Tag: Yamuna Valley Culture

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत बात संग्रांद (संक्रांति) से पहले एक रोज की है. शाम के समय माँ जी से फोन पर बात हो रही थी. उसी दौरान माँ जी ने बताया कि- ‘अम अरसू क त्यारी करनऽ लगिई.’ ( हम अरसे बनाने की तैयारी में लगे हैं.) अरसे बनाने की तैयारी? मैं कुछ समझ नहीं पाया और मां जी से पूछ बैठा- ‘अरस! अरस काले मां?(अरसे! अरसे क्यों माँ?) तो माँ ने कहा- ‘भोव संग्रांद कणी. ततराया कोख भिजऊँ अर कुठियूँ.’ (कल संक्रांति कैसी है. उसी वक्त कहाँ भीगते और कूटे जाते हैं.) ‘काम भी मुक्तू बाजअ. अरस भी लाण, साकुईया भी उलाउणी, स्वाअ भी लाण अर त फुण्ड भी पहुंचाण.’ (काम भी बहुत हो जाता है. अरसे भी बनाने हैं. साकुईया भी तलनी है. स्वाले यानी पूरी भी बनानी है और फिर वह पहुंचाने भी हैं.) माँ जी से बात करते-करते मैं सोचने को विवश हो गया कि आख़िर गांव-घर से दूर होते ही हम कितनी चीजों से दूर हो जाते हैं. हमारी जीवन शैली कितनी बदल जाती है...
उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

पुस्तक-समीक्षा
पुस्तक समीक्षाचरण सिंह केदारखंडीकोटी बनाल (बड़कोट उत्तरकाशी) में 7 जून 1981 को जन्मे दिनेश रावत पेशे से शिक्षक और प्रवृति से यायावर और प्रकृति की पाठशाला के अध्येता हैं जिन्हें because अपनी सांस्कृतिक विरासत से बेहद लगाव है. अंक शास्त्र “रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं” नवम्बर 2020 में प्रकाशित लोक संस्कृति पर उनकी दूसरी किताब है इससे पहले रावत जी “रवांई क्षेत्र के लोकदेवता और लोकोत्सव” पुस्तक लिख चुके हैं जो because उनकी दूसरी किताब की प्रेरणा बनी है. समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून और संस्कृति विभाग उत्तराखंड के आर्थिक अनुदान से प्रकाशित 294 पृष्ठ की इस किताब में 5 अध्याय हैं और कवर पेज (महासू देवता) सोबन दास जी का बनाया हुआ है... अंक शास्त्र उत्तराखंड समूचे भारत के साथ साथ हिमालयी राज्यों में भी अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक अस्मिता के लिए जाना जाता है. भावना के उदात्त स्फुरणों में...
हाँ! सच है कि रवाँई में जादू है

हाँ! सच है कि रवाँई में जादू है

साहित्‍य-संस्कृति
दिनेश रावतकभी दबे स्वर तो कभी खुलम-खुला अकसर चर्चा होती ही रहती है कि रवाँई में जादू है. बहुत से दिलेरे या रवाँईवासियों की अजीज मित्र मण्डली में शामिल साथी सम्बंधों का because लाभ उठाते हुए चार्तुयपूर्ण अंदाज में कुशल वाक्पटुता के साथ किन्तु-परन्तु का यथेष्ट प्रयोग करते हुए उन्हीं से ही पूछ लेते हैं कि ‘हमने सुना है कि रवाँई में जादू है...!’ यद्यपि इस दौरान ‘हमने सुना है’ पर विशेष बलाघात रहता है. मत के अनु समर्थन या पुष्टि के लिए वे तकिया कलाम बन चुके- ‘जो गया रवाँई वो बैठा घर ज्वाई’ का भी सहज सहारा ले लेते हैं. ऐसे ही प्रश्नों से जब भी because मेरा सामना हुआ है मैंने सहज स्वीकारा है कि— हाँ! सच है कि रवाँई में जादू है, मगर वह बंगाल के काले जादू जैसा नहीं बल्कि उससे बहुत भिन्न मान-सम्मान, स्वागत-सत्कार, अनूठे अपनेपन-आत्मीयता व विश्वास का जादू है जो जाने-अनजाने, चाहते-न-चाहते हुए ...
यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
उत्तराखंड के प्रत्येक गांव की अपनी एक जल संस्कृति हैं. यहां किसी न किसी गांव में एक स्रोत का पानी आपको जरूर मिलेगा,जिसकी अपनी एक परम्परा होती है, संस्कृति होती है। उसका वर्णन वहां किसी न किसी देवात्मा से जुड़ा मिलता है। यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल स्रोतों के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ प​त्रकार प्रेम पंचोली—जल संस्कृति भाग—1 उत्तराखंड हिमालय में जल सहजने की परम्परा अपने आप में एक मिशाल है। आप जहां कही भी जल सस्कृति के प्रति लोगों का जुड़ाव देखेंगें वहां पानी को सिर्फ देवतुल्य ही मानते है, अर्थात पानी के संरक्षण को यहां आध्यात्म का एक मूल आधार मान गया है. उत्तराखंड की जल संस्कृति को लोग वेद पुराणों में लिखित कथा के अनुरूप मानते हैं। यह सच है कि अधिकांश स्थानों के नाम इन पुराणों में मिलते-जुलते भी है. यमुना घाटी में जल संरक्षण की संस्कृति के अब अवशेष भर रह गये है तथा अधिकतर स्थानों पर ...
कोठी जिसने बनाया कोटी को ‘कोटी’

कोठी जिसने बनाया कोटी को ‘कोटी’

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
दिनेश रावतरवांई क्षेत्र अपनी जिस भवन शैली के लिए विख्यात है वह है क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बने चौकट। चौकट शैली के ये भवन यद्यपि विभिन्न गांवों में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं मगर इन सबका सिरमोर कोटी बनाल का छः मंजिला चौकट ही है, जो 1991 की विनाशकारी भूकम्प सहित समय-समय पर घटित तमाम घटनाओं को मात देते हुए आज भी अपने वजूद को बचाए हुए है।किसी गुप्तचर ने राज दरबार में इस बात की खबर पहुंचा दी कि बनाल पट्टी के कोटी गांव में कुछ बाहरी लोग आकर अपना राजमहल तैयार कर रहे हैं। इस बात खबर लगते ही राजा ने उन्हें दरबार में हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया गया।उल्लेखनीय है कि बस्टाड़ी नामे तोक में पहली बार जब इस भवन की बुनियाद बनाई गई तो भवन शैली के जानकार लोग इसकी विशालता की कल्पना करने लग गए। कोटी में निवास करने वालों गंगाण रावतों का यह पहला भवन था। इसलिए जैसे ही इसका निर्माण कार्य...