेहरा, चूड़ामणि चार लोग मौके पर ही शहीद हो गए. इसके अलावा गंगादत्त शास्त्री, मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह, नारायण सिंह आदि  एक दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हुए.

‘सल्ट क्रांति’ के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता आन्दोलन के उस महासंग्राम में, जहां एक ओर अपार जनसमुदाय का जनाक्रोश अत्याचारी अंग्रेज शासकों के विरुद्ध हिलोरें मार रहा था तो दूसरी ओर एस.डी.एम. जानसन निहत्थे आन्दोलन कारियों पर अपनी सरकारी फौज से गोलियों की वर्षा करवा रहा था.

वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र उपाध्याय जी ने सल्ट क्रांति की इस घटना का जो दर्दनाक वर्णन किया है उससे सहज में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी दिलेरी और बहादुरी से यह आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी? ‘सल्ट क्रांति’ के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता आन्दोलन के उस महासंग्राम में, जहां एक ओर अपार जनसमुदाय का जनाक्रोश अत्याचारी अंग्रेज शासकों के विरुद्ध हिलोरें मार रहा था तो दूसरी ओर एस.डी.एम. जानसन निहत्थे आन्दोलन कारियों पर अपनी सरकारी फौज से गोलियों की वर्षा करवा रहा था. इसी घटना का वर्णन करते हुए देवेन्द्र उपाध्याय लिखते हैं-

“3 सितम्बर को एस.डी.एम.जानसन पुलिस, पटवारी, पेशकार और लाइसेंसदारों का जत्था लेकर खुमाड के लिये रवाना हुआ. इस जत्थे में लगभग 200 लोग थे, यह जत्था भिकियासैंण होता हुआ देघाट, चौकोट में गोलीकांड कर खुमाड़ की ओर चला. क्वैराला में जब यह जत्था पहुंचा तो लोग खुमाड़ की ओर उमड़ पड़े. लोगों को खबर मिली कि पुलिस खुमाड में सेनानियों के अड्डे पर हमला करने जा रही है. पुलिस पटवारी के साथ एस.डी.एम. बितड़ी पहुंचा तो लालमणि ने उनका रास्ता रोक दिया, उनकी पिटाई कर हाथ पीछे बांध दिये गये, इस जत्थे ने दंगूला गांव में भी लोगों को आतंकित करने के लिये उपद्रव किया. जब यह दस्ता खुमाड़ पहुंचा तो वहां पर तिल रखने की भी जगह नहीं थी. चारों ओर भीड़ ही भीड़ थी, गोविन्द ध्यानी नाम के नवयुवक ने इनका रास्ता रोककर नारेबाजी शुरु कर दी. जानसन आगे बढा और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी न देने पर आग लगाने की धमकी दी और भीड़ को आतंकित करने के लिये हवाई फायर करने लगा.

भीड़ के बीच में से नैनमणि उर्फ नैनुवा ने अचानक आगे आकर जानसन का हाथ पकड़ कर उसकी पिस्तौल छीनने का प्रयास किया,उसने पिस्तौल निकाल ली, नैनमणि जी जानसन पर लाठी से प्रहार करने जा ही रहे थे तो उन्हें पुलिस जवानों ने पकड़ लिया. जानसन ने गोली चलाने का हुक्म दिया, स्थानीय निवासी होने के कारण पुलिस के जवानों ने निहत्थी जनता पर निशाना साध कर गोली चलाने के बजाय इधर-उधर गोलियां चलाई तो जानसन ने स्वयं ही निशाना साधकर गोलियां चलानी शुरु कर दीं. इस गोलीकांड में दो सगे भाई गंगाराम और खिमानन्द वहीं पर शहीद हो गये और चार दिन बाद गोलियों से गम्भीर रूप से घायल चूड़ामणि व बहादुर सिंह मेहरा का भी स्वर्गवास हो गया. गंगा दत्त शास्त्री, मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह व नारायण सिंह भी गोली लगने के कारण घायल हो गए थे. गोली चलाने के बाद जब जानसन  घायलों के पास पहुंचा और खुमाड़ के मालगुजार पानदेव की धोती फाड़कर पट्टी बांधने लगा तो घायल बहादुर सिंह मेहरा ने गरजते हुये कहा कि ‘मलेच्छ तू हमें मत छू’.”

सल्ट के इन महान् क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उत्तराखण्ड का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया है.सल्ट क्रांति के इन सभी क्रांतिवीरों को कोटि कोटि नमन !! तथा 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय, लक्ष्मण सिंह अधिकारी जैसे राष्ट्रभक्त शिक्षकों को शत शत नमन !!

सल्टवासियों की इसी देशभक्तिपूर्ण शहादत के कारण गांधीजी ने इस क्षेत्र को ‘कुमाऊँ की बारदोली’ कहा था. गौरतलब है कि कुमाऊं का अभिप्राय उस समय टिहरी रियासत को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से था.जहां सल्ट के खुमाड़ नामक स्थान पर ये क्रांतिकारी लोग शहीद हुए थे, वहां इनकी याद में शहीद स्मारक बना है. प्रतिवर्ष 5 सितंबर को यहां इन क्रांतिकारी वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है और इनके योगदान को लक्ष्य करके कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है. सल्ट के असहयोग आन्दोलन में स्थानीय कुमाउनी कवियों ने भी ग्रामीणों के हृदय में देशप्रेम व देशभक्ति का जोश भरने का महत्त्वपूर्ण काम किया-

“हिटो हो उठो ददा भुलियो,आज कसम खौंला
हम अपणि जान तक देशो लिजि द्यौंला.”

“झन दिया मैसो कुली बेगारा,
पाप बगै है छो गंगा की धारा.
झन दिया मैसो कुली बेगारा,
आब है गयी गांधी अवतारा.
सल्टिया वीरों की घर-घर बाता,
गोरा अंग्रेजा तू छोड़ि दे राजा..”

वास्तव में सल्ट के इन महान् क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उत्तराखण्ड का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया है.सल्ट क्रांति के इन सभी क्रांतिवीरों को कोटि कोटि नमन !! तथा 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय, लक्ष्मण सिंह अधिकारी जैसे राष्ट्रभक्त शिक्षकों को शत शत नमन !!

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

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  1. उत्तराखंड के स्वर्णिम व गौरवमयी इतिहास से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत आभार 🙏

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