देश—परदेश भाग—4
- डॉ. विजया सती
बुदापैश्त में हिन्दी की तमाम गतिविधियों की बागडोर मारिया जी लम्बे समय से संभाले हुए हैं. डॉ मारिया नैज्येशी! बुदापैश्त में प्रतिष्ठित ऐलते विश्वविद्यालय के भारोपीय अध्ययन विभाग की अनवरत अध्यक्षा!
मारिया जी विश्वविद्यालय स्तर पर प्राचीन यूनानी, लैटिन और संस्कृत भाषाएँ पढ़ रही थी जब अपने गुरु प्रोफ़ेसर तोत्तोशि चबा की प्रेरणा से वे भारत केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में हिन्दी पढ़ने आई. बाद में भारत के प्रेमचंद और हंगरी से मोरित्स जिग्मोंद – इनके साहित्य पर शोध किया और पीएचडी की डिग्री भारत से हासिल की.
मारिया जी कहती हैं कि जब हंगरी में उन्होंने हिन्दी पढ़ना शुरू किया – तब न हिन्दी की किताबें थी, न हिन्दी जानने वाले अधिक लोग. फिर जब वे हिन्दी पढ़ने भारत आईं तो यहाँ का जीवन उनके लिए बिलकुल नया और अलग अनुभव लेकर आया. फिर भी भारत ने उन्हें प्रेरित किया. भारत से लौटकर जब उन्होंने विभाग में हिन्दी पढ़ाना शुरू किया तो फिर पलट कर नहीं देखा. वे बताती हैं कि विभाग में पहले हिन्दी शिक्षण सामग्री नहीं थी, पढ़ाना कठिन था. किन्तु अब भारतीय दूतावास और भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् के सहयोग से विभाग का समृद्ध पुस्तकालय है, हिन्दी फिल्म देखने की व्यवस्था है.
मारिया जी भारतीय दूतावास के सहयोग से हिन्दी की ओरिएन्टेशन कक्षाओं का संचालन भी करती हैं – इसमें हंगरी के भारत प्रेमी हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति जानने के लिए आते हैं. सामान्य भाषा ज्ञान के अतिरिक्त आमंत्रित अतिथि विद्वान का भाषण भी होता है, जिसमें भारतीय कला, साहित्य, समाज और संस्कृति संबंधी जानकारी दी जाती है.
मारिया जी खुले मन से कहती हैं कि मैं हिन्दी की बदौलत विश्वभर में घूमी हूँ. देश और विदेश से हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेने के लिए उनके पास निमंत्रण आते हैं. मारिया जी ने हिन्दी से हंगेरियन और हंगेरियन से हिन्दी अनुवाद भी किए हैं.
मारिया जी भारतीय दूतावास के सहयोग से हिन्दी की ओरिएन्टेशन कक्षाओं का संचालन भी करती हैं – इसमें हंगरी के भारत प्रेमी हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति जानने के लिए आते हैं. सामान्य भाषा ज्ञान के अतिरिक्त आमंत्रित अतिथि विद्वान का भाषण भी होता है, जिसमें भारतीय कला, साहित्य, समाज और संस्कृति संबंधी जानकारी दी जाती है. सब मिलकर होली, दीवाली और हिन्दी सप्ताह मनाते हैं.
मारिया जी बताती हैं कि भारतीय दर्शन, कला, साहित्य और संस्कृति में हंगरी वासियों रूचि और जिज्ञासा है. भारत-हंगरी मैत्री संघ की स्थापना लगभग चालीस वर्ष पहले हुई. इस संघ की अध्यक्ष के रूप में मारिया जी ने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं.
मारिया जी को भारत आना पसंद है, भारत में रिश्तों की अनौपचारिकता पसंद है जहां सब एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं. लेकिन वे जानती हैं कि अब भारत में भी बहुत कुछ बदल रहा है.
मारिया जी कहती हैं कि हिन्दी के लिए समर्पित भाव से काम करने की जरूरत है. इस भाषा में अपार संभावनाएं हैं. विभाग में हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की रूचि आधुनिक भारत में है, विभाग पहले भारत यात्रा पर भी आता था किन्तु कई कारणों से कई गतिविधियाँ ठहर गई हैं.
भारतीय भोजन, अचार, आम जैसे फल और भारतीय मसाले पसंद करने वाली मारिया जी की प्रिय जगह हैं – पौंडीचेरी और केरल. भीड़-भाड़ के स्थान पर शांत जगह और प्रकृति का साथ उन्हें पसंद है. उन्हें भारतीय कला फ़िल्में पसंद हैं, शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह उनके प्रिय कलाकर हैं. उन्हें भारत में सभी धार्मिक स्थानों पर जाना पसंद है और भारत की ख़बरें भी वे पढ़ती हैं, पर भारतीय राजनीति को समझना इतना आसान नहीं – वे कहती हैं.
मारिया जी कहती हैं कि हिन्दी के लिए समर्पित भाव से काम करने की जरूरत है. इस भाषा में अपार संभावनाएं हैं. विभाग में हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की रूचि आधुनिक भारत में है, विभाग पहले भारत यात्रा पर भी आता था किन्तु कई कारणों से कई गतिविधियाँ ठहर गई हैं. किन्तु मारिया जी ? उनके जीवन में ठहराव कहाँ? उनके जीवन का तो जैसे लक्ष्य ही यह है ….चरैवेति चरैवेति..
हंगरी से … एक छोटी सी मुलाकात और
भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक केंद्र के आयोजन में हिन्दी प्रेमी आमंत्रित किए गए थे – वहां मुलाक़ात हो गई भारत प्रेमी और हिन्दी प्रेमी डॉ. एवा अरादि से – वे हंगरी में हिन्दी की आरंभिक जानकार कही जा सकती हैं.
किसी समय जब वे आज के मुम्बई यानी बंबई में रहीं, तो उन्होंने भारतीय विद्या भवन में हिन्दी भाषा सीखी. केवल सीखी नहीं बल्कि उससे जुड़ गईं. इतना कि 1975 में छात्रा के रूप में नागपुर में पहले हिन्दी सम्मलेन में भाग लेने आई. यहीं से हिन्दी लेखकों की गरिमावान पीढ़ी – महादेवी वर्मा , जैनेन्द्र कुमार, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, मन्नू भंडारी, राजेन्द्र यादव – को सुनकर उनके लेखन के अनुवाद के प्रति उनका रुझान हुआ.
विद्या भवन से अध्ययन पूरा कर स्वदेश लौटने पर लम्बे समय तक उन्होंने दो विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्यापन किया. केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में हिन्दी पढ़ने के लिए उनके विद्यार्थियों का चयन हुआ. आर्थिक कारणों से एक विश्वविद्यालय में हिन्दी का अध्यापन बंद हो गया, लेकिन वे आशा बांधे रही कि भविष्य में आर्थिक स्थिति ठीक होगी और हिन्दी अध्यापन शुरू होगा.
इसी समय उन्होंने प्रेमचंद साहित्य को पढ़ा और समझा, फिर उनके उपन्यास निर्मला और दस कहानियों का हंगेरियन अनुवाद किया. यह प्रकाशित और प्रशंसित हुआ.
भारत से अपने जुड़ाव को वे आज भी ज्यों का त्यों महसूस करती हैं. वे बताती हैं कि हंगरी में स्वाभाविक रूप से भारत के प्रति लगाव है. यहाँ योग, भारतीय शास्त्रीय नृत्य और भोजन को बहुत पसंद किया जाता है. हिन्दी न सीखने वाले भी भारत के बारे में बहुत कुछ जानते हैं और जानना चाहते हैं. वे गांधी और टैगोर का आदर करते हैं, पैसा जमा किया तो एक बार भारत जाना चाहते हैं!
डॉ अरादि आज 82 वर्ष की हैं. ईश्वर में भरोसा रखती हैं, परिवार के साथ बुदापैश्त में रहती हैं.
इन दिनों वे घर से एक महत्वपूर्ण काम कर रही हैं. भारत में हमारे प्राच्यविद – Our Orientalists in India शीर्षक पुस्तक तैयार कर रही हैं – आने वाले समय में हंगेरियन भाषा में इसका प्रकाशन होगा. दूर देश में भारत और हिन्दी को लेकर यह सक्रियता – खुशी कितनी स्वाभाविक है!
(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर (हिन्दी) हैं। साथ ही विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी – ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी – हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रही हैं। कई पत्र–पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं।)