Tag: गढ़वाली

दुदबोली का सम्मान : प्रतिवर्ष सम्मानित 4 नवोदित उदयीमान लेखक

दुदबोली का सम्मान : प्रतिवर्ष सम्मानित 4 नवोदित उदयीमान लेखक

देहरादून
गढ़वाली-कुमाउनी एवं जौनसारी तथा हिन्दी भाषा में 4 नवोदित उदयीमान लेखकों को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाएगा- पुष्कर सिंह धामी वर्ष 2014 के बाद बुधवार को सचिवालय में पहली बार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की बैठक हुई. संस्थान की प्रबन्ध कार्यकारिणी एव साधारण सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार की ओर से प्रथम बार लोक भाषाओं व लोक साहित्य में कुमाउनी, गढ़वाली, अन्य उत्तराखण्ड की बोलियों व उपबोलियों, पंजाबी एवं उर्दू में दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन व अनवरत साहित्य सेवा तथा हिन्दी में उत्कृष्ट महाकाव्य/खण्डकाव्य रचना, काव्य रचना कथा साहित्य व अन्य गद्य विधाओं के लिए प्रतिवर्ष उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान प्रदान करने घोषणा की. इसके साथ ही गढ़वाली, कुमाउनी व जौनसारी तीन लोक भाषाओं तथा हिन्दी भाषा में 4 नवोदित...
पहाड़ी लोक-जीवन की सांस्कृतिक यात्रा-नाटक ‘आमक जेवर’

पहाड़ी लोक-जीवन की सांस्कृतिक यात्रा-नाटक ‘आमक जेवर’

कला-रंगमंच
मीना पाण्डेय गढ़वाली, कुमाउनी एवं जौनसारी अकादमी-दिल्ली सरकार के तत्वावधान में 3 जुलाई 2022 से 9 जुलाई 2022 तक पहली बार आयोजित "बाल उत्सव-2022" (बच्चों की उमंग लोकभाषा के संग) के अंतर्गत 7 जुलाई 2022 को नाटक 'आमक जेवर' देखने का अवसर मिला. भाषाविद रमेश हितैषी द्वारा लिखित कहानी को मंच पर अपने निर्देशन के माध्यम से जिवित करने का कार्य किया श्री के•एन•पाण्डेय "खिमदा" ने. कहानी एक कुमाउनी वृद्धा व उसके जेवरों के इर्द-गिर्द घूमती है. एक भरे-पूरे परिवार की बुढिया आमा का अपने जेवरों के प्रति बहुत लगाव है. उसके पति की मृत्यु के बाद बच्चों के बीच जेवरों के बंटवारे की बात उठती है जिसे आमा नकार देती है. चार बेटों व दो बेटियों का ब्याह कर चुकी आमा के पास गांव में केवल एक बेटा उसकी सेवा के लिए है. बीमार पडने और फिर आमा की मृत्यु के बाद एक बार फिर से परिवार में जेवरों के लिए विवाद उठता है जो अंतत...
गढ़वाल की प्रमुख बोलियाँ एवं उपबोलियाँ

गढ़वाल की प्रमुख बोलियाँ एवं उपबोलियाँ

साहित्‍य-संस्कृति
संकलनकर्ता : नवीन नौटियाल उत्तराखंड तैं मुख्य रूप सै गढ़वाळ और कुमौ द्वी मंडलूं मा बंट्यु च, जौनसार क्षेत्र गढ़वाळ का अधीन होणा बावजूद अपणी अलग पैचाण बणाण मा सफल रै। इले ही यु अबि बि विवादौकु बिसै च कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा च कि गढ़वळी की एक उपबोली च। [उत्तराखंड को मुख्य रूप से गढ़वाल और कुमाऊँ दो मंडलों में विभाजित किया गया है, जौनसार क्षेत्र गढ़वाल के अधीन होने के बावज़ूद अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफल हुआ है। इसीलिए यह अभी भी विवाद का विषय है कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा है या गढ़वाली की ही एक उपबोली है।] गढ़वळी का अंतर्गत आंण वळी मुख्य बोली और उपबोली ई छन – [गढ़वाली के अंतर्गत आने वाली प्रमुख बोलियाँ और उपबोलियाँ इस प्रकार हैं –] #जौनसारी - गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र जौनसार-बावर में #जौनपुरी - टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में #रवाँल्टी - उत्तरका...
उत्तराखंड की संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को

उत्तराखंड की संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को

स्मृति-शेष
डॉ. मोहन चंद तिवारी अगस्त का महीना आजादी,देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावनाओं से जुड़ा एक खास महीना है. इसी महीने का 4 अगस्त का दिन मेरे लिए इसलिए भी खास दिन है क्योंकि इस दिन 24 वर्ष पूर्व 4 अगस्त,1996 को गुमानी पंत के योगदान पर राष्ट्रीय समाचार पत्र 'हिदुस्तान' के रविवासरीय परिशिष्ट में 'अपनी संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को' इस शीर्षक से मेरा एक लेख छपा था. मैंने दूसरे समाचार पत्रों में भी इसे कई बार प्रकाशनार्थ भेजा था लेकिन उन्होंने छापा नहीं, क्योंकि ज्यादातर राष्ट्रीय स्तर के सम्पादकों की मानसिकता होती है कि वे कुमाऊंनी कवि या कुमाऊंनी साहित्य से सम्बंधित लेखों को आंचलिक श्रेणी का मानते हुए राष्ट्रीय समाचार पत्रों में ज्यादा महत्त्व नहीं देते हैं.हालांकि नवरात्र और शक्तिपूजा और पर्व-उत्सवों पर 'नवभारत टाइम्स' और 'हिंदुस्तान' आदि समाचार पत्रों में मेरे लेख सन् 1980 से छपते रहे हैं. क...
लोक संस्कृति में रंग भरने वाला पहाड़ का चितेरा  

लोक संस्कृति में रंग भरने वाला पहाड़ का चितेरा  

उत्तराखंड हलचल
ललित फुलारा भास्कर भौर्याल बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. उम्र सिर्फ 22 साल है. पर दृष्टिकोण और विचार इतना परिपक्व कि आप उनकी चित्रकारी में समाहित लोक संस्कृति और आंचलिक परिवेश को भावविभोर होकर निहारते रह जाएंगे. उनके चटक रंग बरबस ही अपनी दुनिया में खोई हुई आपकी एकाग्रता, को अपनी तरफ खींच लेंगे. वो जो अंकित कर रहे हैं, अपनी जड़ों की तरफ ले जाने की खुशी से आपको भर देगा. भास्कर के तैलीय चित्र हृदय की गहराई में जितने उतरते हैं, उनकी कुमाऊंनी में प्रकृति के सौंदर्यबोध वाली कविताएं उजाड़ मन में पहाड़ प्रेम को उतना ही ज्यादा भर देती हैं. भास्कर अब तक 200 से ज्यादा चित्र बना चुके हैं, जिनमें ग्रामीण परिवेश की बारीकियां, पहाड़ की संस्कृति में अहम भूमिका निभाने वाले वाद्य यंत्र, उत्तराखंड की संस्कृति के प्रतीक लोकनृ­त्य झोड़ा और चांचरी, एवं कुमाऊंनी, गढ़वाली और जौनसारी वेशभूषा.... आदि के व...
अपनी संस्कृति से अनजान महानगरीय युवा पीढ़ी

अपनी संस्कृति से अनजान महानगरीय युवा पीढ़ी

समसामयिक
अशोक जोशी पिछले कुछ सालों से मैं उत्तराखंड के बारे में अध्ययन कर रहा हूं और जब भी अपने पहाड़ों के तीज-त्योहारों, मेलों, मंदिरों, जनजातियों, घाटियों, बुग्यालो, वेशभूषाओं, मातृभाषाओं, लोकगीतों, लोकनृत्यों, धार्मिक यात्राओं, चोटियों, पहाड़ी फलों, खाद्यान्नों, रीति-रिवाजों के बारे में पढ़ता हूं तो खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मैंने देवभूमि उत्तराखंड के गढ़देश गढ़वाल में जन्म लिया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे संसाधनों के अभाव में हमारे लोग रोजी—रोजी की तलाश में महानागरों की ओर पलायन किया है. समय के साथ-साथ पहाड़ों से पलायन इस कदर होने लगा कि गांव—गांव के खाली होने लगे। हमारे पहाड़ की समृद्ध मातृ भाषा (गढ़वाली—कुमाऊंनी), सहयोगात्मक लोक परंपराएं, पहाड़ी भोज्य पदार्थ (आलू, मूली की थींचवाणी, गहत का फाणू, भट की भट्टवाणी आदि) धार्मिक क्रियाकलाप (रामलीला, पांडवलीला, मंदिरों में नव...