Tag: संस्कृत

सामरिक इतिहास के लिए विख्यात मातृवंशीय नंबूदरी ब्रह्मणों की विवाह पद्धति

सामरिक इतिहास के लिए विख्यात मातृवंशीय नंबूदरी ब्रह्मणों की विवाह पद्धति

ट्रैवलॉग
मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. so आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं.  नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है. इनकी लेखक की विभिन्न विधाओं को हम हिमांतर के माध्यम से 'मंजू दिल से...' नामक एक पूरी सीरिज अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पेश है मंजू दिल से... की प्रथम किस्त... ...
भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-3 प्रो. गिरीश्वर मिश्र भारत विकास और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा एक जनसंख्या-बहुल देश है. इसकी जनसंख्या में युवा वर्ग का अनुपात अधिक है और आने वाले समय में यह और भी बढ़ेगा जिसके लाभ मिल सकते हैं, बशर्ते शिक्षा के कार्यक्रम में जरूरी सुधार किया जाए. यह आवश्यक होगा कि कुशलता के साथ सर्जनात्मक योग्यता को भी यथोचित स्थान मिले. शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का माध्यम होती है और उसी से समाज की चेतना और मानसिकता का निर्माण होता है. कहना न होगा कि भारत के पास ज्ञान और शिक्षा की एक समृद्ध और व्यापक परम्परा रही है, किन्तु अंग्रेजी उपनिवेश के दौर में एक भिन्न दृष्टिकोण को लागू करने के लिए और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के अनुरूप यहां की अपनी ज्ञान-परम्परा और शिक्षा-पद्धति को प्रश्नांकित करते हुए लार्ड मैकाले द्वारा निर्दिष्ट व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा थोपी गई. इसने द...
कुछ लोग दुनिया में खुशबू की तरह हैं

कुछ लोग दुनिया में खुशबू की तरह हैं

संस्मरण
देश—परदेश भाग—4 डॉ. विजया सती बुदापैश्त में हिन्दी की तमाम गतिविधियों की बागडोर मारिया जी लम्बे समय से संभाले हुए हैं. डॉ मारिया नैज्येशी! बुदापैश्त में प्रतिष्ठित ऐलते विश्वविद्यालय के भारोपीय अध्ययन विभाग की अनवरत अध्यक्षा! मारिया जी विश्वविद्यालय स्तर पर प्राचीन यूनानी, लैटिन और संस्कृत भाषाएँ पढ़ रही थी जब अपने गुरु प्रोफ़ेसर तोत्तोशि चबा की प्रेरणा से वे भारत केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में हिन्दी पढ़ने आई. बाद में भारत के प्रेमचंद और हंगरी से मोरित्स जिग्मोंद – इनके साहित्य पर शोध किया और पीएचडी की डिग्री भारत से हासिल की. मारिया जी कहती हैं कि जब हंगरी में उन्होंने हिन्दी पढ़ना शुरू किया – तब न हिन्दी की किताबें थी, न हिन्दी जानने वाले अधिक लोग. फिर जब वे हिन्दी पढ़ने भारत आईं तो यहाँ का जीवन उनके लिए बिलकुल नया और अलग अनुभव लेकर आया. फिर भी भारत ने उन्हें प्रेरित किया. भारत से लौ...